August 06, 2025
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राजनांदगांव / शौर्यपथ / मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए कलेक्टर कांफ्रेंस ली। कोरोना महामारी के दौरान सभी जिलों का काम प्रशंसनीय रहा। उन्होंने कहा कि अवकाश के दिनों में भी सभी अधिकारियों-कर्मचारियों ने काम किया, इसके लिए सभी को धन्यवाद दिया। मुख्यमंत्री ने कोविड-19 के साथ-साथ राज्य शासन की अन्य सभी महत्वपूर्ण योजनाओं की समीक्षा की। मुख्यमंत्री बघेल ने राजनांदगांव जिले में कोविड-19 से बचाव के लिए लॉकडाउन के दौरान बागनदी बार्डर में जिला प्रशासन द्वारा प्रवासी श्रमिकों एवं प्रदेश के श्रमिकों के लिए की गई व्यवस्था की सराहना की। उन्होंने कहा कि बागनदी बार्डर में अन्य राज्यों से आ रहे श्रमिकों के लिए बस की सुविधा एवं अन्य व्यवस्था सक्रियता पूर्वक किया गया।
कलेक्टर ने जानकारी दी कि राजनांदगांव में एक हजार 872 क्वारेंटाईन सेन्टर है। अभी 809 क्वारेंटाईन सेन्टर में 5 हजार 97 प्रवासी ठहरे हुए है। इनके लिए भोजन, आवास सहित अन्य बुनियादी सुविधाओं की पर्याप्त व्यवस्थाएं की गई है। श्री वर्मा ने बताया कि प्रवासियों में 210 गर्भवती महिलाएं है। उनके लिए जिले के हर विकासखंड में एक-एक महतारी सदन बनाया गया है। महतारी सदन में गर्भवती माताओं की बेहतर स्वास्थ्य जांच के साथ पौष्टिक भोजन एवं सुरक्षित आवास के प्रबंध किए गए हैं। उन्होंने बताया कि 813 ग्राम पंचायतों में 4 हजार 153 कार्य चल रहे है। इनमें प्रतिदिन एक लाख 88 हजार 322 ग्रामीणों को रोजगार मिल रहा है।
कलेक्टर वर्मा ने बताया कि मुख्यमंत्री हाट बाजार क्लीनिक योजना के तहत अब तक जिले में 121 हाट बाजारों में क्लीनिक लगाकर 97 हजार 215 लोंगों का उपचार किया गया, जो जिले की महत्वपूर्ण उपलब्धि है। कोविड-19 हॉस्पिटल (शासकीय मेडिकल कॉलेज पेण्ड्री राजनांदगांव) में बनाया गया है। उन्होंने बताया कि जिले में प्रथम चरण में 113 गौठानों को विकसित किया गया है। नरवा योजना के तहत 90 नालों को पुर्नजीवित किया गया है। इसके अंतर्गत बोल्डर चेकडेम, गिट्टी चेक डेम, गेबियन स्ट्रक्चर बनाया गया है। राज्य शासन की महत्वपूर्ण योजना नरवा, गरवा, घुरवा और बाड़ी योजना के अंतर्गत बाड़ी योजना से 93 सामुदायिक बाडिय़ां एवं 183 निजी बाड़ी बनाई गई है। घुरवा योजना में एक हजार 646 भू-नडेप, 70 वर्मीटांका, 28 वर्मी बेड बनाया गया है। मनरेगा से 1 हजार 134 निजी डबरी, 450 तालाब गहरीकरण, 100 से अधिक नए तालाब तथा 10 लाख नवीन पौधे तैयार करने के लिए 22 नर्सरी तैयार की गई है।
वीडियो कांफ्रेसिंग में पुलिस अधीक्षक पुलिस अधीक्षक श्री जितेन्द्र शुक्ला, वनमंडलाधिकारी राजनांदगांव बीपी सिंह, वनमंडलाधिकारी खैरागढ़ रामावतार दुबे, अपर कलेक्टर ओंकार यदु, अपर कलेक्टर हरिकृष्ण शर्मा, सहायक कलेक्टर ललितादित्य नीलम, मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत श्रीमती तनुजा सलाम, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. मिथलेश चौधरी, नगर निगम आयुक्त चंद्रकांत कौशिक सहित अन्य अधिकारी उपस्थित थे।

खाना खजाना /शौर्यपथ /रोज फ्लेवर श्रीखंड
सामग्री :
फ्रेश दही एक लीटर अथवा आधा किलो चक्का (श्रीखंडा का), पिसी शक्कर डेढ़ कटोरी, 2 चम्मच गुलकंद, आधा कटोरी सूखे गुलाब की पत्तियां, पाव कटोरी मेवे की कतरन, आधा चम्मच इलायची पावडर।
विधि :
सबसे पहले दही को 3-4 घंटे के लिए मलमल के कपड़े में बांध कर लटका दीजिए। जब तक कि दही का पूरा पानी न निथर जाए। अब गुलकंद में दो चम्मच गुलाब की पत्तियों को मिला लें। गाढ़े दही या चक्का और पिसी शक्कर को बड़े बर्तन में अच्छी तरह मिलाएं।
किसी छलनी या बारीक कपड़े से छान लें, ताकि कण न रह जाएं। गुलकंद, मेवे की कतरन और इलायची डालकर अच्छी तरह मिलाएं। कटोरियों में डालकर बची गुलाब की पत्तियों से सजा कर पेश करें। इसे आप उपवास में भी उपयोग में ला सकते हैं।
फलाहारी चूरमा विथ ड्राई फ्रूट्स
सामग्री :250 ग्राम सिंघाड़ा आटा, 250 ग्राम राजगिरा आटा, 300 ग्राम गुड़, 50-50 ग्राम गोंद और बादाम बारीक कटी, 1 छोटा चम्मच इलायची पावडर, 1 खोपरे का गोला कसा हुआ, 1 बड़ा चम्मच घी (मोयन), 100 ग्राम घी तलने के लिए। सजावट के लिए- 4-5 चांदी का वर्क, किशमिश, बादाम और काजू।
विधि :
राजगिरे और सिंघाडे के आटे को मिलाकर एक बड़ा चम्मच घी का मोयन डालकर ठंडे पानी से आटा गूंथ लीजिए। ध्यान रहें आटा पूरी के आटे जैसा गूंथना है। अब एक कड़ाही में घी गर्म करें। तैयार आटे के मुठिए बनाकर घी में गुलाबी होने तक धीमी आंच पर तलें।
अब मुठिए ठंडे होने के लिए रख दें। ठंडे होने पर उसे मिक्सी में पीस लें। इसे छानें। उसी घी में गोंद के फूले तल लें। अब 100 ग्राम के करीब घी लेकर उसमें गुड़ को धीमी आंच पर गर्म कर लें।
जब गुड़ पूरी तरह घी में मिल जाए, तब उसमें पिसा हुआ मुठिए का मिश्रण मिला लें। फिर उसे परात में लेकर उसमें इलायची, गोंद के फूले, खोपरा बूरा और बादाम की कतरन मिला लें। लीजिए तैयार है फलाहारी चूरमा विथ ड्राई फ्रूट्स। इस पर चांदी का वर्क लगाएं। बादाम, काजू और किशमिश से सजा कर पेश करें।
राजगिरे का हलवा
सामग्री :
150 ग्राम राजगिरा आटा, आधा कटोरी शक्कर, पाव चम्मच इलायची पावडर, पाव कटोरी कटे मेवे, घी आवश्यकतानुसार व एक गिलास गरम पानी।
विधि :
सबसे पहले राजगिरा आटे को छान लें। एक कड़ाही में घी गरम करके आटे को धीमी आंच पर जब तक सेकें तब तक आटे में से भीनी-भीनी खुशबू न आने लगे।
राजगिरे की घी में अच्छी तरह सिकाई होने के बाद उसमें गरम पानी डालें व अच्छी तरह हिलाएं। अब शक्कर डालें व हिलाती रहें। जब हलवे का मिश्रण कड़ाही के किनारे छोड़ने लगे तब गैस बंद कर दें। इलायची और मेवे मिलाकर ढंक दें। अब तैयार राजगिरा हलवा से प्रभु को भोग लगाएं।
सिंघाड़े के लड्डू
सामग्री :
सिंघाड़े का आटा 200 ग्राम, राजगिरे का आटा 100 ग्राम, शक्कर 300 ग्राम, देशी घी 200 ग्राम, इलायची पिसी हुई, खोपरे के छोटे-छोटे टुकड़े, काजू, बादाम।
विधि :
सबसे पहले सिंघाड़े व राजगिरे के आटे को धीमी आंच पर घी डालकर सेंक लें। खुशबू आने लगे तब शक्कर पीसकर उसमें मिला दें। इलायची, खोपरा, काजू, बादाम भी मिला दें।
गरम-गरम ही लड्डू बना लें, नहीं बंधने पर थोड़ा घी और मिलाएं, फिर लड्डू बना लें। यह स्वादिष्ट होने के साथ ही पौष्टिक भी होते हैं।
राजगिरे की पंजीरी
सामग्री :
100 ग्राम राजगिरे का आटा, 150 ग्राम शक्कर बूरा, 50 ग्राम किशमिश, 100 ग्राम सभी प्रकार के मेवों की कतरन, आधा चम्मच पिसी इलायची, पाव कटोरी तला व बारीक कूटा हुआ गोंद, कुछेक किशमिश, 150 ग्राम घी।
विधि :
सर्वप्रथम घी गरम कर राजगिरे का आटा डालकर धीमी आंच पर गुलाबी होने तक सेक लें। सिका आटा थोड़ा ठंडा हो के पश्चात शक्कर बूरा और इलायची पावडर मिलाकर मिश्रण को एकसार कर लें।
अब उसमें तला गोंद व मेवों की कतरन तथा किशमिश मिक्स कर दें। लीजिए तैयार है राजगिरे की शाही पंजीरी।

 

लाइफस्टाइल / शौर्यपथ /+ कोरोना वायरस से बचने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। सोशल डिस्टेंसिंग व साफ-सफाई पर जोर दिया जा रहा है। वहीं लगातार कुछ सवाल मन में आते रहते हैं, जैसे कि वायरस कितनी देर तक सतह पर बना रहता है, क्या-क्या सावधानियां बरतनी जरूरी है, क्योंकि वायरस अगर रह जाए तो संक्रमण का खतरा बना रहता है।
इसलिए हर एक चीज को साफ रखने की सलाह दी जा रही है, वहीं घर से बाहर जाने पर सावधानियां रखना और जरूरी हो जाता है। एक शोध के अनुसार कोविड-19 का स्ट्रेन कपड़ों पर 1 दिन ज़िंदा रहता है जबकि स्टेनलेस स्टील और प्लास्टिक पर 4 दिन तक रहता है।

घर पर वापस आने पर हाथों को धोना व साफ कपड़े पहनना इसलिए जरूरी है जिससे कि वायरस का प्रवेश हमारे घर में न हो सके। लेकिन बालों का क्या? क्या बालों पर वायरस जिंदा रह सकता है? इस पर अभी कुछ पुख्ता जानकारी हासिल नहीं हो पाई है लेकिन सावधान रहना और समझदारी के साथ आगे बढ़ना हमारी जिम्मेदारी है जिससे कि हम खुद भी सुरक्षित रह सकें और परिवार को भी सुरक्षित रख सकें।

बालों पर वायरस का खतरा न रह सके, इसके लिए कुछ महत्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखना जरूरी है।
हम कई कामों के लिए अपने घर से बाहर जाते हैं। ऐसा संभव नहीं हो पाता कि जितनी बार घर से बाहर जाएं, उतनी बार ही बालों को धो सकें। इसलिए आप किसी कपड़े से अपने बालों को ढंक सकते हैं।

यह खतरा तब बिलकुल कम हो जाता है, जब आप सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हैं। उचित दूरी बनाकर रखेंगे तो बालों पर वायरस का खतरा भी कम रहेगा।

सार्वजनिक जगहों पर अपने बालों को बार-बार छूने से बचें। अपने बालों को हाथ लगाने के बाद अपने चेहरे और आंखों पर हाथों को न लगाएं।
गंदे हाथों से अपने बालों को न छुएं।

अगर आपके पीछे कोई छींक देता है, तो सबसे ज्यादा अच्छा है कि आप घर आकर सीधे नहाने जाएं और बालों को भी अच्छी तरह से साफ करें।

 

सेहत /शौर्यपथ / खाना निगलते वक्त गले में दर्द होना आम बात नहीं है, यह ग्रासनली में सूजन हो सकती है। इस स्थिति में गले में खराश, दर्द होता है। मेडि‍कल भाषा में फैरिन्जाइटिस कहते हैं, जो खास तौर से सर्दियों में आपको जकड़ सकती है। जानिए इसके कारण, लक्षण और उपाय -

 

कारण - फैरिन्जाइटिस का मुख्य कारण वायरस है, लेकिन कभी-कभी बैक्टीरियल इन्फेक्शन की वजह से भी यह समस्या हो सकती है। इसके अलावा सेकेंड-हैंड स्मोक और साइनस इन्फेक्शन के कारण भी य‍ह बीमारी हो सकती है।

लक्षण - गले में दर्द होना, खाना निगलने में दर्द, सूजन और गले में खराश होना फैरिन्जाइटिस के प्रमुख लक्षण हैं।

उपाय - 1
पानी को गुनगुना कर लें और इसमें नमक मिलाकर गरारे करें। इसे दिन में 3 बार करने से गले की सूजन कम होगी और दर्द में राहत मिलेगी।
2 अदरक का प्रयोग करें। आप चाहें तो पानी में अदरक को उबालकर पी सकते हैं या फिर अदरक के टुकड़े को चूसना भी फायदेमंद होगा। चाय में अदरक का प्रयोग जरूर करें।


3 हल्के गर्म पानी में नींबू की कुछ बूंदे निचोड़कर इस पानी को पिएं। यह काफी आराम देगा। आप चाहें तो इसमें शहद भी मिलाकर पी सकते हैं।

4 मुलहठी और दालचीनी को चूसना भी गले की इस प्रॉब्लम में आपको आराम दे सकता है। चाहें तो गर्म पानी या चाय के साथ भी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।
5 गुनगुने पानी में हल्दी डालकर पीने से भी लाभ मिल सकता है। इसके अलावा लहसुन का प्रयोग भी आपके गले की सूजन और दर्द को कम कर सकता है।

 

 

धर्म संसार/शौर्यपथ / वाल्मीकि रामायण में प्रभु श्रीराम के पुत्र लव और कुश की गाथा का बहुत ही मार्मिक वर्णन किया गया है। सीता जब गर्भवती थीं तभी श्रीराम के कहने पर लक्ष्मण उन्हें वाल्मीकि आश्रम छोड़ आए थे। लव और कुश का जन्म वहीं हुआ और वहीं उनका पालन पोषण, शिक्षा और दीक्षा का कार्य भी हुआ।
लव और कुश की पढ़ाई-लिखाई से लेकर विभिन्न कलाओं में निपुण होने के पीछे महर्षि वाल्मीकि का ही हाथ था। उन्होंने ही दोनों राजकुमारों को हर तरह की शिक्षा और विद्या में परंगत किया। महर्षि वाल्मीकि ने रामायण लिखी और लव एवं कुश ने जब होश संभाला तब उन्होंने दोनों भाइयों को रामायण कंठस्थ करा दी। रामायण कंठस्थ करते वक्त दोनों को यह नहीं ज्ञात था कि वे उनके माता पिता की गाथा है। वे अपनी माता को वनदेवी समझते थे। रामकथा कंठस्थ करते वक्त लव और कुश के मन में कई प्रश्न थे। पहला यह कि राम ने आखिर प्रजा के कहने पर माता सीता को क्यों छोड़ दिया?
एक बार श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ किया और यज्ञ का श्वेत अश्व (घोड़ा) छोड़ दिया। यह घोड़ा भटकते हुए जंगल में वाल्मीकि आश्रम के नजदीक पहुंच गया। वहां लव और कुश ने इसे पकड़ लिया। घोड़ा पकड़ने का अर्थ है अयोध्या के राजा को चुनौती देना। तब दोनों ने भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्‍न, सुग्रीव आदि सभी से युद्ध किया और सभी को पराजित कर दिया। साथ ही उन्होंने हनुमानजी को बंधक बना लिया।
यह सुनकर राम स्वयं युद्ध करने के लिए आए और जब राम ने अपना बाण धनुष पर चढ़ाया तभी ऋषि वाल्मीकि आ गए और कहने लगे कि आप ये क्या कर रहे हैं? बालकों पर तीर चला रहे हैं। तब वाल्मीकि राम और लव कुश को समझाकर युद्ध को रोकते हैं और लव एवं कुश से कहते हैं कि ये तुम्हारे पिता के समान हैं इनसे क्षमा मांगो। दूसरी ओर वे बंधक बने हनुमानजी से कहते हैं कि आप ये अश्वमेध का घोड़ा ले जाइये।
उधर, ये बात वनदेवी (सीता) को पता चली है। तभी लव और कुश आ जाते हैं और वे कहते हैं कि हां माता आपने सही सुना। हमने शत्रुघ्‍न, भरत, लक्ष्मण सहित उनकी सेना को परास्त कर दिया। यह सुनकर माता सीता अवाक् रह जाती और दुखी भी होती है।

फिर लव और कुश कहते हैं कि हमने तो हनुमानजी को भी बंधक बना लिया था। यह सुनकर माता सीता कहती हैं कि ये तुमने क्या किया वो तो मेरे पुत्र के समान है। तुमसे पहले तो वह मेरे पुत्र है। यह कहते हुए माता सीता रोने लगती है। यह देखकर लव और कुश भी अचरज से माता को देखते हैं। फिर वो कहते हैं कि हमसे लड़ने तो स्वयं अयोध्या के राजा राम आए थे। माता सीता पूछती है क्या राम आए थे और क्या तुमने उन पर बाण उठाया?


लव और कुश कहते हैं कि नहीं माता, हमारे बाण तो पहले से ही उठे हुए थे। यह सुनकर माता सीता दुखी होकर रोने लगती है कि हे पुत्र आज तुमने घोर पाप कर दिया। इसका तो प्रायश्चित भी नहीं हो सकता। माता को रोता देखकर लव और कुश की आंखों में भी आंसू आ जाते हैं।
तब माता सीता रोती बिलखती हुई हुई बोलती हैं कि यह तो घोर पाप है प्रभु। कोई पुत्र अपने पिता पर कैसे बाण उठा सकता है। अब मैं कैसे इसका प्रायश्‍चित करूंगी? यह सुनकर लव और कुश को आघात लगता है। उनकी आंखों से झरझर आंसुओं की नदियां बहने लगती है और वो माता सीता से पूछते हैं, तो क्या अयोध्या के राजा हमारे पिता है? माता सीता रोती रहती है।

लव कुश फिर पूछते हैं तो क्या आप वो अभागी सीता हैं जिसे श्रीराम ने छोड़ दिया था? माता सीता रोते हुए कहती है कि जिसका पति भगवान हो वह कैसे अभागी हो सकती है? तभी वहां वाल्मीकि ऋषि आ पहुंचते हैं और वे रोते हुए लव और कुश को कहते हैं कि हां ये तुम्हारी मां सीता है और प्रभु श्री राम तुम्हारे पिता है।

लव और कुश फिर रोते हुए पूछते हैं तो गुरुजी आपने अब तक यह बात हमसे क्यों छिपाकर रखी? वाल्मीकि कहते हैं कि हर बात को बताने का उचित समय होता है। फिर वाल्मीकि समझाते हैं कि इसमें तुम्हारे पिता का कोई दोष नहीं यह तो अयोध्या की प्रजा का ही दोष है और अब वक्त आ गया है तो तुम राम और सीता की कथा को उन्हें सुनाओ।

वाल्मीकि ऋषि की आमा से लव और कुश संपूर्ण अयोध्या में घूम-घूम कर राम और सीता की कथा के साथ ही माता सीता की व्यथा को भी गाकर सुनाते हैं। यह सुनकर अयोध्यावासियों का रो-रोकर बुरा हाल हो जाता है।
जब यह बात श्रीराम को पता चलती है कि कोई ऋषि कुमार संपूर्ण नगर में राम कथा सुना रहे हैं तो श्रीराम उन दोनों को अपने पास बुलाते हैं और उन्हें देखकर कहते हैं कि अरे तुम तो वही हो जिन्होंने हमारे यज्ञ का घोड़ा पकड़ लिया था। लव और कुश उनके चरणों में झुककर उनसे कहते हैं कि आप हमारे पिता समान है राजा। आप हमें आज्ञा दीजिए कि क्या करना है?
तब श्रीराम उनसे कहते हैं कि हमने सुना है कि तुम राम कथा सुना रहे हो? तब लव और कुश कहते हैं कि हां हमारे गुरु ने हमें यह कथा हमें सुनाई है। फिर श्रीराम कहते हैं कि क्या तुम यह कथा हमारे राज दरबार में सुनाओंगे? लव और कुश कहते हैं- हे राजन आप आज्ञा देंगे तो अवश्य सुनाएंगे।

फिर लव और कुश प्रतिदिन दरबार में श्रीराम कथा सुनाते हैं और कथा के अं‍त में वे सीता माता के वाल्मीकि आश्रम में गुजारे कठिन समय का वर्णन करते हैं। सीता माता की कथा सुनकर सभा में उपस्थित लक्ष्मण, शत्रुघ्न, भरत, जनक, कौशल्या, सुमित्रा, कैकेयी, ऋषि वशिष्ठ और प्रजाजनों की आंखों से आंसुओं की नदियां बहने लगती है। तब अंत में इसी कथा के दौरान वे ये प्रकट कर देते हैं कि हम उसी सीता के पुत्र हैं। यह सुनकर संपूर्ण राम दरबार स्तब्ध और आवाक् रह जाता है। जय श्रीराम।

 

 

धर्म संसार /शौर्यपथ / श्री राम रक्षा स्तोत्र बुध कौशिक ऋषि द्वारा रचित श्रीराम का स्तुति गान है। इसमें प्रभु श्री राम के अनेकों नाम का गुणगान किया है। आ जानते हैं कि इसका पाठ करने के 10 रहस्य।
1. इसका पाठ करने से प्रभु श्रीराम आपकी हर तरह से रक्षा करते हैं। अपने शरणागत की रक्षा करना उनका धर्म है।

2. कहते हैं कि इसके नित्य पठन से हनुमानजी प्रसन्न होकर राम भक्तों की हर तरह से रक्षा करते हैं।

3. विधिवत रूप से राम रक्षा स्त्रोत का 11 बार पाठ करने के दौरान एक कटोरी में सरसों के कुछ दानें लेकर उन्हें अंगुलियों से घुमाते रहने से वह सिद्ध हो जाते हैं। उक्त दानों को घर में उचित और पवित्र स्थान पर रख दें। यह दानें कोर्ट-कचहरी जाने के दौरान, यात्रा पर जाने के दौरान या किसी एकांत में सोने के दौरान यह दानें आपकी रक्षा करेंगे। यहां पर दिए गए उपाय प्रचलित मान्यताओं पर आधारित हैं। इनके कारगर होने की पुष्टि हम नहीं करते हैं।
4. राम रक्षा स्तोत्रम् के 11 बार किए जाने वाले पाठ से पानी को भी सरसों की तरह सिद्ध किया जा सकता है। इस पानी को औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इस पानी को रोगी को पिलाया जा सकता है। इससे ली जाने वाली औषधि का तेजी से प्रभाव होता है। पानी को सिद्ध करने के लिये राम रक्षा स्तोत्रम का पाठ करते हुए तांबे के बर्तन में पानी भरकर इसे अपने हाथ में पकड़ कर रखें और अपनी दृष्टि पानी में रखें। यहां पर दिए गएउपाय प्रचलित मान्यताओं पर आधारित हैं। इनके कारगर होने की पुष्टि हम नहीं करते हैं।
5. जो व्यक्ति नित्य राम रक्षा स्तोत्रम् का पाठ करता रहता है वह आने वाली कई तरह की विपत्तियों से बच जाता है।
6. इसका प्रतिदिन पाठ करने से व्यक्ति को दीर्घायु, संतान, शांति, विजयी, सुख और समृद्धि प्राप्त होती है।
7. इसके नित्य पाठ करने से मंगल ग्रह का कुप्रभाव भी समाप्त हो जाता है।
8. इसका नित्य पाठ करने वाले व्यक्ति के मन में सकारात्मक भाव का संचार होता है और उसके चारों और सुरक्षा का एक घेरा निर्मित हो जाता है।
9. इसका नित्य पाठ करने से मनुष्य के मन से हर तरह का भय निकल जाता है और वह निर्भिक जीवन जीता है।
10. इसका नित्य पाठ करने से भगवान शिव की भी कृपा प्राप्त होती है क्योंकि इस स्त्रोत की रचना बुध कौशिक ऋषि ने भगवान शंकर के कहने पर ही की थी। भगवान शंकर ने उन्हें इस स्त्रोत की रचना की प्रेरणा स्वप्न में दी थी।

 

नजरिया /शौर्यपथ / पिछले दो महीनों में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और इसके आस-पास के इलाकों में 14 छोटे-छोटे भूकंप आ चुके हैं। भूकंप की भविष्यवाणी तो नहीं की जा सकती, पर दिल्ली के इलाके भूकंप के लिहाज से काफी संवेदनशील हैं और हिमालय से काफी करीब भी। यहां पहले भी 6-6.7 तीव्रता के चार बड़े भूकंप आ चुके हैं, लिहाजा सवाल यह है कि अगर यहां कोई बड़ा भूकंप आया, तो उससे निपटने के लिए हमारी क्या तैयारी है?
भूकंप एक अवश्यंभावी प्राकृतिक घटना है, जो पृथ्वी की आंतरिक संरचना के कारण, भूगर्भ में विशिष्ट स्थानों पर संचयित ऊर्जा के खास परिस्थितियों में उत्सर्जित होने से घटती है। यह ऊर्जा भूकंपीय तरंगों के माध्यम से चारों तरफ प्रवाहित होती है, जिससे सतह पर बने मकानों-इमारतों में कंपन होता है। इंसानी जान-माल का नुकसान तब होता है, जब ये इमारतें इस कंपन को नहीं झेल पातीं, यानी नुकसान भूकंप से नहीं, भूकंप को न झेल पाने वाली इमारतों से होता है। इसीलिए नई बनने वाली इमारतों को भूकंप बर्दाश्त कर सकने लायक भूकंपरोधी बनाकर और पुराने भवनों में जरूरी सुधार करके हम इस नुकसान से बच सकते हैं।
अभी अपने यहां भूकंपरोधी मकान बनाने में भारतीय मानक संस्थान द्वारा बनाया गया मानचित्र इस्तेमाल होता है। मगर इसकी अपनी सीमाएं हैं। जैसे, इसमें भारतीय भूभाग को सिर्फ चार जोन में बांटा गया है और इससे यह पता नहीं चलता कि भविष्य में किसी भूभाग में भूकंप के आने और उसके प्रभाव की कितनी आशंकाएं हैं? फिर, भूकंप का प्रभाव भवनों के करीब 30 मीटर नीचे तक की मिट्टी के गुणों व संरचना के मुताबिक अलग-अलग होता है। चूंकि थोड़ी-थोड़ी दूर पर ही मिट्टी के गुण बदल जाते हैं, इसलिए क्षेत्रीय स्तर पर बना यह मानचित्र बहुत ज्यादा कारगर नहीं माना जाता। हालांकि, पहली सीमा से निपटने के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के प्रयास से 2013 में बने ‘प्रॉबबिलिस्टिक सिस्मिक हैजर्ड मानचित्र’ का उपयोग भारतीय मानक संस्थान जरूरी प्रावधान बनाने में कर रहा है। वहीं, दूसरी समस्या के हल के लिए करीब 250 शहरों में कई जगहों की 30 मीटर गहराई तक की मिट्टी की संरचना और उसके गुणों का अध्ययन करके छोटे-छोटे भूभाग पर भूकंप की मारक-क्षमता के आकलन (जिसे भूकंपीय सूक्ष्म-वर्गीकरण कहते हैं) पर काम चल रहा है, ताकि भविष्य में प्रत्येक शहर के लिए भवन-निर्माण के अलग-अलग मानदंड बनाए जा सकें।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के महत्व को समझते हुए भूकंप जोखिम मूल्यांकन केंद्र (अब राष्ट्रीय भूकंप केंद्र का अंग) ने 2007 में सूक्ष्म-वर्गीकरण मानचित्र बनाने का काम शुरू किया था, जिसे 2014 में पूरा कर लिया गया। इसके तहत विभिन्न प्रकार के 40 मानचित्र बनाए गए, जो भवन-निर्माण के लिए उपयोगी हैं। इन मानचित्रों का इस्तेमाल करके यह तय किया जा सकता है कि किस स्थान पर भवन को कितना मजबूत बनाना है या कितनी मंजिल का मकान बनाना सुरक्षित है या कहां पर उसके धंसने की आशंका है।
इस अध्ययन से यह भी पता चला कि दिल्ली का करीब 30 प्रतिशत हिस्सा मापक के हिसाब से जोन-पांच में शामिल किया जाना चाहिए। इसीलिए मौजूदा भवन-निर्माण प्रावधानों के तहत यहां बनने वाले मकानों के भूकंपरोधी होने पर संदेह है। चूंकि नई नीति के तहत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के 89 गांवों को शहर का दर्जा मिला है और यहां के कई गांव मापक के हिसाब से उस 30 प्रतिशत हिस्से में आते हैं, इसलिए यहां संभावित 20 लाख नए भवनों के निर्माण यदि मौजूदा कोड के तहत बनेंगे, तो वे शायद ही भूकंपरोधी होंगे। रिपोर्ट तो यह भी है कि दिल्ली में करीब 80 फीसदी भवन मानक के अनुरूप नहीं हैं। जाहिर है, यहां के ज्यादातर भवन भूकंपरोधी नहीं हैं और जो नए बन रहे हैं, वे भी शायद ही तेज झटकों को झेल पाएं। तो फिर जान-माल का नुकसान रोका कैसे जाए? सबसे पहले दिल्ली में किए गए अध्ययन के निष्कर्ष को तुरंत लागू होना चाहिए। पुराने तमाम भवनों, खासकर शिक्षण संस्थानों, अस्पतालों आदि का सर्वेक्षण कर उनमें आवश्यक सुधार किया जाना चाहिए। इन कामों को संस्थागत रूप देने के लिए भूकंप जोखिम मूल्यांकन केंद्र को फिर से सक्रिय करना चाहिए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) अतींद्र कुमार शुक्ला, पूर्व प्रमुख, भूकंप विज्ञान केंद्र, मौसम विभाग

 

सम्पादकीय लेख /शौर्यपथ /भारत में कोरोना संक्रमण जिस गति से बढ़ रहा है, उसी गति से उसके खिलाफ लड़ाई भी बढ़ती जा रही है। सेहत सुरक्षा के इंतजाम बढ़ते जा रहे हैं, नीतियों और रणनीतियों को भी स्वाभाविक ही कसा जा रहा है। इस बीच यह एक सकारात्मक पहल है कि केंद्र सरकार ने 15 राज्यों के 50 जिलों में तीन-तीन सदस्यीय टीमों को रवाना किया है। विशेषज्ञों के ये दल इन जिलों में कोरोना के खिलाफ लड़ाई में स्थानीय प्रशासन की मदद करेंगे। अनुशासन और निगरानी को चाक-चौबंद बनाने में अपनी भूमिका निभाएंगे। भले कुछ देर से यह कदम उठाया गया हो, लेकिन यह स्वागत योग्य है। कुछ राज्यों की ओर से यह शिकायत आ भी रही थी कि केंद्र सरकार कोरोना संक्रमण के पूरे मामले को राज्यों पर डालकर बच नहीं सकती। ऐसे में, केंद्र के लिए यह पहल इसलिए भी जरूरी थी कि राज्य पहले से ज्यादा सजग होकर काम करें।
केंद्र सरकार की इस पहल से यह तो पता चल ही गया है कि देश के 15 राज्यों के 50 जिले कोरोना से ज्यादा पीड़ित हैं। यह सूचना अपने आप में राज्यों पर जरूरी दबाव बनाने के लिए कारगर सिद्ध हो सकती है। जिन 15 राज्यों में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, उनमें महाराष्ट्र सबसे आगे हैं, जहां सर्वाधिक सात जिलों में कोरोना के खिलाफ लड़ाई बेहतर प्रबंधन, अनुशासन की मांग कर रही है। तमिलनाडु में भी सात जिले चुनौती पेश कर रहे हैं। इसके अलावा तेलंगाना, राजस्थान, असम, हरियाणा, गुजरात, कर्नाटक, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, दिल्ली में भी ज्यादा प्रयासों की जरूरत है। प्रवासियों के लौटने से डगमगाए बिहार और उत्तर प्रदेश के चार-चार जिलों और ओडिशा के पांच जिलों को भी केंद्र सरकार ने सहायता के योग्य माना है। बेशक, इन जिलों में रोकथाम की रणनीति को सावधानीपूर्वक लागू करना होगा, ताकि कोरोना इन जिलों में भी काबू में आए और बाहर भी न फैले। राज्यों में गई केंद्र की टीमों को अपनी उपयोगिता सही रूप में साबित करनी चाहिए, ताकि आगे भी ऐसे प्रयासों को बल मिल सके। इन टीमों में उचित ही एक डॉक्टर, एक सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ और एक महामारी विशेषज्ञ को शामिल किया गया है।
ध्यान रहे, यह समय केंद्र व राज्यों में बेहतर समन्वय का है। दिल्ली के मुख्यमंत्री ने भी मिलकर चलने और राजनीति से बचने की वकालत की है, तो कोई आश्चर्य नहीं। उन्होंने चेताया भी है कि दिल्ली में कोरोना तेजी से फैलेगा। यह चिंता का समय केवल दिल्ली के लिए नहीं है। राजस्थान अपनी सीमाओं को फिर सील करने के लिए मजबूर हो रहा है, तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने मुंबई में लोगों को दोटूक चेताया है कि वे भीड़ न लगाएं, वरना फिर लॉकडाउन लगाना पडे़गा। जिस तरह की तैयारियां चल रही हैं, जिस तरह से शहर-गांव अनलॉक हो रहे हैं, उससे लगता है, सरकारें मानकर चल रही हैं कि संक्रमण बढे़गा। अत: यह केंद्र और राज्यों ही नहीं, बल्कि राज्यों के स्थानीय प्रशासन और आम लोगों के बीच भी बेहतर समन्वय व सतर्कता का वक्त है। काश! लोग सावधानी बरतते, भीड़ न लगाते। जो देश सुधार की राह पर हैं, उनसे सीखते, तो भारत के बारे में डब्ल्यूएचओ या किसी मुख्यमंत्री को यह न कहना पड़ता कि संक्रमण तेजी से फैलेगा। हमारे पास अभी भी वक्त है, हम हर स्तर पर सजग रहते हुए कोरोना पर काबू कर सकते हैं।

 

मेल बॉक्स /शौर्यपथ / केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने छात्रों के हितों को ध्यान में रखते हुए देश भर के स्कूल और कॉलेजों को 15 अगस्त के बाद खोलने का उचित फैसला किया है। वाकई, जब तक कोरोना वायरस पर पूरी तरह से नियंत्रण हासिल नहीं हो जाता, तब तक स्कूल और कॉलेजों को खोलना उचित नहीं होगा, क्योंकि शिक्षण संस्थानों में छात्रों के बीच दो गज की दूरी कायम रखना बहुत मुश्किल काम होगा। इतना ही नहीं, छोटे बच्चे तो हर समय मास्क पहनने में भी असुविधा महसूस करते हैं। उनके लिए लगातार हाथ धोना और सैनिटाइजर का उपयोग करना भी मुश्किल है। इसीलिए बहुत सारे अभिभावक सरकार की ओर नजरें टिकाए हुए थे, क्योंकि बच्चों की सुरक्षा सर्वोपरि है। सरकार का यह कदम स्वागतयोग्य है। इस फैसले से सभी की चिंताएं दूर हुई होंगी।
शिवांश मिश्रा, प्रयागराज

बेरोजगारी की मार
कोरोना महामारी से बचाव के लिए किए गए लॉकडाउन के बाद देश का युवा वर्ग अपने रोजगार की सुरक्षा के लिए बहुत ही आशंकित है। उनको यह सुनने-पढ़ने को मिल रहा है कि आगामी वर्षों में रोजगार का बड़ा संकट आने वाला है। इस महामारी से हुई जान की हानि तो प्रत्यक्ष दिखाई पड़ रही है, लेकिन इससे परोक्ष रूप से देश में रोजगार, शिक्षा व उत्पादन की भी अभूतपूर्व हानि हुई है। सरकार के प्रयास और नागरिकों की जागरूकता से अब तक हम शानदार तरीके से इस महामारी से लड़े हैं, और उम्मीद है कि आगे भी यूं ही हम लड़ते रहेंगे। मगर देश के नौजवानों के मन में अपने भविष्य को लेकर आशंकाएं उपजने लगी हैं। सरकारी रोजगार के अवसर उन्हें धूमिल होते दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में, हमें खास तौर से उनके लिए नीतियां बनानी होंगी। जरूरत धैर्य बनाए रखने की भी है, क्योंकि कोरोना महामारी के कारण देश कहीं न कहीं विकास की कसौटी पर बहुत पीछे चला गया है। यदि हमने धैर्य, सहयोग और आत्मनिर्भरता से इस परिस्थिति का सामना कर लिया, तो इसके परिणाम दूरगामी निकलेंगे।
आकाश त्रिवेदी, शाहजहांपुर

सेहत सबका अधिकार
दिल्ली के अस्पतालों में सिर्फ दिल्ली वालों के इलाज का आप सरकार का फैसला उप-राज्यपाल द्वारा पलट दिया जाना निश्चय ही सराहनीय कदम है। एनसीआर के लोग बेहतर स्वास्थ्य सुविधा के कारण अक्सर दिल्ली इलाज करवाने जाते हैं। यह उनका बुनियादी अधिकार भी है, जिसका हवाला उप-राज्यपाल ने दिया। असल में, प्रत्येक नागरिक का यह अधिकार है कि वह देश के किसी भी अस्पताल में अपना इलाज करवाए। हां, सभी राज्यों को अपने-अपने प्रदेश की स्वास्थ्य सुविधाएं आधुनिक और विकसित जरूर बनानी चाहिए, ताकि मरीजों को इलाज के लिए किसी दूसरे राज्य में न जाना पड़े।
चिन्मय मिश्र, कल्याणपुर, कानपुर

डराते आंकड़े
एक तरफ दुनिया कोरोना के कहर से त्राहि-त्राहि कर रही है, तो दूसरी तरफ संक्रमण और मौत के भयावह होते आंकड़े लोगों की नींद उड़ा रहे हैं। भारत में भी लगातार संक्रमण बढ़ रहा है। मगर दिल्ली की खराब होती हालत को सुधारने की बजाय उसे बेपरदा किया जा रहा है, जो अब भारी पड़ता दिख रहा है। दिल्ली अब कोरोना का हॉटस्पॉट है। खुद उप-मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि अगर यूं ही संक्रमण बढ़ता रहा, तो 31 जुलाई तक दिल्ली में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या साढे़ पांच लाख हो सकती है। ऐसा हुआ, तो यह सरकार की नाकामी ही कही जाएगी। बढ़ रहे संक्रमण को देखते हुए दिल्ली सरकार को चौतरफा कठोर कदम उठाने चाहिए। दिल्ली की तस्वीरें देखें, तो लगता है कि उसे भाग्य के भरोसे छोड़ दिया गया है और सरकार व्यर्थ की बयानबाजी में उलझी है।
अमृतलाल मारू, दसई, धार

ओपिनियन /शौर्यपथ / कुछ दिनों से इस्लामोफोबिया की तोप की दिशा भारत की ओर है और भांति-भांति की कहानियां गढ़ी जा रही हैं। विशेष रूप से जब से कोरोना महामारी ने देश को अपनी चपेट में लिया है, उसके पश्चात एक जमाअत से चूक क्या हुई कि अनेक लोगों ने पूरे समुदाय विशेष को दोष देना शुरू कर दिया। कुछ राजनेताओं की ओर से भी प्रतिकूल टिप्पणियां आने लगीं। कुछ लोगों ने इस बात को भी हवा दी कि समुदाय विशेष के लोग बहुसंख्यक समुदाय की कॉलोनियों में जाकर कोरोना फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। नतीजा यह हुआ कि समाज के कुछ लोगों ने कॉलोनियों में सब्जी-फल ठेले और दुकान वालों की पहचान देखना शुरू कर दिया। यहां तक कि कुछ जगह राहत और बचाव कार्यों में भी जरूरतमंदों की मजहबी पहचान देखने की कोशिश हुई। हमें सावधान हो जाना चाहिए, यदि यही दशा रही, तो आने वाला कल काफी भयावह हो सकता है।
यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि हमारे भारत देश में कुछ शक्तियां ऐसी हैं, जो सदा से समुदायों के बीच दूरी एवं द्वेष पैदा करके उन्हें बांटने की कोशिश करती रही हैं। यही शक्तियां इन दिनों समाज में अलग-अलग तरह से भय एवं अराजकता फैलाने पर तुली हैं। वस्तुत: यह एक ऐसी भयावह मुहिम है, जिसके विरुद्ध पूरे देश को एकजुट होकर सामने आना चाहिए। भारत के इस बदलते परिदृश्य में राजनीतिक पार्टियों से उम्मीद अपनी जगह है, लेकिन आम लोगों के लिए यह जरूरी हो गया है कि ऐसे हालात में देश के सजग और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में विश्वास रखने वाले लोग सामने आएं। अपनी कोशिशों से इस साझी संस्कृति, समाज में विष घोलने वाले मुट्ठी भर लोगों के षड्यंत्रों को नाकाम कर दें।
वस्तुत: वर्तमान युग में समाज के टूटते-फूटते रिश्ते, कट्टरता, असहिष्णुता, मतभेद, बिखराव के कारण शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का मामला जटिल होता जा रहा है, लेकिन इसका इलाज साफ नहीं दिखाई दे रहा है। ऐसे में सभी विद्वानों, समाजशास्त्रियों और मानव हितैषियों का एक ही मत है कि शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की नींव को धार्मिक ग्रंथों, इतिहास की सकारात्मक घटनाओं, जियो और जीने दो जैसी उत्तम विचारधारा में ढूंढ़ा जाए। साथ ही, उनसे आम लोगों को अवगत कराया जाए।
सांप्रदायिकता के इस घटाटोप अंधकार में एकता एवं अखंडता के दीप वह संप्रदाय जला सकता है, जिसका धार्मिक दायित्व ही एकता, भाईचारा एवं न्याय है। जिसे आदेश दिया गया है कि भलाई की ओर बुलाओ और बुराई से रोको। मेरा मानना है कि इस देश के मुसलमानों को ही भटके हुए लोगों को यह याद दिलाना चाहिए कि भारत बहुलता में एकता की गौरवशाली परंपराओं का संरक्षक रहा है। सभी धार्मिक इकाइयों के समक्ष यह बात प्रस्तुत करनी चाहिए कि हम एक ऐसे देश में रहते हैं, जहां दर्जनों धर्म, सैकड़ों विचारधाराओं एवं परंपराओं को मानने वाले सदियों से रहते आए हैं। इसके बाद भी इस देश की खासियत रही है कि यहां शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की कोमल हवा का झरना निरंतर बहता रहा है। क्यों न हम अपनी गौरवशाली परंपरा की ओर लौट आएं और आपसी एकता, अखंडता को अपनाते हुए एक-दूसरे के धर्म, विश्वास तथा रीति-रिवाज का ध्यान रखें?
धर्म तो संयम तथा शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का सबसे बड़ा ध्वजवाहक है। संयम और उदारता तो उसके जमीर में शामिल है। पूरी दुनिया में खासतौर से इस्लाम धर्म के खिलाफ दुष्प्रचार किया जा रहा है। ऐसे में, जरूरी है कि इस समुदाय के लोग उठें और विभिन्न धर्मों के बीच संवाद की संगोष्ठियां आयोजित करें और विश्व को बताएं कि मुट्ठी भर लोगों ने जो दुष्प्रचार किया है, उसमें सत्यता नहीं है। एक काल्पनिक छवि के कारण समाज में अघोषित दूरी भी है, जिसके कारण आपसी मेलजोल का कार्य थम-सा गया है। इससे सबसे अधिक क्षति समुदाय विशेष को निरंतर पहुंच रही है। दुविधा व दूरी की निरंतरता और आपसी तालमेल की स्थिति न उत्पन्न होने के कारण भ्रम व भ्रांतियां अपने उफान पर हैं। शायद समुदाय विशेष के लोगों की ओर से यह कमी रह गई है कि वे अपने नैतिक एवं व्यावहारिक कार्यों से इस बात को साबित करने में पीछे रह गए हैं कि वे आपसी मेलजोल और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के संरक्षक हैं। शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के नियमों का अनुपालन भारत जैसे समाज में सबसे जरूरी है।
आज शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए एक आंदोलन उसी तरह से चलाने की जरूरत है, जैसे सय्यद अबु हसन अली नदवी ने ‘पयाम-ए-इंसानियत’ के नाम से चलाया था। उसी तरह के आंदोलन के झंडे तले हम अपने धर्म के साथ ही दूसरे धर्म के प्रतिनिधियों को लेकर आगे बढ़ सकते हैं। इसके साथ ही हमें वर्तमान राजनीति और सत्ता के साथ संबंध और बेहतर करने चाहिए, क्योंकि यदि दूरियों का अंत न हुआ, तो उससे जो क्षति पहुंचेगी, उसे आने वाली नस्लों को भुगतना पडे़गा। इसलिए शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के आंदोलन में शामिल होने वाले संतुलित व प्रबुद्ध लोगों का यह भी दायित्व है कि वे देश के सभी वर्गों के अधिकारों की रक्षा करें। हमें बहुत बुद्धिमानी से आगे बढ़ना होगा, तभी हम इस देश में अपने लिए बेहतर माहौल की उम्मीद कर सकते हैं। आज समय है, जब हम उदारवाद को जीवन का मूल मंत्र बनाएं, उच्च स्तर की नैतिकता दर्शाएं और दूसरे धर्मों के लोगों से सद्भावी रिश्ते बनाएं।
यह इस देश की सुदृढ़ता का प्रमाण है कि यहां अल्पसंख्यकों के अधिकारों की बात अधिकतर बहुसंख्यक वर्ग के लोग ही करते हैं। अल्पसंख्यकों को जब भी जरूरत पड़ी है, देश के सैकड़ों बहुसंख्यक उठ खड़े हुए हैं। वर्तमान में सीएए, एनपीआर और एनआरसी के मामले में हमें स्पष्ट रूप से आभास हुआ कि इस देश में अल्पसंख्यक अकेले नहीं हैं। इसलिए हमें सभी को साथ लेकर आगे बढ़ना होगा। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि जो कुछ भारत के हित में है, उसी में समुदाय विशेष का भी हित है। समाज से सरकार तक, हर स्तर पर भेदभाव की किसी भी नीति से बचना होगा। सत्य व न्याय की स्थापना के बिना सदाचारी, स्वस्थ और विकसित समाज की कल्पना नहीं की जा सकती।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) अख्तरुल वासे, प्रोफेसर इमेरिटस, जामिया मिल्लिया इस्लामिया

 

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