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सम्पादकीय लेख / शौर्यपथ /बेटा चल छत पर चलें कल तो तेरी शादी है, आज हम माँ बेटी पूरी रात बातें करेंगे। चल तेरे सिर की मालिश कर दूँ, तुझे अपनी गोद में सुलाऊँ कहते कहते आशा जी की आँखें बरस पड़ती हैं। विशाखा उनके आंसू पोंछते हुए कहती है ऐसे मत रो माँ, मैं कौन सा विदेश जा रही हूँ। 2 घण्टे लगते हैं आगरा से मथुरा आने में जब चाहूंगी तब आ जाऊँगी।
विदा हो जाती है विशाखा माँ की ढेर सारी सीख लिए, मन में छोटे भाई बहनों का प्यार लिये, पापा का आशीर्वाद लिये। दादा-दादी, चाचा-चाची, मामा-मामी, बुआ-फूफा, मौसी-मौसा सबकी ढेर सारी यादों के साथ। जल्दी आना बिटिया, आती रहना बिटिया कहते हाथ हिलाते सबके चेहरे धुंधले हो गए थे विशाखा के आंसुओं से। संग बैठे आकाश उसे चुप कराते हुए कहते हैं सोच लो पढ़ाई करने बाहर जा रही हो। जब मन करे चली आना।
शादी के 1 साल बाद ही विशाखा के दादाजी की मृत्यु हो गयी, उस समय वो आकाश के मामा की बेटी की शादी में गयी थी, आकाश विशाखा से कहता है ऐसे शादी छोड़ कर कैसे जाएंगे विशु, दादाजी को एक न एक दिन तो जाना ही था। फिर चली जाना, चुप थी विशाखा क्योंकि माँ ने सिखा कर भेजा था अब वही तेरा घर है, जो वो लोग कहें वही करना। 6 महीने पहले आनंद भईया (मामा के बेटे) की शादी में भी नहीं जा पायी थी क्योंकि सासु माँ बीमार थीं।
अब विशाखा 1 बेटी की माँ बन चुकी थी, जब उसका पांचवा महीना चल रहा था तभी चाची की बिटिया की शादी पड़ी थी, सासू माँ ने कहा दिया ऐसी हालत में कहाँ जाओगी। वो सोचती है,कैसी हालत सुबह से लेकर शाम तक सब काम करती हूँ, ठीक तो हूँ इस बार उसका बहुत मन था, इसलिए उसने आकाश से कहा मम्मी जी से बात करे और उसे शादी में लेकर चले, चाची का फोन भी आया था आकाश के पास, तो उन्होंने कहा दिया आप लोग जिद करेंगे तो मैं ले आऊँगा लेकिन कुछ गड़बड़ हुई तो जिम्मेदारी आपकी होगी। फिर तो माँ ने ही मना कर दिया, रहने दे बेटा कुछ भी हुआ तो तेरे ससुराल वाले बहुत नाराज हो जाएंगे।
वैसे तो ससुराल में विशाखा को कोई कष्ट नहीं था, किसी चीज की कमी भी नहीं थी, फिर भी उसे लगता था जैसे उसे जिम्मेदारियों का मुकुट पहना दिया गया हो। उसके आने से पहले भी तो लोग बीमार पड़ते होंगे, तो कैसे सम्भलता था ! उसके आने से पहले भी तो उनके घर में शादी ब्याह पड़ते होंगे, तो आज अगर वो किसी समारोह में न जाकर अपने मायके के समारोह में चली जाए तो क्या गलत हो जाएगा।
दिन बीत रहे थे कभी 4 दिन कभी 8 दिन के लिए वो अपने मायके जाती थी और बुझे मन से लौट आती थी।विशाखा के ननद की शादी ठीक हो गयी है, उन दोनों का रिश्ता बहनो या दोस्तों जैसा है। अपनी ननद सुरभि की वजह से ही उसे ससुराल में कभी अकेलापन नहीं लगा। सुरभि की शादी होने से विशाखा जितनी खुश थी उतनी ही उदास भी थी, उसके बिना ससुराल की कल्पना भी उसके आंखों में आंसू भर देती थी।
विशाखा ने शादी की सारी जिम्मेदारी बहुत अच्छे से संभाल ली थी, उसको दूसरा बच्चा होने वाला है, चौथे महीने की प्रेगनेंसी है फिर भी वो घर-बाहर का हर काम कर ले रही है। सभी रिश्तेदार विशाखा की सास से कह रहे हैं बड़ी किस्मत वाली हो जो विशाखा जैसी बहु पायी हो।
शादी का दिन भी आ गया, आज विशाखा के आँसू रुक ही नहीं रहे थे, दोनों ननद भाभी एक दूसरे को पकड़े रो रही थीं, तभी विशाखा की सास उसे समझाते हुए कहती हैं, ऐसे मत रो बेटा, कोई विदेश थोड़े ही जा रही हो जब चाहे तब आ जाना। तब सुरभि कहती है, नहीं माँ जब दिल चाहे तब नहीं आ पाऊँगी। वो पूछती हैं ऐसे क्यों कहा रही हो बेटा, माँ के पास क्यों नहीं आओगी तुम ?
तब सुरभि कहती है, "कैसे आऊँगी माँ हो सकता जब मेरा आने का मन करे तब मेरे ससुराल में कोई बीमार पड़ जाए, कभी किसी की शादी पड़ जाए या कभी मेरा पति ही कह दे तुम अपने रिस्क पे जाओ कुछ हुआ तो फिर मुझसे मत कहना। सब एकदम अवाक रह जाते हैं, वो लोग विशाखा की तरफ देखने लगते हैं, तभी सुरभि कहने लगती है, नहीं माँ भाभी ने कभी मुझसे कुछ नहीं कहा लेकिन मैंने देखा था उनकी सूजी हुई आंखों को जब उनके दादा जी की मौत पर आप लोग शादी का जश्न मना रहे थे।
मैंने महसूस की है वो बेचैनी जब आपको बुखार होने के चलते वो अपने भईया की शादी में नहीं जा पा रही थीं। मैंने महसूस किया है उस घुटन को जब भैया ने उन्हें उनकी चाची की बेटी की शादी में जाने से मना कर दिया था, उन भईया ने जिन्होंने उनकी विदाई के वक़्त कहा था सोच लो तुम बाहर पढऩे जा रही हो जब मन करे तब आ जाना। आपको नहीं पता भईया आपने भाभी का विश्वास तोड़ा है।
कल को मेरे ससुराल वाले भी मुझे छोटे भईया की शादी में न आने दें तो, सोचा है कभी आपने। पापा हमारी गुडिय़ा तो आपकी जान है, कभी सोचा है आप सबने कल को पापा को कुछ हो जाये और गुडिय़ा के ससुराल वाले उसे न आने दें। कभी भाभी की जगह खुद को रख कर देखिएगा, एक लड़की अपने जीवन के 24-25 साल जिस घर में गुजारती है, जिन रिश्तों के प्यार की खुशबू से उसका जीवन भरा होता है उसको उसी घर जाने, उन रिश्तों को महसूस करने से रोक दिया जाता है।
मुझे माफ़ कर दीजिए भाभी मैं आपके लिए कुछ नहीं कर पाई, जिन रिश्तों में बांधकर हम आपको अपने घर लाये थे वही रिश्ते वही बन्धन आपकी बेडिय़ाँ बन गए और ये कहते-कहते सुरभि विशाखा के गले लग जाती है। आज सबकी आंखें नम थी, सबके सिर अपनी गलतियों के बोझ से झुके हुए थे।
दोस्तों ये किसी एक घर की कहानी नहीं बल्कि हर घर की यही कहानी है, हमारे देश के समाज में शादी होते ही लड़कियों की प्राथमिकताएं बदल दी जाती हैं। अपना परिवार अपना घर ही पराया हो जाता है और उसे वहाँ जाने के लिए उसे दूसरों की आज्ञा लेनी पड़ती है। अगर हो सके तो इस लेख को पढ़कर आप सब भी इस पर गौर जरूर फरमाइयेगा। और हो सके तो बहु को उसके माता-पिता के घर आने-जाने की आज़ादी जरूर दिजियेगा।
(लेखक के अपने विचार है )
रायपुर / शौर्यपथ / श्री रावतपुरा सरकार यूनिवर्सिटी रायपुर में अध्यनरत बी.ए. एल.एल.बी. प्रथम वर्ष छात्रा (BA.L.LB. ¹St Year student) जयंती(निकिता) नायक ने हमारे जीवन मे वृक्षो की भुमिका बताते हुए अपने विचार व्यक्त किये।
हमारे जीवन मे वृक्षो की महत्व
पेड़ हमारे जीवन में भोजन और पानी की तरह ही महत्वपूर्ण है। पेड़ के बिना जीवन बहुत कठिन बन जाएगा या हम यह कह सकते है कि जीवन खत्म हो जायेगा क्योंकि हमे स्वस्थ और समृद्ध जीवन देने में पेड़ बहुत मुख्य पहलु है । पेड़ हमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष जीवन प्रदान करता है क्योंकि ये ऑक्सीजन उत्पादन CO² उपभोग का स्त्रोत और बारिश का स्त्रोत है। प्रकृति की ओर से मानव को दिया गया ये सबसे अनमोल उपहार है जिसका हमे आभारी होना चाहिए तथा इसको सम्मान देने के साथ ही मानवता की भलाई के लिए संरक्षित करना चाहिए। धरती और धरती पर निवास करने वाले प्रत्येक जीव के लिए पेड़–पौधों जीवनदायि महत्व रखते है। बढ़ते प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं से निपटने के लिए पेड़–पौधों ही सबसे मजबूत ढाल है। हर व्यक्ति कम से कम एक पौधा जरूर रोपित करे और दूसरों को भी पौधारोपण करने के लिए प्रेरित करे. पेड़–पौधें ही पर्यावरण के रंछक होने के साथ उनको स्वच्छ भी बनाते हैं। इसके बिना कोई भी अपने जीवन की संभावना नहीं कर सकता। इसलिए लोगों को पेड़–पौधे लगाने के कार्य आगे आना चाहिए। लेकिन वर्तमान में लोग अपने भौतिक सुख– सुविधाओं के लिए जंगलों,वनो, को काट कर इस धरती को पेड़ विहीन बना रहे है। यह भी एक प्रकार से पर्यावरण की अवहेलना करना है, इससे पर्यावरण अपमानित हो रही है जिसके परिणाम स्वरूप हमे कई प्रकार की आपदाओं का सामना करना पड़ सकता है। और देखा जाए तो हम कर भी रहे हैं कोरोना वायरस(COVID–19) महामारी से यह भी एक प्रकार से प्राकृति का अभिशाप ही है। इस महामारी के दौरान ऑक्सिजन की अभाव के कारण कई लोगों की मृत्यु हो रही है। अगर लोग अभी भी जागरूक नहीं होंगे तो पृथ्वी संकट में पड़ सकती है। “सांसे चल रही है पर शुद्ध हवा नहीं सब बराबर के गुनहगार है इसमें, दोष किसी एक का नहीं, सम्भल जाओ अभी भी वक़्त है, अभी सब कुछ लुटा नहीं।” सभी पाठकों से मेरी निवेदन है कि वृक्ष रोपण करके पृथ्वी व अपने स्वयं के जीवन को संरक्षित करे। आप मानेंगे बात तभी तो सुधरेंगे ना हालात।
सर्वे भवन्तु सुखिनः।
सर्वे सन्तु निरामया।।
शौर्य की बातें / आयुर्वेद का जन्म, ऋग्वेद से एक उपवेद या शाखा की तरह हुआ जिसे अनगिनत प्रयोगों के बाद तब के वैज्ञानिक जिन्हें आज हम ऋषि मुनि की संज्ञा देते हैं उनके द्वारा शुरू हुआ। ऐसा माना जाता है कि महर्षि अग्निवेश ने सर्वप्रथम इसका सफलतापूर्वक प्रयोग किया और लिपिबद्ध किया। महर्षि चरक ने इस ज्ञान को अपनाया और इसका अभूतपूर्व विकास किया। जिस कारण से वो मॉडर्न मेडिसिन के जनक कहे जाते हैं। 2600 साल पहले ही भारत ने इतनी उन्नति कर ली थी। इनकी लिखी पुस्तकें चरक संहिता आज आयुर्वेद का आधार बनी।चरक संहिता 8 भागों में विभाजित है जिसमे 12000 श्लोक हैं और 1 लाख औषधीय वनस्पतियों का वर्णन है जिससे 2000 दवाओं का निर्माण भी हुआ है। आयुर्वेद मुख्यतः 3 दोषों वात, पित्त और कफ को आधार मानकर चिकित्सा से ज्यादा प्रिवेंशन यानी बचाव को महत्व देता है और शरीर को स्वस्थ्य बनाने की अनुशंसा करता है।
हमारे पौराणिक ज्ञान में एक बड़े आधार स्तंभ के रूप में महर्षि सुश्रुत का नाम आता है जिन्होंने शल्य चिकित्सा( सर्जरी) की शुरुवात प्राचीन भारत मे ही कर दी थी। इनका जन्म विश्वामित्र के पुत्र के रूप में हुआ था और इनको गायत्री मंत्र का रचयिता भी माना जाता है। इनकी सुश्रुत संहिता का आयुर्वेद में बड़ा महत्व है।देवभूमि वाराणसी में इन्होंने बहुत से असाध्य रोगों का इलाज किया जब अन्य देश केवल मारकाट और अंधविश्वास में लिप्त थे तब भारत मे तक्षशिला और फिर नालंदा यूनिवर्सिटी की नींव पड़ चुकी थी। पूरे विश्व से यहां लोग ज्ञान प्राप्त करने आते थे। इतिहास में दर्ज अनेक अत्याचारों में से एक कुत्सित इतिहास का वर्णन यहां करना होगा।
एक बार खिलजी वंश के शासक बख्तियार खिलजी की तबियत बिगड़ी और उसका इलाज किसी भी हकीम से संभव न हो सका। तब किसी ने उन्हें नालंदा यूनिवर्सिटी से संपर्क करने की सलाह दी। बख्तियार मान गए पर शर्त थी बिना किसी दवा के इस्लामिक तरीके से इलाज। वहां के आयुर्वेदाचार्य ने उन्हें कुरान भेंट की और उसे पढ़ने की सलाह दी। खिलजी पढ़ने लगे साथ ही उनके स्वास्थ्य में अभूतपूर्व सुधार आने लगा। जल्द ही वो हष्ट पुष्ट तंदरुस्त हो गए पर शक से भी घिर गए। अपने गुप्तचरों से जानकारी हासिल करने के बाद उनके पैरों तले जमीन खिसक गई जब उनको पता चला कि कुरान के पेजों पर आयुर्वेदिक दवा का लेप किया गया था। जिसे चाट कर पेज पलटने की आदत के कारण उनका स्वास्थ्य ठीक होता चला गया। ये सुनकर खिलजी का मिजाज बिगड़ गया और इस धरोहर इस भारतीय शक्ति जिसमे विश्वगुरु बनने की क्षमताएं थी उसे नष्ट करने का संकल्प लिया गया।
कहते हैं बौध्य् भिक्षुओं, आचार्यो का कत्लेआम किया गया और नालंदा विश्वविद्यालय को आग लगा दी गई जो 6 महीने जलती रही अपने साथ 90 लाख किताबों का ज्ञान समेटे, राख में सिमट गई। शायद साँप को दूध न पिलाने का ज्ञान उस विश्व विद्यालय ने नही सिखाया था। ज्ञान की ये विरासत भारत से अरबों को और अरबों से यूरोपियनों को मिला। उसी आधार पर उनकी मेहनत ने एलोपैथी को विकसित किया जो आज के आधुनिक विज्ञान का आधार स्तंभ है।
स्पष्ट है कि आयुर्वेद और एलोपैथी दो अलग अलग ज्ञान न होकर एक ही विज्ञान के अंश हैं। लेकिन कोई भी सभ्यता कोई भी ज्ञान स्वार्थियो और अधर्मियों से अछूता नही रह सका। चिकित्सा जब ज्ञान से व्यापार बनी तो धूर्त व्यावसायिक कंपनियों ने इसे ओवरटेक करना शुरू कर दिया।भारतीय आस्थाओं का दुरुपयोग करते हुए अब आयुर्वेद के नाम का फायदा उठाते हुए जबरदस्ती के दावों के दौर शुरू हो गया। सड़को पर बाबा बन लोग मजमा लगाकर दवा, जड़ीबूटी, विभूति, लिंग वर्धक यंत्र, ताबीज, भस्म सब बेचना शुरू कर दिया। आयुर्वेद का प्रचार कोई आयुर्वेदाचार्य करे पर योगगुरुओ ने भी आयुर्वेद पर अधिकार जमाना शुरू कर दिया और एलोपैथी को शून्य बताने का षड्यंत्र भी शुरू कर दिया।यह बात तय है कि इन्होंने याेग का परचम पूरी दुनिया में लहराया है,और जन जन में योग और व्यायाम के महत्व को पंहुचाया है ।लेकिन जब कल्पना से अधिक प्रसिद्धि, शोहरत और दौलत मिल जाय, तो उसे पचा नही पाते, और खुद को ईश्वर समझने लगते हैं, और उसी भावावेष में जिस दुनिया ने मान सम्मान दिया है, उसी का अपमान करना शरू कर देते हैं । अपने आपको बड़ा साबित करने के लिये दूसराें को छोटा साबित करना एक ओछापन है, बेशक आप अपनी लाईन बड़ी करिये, पर दूसरों की लाईन मिटाकर बड़ा बनने का ख्वाब मूर्खता की निशानी है, सम्हल जाओ बाबाजी, वरना आपका अहं ( सबकुछ मैं ही हूं ) आपको बरबाद कर देगा । क्योंकि वक्त की मार बहुत खतरनाक होती है, ये किसी को नही छोड़ती।
यदि हर मर्ज की दवा खोजी जा चुकी होती किसी भी पैथी में, तो आज कोई अंधा कोई गूंगा कोई काना कोई बहरा नही होता। क्या भैंगेपन का इलाज आयुर्वेद में अब तक है बाबाजी? अगर कोरोनिल से कोरोना 3 दिन में ठीक हो सकता तो आपके पतंजलि के पदाधिकारियों की मृत्यु कोरोना से नही होती न 82 पॉजिटिव मिलते।
पहले आयुष मंत्रालय से प्रमाणित कहा पर खंडन खुद आयुष मंत्रालय ने किया। फिर डब्लू एच ओ ने सर्टिफिकेट दे दिया कहा पर उसी ने ट्वीट कर मना किया। आखिर ऐसे झूठे दावों से सिवाय बदनामी के क्या हासिल होगा बाबाजी? क्यो आप आयुर्वेद और पतंजलि का नाम खराब करने में लगे हैं?
एलोपैथी ने तो कभी सम्पूर्ण विजय का दावा नही किया चाहे वो दवा हो चाहे वैक्सीन। कई इलाजों का पहले प्रयोग किया चाहे वो प्लाज़्मा थेरेपी हो, अजिथ्रोमायसिन, ivermectin हो या ओवर use of स्टेरॉयड हो। एलोपैथी ने बार बार गलतियों में सुधार किया और बेहतर विकल्प तलाशा और आज भी तलाश रहे हैं।
क्या यही विनम्रता आयुर्वेद में नही आ सकती? क्यो आप उसी दवा पर टिके हैं जिसकी खोज भी आपने नही की। अश्वगंधा, गिलोय और तुलसी का प्रयोग तो सदियों से किया जा रहा है। तो क्या पहले लोग मरते नही थे? कोरोनिल को संजीवनी बूटी की तरह प्रस्तूत करने के पीछे आपका व्यावसायिक हित हो या आपके ज्ञान की कमी पर डॉक्टर की मृत्यु का उपहास उड़ना आपके इंसानियत पर भी सवाल उठाता है। जिन फ्रंट लाइन कोरोना वारियर्स पर मोदी जी ने हैलीकॉप्टर से फूल बरसाए आपने उन्ही doctors को अपनी मौत का कारण उन्ही की दवाओं को बता दिया और उपहास किया? ऑक्सीजन नाक से लो कह दिया क्या ये उन मरीजों का मखौल नही जिन्होंने ऑक्सीजन की कमी से अपनी जान गवाँई?इम्युनिटी बूस्टर शब्द का पतंजलि ने खूब फायदा उठाया। कोरोना की इम्युनिटी बूस्टर क्या होता है??
इसका शाब्दिक अर्थ तो कोरोना की ताकत बढ़ाना हुआ। डब्लू एच ओ की गाइड लाइन यही थी कि जो दवा इम्युनिटी बढ़ाये वो इम्युनिटी की दवा कहला सकती है उस बीमारी की दवा नही। फिर भी कानून की कमजोरियों का फायदा उठाकर इसे कोरोना की दवा के रूप में स्थापित किया गया। भारतीय भावनाओ को दमित करने का साहस किसी मे नही इसलिए इसके रिलॉन्च पर खुद स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी शामिल थे। क्या इनका दायित्व दवा का प्रचार था? क्या ये सीधा सीधा कानून का उलंघन नही? जबकि वो सरकारी पद पर हैं। क्या ये सही समय है जब भारत कोरोना से बुरी तरह प्रभावित है, दोनो विज्ञान को मिलकर इस बीमारी से लड़ना चाहिए पर ये आपस मे भिड़े हुए हैं?
अति सर्वत्र वर्जयेत। यदि किसी भी दवा का सेवन आवश्यकता से अधिक हो तो वो जहर बन जाती है।
आयुर्वेदिक कंपनियों के फैलाये झूठ
1 आयुर्वेद में एलर्जी या हानि नही पहुचती
फैक्ट- एलर्जी व्यक्ति के शरीर मे ही उपस्थित होती है उसका प्राकृतिक या कृत्रिम होने से कोई संबंध नही होता। जहर भी प्राकृतिक होता है इसलिए हर वस्तु इसी आधार पर सुरक्षित नही हो जाती। व्यक्ति को दूध से भी एलर्जी हो सकती है( लैक्टोस इनटॉलेरेंस) शहद , आयोडीन से भी । अस्थमा का अलेरजेंट फूलों का पराग वो भी प्राकृतिक है।
शुगर के मरीज शक्कर नही झेल पाते। इसलिए प्राकृतिक वस्तु होने के चलते अमृत बताना भी नुकसानदेह है। जड़ से इलाज वाली बात अब तक पुष्ट नही हुई पर देर से परिणाम आने की उम्मीद पर दुनिया आयुर्वेद पर कायम है। बाबाजी एक बात बताइए यदि कोई कोरोना मरीज सांस नही ले पा रहा, धड़कन बन्द हो रही, ऑक्सीजन की कमी है तो क्या कोरोनिल खिलाकर उसे ठीक किया जा सकता है यदि नहीं फिर क्यो आप Dr के ज्ञान को कटघरे में लाते हैं जब आपने खुद वो किताबें नही पढ़ी?
आज अमेरिका ने वैक्सीन लगाए लोगो को मास्क फ्री घोषित कर दिया क्या कोरोना विजय पर आपको शुभकामनाओं से भी परे रखा है आपके पूर्वाग्रह ने?
रामलीला मैदान अनशन के बाद आप खुद एम्स में भर्ती थे। आचार्य बालकृष्ण का भी इलाज वही हुआ था पर बाहर आकर आप उनको ही ठग बताते हैं। क्या अश्वगंधा, गिलोय, तुलसी का खर्च इतना है कि कोरोनिल का रेट 500 रखा गया? आपदा में अवसर तो आपने भी खोजा, ब्लैक में जो बिका उसकी चर्चा व्यर्थ है। यदि आप स्वदेशी के समर्थक होते तो पूर्णतः स्वदेशी टेक्निक से बनी देश की वैक्सीन को- वैक्सीन को आप नकारते नही। पर आपने लेने से ही इनकार कर दिया। आपको लोग भारतीयता और आध्यात्मिक गुरु मानते हैं पर कई इंटरव्यू पर आपने वास्तुशास्त्र, ज्योतिष और ब्राम्हणवाद को जमकर कोसा। क्या ये भारतीय परंपराओं का अपमान नही? क्या सिर्फ भगवा वस्त्र धारण करना ही सनातनी परंपरा का सबूत है?
आयुर्वेद की आड़ में मूर्ख बनाने की बानगी-
क्या आपके टूथपेस्ट में नमक है?
नींबू की शक्ति वाला विम बार
हल्दी और चंदन का गुण समाए संतूर
दाने दाने में केसर का दम राजश्री इलायची, विमल बोलो जुबां केसरी
वैद्यराज धनवंतरी का बनाया च्यवनप्राश
नीम की शक्ति
इम्युनिटी बूस्टर आईल
चारकोल(कोयले) वाला फेसवाश और पेस्ट
विको टर्मरिक नही कॉस्टमैटिक
मर्दों की त्वचा के लिए अलग क्रीम
गंगा के पानी से बना गंगा साबुन
जब भारत के मार्केट में उतरना होता है तो भारतीय मनोविज्ञान का फायदा उठाना जरूरी हो जाता है। हमारे दादी माँ के नुस्खों की किताबों को पढ़ना जरूरी हो जाता है। पर स्थिति कैसे जानलेवा हो जाती है बानगी देखिए
1 एक प्रतिष्ठित हॉस्पिटल में तब हड़कंप मच गया जब एक मरीज का ऑक्सीजन लेवल 65 पर पहुँच गया। वो व्यक्ति मास्क निकालकर कपूर सूंघ रहा था क्योकि उंसने व्हाट्सअप पर ये इलाज पढ़ा था ऑक्सीजन बढ़ाने का।
2 एक व्यक्ति की फ़ोटो वायरल हुई जो पीपल के पेड़ पर ऑक्सीजन लेने चढ़ जाता था। हालांकि वेदों में भी रात्रि को पीपल के पास जाना भी प्रतिबंधित है क्योंकि जब पौधा किसी दूसरे पेड़ पर एपिफ़ाइट की तरह उगता है तो जरूर रात को ऑक्सीजन देता है पर मिट्टी में उगाया गया वृक्ष नही।
3 गोबर जलाकर ऑक्सीजन बनाने के वैज्ञानिक प्रयोग भी किये गए पर केमिकल इंजीनियर्स ने इसे भ्रांति ही बताया।
चोट पर गोबर लगा लेना या बिना आयुर्वेदाचार्य की सलाह और मात्रा के गो मूत्र का सेवन कर लेना ऐसी कुछ समस्याएं है जो कोरोना काल मे नजर आई है।
जब बाबाजी की देखा देखी लौकी का रस रोजाना पीने वाले महानुभाव की मृत्यु के बाद बाबाजी को इंटरव्यू कर कडुई लौकी को इस्तमाल न करने की सलाह देना पड़ गया था।
भारत कृषि प्रधान हो न हो धर्म प्रधान जरूर है। चाहे सुमैया तारे की अफवाह हो या नमाज पढ़ने से रक्षा ये सभी धर्म अनुयायियों की मान्यताएं है पर जिस समस्या से देश जूझ रहा है उसका मुकाबला हमारे फ्रंट लाइन कोरोना योद्धाओं का मनोबल बढ़ाकर, उनकी गाइड लाइन का पालन कर ही किया जा सकता है।
साभार - डॉ. सिद्धार्थ शर्मा ( सुपेला भिलाई )
शौर्य कीबातें / कॉरोना महामारी के बाद से दुनिया बदल गई,इसमें करोड़ों लोगों की नौकरियां चली गई, कई लोग हमें छोड़ कर चले गए है।इस महामारी ने करोड़ों युवाओं, बच्चो और परिवारों के सदस्यों के सपनों को चकनाचूर कर दिया है।लेकिन निराश होने की जरूरत नहीं है।कोई भी लड़ाई निराशा से नहीं जीती जा सकती ।
हम जहां है जैसे है वहीं से हमें फिर से शुरुआत करनी चाहिए।कुछ दिनों बाद कई एग्जाम होने वाले है, आप लोगों को फिर से सकारात्मक सोच के साथ तैयारी में जुट जाना चाहिए ।
"सफलता तब मिलती है,जब आप सफल लोगों जैसे काम लगातार करते रहते हैं।"
मेहनत सफलता का ईंधन है,
इसलिए मेहनत करना जरूरी है
यदि मेहनत नहीं करोगे,तो सफलता की गाड़ी कभी भी प्लेटफॉर्म से आगे नहीं बढ़ पाएगी।इसलिए महत्वाकांक्षी बनिए,महत्वकांक्षा प्लेटफॉर्म और मंजिल के बीच का सफर तय करने में काम आती हैं । सफलता का मूल्य मेहनत है,
और काम में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन देने के बाद जीतने और हारने का मौका भी आपके हाथों में है।
संगति अच्छी चुनिए
यदि आप भेड़ियों की संगति करते हैं,
तो गुर्राना ही सीखेंगे।
और यदि आप गरुड़ों के साथ रहते हैं,
तो शिखरों को छूना सीखेंगे।
आयना तो आदमी का केवल चेहरा दिखाता है मगर उसकी असली पहचान तो उसके चुने गए दोस्तों से होती है।
जुझारू बनिए
जुझारू लोग वहीं से अपनी सफलता की शुरुवात करते हैं, जहां दूसरे लोग हार मान लेते हैं। इसलिए उस पत्थर तोड़ने वाले की तरह बनिए, जो चट्टान पर लगातार वार करता है और चट्टान के दो टुकड़े कर देता है। आपका जुझारू होना जरूरी है।
जुनून जरूरी है
जुनून का होना सफलता की कुंजी है, क्योंकि यह एक ऐसा गुण है, जो आपके लिए सफलता के द्वार खोल देता है और हर चीज को संभव बना देता है,जुनून होने पर सामान्य व्यक्ति भी शिखर पर पहुंच सकता है। यानी सफलता इस बात पर निर्भर नहीं करती है कि आप क्या करते हैं और क्या प्राप्त करते हैं, बल्कि इस बात पर ज्यादा निर्भर करती हैं की आपके अंदर जुनून कितना है l
कॉरोना महामारी के बाद से दुनिया बदल गई,इसमें करोड़ों लोगों की नौकरियां चली गई, कई लोग हमें छोड़ कर चले गए है।इस महामारी ने करोड़ों युवाओं, बच्चो और परिवारों के सदस्यों के सपनों को चकनाचूर कर दिया है।लेकिन निराश होने की जरूरत नहीं है।कोई भी लड़ाई निराशा से नहीं जीती जा सकती ।
हम जहां है जैसे है वहीं से हमें फिर से शुरुआत करनी चाहिए।कुछ दिनों बाद कई एग्जाम होने वाले है, आप लोगों को फिर से सकारात्मक सोच के साथ तैयारी में जुट जाना चाहिए ।
"सफलता तब मिलती है,जब आप सफल लोगों जैसे काम लगातार करते रहते हैं।"
मेहनत सफलता का ईंधन है,
इसलिए मेहनत करना जरूरी है
यदि मेहनत नहीं करोगे,तो सफलता की गाड़ी कभी भी प्लेटफॉर्म से आगे नहीं बढ़ पाएगी।इसलिए महत्वाकांक्षी बनिए,महत्वकांक्षा प्लेटफॉर्म और मंजिल के बीच का सफर तय करने में काम आती हैं । सफलता का मूल्य मेहनत है,
और काम में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन देने के बाद जीतने और हारने का मौका भी आपके हाथों में है।
संगति अच्छी चुनिए
यदि आप भेड़ियों की संगति करते हैं,
तो गुर्राना ही सीखेंगे।
और यदि आप गरुड़ों के साथ रहते हैं,
तो शिखरों को छूना सीखेंगे।
आयना तो आदमी का केवल चेहरा दिखाता है मगर उसकी असली पहचान तो उसके चुने गए दोस्तों से होती है।
जुझारू बनिए
जुझारू लोग वहीं से अपनी सफलता की शुरुवात करते हैं, जहां दूसरे लोग हार मान लेते हैं। इसलिए उस पत्थर तोड़ने वाले की तरह बनिए, जो चट्टान पर लगातार वार करता है और चट्टान के दो टुकड़े कर देता है। आपका जुझारू होना जरूरी है।
जुनून जरूरी है
जुनून का होना सफलता की कुंजी है, क्योंकि यह एक ऐसा गुण है, जो आपके लिए सफलता के द्वार खोल देता है और हर चीज को संभव बना देता है,जुनून होने पर सामान्य व्यक्ति भी शिखर पर पहुंच सकता है। यानी सफलता इस बात पर निर्भर नहीं करती है कि आप क्या करते हैं और क्या प्राप्त करते हैं, बल्कि इस बात पर ज्यादा निर्भर करती हैं की आपके अंदर जुनून कितना है l
लेख - अशोक गुप्ता (अध्यक्ष
शपथ फाऊंडेशन भिलाई)
लेख /शौर्यपथ / क्रूर कोरोना का कोड़ा सभी को बड़ी बेरहमी से सटासट पीट रहा है। महूवा खा के नशे में मदमस्त भयानक भालू की तरह रात -दिन लोगों को उठा -उठा कर पटक रहा है।बीते दिनों मैं भी क्रूर कोरोना के फंदे में फंस गया।तब हमारे घर में कोहराम मच गया। मुझे मेरी अर्धांगिनी जी तरह तरह के काढ़ा यूं जबरिया पीलाने लगी जैसे जानवरों के डाक्टर बांस की पूंगी में दवाई भरकर गाय भैस के मुंह में ठेल देते हैं।साथ ही साथ वो अपनी उंगलियों को चटकाते हुए कोरोना को श्रापने लगी। कलमुंहा कोरोना तूअकाल मौत मरे,तेरा खानदान कुलवंश का नाश हो।तब मैं
उसे समझाया कि घर में शांति पूर्वक रहो ,मास्क पहनों , जिंदगी बंचाने का यही कारगर उपाय है। मेरी बात सुन के वो एक टोकरी भर मास्क उठा लाई और पटकते हुए बोली- ए लो कितना मास्क पहनना है पहन लो।माता कालिके जैसे उसके रौद्र रूप के आगे मैं बली के बकरे की भांति हो चला था, पर साहस दिखाते फिर बोला-मनू की मम्मी, यूं गुस्सा करना ठीक नहीं है। आज के समय में मास्क ही प्राण रक्षक है।इसे ऐसे नहीं पटकना।
पटकूं नहीं तो क्या चूमते चाटते गले लगा लूं। कलमुंहा कोरोना के संग आए इसे एक वर्ष से ऊपर हो गया ।मुंह को ढंकते -ढंकते इस मास्क ने हमारे मुंह को भी बंदरिया जैसे बना दिया है।ए देखो आधा मुंह लाल और आधा सफेद हो गया है।ऐसा कहते-कहते श्रीमती जी ने मुंह में लगे मास्क को यूं नोचना शुरू किया जैसे कोई गिद्ध अपने पंजे में दबे गिरगिट को बेदर्दी से नोचता है। फिर फटे पंतंग की भांति हो चले मास्क को फेक कर पैर पटकते श्रीमती जी वहां से चली गई।
अपनी अर्धांगिनी के ऐसे "कोरोना छाप" रूप को देख कर मैं भी चूहे की तरह बिस्तर में जा दुबका। तभी अधपकी नींद में मुझे ढेर सारे लोगों के रोने की आवाज सुनाई दी। मैं किसी अनहोनी की आशंका से पसीना- पसीना हो गया।हिम्मत करके उठकर खिड़की से बाहर झांका तो भौंचक रह गया। मैंने देखा कि रात के अंधेरे में पीपल पेड़ के नीचे बड़ी संख्या में तरह तरह के मास्क जमा हैं,और एक दूसरे से लिपट लिपट कर रो रहे हैं।
इसे देखकर मेरा मन दया के सागर में गोते खाने लगा। मैंने उन्हें शांत कराने के लिए चिल्लाकर कहा- मास्क भाइयों चुप हो जाव जी।रात को यूं रोना अच्छी बात नहीं है।मेरी बात सुनते साथ एक लाल रंग का मास्क आंखे तरेरते हुए बोला- खबरदार बुड्ढा, हमें समझाने का तुझे हक नहीं है,क्यों कि तुम्हारे दुष्कर्मों का फल हमें भोगना पड़ रहा है।
हां भाई ,एकदम सही कह रहे हो कहते एक नीले रंग के मास्क ने कहा- अरे बुड्ढे, तुम लोगों की जान बंचाने हम रात -दिन लगे हैं,पर तुम लोग मास्क का मान रखने बजाए मजाक उड़ाते रहते हो।
क्या मजाक उड़ाते है, हमेशा कान में लादे लादे तो फिरते हैं और क्या करेंगे कहते हूए मैंने खिड़की के दुसरे पल्ले को झटके से खोलकर प्रश्न किया।तब एक काले रंग का मास्क मेरे करीब आकर मुंह बिचकाते बोला -कितने लोग पान गुटका मुंह में भरे रहते हैं।बीड़ी दारू गांजा पीए रहते हैं, फिर भी उनके बदबूदार मुंह को हम शांति पूर्वक ढंके रहते हैं। कभी बाप जनम में तुम लोगों ने मास्क नहीं पहना है, इसीलिए होश तक नहीं रहता।कल एक छोकरा पान खा के पच्च से थूक दिया।वो भूल गया कि मुंहू में मास्क पहना है ।क्या बताऊं भइया पूरे पान की पीक से मैं सराबोर हो गया।
सच कह रहे हो भाई इंसानों के चक्कर में मास्क परिवारों की जि़न्दगी नर्क बन गई है कहते हुए एक चितकबरा मास्क अपने मुंह को ढके ढके सामनेआकर बोला- मेरी तो और भी दुर्गति हो गई है।एक डेढ़ होशियार छोकरे ने मास्क पहनकर कुछ खाते- पीते नहीं बनता सोचकर मुझे बीचो बीच गोल काट दिया है।ए दे देख लो कहते हूए उसने जब अपना हाथ हटाया तो सबने देखा कि उस बेचारे मास्क के बीचों-बीच का हिस्सा गोल कटा हुआ है।
उस मास्क को देख के मैं हंस पड़ा। मुझे हंसते देख के एक सफेद रंग की लेडीस मास्क गरजते हुए बोली - सुन बुड्ढे , तूम्हारे घर परिवार के फैशनेबुल महिलाओं के कारण तो हमारा मरना हो गया है।वो खुद तो लाल लाल लिपस्टिक होंठ में लगाती हैं और मास्क लगाने से लिपिस्टिक के मिट जाने पर गुस्सा उतारते हूए कहती हैं कि ए मरी मास्क तो सौतन जैसे हम पर सवार है। पता नहीं कब इससे हमारा पीछा छूटेगा?
उस मास्क की बात सुनकर एक खाकी रंग का मास्क पुलिसिया अंदाज मेंअकड़ते हुए गरज उठा - पढ़े लिखे होने बाद भी तुम लोगों ने असभ्य गंवारों की तरह अपनी हरकतों को बना रखा है। बेचारे पुलिस वाले तुम्हें मास्क पहनो, मास्क पहनो की हिदायत देते रहते हैं, लेकिन तुम्हारे कानों में जूं तक नहीं रेंगता।जब वे जुर्माना करते हैं तो तुम लोग मास्क पर गुस्सा उतारते हुए कहते हो- साला, हथेली भर का मास्क पांच सौ रूपए का चुना लगा दिया।
सभी मास्क की पीड़ा सुन सुन के मेरा मन भी दु:खी हो गया। मैं उन्हें समझाते हुए बोला मास्क भाइयों सब दिन एक जैसे नहीं होते हैं।धीरज रखो। तुम्हारी छत्र छाया में ही तो इसानों की जान बच रही है। हाथ जोड़ कर मेरी विनती है, इंसानों का साथ मत छोडऩा।एक न एक दिन उन्हें अपनी भूल का अहसास होगा। देर सबेर उनकी आंख जरूर खुलेगी। कहते हैं न कि कुत्ते की आंख तो इक्कीस दिन में खुलती है पर आदमी कीआंख खुलने में इक्कीस साल लग जाते हैं।मेरी बात सुन के सभी मास्क सिर झुका कर बोले-सौ बात की एक बात बोले हैं बाबा,पर अपनी बिरादरी के लोगों को बताव कि ए समय सजग रहने का है।तभी कोरोना भागेगा।खैर रात बहुत हो गई है। जाइए सो जाइए शुभ रात्रि।मास्क मित्रों से विदा लेकर मैं नई सुबह की आस में गहरी नींद में सो गया।
विजय मिश्रा "अमित"
अतिरिक्त महाप्रबंधक (जनसंपर्क), छत्तीसगढ़ स्टेट पावर कम्पनी
शौर्यपथ / आज अचानक आसमान की तरफ नजर उठाकर मैने देखा,
आसमान की काली स्याह बादलों के बीच नजर आने लगी एक आशा की रेखा।
कई दिनों से चारो ओर जो मुसीबत के बादल छाए थे
उनको कमजोर पढ़ते देखकर हम मन ही मन मुस्कुराए।
मन कहने लगा कि चलो अब ये मुसीबत के दिन टल जाएंगे।
मुरझाए हुए थे जो जीवन के फूल वो फिर से खिल जाएंगे।
तभी आसमान से एक आवाज ने मुझे टोका
कहने लगा कि आखिर तुम किसको दे रहे हो धोखा।
तुम्हारी मुसीबतों को मिलने वाला यह एक छोटा सा विराम है।
तुम्हारी सावधानियों में ही तुम्हारे जीवन का समाधान है।
मुझे मालूम है तुम कभी बदल नही सकते।
जीवन की सच्चाई में कभी ढल नही सकते।
तुम्हे तो बस दौडऩा है, भागना है और प्रकृति को उजाडऩा है।
इस धरा के नियम को तुमको अपने तौर तरीके से बनाना और बिगाडऩा है।
आज क्रंकीट के सड़को पर तुमको सरपट दौडऩा है।
और धरती माता के गर्भ से एक एक बूंद पानी भी निचोडऩा है।
बस अब भी वक्त है थम जाओ,
अपने जीवन की सात रंगों में ही रंग जाओ।
जो उजाड़ा है उसे बसाने की अपने मन ठान लो।
और अपने जीवन के हरपल को तुम फिर से संवार लो।
नही तो मैं फिर आऊंगा जलजला बनकर,कहर बनकर
और चीखती हुई लाशों का शहर बनकर।
मुझसे जैसा सुलूक करोगे वैसा ही तुमको लौटाऊंगा।
चंद हरियाली के बदले तुम पर हर खुशी लुटाऊंगा।
कुमार नायर
शौर्य की बातें / क्षमा चाहूंगा आजकल की पीढ़ी दिग्भ्रमित है उनका विवेक नष्ट हो चुका है। अच्छाई बुराई का अंतर आज का अधिकतर युवा समझ नही पाता। भगवान कृष्ण को विराट अवतार लेना पड़ा क्योकि अर्जुन भ्रमित थे। अर्जुन ने यही सवाल कुरुक्षेत्र में किया था कि मैं अपने परिवार, अपने भाई अपने गुरु अपने पितामह पर कैसे हथियार उठाऊँ?
भगवान श्रीकृष्ण ने उनको शिक्षा दी थी कि कौन यहां तुम्हारा अपना है? तुम किसके अपने हो? आत्मा न पैदा होती है न मरती है। न उसका भाई होता है न पिता। धर्म युद्ध अपना पराया नही देखता।
उनकी आवाज पर अर्जुन को अहसास हुआ कि उसका युद्ध कोई ग्रह कलह का मामला नही है बल्कि एक धर्म युद्ध है।
भगवान कृष्ण ने भाई के हाथों भाई को नही मरवाया, पुण्य के हाथों पाप को खत्म करवाया।
जमदग्नि पुत्र भगवान परशुराम ने गुरु पिता की आज्ञा को धर्म मानकर माता का सर काटने में भी संकोच नही किया। धर्म रक्षा के लिए भगवान गणेश ने पिता से युद्ध किया, विभीषण ने भाई से बैर लिया।
आप सोचो यदि कोई जज न्याय के समय अपना मित्र अपना संबंधी देखकर फैसला करे तो क्या न्याय करेगा? पंच परमेश्वर की शिक्षा ही यही है। क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात ना करोगे?
आपने कहा आप छोटे हो इसलिए बहस नही करोगे तो आपने अपने धर्म का पालन नही किया जो आपका मन आपको धर्म बताता है। संबंध, उम्र, ये सब धर्म की लड़ाई में पीछे छोड़े जाते हैं।
पहले सत्य का साथ बाद में कोई भी बंधन।
हॉ पितामह भीष्म गलत थे, क्योकि धर्म के आगे प्रतिज्ञा का बंधन नगण्य है। जब कुलकलंकी शक्ति प्राप्त कर जाए तो उसकी बात सुनना मानना और अधर्म का साथ देना समान अपराध कहलायेगा।
कसाब आपका अभिन्न मित्र होता भी तो देश पर हमले में उसकी मदद करना मित्रधर्म का पालन तो कहलायेगा पर आंशिक। उसको सही सस्ते पर लाना उसे गलत राह से बचाना अच्छे मित्र का कर्तव्य है न कि गलत काम मे मित्रता के नाम पर सहयोग करना। विभीषण सही थे क्योकि उन्होंने अपने भाई को सही रास्ता दिखाया जो निश्चित कुलनाश से बचा सकता था पर जब रावण ने उसे निष्कासित किया तब धर्म की शरण मे आकर उसने सीता अपहरण का भाग न बनते हुए उस पाप के प्रतिकार का पुण्य कमाया।
कर्ण गलत थे क्योकि अत्याचारी की मदद करने वाला भी अत्याचारी ही कहलाता है। दान का मतलब आतंकी संगठन को परमाणु बम दान नही हो सकता। दान उसको दो जो उसके योग्य हो। कर्ण के सूर्यपुत्र होने के बाद भी सुदपुत्र का लांछन हमको उनसे जोड़ता है। हमदर्दी पैदा करता है लेकिन इस हमदर्दी के कारण उनको सही नही बताया जा सकता। पाप की रक्षा पुण्य भी करे तो मलिन हो जाता है। इसीलिए भगवान कृष्ण ने उनका अंत करवाकर उसका मित्र ऋण उतरवाकर उन्हें मोक्ष प्रदान किया .
लेख - डॉ.सिद्धार्थ शर्मा
शौर्य की बातें / भारत के युवाओं में असीम शक्ति और संभावनाएं हैं। यदि अवसर मिले तो ये भारत को विश्वगुरु बनाने की क्षमता रखते हैं इसमें कोई शक नही। लेकिन भारतीय युवा राजनीतिक धूर्तताओ का शिकार है जिनको ये सिखाते हैं कि पकोड़ा तलना रोजगार है. क्या भारत के संविधान निर्माता ने 70 साल बाद सोचा था कि पकोड़े तलना राष्ट्रीय रोजगार होगा?
वोट कमाए जाते थे आज खरीदे जाते हैं। यदि भारत का युवा शिक्षित कर्मठ और योग्य है तो सिर्फ पकोड़े तलने तक सीमित क्यों है? सिस्टम ही खराब है कह दु तो शायद काफी लोग अफेंड हो जाएंगे. पर नीतियां चाहे राज्य सरकार की हो या केंद्र सभी लोगों के जीवन को ऊंचा उठाने के बजाय सिर्फ जीवन बच पाए तक ही सीमित लगती है।
भिक्षावृत्ति कानूनन अपराध है। ईश्वर के दिये हाथों का अपमान है लेकिन जब किसी वस्तु को उसकी कीमत कम या बिना दिए खरीदा जाता है तब वो स्थिति या तो चोरी है या भीख। क्या आज भी हमारे युवा रोटी, कपड़ा, मकान की निम्नतम जरूरतों में ही उलझे हुए हैं। अगर आज भी मकान दुकान का किराया, बिजली का बिल भरना ही चुनौती है तो भारत विकसित देशों के पूंजीपतियों का मुकाबला कैसे करेगा ,कैसे विश्वगुरु बनेगा?
बिल गेट्स का कथन की भारत को फ़ाइज़र बना नही पायेगा एक दुखद पहलू पेश करता है। जब रोटी दाल ही मिलना असीम आनंद और आलीशान लाइफ का प्रतीक हो तो व्यक्तिगत उत्थान तो दूर की कौड़ी मालूम होती है। छत्तीसगढ़ सरकार ने सभी किसानों का कर्ज माफ कर दिया, और वो चुनाव जीत भी गए। पर उस कर्ज की कीमत किसी न किसी को तो चुकानी होगी। किसान नही तो शिक्षक चुकाएगा, दुकानदार चुकाएगा, मध्यमवर्ग चुकाएगा।
मुफ्त में तो जहर भी नही आता पर चावल 1 या 2 रुपये में मिल जाता है. पर इसकी कीमत पेट्रोल के दामों में नजर आती है महंगी होती वस्तुओं में छिपाई जाती है। छत्तीसगढ़ सरकार के विज्ञापनों से सड़के अटी पटी है जहां 2 रुपये गोबर खरीदने की बात को जोर शोर से उठाया गया है। आप इसपर सहमति जता सकते हैं कम से कम गरीबों को कुछ तो मिल रहा है पर ध्यान से सोचिए। क्या आप अपने बच्चो को इस काम को आगे बढ़ाता देखना चाहेंगे या खुद इसका हिस्सा बनना चाहेंगे?
जो लोग कम कीमतों में या बिना कीमत दिए समान लेते हैं उनकी कीमत कोई और जरूर चुकाता है। जब वस्तु मुफ्त में मिलती है तब व्यक्ति अपनी जरूरतों को पूरी करने की जहमत भी नही उठाता है। 35 किलो मुफ्त मिलता अनाज फिर बिकने पीछे दरवाजे से वापस आ जाता है और कई बार बचा पैसा शराब सेवन में इस्तमाल हो जाता है। तभी तो होम डिलीवरी चालू है सोम रस की ताकि हर परिवार स्वर्ग जैसा बन जाये।
यदि इन मधुशालाओ को आधारकार्ड से लिंक कर दिया जाए तो सरकार हैरान रह जायेगी की 2 रुपये चावल खरीदते लोग 100 रुपये शराब पर लगा रहे हैं। आखिर ये पैसा जनता का है तो इसका इस्तेमाल गरीबो को खरीदने के लिए क्यो होता है? आप गरीबो के हितैषी दिखने के लिए करोड़ो रूपये तो विज्ञापनों में लगा देते हो।
गरीबी का इलाज तब तक संभव नही जब तक इसे बीमारी समझकर इसका इलाज न किया जाए। गरीबो को वोट बैंक समझेंगे और सिर्फ जीने लायक बनाएंगे तो ये क्या नया भारत बनाएंगे? ये मुफ्त में पैसे बांटना बन्द कीजिये, जाति के नाम पर एकाउंट में जमा होता पैसा, किसानों को मिलता पैसा, अनाज ,इलाज के नाम पर मुफ्त सर्विस, इसकी कीमत मध्यमवर्ग ही चुकाता है। हवा भी मुफ्त नही हो सकती किसी को पेड़ लगाना पड़ता है।
वैक्सीन की कमी पड़ी तो फिर सरकार ने खुद को गरीबों का मसीहा दिखाने के लिए एपीएल , बीपीएल और अंत्योदय का कार्ड खेल दिया और जिंदा रहने के हक को अमीर गरीब में बांट दिया। इस वजह से इतना कंफ्यूजन हुआ कि पूछो मत। भाजपा की वैक्सीन बताकर कोवैक्सीन की डोज़ नही ली जिसका खामियाजा सीजी को कोरोना प्रदेश बनाकर चुकाना पड़ा।
पैसे कमाने सरकार को कभी घर घर दारू बेचना पैड रहा या कोरोना के मौके पर रोड सेफ्टी जैसे मैच करवाने पड़े जिसनी सुपर स्प्रेडर का काम किया और कोरोना की दूसरी लहर ने राज्य को घुटनों पर ला दिया।
कहावत है अगर किसी को आम खरीदकर दे दो तो एक दिन खायेगा, अगर आम तोड़ना सीखा दो तो जीवन भर खायेगा। ये नकली गरीब प्रेम दिखाने वाली कांग्रेस सरकार ने ही 10% गरीब जनरल वर्ग को आरक्षण नही लेने दिया ताकि बहुतायत समुदाय नाराज न हो जाये। आज पूरा प्रदेश सरकारी तंत्र से नाराज है। सरकार को जरूरत है अपनी नीतियों पर पुनः विचार करने की और
देश को दुबारा पटरी पर लाने की।
लेख - डॉ. सिद्धार्थ शर्मा
सुपेला भिलाई
शौर्य की बातें / जब लोकतंत्र का निर्माण हुआ था तब पक्ष और विपक्ष की रचना की गई थी इस सोच के साथ कि जब विपक्ष सरकार से सवाल करेगा तो तानाशाही, निरंकुशता पर रोक लगेगी। सरकार से सवाल पूछे जाएंगे तो सरकार अच्छे से अच्छा काम करने की कोशिश करेगी, देश को अपनी पैतृक संपत्ति समझकर राज नही करेगी। एक जिम्मेदार लोकतंत्र के लिए एक सशक्त विपक्ष का होना बहुत जरूरी है। पर अफसोस ये है कि कुछ वर्ग पूरा आशावादी बन बैठा है जिसको हर बात पर कोई छुपा मास्टर स्ट्रोक नजर आता है।
आप अगर हमारे साथ नही तो हमारे खिलाफ हो, ये अहंकार, ये असभ्यता ही तो निरंकुशता की पहचान है। मैं उनको भी सही नही कहूंगा जो हर मुद्दे पर केवल सरकार को कोसते नजर आते हैं। असल में समझदारी की लाइन इन दोनों के बीच है।
अगर हर व्यक्ति एक ही नेता एक ही पार्टी एक ही सिद्धांत को चुन लेगा तो विविधता तो खत्म हो जाएगी और एकरसता आ जायेगी जो सर्वांगीण विकास में निःसंदेह बाधक है। हांजी हांजी के चमचों को पसंद करने वाले अक्सर इन्ही चाटुकारों के बीच घुसे रहते हैं। इनकी दुनिया बहुत छोटी होती है। जब कोई दूसरा पक्ष दिखाता है तो इनका अहंकार गुस्से के रूप में फटकार बाहर आता है।
एक भाई साहब ने तो ये तक कह दिया कि देश के pm का विरोध नही कर सकते? अरे भाई तो विपक्ष क्यो बैठा है संसद में? सबको बाहर कर दीजिए और सारी पावर मोदीजी को दे दीजिए।
ये सुनने में उसी को अच्छा लगेगा जिसे लगता है मोदीजी वही करेंगे जैसे वो चाहता है क्योकि उनकी सोच एक है। यही सोच तो इटली में मुसोलिनी, जर्मनी में हिटलर जैसों को जन्म देती है। ये सभी नेता प्रसिद्ध रहे। निर्विरोध रहे, इनकी अवहेलना इनका अपमान राष्ट्र का अपमान माना जाता था। मिश्र के फराहो राजा को भी देवताओं के द्वारा नियुक्त माना जाता था और विरोध की मनाही थी।
इसी आधार पर आज भी एक किताब है जिस पर शक और शुबह नही की जा सकती। जरा सोचिए आप किस तरह के भारत का निर्माण चाहते हैं? केवल अच्छा अच्छा देखने वाला भी उतना ही समझदार है जितना सिर्फ बुरा बुरा देखने वाला।
आये दिन फेसबुक पर इन दो धड़ों में बहस होती रहती है। मेरी बात सुनो मैं सही, हमारी बात सुनो हम सही, हमारे नेता की बात सुनो हमारा नेता सही। ये तीनो विचार एक ही हैं बस इनका दायरा अलग अलग है। सच बताऊँ तो ये बचपना ही है क्योकि कोई व्यक्ति सम्पूर्ण नही हो सकता। कोई व्यक्ति हर बात हर काम सही नही कर सकता। गुण दोष सभी मे भरा हुआ है। पर जब बात एक राष्ट्र की आती है जिसके अंदर डेढ़ अरब लोग हैं तो गलती की गुंजाइश कम हो जाती है।
जनता मालिक है नौकर नही, हम वोटर है पार्टी के प्रवक्ता नही, अगर मान भी लिया जाए कि हमारा नेता देवतुल्य है तो भी क्या देवताओं ने गलतियां नही की? इसीलिए लोकतंत्र की रक्षा इसी में है कि शक्तिशाली से सवाल किया जाए। जब हमारा नेता सही होगा हम पीछे चलेंगे, जब गलती करेगा तो कुर्सी से उतारना भी हमारा अधिकार है। अपनी इज्जत पहले कीजिये आपके नेता तो इज्जतदार हैं ही।
आप जनता हैं, जनता ही रहिए .
लेख - डॉ. सिद्धार्थ शर्मा - सुपेला भिलाई
शौर्य की बातें / भूलोक पर कोरोना वायरस का तांडव भोलेनाथ के तांडव को भी मात दे रहा है। इससे मृत्यु दर इतनी बढ़ गई है कि यमलोक में जगह कम पड़ने लगी है। वहां हाहाकार मच गया है। कोरोना मरीजों की देखरेख के लिए जैसे चिकित्सालययों की कमी हो गई है। उसी तरह बढ़ती मौतों के कारण यमलोक में यमदूतों की भी कमी हो गयी है। भूलोक में मनुष्यों की बढ़ती मृत्युदर एवं कोरोना वायरस की तीसरे लहर का पूर्वानुमान लगाकर यमराज ने दूरदृष्टि का परिचय देते हुए अविलंब विशेष यमदूतों की भर्ती करने का विज्ञापन जारी किया है।
खास बात यह है कि यमदूतों की भर्ती के लिए शैक्षणिक योग्यता का बंधन नहीं है। बैंक ड्राफ्ट ,पोस्टल आर्डर भेजने की भी आवश्यकता नहीं है। लेकिन आवेदक की कद काठी राक्षसों की तरह भयानक होना अनिवार्य है। साथ ही ‘‘भैंसा वाहन’’ उड़ाने का वैध लाइसेंस भी होना चाहिए। दहेज के नाम पर बहुओं को प्रताड़ित करने, कन्याभ्रूण हत्या में लिप्त महिलाओं के लिए महिला यमदूतों के पद आरक्षित हैं। इसी तरह चिकित्सालयों में मृत मरीजों के जेवर नकदी पार करने में माहिर अधर्मी लोगों को भी प्राथमिकता दी जावेगी। दयालुजनों को आवेदन न करने की सलाह दी गई।
चयनित यमदूतों को मास्क, सेनिटाइजर, पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्यूपमेंट कीट (पी पी ई किट), प्रदान किया जाएगा। कोरोना संक्रमण जानवरों में होने की आशंका को दृष्टिगत रखते हुए भैंस के लिए भी विशेष पी पी किट देने का प्रावधान है। यमदूतों की नियुक्ति कोरोना संक्रमण काल तक के लिए की जावेगी। यद्यपि मानव समुदाय की गलती से उपजे कोरोना वायरस के निकट भविष्य में समाप्त होने की संभावना नहीं है। वैज्ञानिकों के मुताबिक जिस बेरहमी से पर्यावरण और भौगोलिक व्यवस्था को मनुष्य चूर-चूर करने पर तुला है, उससे कोरोना से भी भयानक वायरसों की उत्पत्ति की प्रबल संभावना है।अतः महामारी के बढ़ने की स्थिति में नवनियुक्त यमदूतों की सेवा अवधि में भी वृद्धि की जा सकेगी।
महामारी पीड़ितों को महंगे दामों पर सामग्री बेचकर मुनाफा कमाने वालोें, और नकली जीवन रक्षक दवाईयों के गोरखधंधे में लिप्त इंसानियत के दुश्मनों तथा आक्सीजन, रेमडेसिविर की कालाबाजारी, जीवन रक्षक दवाओं का कृत्रिम संकट पैदा करने वाले मानव रुपी दानवों को चुन चुन कर यमलोक ले जाने की जवाबदारी नवनियुक्त यमदूतों की होगी।
विदित हो कि यमदूत का पद एक निष्कपट, निश्चल ‘‘मजिस्ट्रेट’’ के पद की तरह है, अतःकिसी भी प्रकार से राजनैतिक दबाव, पहुंच, पैसा का दम दिखाने वाले आवेदक को यमदूत पद हेतु अपात्र घोषित किया जावेगा। ऐसी ऊंची पहुंच का रूतबा दिखाने वाले को सूचित किया जाता हैै कि बड़े-बड़े नेता ,मंत्री, संतरी, साधु-संत और समाज के दो मुंहे, दोहरे चरित्र वाले कु-कमिर्यो से नर्क पहले ही ‘‘ओव्हरक्राउडेड’’ है। ऐसे कु-कर्मियों से सिफारिश करवाने के पहले इनकी असलियत को जान लें। यह ऐसे बहूरूपिए लोग हैं जो जीवन भर बड़े पैमाने पर व्यभिचार में लिप्त होते हैं,और बेहतर छवि बनाने हेतु जनता जनार्दन के सामने दान देने का ढोंग करते हैं। हकीकत में ये चोरी तो ‘‘सब्बल’’ की करते हैं और दान ‘‘सुई‘‘ की कर गरीबों के मसीहा के रुप में स्वयं को प्रचारित करते हैं। ऐसे झूठे ,मक्कार ,घूसखोर, मुनाफाखोरों का सत्यानाश करने कोरोना वायरस ने जन्म लिया है।
पृथ्वी की पवित्रता को बनाए रखने हेतु ऐसे कुकर्मियों को जल्द से जल्द भूलोक से यमलोक पहुंचाने का सुनहरा अवसर नव नियुक्त यमदूतों को मिलेगा। इस पुण्य कार्य में सर्वोत्कृष्ट प्रदर्शनकर्ता यमदूतों को ‘‘आउट आफ टर्न प्रमोशन पॉलिसी’’ का लाभ देते हुए यमदूत से देवदूत के पद पर पदोन्नति दी जावेगी।
विजय मिश्रा ‘अमित‘
अति. महाप्रबंधक(जनसंपर्क)
शौर्यपथ लेख / कोरोना महामारी ने देश की अर्थ व्यवस्था को सडक पर ला दिया है . इस कोरोना काल में जहां कई उद्योगपति अपने संपत्ति में इजाफा करते नजर आये है वही गरीबो के लिए राज्य व केंद्र सरकार योजनाये ला कर उनके जीवन को आसान कर रही है . सरकार कितना भी दावा कर ले कि देश में सब ठीक चल रहा है किन्तु ये बिलकुल ही गलत है . वर्तमान में देश एक साल से ज्यादा समय से कोरोना संकट के कारण कई तरह की मुसीबत से गुजर रहा है ऐसे में समाज का एक बड़ा वर्ग आज भी अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहा है . ऐसे कई कारण है जिसके कारण देश का बड़ा वर्ग मिडिल क्लास आज कई तरह की परेशानियों से गुजर रहा है किन्तु केंद्र की मोदी सरकार को इनकी कोई चिंता नहीं है . लगातार नौकरिया जा रही है बेरोजगारी दर बढ़ रही है ऐसे में मिडिल क्लास जिसे ना तो गैस में सब्सिडी है , ना राशन फ्री है , ना स्कूल फीस में कोई कमी , ना आय के कोई स्रोत उलटे घर के राज्मर्रा के खर्च , बच्चो की आश्वश्यक ज़रुरतो को पूरी करने की कवायद स्कूलों द्वारा फीस जमा करने का दबाव , बिजिली बिल , राशन का खर्च , ईएमआई का तनाव कई उद्योग का सञ्चालन बंद जिससे मिडिल क्लास जुदा हुआ है जैसे माल का सञ्चालन बंद , ट्रांसपोर्ट में बंदी के कारण कई लोगो का बेरोजगार होना , उद्योगों में छटनी आदि ऐसे कई कारण है जिनके कारण मिडिल क्लास की परेशानिया बढती ही जा रही है किन्तु केंद्र सरकार द्वारा समाज के इस बड़े वर्ग के लिए कोई योजना नहीं है उलटे अपनी सभी जिम्मेदारियों को निभाने का दबाव है .
वर्तमान हालत में मिडिल क्लास ना तो वर्तमान स्थिति के कारण किसी से कर्ज ले पा रहा है ना कोई रोजगार तलाश कर पा रहा है उलटे इस आपदा और लॉक डाउन के फैसलों के कारण कर्जदार अलग हो गया कोई बैंक के किस्तों के क़र्ज़ में दब गया कोई स्कूल फीस के बोझ तले दब गया कोई परिवार की दो वक्त की रोटी के लिए तरस रहा है किन्तु समाज के मिडिल क्लास वर्ग के लिए ना तो राज्य शासन कोई ठोस कदम उठा रही है ना ही केंद्र सरकार शताब्दी बाद आये महामारी के कारण ये तो स्पष्ट हो गया कि किसी भी सरकार को मिडिल क्लास की चिंता नहीं जो ना तो मांग कर खा सकता है ना किसी योजना का हिस्सा बन सकता है और ना कमा कर खा सकता है अपनी ज़रुरतो को पूरा कर सकता है .
क्या राज्यों की सर्कार्कारे और केंद्र की सरकार के लिए मिडिल क्लास सिर्फ वोट बैंक है अब मिडिल क्लास को सोंचना है कि उन्हें कैसी सरकार का चयन करना है क्योकि वर्तमान की केंद्र सरकार जितना कार्य करती है उससे ज्यादा दिखावा करती है राज्य की सरकारे जो भी योजनाये बनाती है उसमे लाभी या तो गरीब वर्ग को होता है या धनवानों को मिडिल क्लास के बारे में आज कोई भी सरकारे ना कुछ सोंच रही है ना जमीनी स्तर पर कोई कार्य कर रही है ऐसे में मिडिल क्लास क्या करे इसका जवाब किसी के पास नहीं ....
ओपिनियन /शौर्यपथ /छत्तीसगढ़ में बैशाख शुक्ल की तृतीया को अक्षय तृतीया (अक्ती) का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 14 मई को पड़ रहा है। इस पर्व पर मिट्टी के घड़े अथवा सुराही दान में देने की प्रथा प्रचलित है। इस पर्व पर मटके, सुराही दान देने का उद्देश्य यहीं है कि दीन हीन निर्धनजनों का परिवार ग्रीष्मकाल में सहजता से शीतल जल से प्यास बुझा सके। इस पर्व पर दो चार सुराही पक्षियों के बसेरा बनाने के लिये पेड़-पौधों, घरों की मुंडेर पर लटकाने की एक नई परंपरा छत्तीसगढ़ राज्य पाॅवर कंपनी के अतिरिक्त महाप्रबंधक श्री विजय मिश्रा ‘‘अमित’’ ने की है। उनका कहना है कि गर्मी बीत जाने के बाद प्रायः सुराही मटके को अनुपयोगी मानकर फेक दिया जाता है। इन्हे भी सुरक्षित स्थान पर लटका देने से यह भी पक्षियों का बसेरा बन सकते है।
सृष्टि की रचना के साथ ही मनुष्य का अटूट रिश्ता पेड़-पौधों, जीव-जन्तुओं और पशु-पक्षियों के साथ जुड़ा हुआ है। मानव समुदाय की जिंदगी को खुशनुमा बनाने में पक्षियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इसलिये विद्वानों का कहना है कि ‘‘परिंदे जिनके करीब होते हैं, वे बड़े खुशनसीब होते हैं’’। मानव मित्र ये पक्षी फसलों के कीड़ों को खाकर न केवल फसलों की रक्षा करते हैं। फूलों के परागकण को एक फूल से दूसरे फूल में पहुंचाने का भी कार्य करते हैं। इससे अनभिज्ञ अनेक लोग खुबसूरत पक्षियों को पिंजरे में कैद करके रखते है।
मनुष्य के तन-मन-धन सब को संवारने में पक्षी परिवार का महत्वपूर्ण योगदान होता है। इसीलिए बुद्धिमत्ता इसी में है कि पक्षियों को पिंजरे में कैद करके रखने के बजाय आंगन में दाना पानी रखना आरंभ करें। साथ ही साथ घर आंगन आस-पास उगे वृक्षों में सुराही को बांधकर लटका दे। ऐसे लटके हुये सुराही में गौरेया, गिलहरी, उल्लू, पहाड़ी मैना, जैसे अनेक प्राणी बड़ी सहजता से अपना बसेरा बना लेते हैं। ऐसे में बिना कैद किये हुये भी आसपास चहकते हुए पक्षी आपके परिवार के सदस्य बन जाते हैं। श्री विजय मिश्रा अब तक सैकड़ों सुराही, मटके से पक्षियों का बसेरा बनाकर पेड़ों पर लटकायें हैं साथ ही सुराही बांटने, घोसला बनाने के तरीके भी वे रूचि लेकर सिखाते हैं।
उनका कहना है कि पक्षियों से दूर होते इंसान की जिंदगी आज नीरस हो चली है। कोयल, कौआ, फाक्ता, बुलबुल, कबूतर जैसे पक्षियों से बढ़ती दूरी मानव समुदाय के लिए अनेक अर्थों में हानिकारक सिद्ध हो रही है। लुप्त होते पक्षियों को बचाने का उत्तम उपाय यही है कि उन्हें पिजरें में कैद करना तत्काल बंद कर दें और अपने करीब रखने के लिए घर आंगन के पेड़ पौधे, मुंडेर पर सुराही, मटकी बांधने के साथ ही हर सुबह दाना-पानी देना आंरभ करें। इससे बारहों महीना चैबीस घण्टे पक्षियों के कलरव से आपका मन आनंदित होगा और पक्षियाॅ भी आपको आशीष देते हुये कहेंगे- समाज उसे ही पूजता है जो अपने लिए ही नहीं दूसरों के लिए भी जीता है।
लेखक विजय मिश्रा
अति.महाप्रबंधक(जनसम्पर्क)
छ.रा.पाॅवर होल्डिंग कंपनी रायपुर
(छ.ग.)
शौर्यपथ लेख / 3 अप्रैल 2021 एक ऐसा दिन जब नक्सलियों के कायराना हमले में हमारे 22 जांबाज भाई शहीद हो गए। इस दुखद घटना से मेरे जेहन में अपने दंतेवाड़ा और सुकमा में बिताए 4 वर्षों की स्मृतियां उभरने लगीं। यहां घटित हर नक्सली घटना के बाद विशेषज्ञों और बुद्धिजीवियों में यही चर्चा होती है कि नक्सलवाद ग्रामीणों के समर्थन पर टिका है और इसी के बूते फलफूल रहा है। मुझे तब लगता है कि सबसे बड़ा दुष्प्रचार ग्रामीणों के लिए यही होगा कि उन्हें नक्सलियों से जोड़ा जाए और उन्हें नक्सलियों का हितैषी माना जाए। यह बात कॉरपोरेट ऑफिस में बैठकर या किसी ऐसी बड़ी घटना होने के बाद एक या 2 दिन घटनास्थल जाकर नक्सल प्रभावित क्षेत्र के गांव में भ्रमण कर नहीं जानी जा सकती, मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि मैंने अपने कार्यकाल के 4 साल 2015 से 19 नक्सल प्रभावित क्षेत्र दंतेवाड़ा एवं सुकमा में बिताए हैं, जिसमें 3 साल मैंने एसडीओपी दोरनापाल के रूप में जो कि सुकमा जिले में स्थित है कार्य किया है। इस दौरान हमने वहां ग्रामीणों को जोडऩे वाला एक अभियान तेदमुन्ता बस्तर चलाया जिसके तहत हम नक्सल गढ़ कहे जाने वाले सुकमा के अति नक्सल प्रभावित गांव में जाकर ग्रामीणों के साथ बैठक कर उन से निरंतर संवाद स्थापित कर वहां की वास्तविक स्थिति को समझा है। इसलिए मैं यह दावे के साथ कह सकता हूं कि कोई भी ग्रामीण नक्सलियों का साथ नहीं देना चाहता, क्योंकि वह चाहते ही नहीं कि उनके क्षेत्र में नक्सलवाद रहे। ऐसा कहने के पीछे तार्किक कारण यह है कि तेदमुंता बस्तर अभियान के दौरान जब हम अनेक गांव में जाकर बैठक लेते थे। तब हम वहां उपस्थित ग्रामीणों को पूछते थे कि क्या आप नक्सलवाद का खात्मा चाहते हैं तो वह बोलते थे हां।
फिर हम उन्हें बताते थे कि 3 तरीके से नक्सलवाद को खत्म किया जा सकता है।
पहला शिक्षा जिसमें हम बताते थे कि शिक्षा के माध्यम से नक्सलवाद खत्म किया जा सकता हैं परंतु यह एक लंबी प्रक्रिया है जिसमें आने वाली पीढ़ी नक्सलवाद के चंगुल से मुक्त हो जाएगी। दूसरा एकता इसके माध्यम से प्रत्येक गांव नक्सलियों के खिलाफ खड़ा होकर उनसे प्रश्न करेगा कि 40 वर्षों में नक्सलियों ने उन्हें क्या दिया है? और इस प्रकार नक्सलियों का विरोध एक-एक करके सभी गांव वाले करना शुरू करेंगे और इस एकजुटता और एकता के माध्यम से नक्सलवाद खत्म किया जा सकता है।
तीसरा तरीका 1857 की क्रांति जैसा कुछ जिसमें हम कोई दिन निर्धारित करेंगे और इस दिन सभी गांव वाले एक साथ अपने अपने घरों एवम गांव से निकलेंगे, और बड़ी संख्या में उस क्षेत्र की ओर जाएंगे जहां पर नक्सली रहते हैं, और पूरी एक श्रृंखला बनाते हुए हम गांव, जंगल, नदी, पहाड़ पार करते उनको खोजते हुए आगे बढ़ते जाएंगे। हमारे हाथ में जो भी औजार हथियार, डंडा, हँसिया, धनुष आये उसे लेकर चलेंगे, और जो भी नक्सली मिले उसे बोलें या तो आत्मसमर्पण कर दे नहीं तो वह मारा जाएगा। इस प्रकार हम पूरे नक्सली खत्म कर देंगे। तब उनके बीच से कोई पूछता था इसमें पूरे गांव वाले जाएंगे ना ? क्योंकि उन्हें डर था कि कोई एक गांव वाले भी यदि नही जाएंगे तो उनको खतरा हो जाएगा।
तीसरे तरीक़े को सुनने के बाद एक अजीब सी खुशी उनके चेहरे में दिखाई देती थी। जैसे वह यह बोल रहे हो कि काश ऐसा हो पाता जब मैं यहां पूछता कि इन तीनों ही तरीकों में से कौन सा तरीका आप नक्सलवाद के खात्मे के लिए चुनेंगे? तो वह हंसते हुए तीसरे तरीके की ओर इशारा करते, उनके इस संकेतों से यह स्पष्ट था कि वो कितने आतुर हैं कि नक्सलवाद उनके क्षेत्र से समाप्त हो जाए। क्योंकि उन्हें भी पता है कि नक्सलियों ने उन्हें इन 40 सालों में कुछ नहीं दिया ना सड़क ना बिजली ना पानी ना स्वास्थ्य सुविधाएं अगर नक्सली जनता के लिए लड़ रहे हैं तो इन 40 वर्षों में नक्सली जनता को मूलभूत सुविधाए तो दे ही सकते थे। अपितु सरकार द्वारा दी जा रही सुविधाओं से भी उन्हें नक्सली मरहूम कर रहे है। नक्सलवाद की जमीनी हकीकत जानने के लिए यह जानना भी आवश्यक है कि छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद आया कैसे ? छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद 1980 के आसपास तेलंगाना क्षेत्र से आए 7 समूहों जो की 7 - 7 सदस्यों के रूप में आए थे, वहां से पनपा। इन लोगों ने कैसे छत्तीसगढ़ को पूरे भारत का नक्सलवाद का केंद्र बना दिया इसके लिए यहां की भौगोलिक सांस्कृतिक एवं पिछड़ेपन की परिस्थिति प्रमुख रही। मेरे विचार से इस क्षेत्र में नक्सल समस्या इसलिए नहीं है क्योंकि ये क्षेत्र विकसित नहीं है या यहाँ विकास नहीं हुआ है 7 बस्तर क्षेत्र के आदिवासी तो पकृति के साथ जीते है , एवं अपनी विकसित संस्कृति के साथ वे खुश थे। उन्हें शहरी मॉल संस्कृति या औद्योगीकरण की चाह नहीं थी , ना ही वे संचयी प्रवित्ति के लोग है वे तो सुबह जंगल जाकर वनोपज संग्रह कर शाम उसे उपभोग करना जैसी अपनी सिमित आवश्कताओं से खुश रहते थे 7 जब नक्सल लीडर इन क्षेत्र में आये तो उन्हें यहाँ के निवासियो का भोलापन तथा निस्वार्थ छबि तथा यहाँ की भौगोलिक स्थिति उपयुक्त लगी , फिर यहाँ के भोले भाले आदिवासियों को बहकाने का उन्होंने खेल खेला 7 इन लीडरो ने उन आदिवासियों को यह विशवास दिला दिया की सरकार या प्रशासन उनके जल , जंगल, जमीन पर अधिकार कर लेगी, और उन्हें यहाँ से बेदखल कर देगी। उन्होंने इस क्षेत्र में चलने एवम् खुलने वाले खनिज खदानों एवम् उनसे होने वाले विस्थापितों का उदाहरण प्रस्तुत किया। साथ ही व्यापारियो द्वारा किये जा रहे शोषण आदि का भी हवाला दिया , और उन्हें धीरे धीरे अपने साथ मिलाना शुरू किया 7 फिर इन खनिज खदानों के कारण होने वाले जमीन अधिग्रहण एवम् विस्थापन का विरोध शुरू हुआ , इन सब पर नियत्रण करने के लिए अधिक से अधिक पुलिस बल को यहाँ स्थापित किया गया 7 इस तरह नक्सलियो को यहाँ अपना विस्तार करने के लिए एक उपयुक्त नींव मिल गयी। इस प्रकार नक्सलियों के द्वारा इस झूठ के दम पर अपना प्रचार करना शुरू कर दिया गया। परंतु ऐसा नहीं था कि उस समय लोगों को यह समझ नहीं आ रहा था कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्हें यह एहसास हो चुका था कि नक्सली झूठे है और जल, जंगल, जमीन की बात कर वे लोगों को बरगला रहे हैं। ऐसे लोगों ने जब उनका विरोध करना शुरू किया तो नक्सलियों ने अपना असली चेहरा दिखाना शुरू किया। नक्सलियों द्वारा ऐसी पहली राजनीतिक हत्या 1986 में माड़वी जोगा नामक ग्राम पटेल की गई, क्योंकि वह नक्सलियों की हकीकत जान कर उनके विरोध में उठ खड़ा हुआ था। उसके बाद लगातार नक्सलियों द्वारा हत्याओं का सिलसिला शुरू हुआ जो आज तक अनवरत जारी है। अब मैं फिर से उसी पुराने प्रश्न पर आता हूं क्या ग्रामीण नक्सलियों का समर्थन करते हैं ? इसके जवाब में मैं यहां बताना चाहूंगा कि तेदमुन्ता बस्तर अभियान के दौरान जब मैं विभिन्न गांव में बैठकें लेता तो उस संवाद में हमारा उनसे एक प्रश्न होता था कि इस गांव से कितने ग्रामीणों को की हत्या नक्सलियों द्वारा अभी तक की गई है ? आप विश्वास नहीं करेंगे हमने ऐसा कोई भी गांव नहीं पाया जहां नक्सलियों द्वारा ग्रामीणों की हत्या नहीं की गई हो और कोई कोई गांव उदाहरण दोरनापाल जगरगुंडा रोड से 5 किलोमीटर अंदर दूरी पर स्थित पालामडग़ू गांव में नक्सलियों ने विभिन्न समय पर 17 ग्रामीणों को मौत के घाट उतारा था। बैठकों के दौरान हमने पाया कि औसतन 4 से 5 ग्रामीणों की हत्या सभी गांव में नक्सलियों द्वारा की गई थी। उनमें से कुछ गांव का नाम मैं बताना चाहूंगा गोलगुंडा, पोलमपल्ली, पालामडग़ु, अर्र्णमपल्ली, जग्गावरम, डब्बाकोन्टा, रामाराम, पिडमेल, कांकेरलंका, पुसवाड़ा, तिमिलवाड़ा, बुर्कापाल, चिंतागुफा गोडेलगुड़ा, मेड़वाही, इत्तगुड़ा, पेंटा, मिसमा, पेदाकुर्ति, गगनपल्ली, एर्राबोर...... यूं तो गांव के नामों की सूची काफी लंबी है, परंतु इन उदाहरणों से मैं आपको यह बताना चाहता हूं कि, आप इन गांव में हुए नक्सली बर्बरता और हत्या की जानकारी ले सकते हैं।
अब मैं आपको यह पूछना चाहूंगा कि देश के बाहुबली गुंडे इनके खिलाफ कितने लोगों ने आवाज बुलंद करने की हिम्मत की है? जिन्होंने भी हिम्मत कि ऐसे गुंडों बदमाशों ने उनकी हत्या कर दिया या करवा दी तो नक्सली भी इन गुंडे बदमाशों से कहां अलग है? कोई उनके खिलाफ आवाज उठाता है, तो पूरे गांव वालों को बुलाकर जनअदालत लगाकर निर्ममता पूर्वक सबके सामने में उसकी हत्या कर दी जाती है। और उस पर झूठे आरोप लगाए जाते हैं कि वह पुलिस मुखबिर है, ऐसे झूठे आरोप लगाकर हत्या करना उनकी एक रणनीति का हिस्सा है, क्योंकि वे आतंक का माहौल बनाकर लोगों को अपने विरुद्ध ना खड़े हो इसके लिए हत्या का उदाहरण प्रस्तुत करते है। ग्राम पलामडग़ू में जब मैं एक बार बैठक लेने गया तो वहां पर ग्रामीणों से मैंने पूछा कि आप नक्सलियों का साथ क्यों देते हैं? तो वहाँ उपस्थित ग्रामीणों में से बैठा हुआ एक युवक खड़ा हुआ और बहुत हिम्मत करते हुए उसने बोला अगर हम उनका साथ नहीं देंगे सर तो वह ( नक्सली ) हमें मार देंगे। बाद में मुझे पता चला कि पूर्व में उस युवक के पिता की हत्या भी नक्सलियों के द्वारा कर दी गई थी।
यह लेख मैंने वहाँ रहते हुए अपने अनुभव के आधार पर लिखा है। और कोशिश की है कि वहाँ की सच्चाई आप लोगों तक पहुँचाऊ। मुझे पूरा विश्वास है कि एक दिन जरूर आएगा जब स्थानीय आदिवासी नक्सलवाद से त्रस्त होकर तीसरा तरीका अपनाते हुए अपने घरों से गांव से निकलेंगे, और उस दिन पूरे आदिवासी नक्सलवाद का खात्मा सुनिश्चित करेंगे। और वह दिन कोई सरकार द्वारा प्रायोजित या राजनीतिक आंदोलन (सलवा जुडूम जैसा) से प्रभावित ना होकर उनका स्वत:स्फूर्त आंदोलन होगा, जिसमें नक्सलवाद का खात्मा निश्चित ही होगा।
लेख - विवेक शुक्ला
सीएसपी , दुर्ग शहर ( छत्तीसगढ़ पुलिस )
शौर्यपथ विशेष / जो सुबह से उठकर मशीनों से भी ज्यादा गति से काम करे व सबका अच्छे बुरे का ख्याल रखे और खुद अपने बच्चों को गर्मा-गरम खाना बनाकर खिलाये और सबके खाने के बाद खुद ठंडा खाना खाएं...
ये वही मां है...ना?
अपने जान को खतरे में डालकर अपने बच्चे को जन्म देती है और पति व बच्चे को सामाज व परिवारों में एक नया पहचान एक नया नाम देती है...
ये वही माँ है...ना?
खुद की तबियत खराब होने के बाद भी अपने बच्चों के तबियत की चिंता करे व बच्चों की लाख गलतियां होने पर भी वह अपने बच्चों के लिए दुनिया से तो क्या भगवान से भी लड़ ले...
ये वही मां है...ना?
बुरे समय मे जब सब साथ छोड़ दे और वो अपने बच्चों का साथ मरते दम तक ना छोड़े व जो बच्चों की जीवन की हर एक खुशी में उनके पास हो तो उन्हें किसी दौलत की जरूरत ना हो...
ये वही मां है...ना?
उनके कांधों पर जब सर रख कर सोते है और रात भर जन्नत की सैर करते है व जिनके वजह से बच्चे इस दुनिया में सामाज में परिवार में जो जगह बनाये उनका हकदार कोई और नही¸ बल्कि वो मां है...
ये वही मां है...ना?
अतिश (दक्ष)
संस्कारधानी-राजनंदगांव (छ.ग.)