August 06, 2025
Hindi Hindi

धर्म संसार / शौर्यपथ / सांदीपनि ऋषि विष्णु के मत्स्य अवतार की कथा के बाद कहते हैं कि अब मैं तुम्हें श्रीहरि के कच्छप अवतार की कथा सुनाता हूं।

फिर सांदिपनि ऋषि महाराज महाबली और उनके असुरों एवं इंद्र और उनके देवताओं द्वारा समुद्र मंथन, अमृत वितरण के दौरान युद्ध और असुरों द्वारा धनवं‍तरि देव से अमृत का कलश छुड़ाकर भाग जाना फिर श्रीहरि के मोहिनी रूप में प्रकट होने की कथा को श्रीकृष्‍ण और बलराम को सुनाते हैं।

रामानंद सागर के श्री कृष्णा में जो कहानी नहीं मिलेगी वह स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें...वेबदुनिया श्री कृष्णा


सभी असुर अमृत कलश के अमृत को पहले पीने की होड़ के चलते आपस में लड़ते हैं तभी मोहिनी रूप धारण कर भगवान विष्णु असुरों के समक्ष प्रकट होकर नृत्य करने लगते हैं। सभी का ध्यान उस ओर चला जाता है। राहु, केतु और महाबली सभी दैत्य उनका नृत्य देखने के बाद पूछते हैं सुंदरी कौन हो तुम? सभी देवता भी वहां आकर खड़े हो जाते हैं।

मोहिनी रूप धारण किए विष्णु पहले तो कहते हैं कि मैं स्वच्छंद नारी हूं। कुलीन लोगों का मनोरंजन करती हूं। फिर वे असुरों को धर्म और न्याय की बात बताकर लुभाते हैं और कहते हैं कि जो उच्च कुल का होता है वह कलह को छोड़कर न्याय करता है। फिर मोहिनी असुरों को अपने शब्द और मोहजाल में फांसकर कहती हैं कि मैं यही सोचकर इतनी दूर से आपकी सभा देखने आई थी कि परंतु यहां तो कलह कलेश है, द्वैष है, अन्याय है तो यहां मेरा मन नहीं लगेगा। अच्छा मैं चलती हूं। तभी एक असुर कहता है, हे मोहिनी तुम्हारे यहां आने से ऐसा लगा जैसे वसंत ऋतु आ गई हो। अगर हम यह कलह छोड़कर द्वैष मिटा दें तो क्या तुम यहां रुकोगी? और हम सबका मनोरंजन करोगी?

मोहिनी कहती हैं बड़े चतुर हो परंतु तुमने न्याय की बात नहीं की? तब असुर कहता है हम अन्याय भी नहीं करेंगे। तब मोहिनी कहती हैं परंतु इसका निर्णय कौन करेगा? तब वह असुर कहता है तुम। महाबली भी कहते हैं हां तुम। हम न्याय-अन्याय, धर्म-अधर्म का सारा निर्णय तुम पर छोड़ते हैं। यह सुनकर मोहिनी कहती हैं प्रमाण। तब एक असुर अमृत कलश दिखाकर कहता है प्रमाण तो ये है। ये है अमृत कलश जिसे चाहे पिला दो और जिसे चाहे प्यासा मार डालो।

फिर मोहिनी उस असुर के हाथ से अमृत कलश लेकर कहती हैं, ना ना ना, इतना बड़ा उत्तरदायित्व मेरे कंधों पर ना डालो। मेरे कंधे बड़े कोमल है। मेरा मन बड़ा चंचल है। शास्त्र कहता है कि कुलीन पुरुषों को किसी स्वच्छंद नारी पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए। तुम महर्षि कश्यप के कुल से हो, फिर सोच लो।

तब महाबली कहते हैं, देवी बड़े से बड़ा वीर, कुलीन, महात्मा और योगी जब किसी सुंदर स्त्री के नयनों से घायल हो जाता है तो वह अपना सबकुछ उसकी ठोकरों में डाल देता है। तब उसे उचित-अनुचित, पाप-पुण्य का कोई भान नहीं रहता। यही दशा हमारी है। जो तुम्हारी इच्‍छा हो वही करो। योग्य-अयोग्य, पात्र-कुपात्र तुम्ही जानों। जिसे अमृत के योग्य समझो उसे अमृत दो और जिसे अपने सौंदर्य के योग्य समझो उसे अपने सौंदर्य का रसपान कराओ और जिसे अपने योग्य समझो उसे अपना आप सौंप दो। जो तुम्हें पा लेगा उसे फिर अमृत की क्या आवश्यकता।

यह सुनकर मोहिनी कहती हैं कि सत्य कहा, प्राणी यदि ऐसा ही समर्पण भगवान के समक्ष कर दे तो तक्षण मुक्ति पा ले। परंतु शायद भगवान नारी के ही रूप में अधिक शक्तिशाली होते हैं। यह सुनकर दैत्य समझ नहीं पाते हैं कि यह मोहिनी क्या कहना चाहती है तभी मोहिनी कहती हैं, अच्‍छी बात है अब मैं ही न्याय करूंगी। फिर मोहिनी अपनी माया से नृत्यसभा का निर्माण करके सभी देवता और दानवों को अलग-अलग लाइन से बैठा देती हैं। फिर वह कहती हैं कि जैसा कि आपने स्वयं ही कहा है कि मैं जिसे जिस योग्य समझूंगी, उसे उसी रस का पान कराऊंगी। स्वीकार है? सभी देवता और दानव एक साथ कहते हैं स्वीकार है, स्वीकार है परंतु नृत्य के साथ। मोहिनी कहती हैं अच्छा। फिर वह अमृत कलश को एक निश्चित जगह पर रखकर नृत्य करने लगती हैं।

एक ओर देवताओं के राजा इंद्र और दूसरी ओर दैत्यों के राजा महाबली बैठकर नृत्य का आनंद उठाते हैं। फिर मोहिनी नृत्य गान करते हुए ही कलश उठाकर पहले इंद्र को अमृत पान कराती हैं और पुन: कलश को ले जाकर रख देती है। फिर अपनी माया से कलश को बदलकर उस कलश को उठाकर लाती हैं और बली को उस कलश का जल पिलाती हैं और पास ही बैठे दूसरे असुर को भी जल पिलाती हैं। सभी समझते हैं कि ये अमृत है। तभी एक असुर मदमस्त होकर उठता है और मोहिनी के साथ ही नृत्य करने लगता है। यह देखकर दो असुर और उठकर नृत्य करने लगते हैं।

कलश बदल-बदल कर वह देव और असुरों को जल पिलाती रहती हैं। फिर कुछ देव भी अमृत पीने के बाद नृत्य करने लगते हैं। तभी एक असुर मोहिनी के इस छल को देख लेता है। तब वह चुपचाप वेश देवता का धारण करके देवताओं की पंक्ति में बैठ जाता है। उस असुर का यह छल चंद्रदेव देख लेते हैं।

मोहिनी उसे अमृत पिलाने लगती है तभी वह देवता कहते हैं मोहिनी ये तो दानव है। तभी मोहिनी बने भगवान विष्णु अपने असली रूप में प्रकट होकर अपने सुदर्शन चक्र से उस दानव की गर्दन काट देते हैं और फिर वे वहां से अदृश्य हो जाते हैं। यह देखकर बाली कहता है धोका, हमारे साथ धोका हुआ है। यह सुनकर इंद्रदेव कहते हैं आक्रमण और वहां युद्ध प्रारंभ हो जाता है।

सांदीपनि ऋषि कहते हैं तब देवता और असुरों में भयानक युद्ध छिड़ गया जिसे पुराणों में देवासुर संग्राम कहा गया है। अमृत पिकर देवता बलवान हो चुके थे। इसलिए इंद्र के हाथों स्वयं महाराज बली भी मारे गए। लेकिन दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य संजीविनी विद्या जानते थे। इसलिए युद्ध के पश्चात उन्होंने उन सभी दैत्यों को जिनके सिर धड़ से अलग नहीं हुए थे उनको जीवित कर दिया। सबसे पहले उन्होंने राजा बली को जीवित किया।

राजा बली परम भक्त प्रहलाद के पौत्र थे और परमवीर भी थे। इंद्र से उस हार का बदला लेने के लिए शुक्राचार्य ने राजा बली से सौ यज्ञ कराने का अनुष्ठान कराया। 99वें यज्ञ के दौरान शुक्राचार्य ने उनको आशीर्वाद देकर कहा कि अब केवल एक यज्ञ रह गया है और यदि वह भी निर्विघ्न पूरा हो जाए तो आपके 100 यज्ञ पूरे हो जाएंगे और उसी समय इंद्रपद सर्वदा के लिए आपका हो जाएगा। स्वर्ग पर देवताओं का वर्चस्व सदैव के लिए समाप्त हो जाएगा। यह यज्ञ तुम्हारे तप की ही नहीं, हमारे बल और विद्या की भी परीक्षा है। अब देवगुरु बृहस्पति भी देख लेंगे कि समस्त देवताओं को तेजहिन करके यह शुक्राचार्य असुर जाति को त्रिलोकी का राज्य दिला सकता है। यह सुनकर महाबली कहता है कि और विष्णु भी देख लेंगे कि उनकी माया और छल से असुर शक्ति को आगे बढ़ने से नहीं रोका जा सकता है।

उधर, सभी देवता गुरु बृहस्पति के साथ भगवान विष्णु के पास जाकर कहते हैं प्रभु यदि उसका सौंवा यज्ञपूर्ण हो जाएगा तो वह तीनों लोकों का अधिपति हो जाएगा। विष्णु कहते हैं कि जो तपस्या करेगा और कर्म करेगा वो तो उसका फल पाएगा ही, ये तो प्रकृति का विधान है। इस पर बृहस्पति कहते हैं कि परंतु जो प्रकृति का विधान विनाश की ओर जाने लगे और अधर्म की स्थापना हो तो उसे रोका जाना चाहिए प्रभु। आपको प्रकृति के विधान के ऊपर जाकर दैवीय विधान के माध्यम से इस विनाश को रोकना चाहिए। यह सुनकर विष्णु कहते हैं आपका वचन सत्य है। हम अपने उत्तरदायित्व का अवश्य निर्वाह करेंगे।

फिर सांदीपनि ऋषि बताते हैं कि भगवान विष्णु वामनरूप में अवतार लेकर महाबली की यज्ञशाल के द्वार पर उस समय पहुंचे जब उसका सौवां यज्ञ आरंभ होने वाला था। एक सेवक आकर महाबली को बताता है यज्ञशाला के द्वार पर एक याचक आया है और वह आपसे मिलने की याचना कर रहा है। यह सुनकर शुक्राचार्य कहते हैं कि महाराज यज्ञ का संकल्प करने जा रहे हैं वो जो भी मंगता है, वहीं से देकर भेज दो। तब सेवक कहता है कि मैंने उसे मुंहमांगी भिक्षा लेने की बात कही थी परंतु वह महाराज के हाथों भिक्षा लेने की हठ कर रहा है। जय श्रीकृष्ण।

 

धर्म संसार / शौर्यपथ / कुण्डली में राहु-केतु परस्पर 6 राशि और 180 अंश की दूरी पर दृष्टिगोचर होते हैं जो सामान्यतः आमने-सामने की राशियों में स्थित प्रतीत होते हैं। कुण्डली में राहु यदि कन्या राशि में है तो राहु अपनी स्वराशि का माना जाता है। यदि राहु कर्क राशि में है तब वह अपनी मूलत्रिकोण राशि में माना जाता है। कुण्डली में राहु यदि वृष राशि मे स्थित है तब यह राहु की उच्च स्थिति होगी। मतान्तर से राहु को मिथुन राशि में भी उच्च का माना जाता है। कुण्डली में राहु वृश्चिक राशि में स्थित है तब वह अपनी नीच राशि में कहलाएगा। मतान्तर से राहु को धनु राशि में नीच का माना जाता है। लेकिन यहां राहु के पहले घर में होने या मंदा होने पर क्या सावधानी रखी जानिए।

कैसा होगा जातक : दौलतमंद तो होगा पर खर्चा बहुत होगा। यहां व्यक्ति की बुद्धि ही उसका साथ देगी बशर्ते वह अति कल्पनावादी न हो। 1 से 6 तक जैसी बुध की हालत वैसी राहु की मानी जाएगी। 7 से 12 तक जैसी‍ केतु की हालत वैसी राहु होगी। पहला घर मंगल और सूर्य से प्रभावित होता है, यह घर किसी सिंहासन की तरह होता है। पहले घर में बैठा ग्रह सभी ग्रहों का राजा माना जाता है। जातक अपनी योग्यता से बड़ा पद प्राप्त करेगा। इस घर में राहु उच्च के सूर्य के समान परिणाम देगा, लेकिन सूर्य को ग्रहण माना जाएगा अर्थात सूर्य जिस भाव में बैठा है उस भाव के फल प्रभावित होंगे। यदि मंगल, शनि और केतु कमजोर हैं तो राहु बुरे परिणाम देगा अन्यथा यह पहले भाव में अच्छे परिणाम देगा।


5 सावधानियां :
1. व्यर्थ के बोलते रहने से बचें और वाणी पर नियंत्रण रखें।
2. सोच-समझकर बुद्धि से काम लें और अति कल्पना से बचें।
3. व्यर्थ के तंत्र, मंत्र या यंत्र आदि के चक्कर में न पढ़ें।
4. पिता, गुरु और अपने से बड़ों का सम्मान करें।
5. ससुराल पक्ष से संबंध अच्छे रखें। ससुराल वालों से बिजली के उपकरण या नीले कपड़े नहीं लेने चाहिए।


क्या करें :
1. गले में चांदी पहनें।
2. बहते पानी में नारियल भी बहाएं।
3. बहते पानी में 400 ग्राम सुरमा बहाएं।
4. गुरु का उपाय करें।
5. 1:4 के अनुपात में जौ में दूध मिलाएं और बहते पानी में बहाएं।

 

नजरिया / शौर्यपथ / एक अनुमान है कि भारत में लगभग एक करोड़ 60 लाख ऐसे कामगार हैं, जो सिलाई-कढ़ाई-बुनाई जैसे कामों से जुडे़ हुए हैं। ये कामगार मुख्यत: ग्रामीण भारत में रहते हैं, और हमारे कपड़ा उद्योग की उस जटिल प्रक्रिया का हिस्सा हैं, जिस पर शायद ही कभी दुनिया की नजर जाती है। न सिर्फ संख्या बल के लिहाज से यह एक बड़ी तादाद है, बल्कि ये कामगार हमारे कुशल श्रमबल का हिस्सा हैं। पेशेवर गहन जानकारियों के लिहाज से ये लोग काफी हुनरमंद हैं और इन्होंने यह ज्ञान बेहद काबिल मास्टरों से सीखा है, जो सदियों से हमारे समाज का हिस्सा रहे हैं।
1960 के दशक में पहली बार मैंने पश्चिम बंगाल के गांवों में कपड़े पर सोने की बारीक कढ़ाई का काम होते देखा। वहां पर यह काम सदियों से चलन में रहा है। कहा जाता है कि सोने की कढ़ाई की शुरुआत ईरान में हुई और भारत में यह सल्तनत काल में आई। इन गांवों की कशीदाकारी को बंगाल के नवाबों का संरक्षण हासिल था। वास्तव में, हमारा देश ऐसी ग्रामीण-कार्यशालाओं से भरा पड़ा है, उन्हें आर्थिक मदद और बेहतर बुनियादी ढांचे की जरूरत है, क्योंकि इसके बिना अब ये जीवित नहीं रह सकेंगी। महामारी के बाद देश के हथकरघा व दस्तकारी क्षेत्र को जीवित रहने के लिए रास्ता चाहिए। सरकारी एंपोरियमों की अब कोई प्रासंगिकता नहीं है।
दरअसल, इस संदर्भ में हमारा नजरिया ही गलत है। एक बेहतर हैंडलूम उत्पाद को, जो न सिर्फ मनमोहक, बल्कि पारिस्थितिकी के अनुकूल भी होता है, सहानुभूति के साथ नहीं बेचा जा सकता। उसे मार्केटिंग व रिटेलिंग की आधुनिक तकनीक की जरूरत है। उसे दुनिया में श्रेष्ठतम रूप में पेश किए जाने की आवश्यकता है। प्रतिस्पद्र्धी बाजार में बने रहने का यही एक रास्ता है। यह हम सब जानते हैं कि देश में सबसे ज्यादा रोजगार मुहैया कराने वाले क्षेत्रों में कृषि के बाद कपड़ा क्षेत्र दूसरे नंबर पर आता है। 200 साल पहले तक दुनिया को कपडे़ का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता हमारा देश था। मगर आजादी के मिलने तक यह अपने ही कपड़ों की कॉपी इंग्लैंड के औद्योगिक क्षेत्रों से लेकर इस्तेमाल करने वाला देश बन गया। जाहिर है, कारीगरी की हमारी समृद्ध आर्थिकी के तहस-नहस हो जाने के कारण भारत के ग्रामीण बाजार बुरी तरह प्रभावित हुए।
लेकिन आजादी के बाद सरकार ने अपनी हस्तशिल्प विरासत को फिर से जिंदा करने की कोशिश की और चमत्कारिक रूप से भारत ने कई बिसरा दिए गए कौशल को पुनर्जीवित भी कर लिया। यह एक दूरदर्शिता भरा लक्ष्य अवश्य था, मगर इसे आसानी से हासिल नहीं किया जा सका। भारतीय दस्तकारी की विरासत को सहेजने के लिए निरंतरता से भरा एक प्रगतिशील पुनरोद्धार आंदोलन चलाया गया। इन कपड़ों को ‘विश्वकर्मा’ प्रदर्शनियों की एक शृंखला के रूप में देश-दुनिया में लॉन्च किया गया।
पिछले दो दशकों से भी अधिक वक्त में भारतीय फैशन उद्योग ने काफी प्रगति की है। और बाकी दुनिया के उलट इसके पास डिजाइनरों की एक देशज टीम है। इस टीम में सिर्फ वही नहीं हैं, जो रैंप पर दिखते हैं, बल्कि इसका हिस्सा वे कामगार भी हैं, जो गांवों में बसते हैं। इनमें बुनकर, कशीदाकारी करने वाले, और साज-सज्जा की डिजाइन तैयार करने वाले कारीगर शामिल हैं। ज्यादातर भारतीय वस्त्रों और उनके ग्लैमराइजेशन का श्रेय इन्हें दिया जा सकता है। महामारी के कारण इस क्षेत्र की हालत को देखते हुए बहुत जरूरी है कि सरकार अपनी तरफ से कोई पहल करे, जैसा उसने 1950 के दशक में किया था, ताकि देश की दस्तकारी को बचाया जा सके। दुनिया आज कपड़ों के उत्पादन में काफी उन्नत मशीनरी का इस्तेमाल करती है और इसका असर क्या होता है, यह हम बनारसी साड़ी के मामले में देख सकते हैं। चीनी उत्पादों ने बनारस के हैंडलूम बाजार को बरबाद कर दिया है। महामारी बाद इस क्षेत्र के कामगारों के लिए आजीविका का गंभीर संकट खड़ा हो जाएगा। वस्त्र के क्षेत्र में एक बौद्धिक संपदा के आगे संकट का सवाल तो खैर है ही।
सरकार को इस क्षेत्र में स्टार्ट-अप को प्रोत्साहित करने के लिए आगे आना चाहिए। ग्रामीण कृषि पृष्ठभूमि में दस्तकारी वाले कपड़ों का बेहतर उत्पादन हो सकता है। इसके लिए बुनियादी ढांचे या कौशल विकास में ज्यादा निवेश की जरूरत भी नहीं। यह दुनिया में हमारा इकलौता ‘मेड इन इंडिया बाइ हैंड’ ब्रांड होगा।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं) रितु कुमार, फैशन डिजाइनर

 

सम्पादकीय लेख / शौर्यपथ / जिस देश की सीमा पर तनाव हो, उसका एकजुट होना समय की सबसे बड़ी मांग है। यह एकजुटता देश के जवानों की शहादत का भी सबसे सच्चा सम्मान है। आज जब देश के लोग और तमाम नेता शहीदों का सम्मान कर रहे हैं, उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं, तब यह हमारे लिए देश के पक्ष में विचार करने का सही समय है। ध्यान रहे, चीन के भी जवान शहीद हुए हैं, लेकिन उनके सम्मान के लिए उसके नेताओं के पास दो शब्द भी नहीं हैं। चीन ने कितने जवान खोए हैं, वह शायद ही बताए, लेकिन भारत में एक-एक जवान की जान कीमती है। वाजिब सम्मान के साथ अपने जवानों की शहादत को सदियों तक याद करना हमारी परंपरा रही है। इस परंपरा के सच्चे सम्मान का ही एक बुनियादी व्यवहार हमारी एकजुटता है।
आज ज्यादातर राजनीतिक पार्टियों ने अपने आपसी मतभेदों को भुला दिया है और वे सरकार व सेना के साथ खड़ी हैं। सीमा पर होने वाला कोई भी संघर्ष किसी एक नेता या सरकार की जिम्मेदारी नहीं, देश की जिम्मेदारी है। सैनिक देश की रक्षा की शपथ लेते हैं, देश के लिए जान गंवाते हैं। ऐसे में, हमारे रक्षा मंत्री और अन्य नेताओं ने बिल्कुल सही कहा है, शहादत बेकार नहीं जाएगी। यदि हम वाकई चाहते हैं कि शहादत सार्थक हो, तो हमें सबसे पहले एकजुट होने की जरूरत को महसूस करना होगा। राजनीतिक एकजुटता सबसे जरूरी है और प्रधानमंत्री के नेतृत्व में आगामी बैठकों का खास महत्व है। ध्यान रहे, चीन के प्रति हमारा सांस्कृतिक-ऐतिहासिक-आर्थिक-राजनीतिक जुड़ाव हमें किसी निर्णय लेने की प्रक्रिया में संकोची बना देता है। हम एक कदम आगे बढ़ाकर दो कदम पीछे खींच लेते हैं, लेकिन हम मिल-जुलकर यह नहीं देखते कि चीन कदम-दर-कदम कहां से कहां पहुंच गया है। हमें एकजुट होकर इस सच को सामने लाना चाहिए। ध्यान रहे, चीन अपने लोगों को यह नहीं बता रहा कि उसने भारत की जमीन पर कहां-कहां, किस-किस आधार पर दावा कर रखा है। वह गलवान घाटी को चीनी क्षेत्र बता रहा है, तो यह जरूरी है कि हम दुनिया को सच बताएं।
सख्त शासन की वजह से चीन अपने इतिहास, विरासत व पूर्वजों के विरुद्ध चल रहा है, वरना उसे याद रहता कि चीनी धर्मगुरु कन्फ्यूसियस ने कहा था, ‘एकता, वास्तव में, लोगों को अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करने की अनुमति देती है, और फिर खुशी हासिल करती है’। चीन एक समय बुद्धमय भी हो गया था, आज भी वहां बुद्ध का बहुत प्रभाव है। उसे सोचना चाहिए कि जिस देश की जमीन पर वह निगाह गड़ाए बैठा है, वह देश उसी बुद्ध का है, जिनके शांति और अहिंसा के संदेश के सामने संसार झुक जाता है। चीन सब भूल गया, पर हमें नहीं भूलना है। सीमा पर तनाव भी हमारे लिए चौतरफा प्रेरणा का समय है। कूटनीतिक, राजनीतिक, सामरिक, आर्थिक, सामाजिक और साथ ही कोरोना के मोर्चे पर भी हमें और एकजुट होकर मुकाबला करना है। 45 साल बाद जो शहादत हुई है, वह चेतावनी है कि हमें अपना रास्ता ठीक कर लेना चाहिए। देशसेवा के प्रति समर्पण के अभाव और एकजुटता की कमी की वजह से ही भारतीय लोकतंत्र की शोभा कम होती है और चीन हमारी खामियों के बहाने ही लोकतंत्र और हमारी ताकत का मखौल उड़ाता है। बेशक, हम एकजुट हुए, तो सबको सही जवाब मिल जाएगा।

 

मेलबॉक्स / शौर्यपथ / चीन से जिस तरह का अंदेशा था, आखिर उसने वही विश्वासघात किया। भारतीय सैनिकों के शहीद होने की खबर से पूरा देश शोकाकुल है। भारत इसका बदला जरूर लेगा, लेकिन पीठ पीछे वार करके नहीं। इस हमले में चीन की कायरता ही नजर आई। इसलिए अब हमें अपनी चीन-नीति बदल लेनी चाहिए। हमें अब मान लेना चाहिए ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ कभी नहीं हो सकते। अब चीन से सभी तरह के राजनीतिक, आर्थिक, अंतरराष्ट्रीय और सैन्य समीकरण बदल जाने चाहिए। चीन को अलग-थलग करने की लड़ाई अब प्रमुखता से लड़ने की जरूरत है। भारत के लिए यह माकूल समय है, जब लगभग आधी दुनिया चीन के खिलाफ है। अब भारत सन 1962 वाला नहीं रहा। चीन को मजबूत जवाब दिया जाना चाहिए।
आशीष गुसाईं, नई दिल्ली

अश्लीलता के खिलाफ
विगत कुछ वर्षों में आधुनिकता और मनोरंजन के नाम पर फिल्मों समेत वीडियो, गाने आदि में धड़ल्ले से अब अश्लीलता परोसी जाने लगी है। सबसे बड़ी दिक्कत की बात यह है कि लोग इसे आधुनिकता का प्रतीक मानकर सामान्य जीवन में भी उतारने लगे हैं। इससे न केवल भारतीय संस्कृति और सभ्यता पर गहरा दाग लग रहा है, बल्कि बच्चे, बुजुर्ग, युवा, सभी के मन-मस्तिष्क में अश्लीलता पनपने लगी है। इसी का नतीजा है कि देश के विभिन्न हिस्सों से दुष्कर्म की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। प्राचीन समय में सिनेमा जागरूकता, आचार-व्यवहार, संस्कार, न्याय और सभ्य जीवन शैली सिखाने का एक सशक्त-सकारात्मक माध्यम था, पर आज यह हमारे समाज को दीमक की तरह चट कर रहा है। साफ है, सेंसर बोर्ड इसके लिए जिम्मेदार है। अश्लीलता रोकने की बजाय वह अपनी मोटी कमाई के लिए बेसिर-पैर की फिल्मों को जारी करने की अनुमति देता है। इस प्रवृत्ति पर जल्द से जल्द रोक लगनी चाहिए।
मनकेश्वर महाराज ‘भट्ट’, मधेपुरा

चीन की चाल
सुपर पावर बनने की चीन की चाहत ने आज दुनिया के लिए एक चुनौती खड़ी कर दी है। पहले उसने कोरोना रूपी संकट दुनिया के सामने खड़ा किया और अब अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए भारतीय सीमा में दखल दे रहा है। इस स्थिति में भारत की विदेश नीति कमजोर पड़ती दिख रही है। स्थिति यह है कि चीन ने अपने नापाक इरादों को पूरा करने के लिए नेपाल को भी हमारे खिलाफ खड़ा कर दिया है, जबकि अब तक काठमांडू हमारा सबसे विश्वसनीय मित्र रहा है। प्रधानमंत्री को बाकी सभी देशों के साथ मिलकर चीन से आ रही चुनौती से निपटना चाहिए। उन्हें चीन के खिलाफ डटकर खड़ा होना चाहिए।
समरजीत कुमार संजीत, वैशाली

बढ़ती परेशानियां
फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या ने देश में नई बहस छेड़ दी है। यह बताता है कि देश में तनाव और अवसाद के चलते आत्महत्या के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। ऐसे मामलों में नौजवान तुलनात्मक रूप से अधिक दिख रहे हैं, जो देश और समाज के लिए गंभीर संकेत है। आज अवसाद और तनाव की समस्या इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि शायद ही कोई इससे अछूता है। सेलिब्रिटी इससे ज्यादा पीड़ित हैं, क्योंकि उन पर पूरे देश और समाज की नजर होती है। परेशानी की बड़ी बात यह है कि लोग इस समस्या पर अपनों से भी खुलकर बातें नहीं करते। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि आज भी हमारे देश में शिक्षा की कमी है। घर, स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, कहीं पर भी अवसाद या हताशा पर चर्चा नहीं होती, इसे अनसुना कर दिया जाता है। इसी के कारण पीड़ित अपनी समस्या पर बात नहीं कर पाता औरवह अंदर-अंदर घुटता रहता है, और अंत में आत्महत्या की राह चुन लेता है। इस समस्या पर वक्त रहते ध्यान देना होगा।
ममता रानी
काशीपुर, उत्तराखंड

 

ओपिनियन /शौर्यपथ / भारत और चीन का आपसी रिश्ता एक नाजुक, गंभीर और खतरनाक मोड़ पर पहुंच चुका है। केंद्र सरकार और देश के सामने बड़ा सवाल यही है कि गलवान घाटी में जो ताजा हिंसक झड़प हुई है, जिसमें हमारे 20 अफसर और जवान शहीद हुए, उसका किस तरह से जवाब दिया जाए? आगे की हमारी चीन-नीति क्या हो? इन सवालों का जवाब तलाशने के लिए हमें भारत-चीन संबंधों की हकीकत और पृष्ठभूमि पर गौर करना होगा।
सच्चाई यही है कि आजादी मिलने के बाद से ही चीन हमारे लिए सबसे बड़ी सामरिक चुनौती रहा है। इस सच की अनदेखी 1950 के दशक में भारत सरकार ने की। तब हमारा मानना था कि दोनों देश विकासशील हैं, इसलिए उनके हितों में समन्वय बनाया जा सकता है। मगर भारत जहां शांति के पथ पर चल रहा था, वहीं चीन ने अक्साई चिन को अपने कब्जे में ले लिया। जानकारों की मानें, तो उस वक्त बीजिंग सीमाओं को लेकर भारत से समझौता करना चाहता था, लेकिन भारतीय हुकूमत का अपनी भूमि से कोई समझौता न करना एक स्वाभाविक कदम था। सन 1962 में चीन ने भारत पर हमला बोल दिया, जिसमें हमें भारी नुकसान उठाना पड़ा। इस युद्ध के बाद भारत और चीन के संबंध सीमित हो गए। इस बीच चीन ने पाकिस्तान से अपने रिश्ते सुधारने शुरू कर दिए, ताकि इस्लामाबाद की नई दिल्ली के प्रति पारंपरिक दुश्मनी का वह फायदा उठा सके। उसने पाकिस्तान की आर्थिक-सामरिक ताकत को मजबूत किया, यहां तक कि उसके परमाणु हथियार कार्यक्रम को भी बुनियादी तौर पर सहायता पहुंचाई। आज भारत को चीन-पाकिस्तान के इसी गठजोड़ का मुकाबला करना है।
चीन-भारत युद्ध के बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा पर दो बड़ी हिंसक घटनाएं हुई हैं। पहली वारदात साल 1967 में सिक्किम में हुई, जिसमें हमारे 88 सैनिक शहीद हुए थे, जबकि 300 से ज्यादा चीनी सैनिकों की जान गई। दूसरी झड़प 1975 में अरुणाचल प्रदेश में हुई थी। उसमें असम राइफल्स के जवानों पर हमला किया गया था। इसके बाद बीते 45 वर्षों में गलवान घाटी की घटना से पहले भारत और चीन के सैन्य ‘गश्ती’ दल में आपसी टकराव तो हुए, लेकिन किसी सैनिक ने जान नहीं गंवाई।
दरअसल, वर्ष 1988 में राजीव गांधी के प्रधानमंत्री-काल में भारत ने अपनी चीन-नीति बदली। यह तय किया गया कि बीजिंग के साथ सीमा-विवाद सुलझाने की कोशिश तो होगी, लेकिन साथ-साथ तमाम क्षेत्रों में उसके साथ आपसी सहयोग भी बढ़ाया जाएगा। तब से अब तक हर भारतीय हुकूमत ने कमोबेश इसी नीति का पालन किया है। यही कारण है कि आज भारत और चीन के आर्थिक व व्यापारिक रिश्ते काफी मजबूत व व्यापक हो गए हैं। दिक्कत यह रही कि 1988 की नीति में सीमा-विवाद सुलझाने की बात तो कही गई, लेकिन चीन ने कभी इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। हालांकि, 1993 के बाद दोनों देशों ने यह तय किया था कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति के लिए वे आपस में विश्वास बहाली के ठोस उपाय करेंगे। फिर भी, समय-समय पर चीन का रवैया बदलता रहा। यहां तक कि नियंत्रण रेखा को लेकर उसने अपना रुख अब तक स्पष्ट नहीं किया है। इसी वजह से वास्तविक नियंत्रण रेखा के कई स्थानों पर दोनों देशों की सोच एक-दूसरे से अलग है, और दोनों के सैन्य दल आपस में गुत्थमगुत्था हो जाते हैं।
तो क्या 1988 से चल रही हमारी चीन-नीति पर अब पुनर्विचार करने की जरूरत है? यह तभी हो सकता है, जब भारत सरकार ही नहीं, पूरी सामरिक और राजनीतिक बिरादरी में चीन की चुनौती का सामना करने के लिए दृढ़ एकजुटता बने। बेशक 1978 में अपनी अर्थव्यवस्था को खोलने के बाद चीन ने बहुत तरक्की कर ली है। उसने मैन्युफैक्चरिंग के मामले में इतनी ताकत हासिल कर ली है कि उसे ‘दुनिया की फैक्टरी’ कहा जाने लगा है। वहां न सिर्फ हर तरह के उत्पाद बनने लगे हैं, बल्कि उनकी दुनिया भर में आपूर्ति भी होने लगी है। मगर यह भी सच है कि चीन के बढ़ते दबाव के कारण और अंतरराष्ट्रीय नियमों की उसके द्वारा की जा रही अनदेखी को देखते हुए पूरी दुनिया चिंतित है और कई देशों ने आपसी सहयोग बनाना शुरू कर दिया है।
हाल के वर्षों में अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत ने जिस तरह से आपस में रिश्ते बढ़ाए हैं, उससे भी चीन को ऐतराज है। इन चारों देशों का यह सहयोग अब सामरिक स्तर पर पहुंच गया है। हालांकि, इस चतुष्कोणीय संबंध, यानी क्वाड के साथ-साथ रूस और चीन के साथ मिलकर भारत त्रिपक्षीय बातचीत भी कर रहा है, जिसका स्पष्ट संदेश है कि नई दिल्ली अपने हितों की रक्षा के लिए हर देश से संबंध बढ़ाना चाहती है। भारत बेशक अमेरिका के करीब जाता दिख रहा है, लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि हम वाशिंगटन के पिछलग्गू बनकर बीजिंग का विरोध करने को तैयार हैं। हरेक स्वतंत्र राष्ट्र की तरह हम भी अपनी कूटनीति खुद तैयार कर रहे हैं, जिसमें अपने हितों का पूरा ध्यान रखने का प्रयास किया जा रहा है।
जाहिर है, चीन की ताजा हिंसक कार्रवाई का हमें पूरी दृढ़ता के साथ मुकाबला करना होगा। हाल की घटनाओं को देखकर यही लगता है कि चीन हर हाल में भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा को कम करना चाहता है। लेकिन हमें हर तरीके से अपने मान-सम्मान की हिफाजत करनी है। इसके साथ-साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा में बदलाव लाने की बीजिंग की हरेक कोशिश को भी नाकाम करना होगा, और हमें ऐसे उपाय भी करने पड़ेंगे कि वह मई, 2020 से पहले की स्थिति में लौटने को मजबूर हो। अपनी अर्थव्यवस्था की रक्षा करते हुए हमें चीन के साथ अपने आर्थिक और व्यापारिक संबंधों की भी समीक्षा करनी होगी। इस दिशा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ के आह्वान पर संजीदगी से आगे बढ़ना होगा, और मैन्युफैक्र्चंरग के मामले में देश को आगे ले जाना ही होगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) विवेक काटजू, पूर्व राजदूत

 

लाइफस्टाइल / शौर्यपथ / कोरोना महामारी की वजह से हुए लॉकडाउन के बाद लाखों लोग अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। किसी को रोजगार खोने का डर तो किसी को सेहत बिगड़ने की चिंता। इस माहौल में लोगों के मन में निराशा घर करने लगी है और वो अपने जीवन के लक्ष्य और सपनों को पूरा करने में खुद को असफल महसूस कर रहे हैं। अगर आपके साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है तो निराशा के इस दौर में सफल होने के लिए याद रखें बस ये 5 मंत्र।

कड़ी मेहनत-
सफलता हासिल करने का पहला मंत्र है कड़ी मेहनत। याद रखें मेहनत का कभी कोई शॉर्टकर्ट नहीं होता है। अगर आप पहले ही हर कठिनाई से निपटने के लिए खुद को तैयार रखेंगे तो आपको भविष्य में सफल होने से कोई नहीं रोक सकता है।

खुश रहें-
जीवन में वही व्यक्ति अपने सपनों को हासिल करता है जो खुद को नकारात्मक विचारों से दूर रखता है। हमेशा पॉजीटिव थिकिंग रखें। आपका खुश रहने का स्वभाव आपको जीवन में सही फैसला लेना में मदद करेगा।

फोकस बनाए रखें-
जीवन में वही व्यक्ति सफलता का स्वाद चखता है जो अपने लक्ष्य के प्रति मन को एकाग्र रखकर उसे हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करता है। असल जीवन में भी अपनी प्राथमिकताओं को फोकस रखकर उन पर काम करें।

संघर्ष करें-
जीवन में हमेशा बड़े सपने देखें और उन्हें हासिल करने के लिए एक गोल बनाएं। जब भी आपको लगे कि आप असफल हो रहे हैं तो अपने सपनों को याद करें। खुद को यह अहसास करवाएं कि आपके लिए आपके सपने पूरे करना कितना जरूरी है।

अपनी कमी को न करें नजरअंदाज-
जीवन में कभी भी कोई व्यक्ति परफेक्ट नहीं होता है। हर किसी में कोई न कोई कमी जरूर होती है। लेकिन जो व्यक्ति अपनी कमियों को पहचानकर उन्हें ही अपनी ताकत बना लेते हैं उन्हें जीवन में सफल होने से कोई नहीं रोक सकता।

 

धर्म संसार / शौर्यपथ / निर्जला एकादशी के बाद और देवशयनी एकादशी से पहले आषाढ़ माह में कृष्ण पक्ष के दौरान योगिनी एकादशी आती है। इस एकादशी पर भगवान श्री हरि की श्रद्धापूर्वक आराधना करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है। इस एकादशी के व्रत का उतना ही महत्व है जितना 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने का होता है। इस व्रत के प्रभाव से किसी के दिए हुए श्राप का निवारण हो जाता है। यह एकादशी रोगों को दूर कर सुंदर रूप, गुण और यश प्रदान करती है।

यह एकादशी प्रायश्चित के लिए विशेष मानी जाती है। इस दिन श्री हरि का ध्यान करें। प्रातः काल स्नान कर सूर्य देवता को जल अर्पित करें। भगवान विष्णु को पीले फूल, पंचामृत और तुलसी दल अर्पित करें। इस व्रत में जौ, गेहूं और मूंग की दाल से बना भोजन ग्रहण न करें। नमक युक्त भोजन न करें। दशमी तिथि की रात्रि में नमक का सेवन नहीं करना चाहिए। यह व्रत दशमी तिथि की रात्रि से शुरू होकर द्वादशी तिथि में प्रात: काल में दान कर्म के बाद संपन्न होता है। इस व्रत में रात्रि में जागरण अवश्य करना चाहिए। योगिनी एकादशी का व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत में पीपल के वृक्ष की पूजा अवश्य करें।

 

नजरिया /शौर्यपथ /भारत-चीन सीमा पर जो हुआ, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। दोनों देशों के बीच सीमा विवाद नया नहीं है। तनाव पचास के दशक में ही शुरू हो गया था। जब पंचशील की बात पंडित नेहरू ने शुरू की थी, तब भी विवाद थे। तभी चीन ने 38,000 वर्ग किलोमीटर जमीन हथिया ली थी। तभी से तनातनी है। यह स्वीकारने में कोई हर्ज नहीं कि यह हमारी कूटनीति और राजनीतिक विफलता है, जिसका नतीजा हम भुगत रहे हैं। जब 1950 के दशक में चीनी प्रधानमंत्री चाउ एन लाई आए थे, उनका भारत में सम्मान किया गया था। उन्होंने तब कहा था, सीमा विवाद सुलझा लेते हैं, लेकिन इस दिशा में भारत की ओर से कार्रवाई नहीं हुई। चाउ एन लाई निराश लौट गए। दोनों देशों के बीच केवल तनाव ही नहीं रहा है, 1962 में युद्ध भी हो चुका है। हम उस लड़ाई के लिए तैयार नहीं थे। उसके बाद चीन ज्यादा आक्रामक हुआ। उसके बाद से ही उसकी नीति भारत को दबाकर रखने की रही। उसने जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश में भी अपनी जमीन होने का दावा किया है।
हम चीन के साथ अपनी सीमा को सुलझाने में कामयाब नहीं हो रहे हैं। जहां अभी विवाद हुआ है, वहां चीन के साथ हमारी अंतरराष्ट्रीय सीमा नहीं है। लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल को लेकर अपने-अपने दावे हैं, इसलिए आपस में तनाव घटता-बढ़ता रहता है। ताजा हिंसा पीछे हटते और कब्जा लेते हुए हुई है। चीनी सैनिक किसी जगह पर अड़ गए होंगे, उसके बाद ही तनाव बढ़ा और हिंसा हुई है। ऐसा नहीं है कि उसके बाद दोनों ओर से फार्यंरग शुरू हो गई हो। अभी धुंध है। इसे ‘फॉग ऑफ वार’ या लड़ाई का कोहरा कहते हैं। मेरा मानना है कि चीन के छह से आठ जवान मारे गए होंगे, लेकिन वह मानेगा नहीं। बहुत संभव है, दोनों ओर, कुछ मीसिंग भी हुई हो, जिसका पता कुछ समय बाद ही चलेगा। अब जिस स्तर पर तनाव चला गया है, वह जल्दी नीचे नहीं आएगा। दोनों देशों को उच्च स्तर पर रणनीतिक बातचीत बढ़ाने की पहल करनी पड़ सकती है। समाधान राजनीतिक व कूटनीतिक स्तर पर ही होगा।
चीन जो कर रहा है, उसका सीधा संबंध शी जिनपिंग से है। इससे पाकिस्तान का भी संबंध है। नेपाल ने पिछले दिनों जो किया है, उससे भी चीन का संबंध है। भारत-चीन सीमा विवाद के समाधान के लिए देर-सबेर वार्ता की मेज पर पाकिस्तान और अफगानिस्तान को भी लाना पडे़गा। जहां तक युद्ध की बात है, तो यह चीन भी नहीं चाहेगा। दोनों देशों के बीच 100 अरब डॉलर का व्यापार है। युद्ध किसी के हित में नहीं है। परस्पर व्यवसाय तभी संभव है, जब तनाव सीमित रहेंगे।
अभी भारतीय सेना के मनोबल की बात करें, तो वह बहुत मजबूत है। भारतीय सैनिक 18,000 किलोमीटर की ऊंचाई पर भी लड़ने में सक्षम हैं। इतनी ऊंचाई पर मुकाबला करने की क्षमता किसी और देश के सैनिकों में नहीं है। चीन भी समझता है, इस तरह की लड़ाई में अब वह भारत से पार नहीं पा सकता। भारतीय सेना बहु-प्रशिक्षित है। इसके अलावा, चीन की पीपुल लिबरेशन आर्मी को लड़ने का अनुभव नहीं है, जबकि भारत को लगातार ही लड़ना पड़ रहा है। चीन से भयभीत होने की जरूरत नहीं है। हमारी सेनाओं का मनोबल टॉप पर है। अब समय आ गया है, सैन्य बजट कम से कम पांच प्रतिशत होना चाहिए। अभी यह तीन प्रतिशत है। सेना का आधुनिकीकरण तेज कर देना चाहिए।
हमें लगता है कि चीन हमें घेर रहा है, लेकिन वास्तव में हमने उसे घेर रखा है, जिससे वह बौखलाया हुआ है। वह सोचता है कि हम अमेरिका से गठबंधन कर चुके हैं, चीन की कंपनियों को निकालना चाहते हैं। हमने ऑस्ट्रेलिया से समझौता किया है, उसके जहाजों को हम पेट्रोल देंगे। चीन को लगता है, हम उसे दक्षिणी चीनी सागर में भी घेर रहे हैं। भारतीय संसद में जब अनुच्छेद 370 को खत्म करने का फैसला लिया गया था, तब कहा गया था कि हम पीओके और कश्मीर के अपने पूरे हिस्से को हर हाल में वापस लेंगे। अब चीन को लग रहा है कि उसने अपने कब्जे वाले इलाके में जो सड़क बनाई है, वही सड़क घूमकर पाकिस्तान जा रही है, उसका क्या होगा? वह परेशान है, लेकिन पूरे तनाव के बीच हमें अपने पक्ष में समाधान निकालना होगा। यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम अपने पड़ोसी नहीं बदल सकते।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) मोहन भंडारी, रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल

 

सम्पादकीय लेख / शौर्यपथ / भारत-चीन सीमा पर सैनिकों का शहीद होना जितना दुखद है, उतना ही चिंताजनक है। जिसकी आशंका पिछले दिनों से लगातार बन रही थी, वही हुआ। अब दोनों ही देशों को ऐसे विवाद से बचने और तनाव को आगे बढ़ने से रोकने के हरसंभव प्रयास करने चाहिए। जो भी सैनिक इस टकराव में मारे गए हैं, उनके शव गिनने की बजाय दोनों ही देशों को अपनी उन विफलताओं को गिनना चाहिए, जिनकी वजह से सीमा पर तनाव बढ़ता जा रहा है। सन 1975 के बाद पहली बार भारत-चीन सीमा पर झड़प की वजह से सैनिक शहीद हुए हैं। 45 साल से जो सामरिक समझदारी दोनों देशों के बीच बनी हुई थी, उसे घुटने टेकते देखना कुछ ही समय की बात या एक हादसा भर होना चाहिए।
जब दोनों देश गलवान घाटी में पीछे हटने पर सहमत थे, तब ऐसा क्यों हुआ? इसकी ईमानदार पड़ताल सेना और विदेश मंत्रालय के उच्चाधिकारियों को करनी चाहिए। उच्च स्तर पर अगर पहले ही पहल होती, तो शायद सीमा विवाद इस ऐतिहासिक दाग तक नहीं पहुंचता। दोनों देश 1962 की बड़ी लड़ाई के बाद 1967 और 1975 में भी सीमित झड़पें देख चुके हैं। झड़प के उस दौर में नहीं लौटना ही समझदारी है। जाहिर है, विदेश मंत्री की जिम्मेदारी सर्वाधिक बढ़ी है। काफी कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि चीन का रवैया कैसा रहता है? चीन में ऐसे तत्व होंगे, जो 45 साल बाद हुई हिंसा पर भड़केंगे। भारत के प्रति उनका लहजा बिगडे़गा। संभव है कि भारत की ओर से भी बयानबाजी हो, लेकिन कुल मिलाकर, दोनों की समझदारी इसी में है कि आधिकारिक स्तर पर दोनों देश संयम से काम लें। भारत सरकार की आधिकारिक नीति रही है कि हमें किसी से जमीन नहीं चाहिए, हम भलमनसाहत में जमीन छोड़ने के लिए जाने जाते हैं, जमीन हड़पने के लिए नहीं। जबकि हमारे कुछ पड़ोसियों की नीति हमसे उलट है। उनकी रणनीति भी रहती है कि भारत को उलझाए रखा जाए, निश्चिंत न होने दिया जाए। भारत में अगर पूरी शांति हो जाएगी, तो यहां संपन्नता निखर उठेगी। कभी चीन की जमीन पर भारत ने दावा नहीं किया और न चीन के मामलों में कभी पड़ा है। यह बात बेशक चुभती है कि चीन के विकास में भारत की जो परोक्ष भूमिका है, उसे चीन ने कभी नहीं माना है। अब समय आ गया है कि भारत बार-बार अपनी भूमिका का एहसास कराए।
हमें सीमा पर तनाव की जड़ों को उखाड़ फेंकने की ओर बढ़ना होगा। चीन ने लगभग हरेक पड़ोसी के साथ अपने सीमा विवाद सुलझा लिए हैं, जबकि भारत के साथ लगती विशाल सीमा को वह बिजली के तार की तरह खुली रखना चाहता है। सीमा विवाद को सुलझा लेने में उसे अपना कोई हित नहीं दिखता है। यह भारत की जिम्मेदारी है कि वह चीन को बार-बार एहसास कराए। भारत एक उदार देश है। अपनी मर्जी थोपने की बीजिंग की कोशिश 1962 में भले चल गई थी, लेकिन अब नहीं चलेगी। भारत की ताकत को लगभग पूरी दुनिया मान रही है, तो चीन को भी विचार करना चाहिए। भारत का अपना विशाल आर्थिक वजूद है, जिससे चीन विशेष रूप से लाभान्वित होता रहा है। साथ ही, चीनियों को भारत में अपनी बिगड़ती छवि की भी चिंता करनी चाहिए। गलवान घाटी की झड़प से सबक लेते हुए हमें संवाद के रास्ते सहज संबंधों की ओर बढ़ना होगा।

 

हमारा शौर्य

हमारे बारे मे

whatsapp-image-2020-06-03-at-11.08.16-pm.jpeg
 
CHIEF EDITOR -  SHARAD PANSARI
CONTECT NO.  -  8962936808
EMAIL ID         -  shouryapath12@gmail.com
Address           -  SHOURYA NIWAS, SARSWATI GYAN MANDIR SCHOOL, SUBHASH NAGAR, KASARIDIH - DURG ( CHHATTISGARH )
LEGAL ADVISOR - DEEPAK KHOBRAGADE (ADVOCATE)