August 02, 2025
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शौर्य की बाते ( सम्पादकीय )

शौर्य की बाते ( सम्पादकीय ) (178)

एम.एल. चौधरी, सहायक संचालक
रायपुर / शौर्यपथ / छत्तीसगढ़ के पंजीयन विभाग द्वारा अचल सम्पत्ति के अंतरण विलेखों के पंजीयन से स्टाम्प शुल्क एवं पंजीयन फीस के रूप में वित्तीय वर्ष 2020-21 में 1589.42 करोड़ राजस्व प्राप्त किया गया है, जो कि लक्ष्य 1500 करोड़ रूपए से 5.90 प्रतिशत अधिक रहा है।
वित्त विभाग की ओर से निर्धारित राजस्व प्राप्ति का लक्ष्य
   चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए वित्त विभाग की ओर से निर्धारित राजस्व प्राप्ति का लक्ष्य 1650 करोड़ रूपए है। अब तक 714.57 करोड़ रूपए राजस्व प्राप्त हुआ है, जो की गत वर्ष की इसी अवधि की राजस्व प्राप्ति 496.58 करोड़ रूपए की तुलना में 44 प्रतिशत अधिक है। छत्तीसगढ़ शासन द्वारा जनवरी 2019 मंे आम लोगों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए छोटे भू-खण्डों के विक्रय पर लगी रोक को हटाकर ई-पंजीयन प्रणाली में आवश्यक प्रावधान कराया गया। जनवरी 2019 से अब तक छोटे भू-खण्डों से संबंधित 3 लाख से ज्यादा दस्तावेजों का पंजीयन हुआ है।
राज्य शासन द्वारा दस्तावेजों के बाजार मूल्य निर्धारण करने वाली गाईडलाईन की दरों में 30 प्रतिशत की कमी 25 जुलाई 2019 से की गई। विभिन्न परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए शासन द्वारा उक्त 30 प्रतिशत की कमी को वर्ष 2020-21 एवं वर्ष 2021-22 के लिए भी यथावत रखा गया है। सम्पत्ति के बाजार मूल्य में कमी के साथ ही सम्पत्ति के खरीदी बिक्री में राहत प्राप्त होने से समाज के सभी वर्ग के लिए भूमि, मकान खरीदना आसान हुआ है। इसी तरह से आवासीय भवनों के पंजीयन में 2 प्रतिशत की रियायत दी गई है। शासन द्वारा 75 लाख रूपए कीमत तक के मकान व भवन के विक्रय संबंधी विलेखों पर प्राभार्य होने वाले पंजीयन शुल्क की दर में दो प्रतिशत की रियायत अगस्त 2019 से प्रदान की गई है, जिसे नागरिकों के हितों में ध्यान में रखते हुए वित्तीय वर्ष 2020-21 एवं 2021-22 के लिए पंजीयन शुल्क की रियायत को यथावत रखा गया है।
भूमि खरीदी बिक्री के लिए दी गई रियायतों से छोटे एवं मध्यम परिवारों को अपने मकान खरीदने का सपना पूरा हो रहा है। राज्य शासन द्वारा भूमि के क्रय-विक्रय और मकानों और फ्लेट में दी जा रही पंजीयन में छूट से मकान और भूमि खरीदी के लिए कम कीमत देनी होगी।

ओम प्रकाश डहरिया

   शौर्यपथ लेख / छत्तीसगढ़ की अस्मिता के प्रतीक माता कौशल्या के पुत्र भगवान श्री राम का भांजा के स्वरूप में गहरा नाता हैै। इसका जीता-जागता उदाहरण है, छत्तीसगढ़ में सभी जाति समुदाय के लोग बहन के पुत्र को भगवान के प्रतिरूप अर्थात भांजा मानकर उनका चरण पखारते हैं। मोक्ष की प्राप्ति के लिए प्रभु श्रीराम से कामना करते हैं। यह और भी  प्रबल तब होता है, जब गांव-शहर-कस्बा कहीं भी हो कोई भी जाति अथवा समुदाय के हो मांमा-भांजा के बीच के रिश्ते को पूरी आत्मीयता के साथ निभाया जाता है। मांमा के साथ किसी भांजे का यह रिश्ता कई बार माता-पिता के लिए पुत्र से भी ज्यादा घनिष्ठ स्वरूप में दिखाई पड़ता है।
    त्रेतायुग में  जब छत्तीसगढ़ का प्राचीन नाम कोसल व दण्डकारण्य के नाम से विख्यात था, तब कोसल नरेश भानुमंत थे। वाल्मिकी रामायण के अनुसार अयोध्यापति युवराज दशरथ के राज्याभिषेक के अवसर पर कोसल नरेश भानुमंत को भी अयोध्या आमंत्रित किया गया था। इस अवसर पर कोसल नरेश की पुत्री एवं राजकन्या भानुमति भी अयोघ्या गई हुई थी। युवराज दशरथ कोसल राजकन्या भानुमति के सुंदर और सौम्य रूप को देखकर मोहित हो गए और कोसल नरेश महाराज भानुमंत से विवाह का प्रस्वाव रखा। युवराज दशरथ और कोसल की राजकन्या भानुमति का वैवाहिक संबंध हुआ। शादी के बाद कोसल क्षेत्र की राजकुमारी होने की वजह से भानुमति को कौशल्या कहा जाने लगा। अयोध्या की रानी इसी कौशल्या की कोख से मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम का जन्म हुआ। तभी ममतामयी माता कौशल्या को तत्कालीन कोसल राज्य के लोग बहन मानकर अपने बहन के पुत्र भगवान श्री राम को प्रतीक मानकर भांजा मानते है और उनका पैर छूकर आशीर्वाद लेते है।
     कालांतर छत्तीसगढ में स्मृतिशेष आठवी-नौंवी सदी में निर्मित माता कौशल्या का भव्य मंदिर राजधानी रायपुर से 27 किलोमीटर दूर आरंग विेकासखण्ड के ग्राम चन्दखुरी में स्थित है। चंदखुरी भी रामायण से छत्तीसगढ़ को सीधे जोड़ता है। रामायण के बालकांड के सर्ग 13 श्लोक 26 में आरंग विकासखंड के तहत आने वाले गांव चंदखुरी का जिक्र मिलता है। माना जाता है कि चन्दखुरी सैकड़ों साल पहले चन्द्रपुरी अर्थात् देवताओं की नगरी के नाम से जानी जाती थी। समय के साथ चन्द्रपुरी, चन्द्रखुरी हो गया जो चन्द्रपुरी का अपभ्रंश है। पौराणिक दृष्टि से इस मंदिर का अवशेष सोमवंशी कालीन आठवी-नौंवी शताब्दी के माने जाते है। इसके अलावा छत्तीसगढी संस्कृति में राम का नाम रचे-बसे है। तभी तो जब एक दूसरे से मिलते समय चाहे  रिश्ते-नाते हो अथवा अपरिचित राम-राम कका, राम-राम काकी, राम-राम भैइया जैसे उच्चारण से अभिवादन आम तौर पर देखने सुनने को मिल ही जाता है।
    छत्तीसगढ़ के ग्राम चन्दखुरी की पावन भूमि में प्रभु श्रीराम की जननी माता कौशल्या का दुर्लभ मंदिर देश और दुनिया में एक मात्र मंदिर है। यह छत्तीसगढ़ की गौरवपूर्ण अस्मिता का प्रतीक है। प्रकृति की अनुपम छटा बिखेरते इस मंदिर के गर्भ गृह में माता कौशल्या की गोद में बालरूप में प्रभु श्रीराम  जी की वात्सल्य प्रतिमा श्रद्धालुओं एवं भक्तों के मन को सहज ही अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। वहीं पूर्वी छत्तीसगढ़ के महानदी, जोंक नदी और शिवनाथ नदी के संगम स्थल शिवरीनारायण क्षेत्र में रामनामी समुदाय में भगवान श्री राम के प्रति अकूत प्रेम एवं अराधना को परिलक्षित करता है।
     स्मरणीय तथ्य है कि छत्तीसगढ़ का प्राचीनतम नाम दक्षिण कोसल था। रामायण काल में छत्तीसगढ़ का अधिकांश भाग दण्डकारण्य क्षेत्र के अंतर्गत आता था। यह क्षेत्र उन दिनों दक्षिणापथ कहलाता था। शोधकर्ताओं द्वारा वनवास काल में प्रभु श्री राम चन्द्र जी के यहां आने का प्रमाण मिलता है। शोधकर्ताओं के शोध किताबों से प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रभु श्रीराम ने अपने वनवास काल के 14 वर्षों में से लगभग 10 वर्ष से अधिक समय छत्तीसगढ़ में व्यतीत किया था। छत्तीसगढ़ के लोकगीतों में देवी सीता की व्यथा, दण्डकारण्य की भौगोलिकता और वनस्पतियों के वर्णन भी मिलते हैं। माना जाता है कि भगवान श्रीराम ने उत्तर भारत से छत्तीसगढ़ में प्रवेश करने और यहां के विभिन्न स्थानों पर चौमासा व्यतीत करने के बाद दक्षिण भारत में प्रवेश किया था। इसलिए छत्तीसगढ़ को दक्षिणापथ भी कहा जाता है।


        भगवान श्री रामजी के इन्हीं स्मरणीय तथ्यों और आगमन को सहेजने के लिए छत्तीसगढ़ ने श्री राम के यात्रा पथ को एवं जहां-जहां भगवान श्री राम, भगवान श्री लक्ष्मण और माता सीता ने समय व्यतीत किया है, जिन-जिन स्थानों पर उन्होंने आाराम किया पूजा-अर्चना की उन यादों को सहेजकर मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने चन्दखुरी स्थित माता कौशल्या मंदिर से प्रारंभ कर राम-वन-गमन-पर्यटन परिपथ के रूप में विकसित करने का बीड़ा उठाया है। जिसका भव्य शुभारंभ मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल नवरात्रि के पहले दिन 7 अक्टूबर को करने जा रहे हैं। इससे निश्चित ही देशवासियों की आस्था का सम्मान बढ़ेगा। यह श्री भूपेश सरकार का एक बड़ा उल्लेखनीय और ऐतिहासिक कदम हैं।
     राम-वन-गमन-पथ के निर्माण से निश्चित ही राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति मिलेगी। वहीं राम वन गमन परिपथ को एक पर्यटन सर्किट के तौर पर विकसित किए जाने का निर्णय रोजगार मुहैया कराने की दिशा में भी एक कारगर प्रयास होगा। विभिन्न शोध प्रकाशनों के अनुसार प्रभु श्रीराम ने छत्तीसगढ़ में वनगमन के दौरान लगभग 75 स्थलों का भ्रमण किया। जिसमें से 51 स्थल ऐसे हैं, जहां श्री राम ने भ्रमण के दौरान रूककर कुछ समय बिताया था। राम वन गमन पथ में आने वाले छत्तीसगढ़ के नौ महत्वपूर्ण स्थलों सीतामढ़ी-हरचौका (कोरिया), रामगढ़ (अम्बिकापुर) , शिवरीनारायण (जांजगीर-चांपा), तुरतुरिया (बलौदाबाजार), चंदखुरी (रायपुर), राजिम (गरियाबंद), सिहावा-सप्त ऋषि आश्रम (धमतरी) और जगदलपुर(बस्तर) और रामाराम (सुकमा) सहित उन इक्यांवन स्थलों को चिन्हांकित कर विकसित किया जा रहा है।
      प्रथम चरण में इन नौ महत्वपूर्ण स्थलों को विकसित करने के लिए राज्य सरकार ने  137 करोड़ रूपए का ‘कान्सेप्ट-प्लान‘ तैयार किया है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की मंशा के  अनुरूप माता कौशल्या मंदिर के मूलस्वरूप को यथावत रखते हुए भव्य और आर्कषक मंदिर के निर्माण किया गया है। वहीं इस क्षेत्र में सौन्दर्यीकरण का काम भी पूर्ण कर लिया गया है। इसके साथ ही भगवान श्री राम का 51 फीट ऊंचा भव्य एवं आकर्षक प्रतिमा का निर्माण किया गया है। जिसका अनावरण मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल करेंगे। राम वन गमन पर्यटन परिपथ के लिए राज्य शासन द्वारा गत वर्ष पांच करोड़ रूप्ए और इस वर्ष 10 करोड़ रूपए का बजट प्रावधान किया गया था। सुप्रीम कोर्ट से राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त होने और भव्य राम मंदिर निर्माण शिलान्यास के साथ ही अब छत्तीसगढ़ में राम वनगमन पर्यटन परिपथ के निर्माण से छत्तीसगढ़ की देश भर में खास पहचान बनेगी। भगवान श्रीराम की माता कौशल्या मंदिर के साथ ही छत्तीसगढ़ में कोरिया से बस्तर के अंतिम छोर तक राम वन गमन पर्यटन परिपथ का विकास होगा। इससे प्रदेश के पर्यटन का भी तेजी से विकास होगा।

शौर्य की बात । जब भी मैं मेरे लाल शौर्य की बात करता हूं तो कई मित्र कहते हैं कि बेटा नहीं है तो क्या हुआ बेटी की तरफ देख कर जिंदगी जियो । बेटा बेटी एक समान है । कई लोगो की बात से ये अहसास भी होता है कि मैं अपनी लाडली सिद्धि को नही चाहता पर ऐसा नहीं है मेरे लिए मेरी जिंदगी को दो रत्न है शौर्य और सिद्धि मेरे लिए ये दोनो ही रत्न अनमोल है । 

कई बार सोचता हूं कि निक्की के पास चला जाऊ किंतु अगर मैं निक्की के पास चला गया तो मेरी परी बिटिया का क्या होगा कैसे जिंदगी जिए । मेरी रत्ना कैसे रहेगी । आज निक्की नही है तो मेरी जिंदगी अधूरी है पर मेरी जिम्मेदारी तो अभी बची है मेरी सिद्धि को कैसे तकलीफ में देख सकता हूं देख क्या सोच भी नही सकता । मेरी सिद्धि मेरी ही नहीं रत्ना और निक्की की भी जान है । निक्की उसका बहुत ख्याल रखता है आज भी वो उसके साथ है । हर पल अब उसकी रक्षा करता है । सिद्धि बेटा हम तेरे लिए ही जी रहे है । तेरी खुशी के लिए ही हर तकलीफ हर गम को सह रहे ताकि जो सपना तेरे भाई ने तेरे लिए देखा वो पूरा कर सके । तेरी खुशी में ही तेरे भैया की खुशी है और तुम दोनो की खुशी में ही हमारी खुशी है ।

 हमारी जिंदगी में तो अब खुशी या गम का कोई मतलब ही नहीं खोखली हंसी और मुखौटे लगा कर जी रहे है बस इस लिए की सिद्धि को तकलीफ न हो । सिद्धि बेटा जब तू पैदा हुई थी उसके 14 दिन बाद रावण दहन था तब तेरे भैय्या ने बोला सिद्धि को भी ले जायेंगे रावण दहन में तब तुझे साथ लेकर गए थे जब फटाखे की आवाज आती तो तेरा भैय्या अपने दोनो हाथो से तेरे कानो पर हाथ रख देता ताकि तेज आवाज से तुझे तकलीफ ना हो बेटा अब भी तेरा भाई तेरे साथ है बेटा वही तेरी हर पल रक्षा करेगा । तेरा भाई तो अब भगवान का रूप है वो अपनी प्यारी बहन के साथ है । Love you bitiya rani..

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शौर्यपथ / ‘‘नीलकंठ तुम नीले रहियो, दूध भात का भोजन करियों, हमरी बात राम से कहियों।‘‘ बालपन ले ये लोकोक्ति ल दसहरा के दिन अपन बड़े बुजुरग मन के मंुहु ले सुनत आवत हो। दसहरा के दिन नीलकंठ चिरई ल देखना सुभ माने जाथे। काबर की अइसे पौराणिक मान्यता हवय की भगवान राम हर नीलकंठ के दरसन करे के बाद रावन बध करे रहीस। नीलकंठ ला षंकर भगवान के चहेता चिरई केहे गे हवय। एला षंकर जी के रूप तको माने जाथे।
इही पाय के दसहरा के दिन नीलकंठ ल देखत ये लोकोक्ति ल दोहराय जाथे। अउ अपन दुखपीरा हरे के मनौती मांगे जाथे। फेर धीरे धीरे ये रिवाज हर अब नंदावत जावत हे। काबर कि अब नीलकंठ चिरई हर तको जादा नइ दिखय। दसहरा के दिन एखर दरसन पाये बर सहरिया मन हर गांव कोति जाथे अउ खार बन म नीलकंठ ल खोजथे।
   दीखे मा बहुत संुदर नीला-भूरा रंग के पाॅख वाला चिरई नीलकंठ ला अंगरेजी मा ब्लू जे अउ इंडियन रोलर केहे जाथे। ये हर भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका म तको मिलथे। हमर देस भारत के बिहार, कर्नाटक, उड़ीसा, अउ आंध्रप्रदेश के राजपक्षी के दरजा नीलकंठ ल मिले हवय।
‘‘दसहरा के दिन नीलकंठ ल देखना सुभ माने जाथे’’ ये बिचार ल हिरदय म बइठारे-बइठारे नीलकंठ देखे बर भटकत मनखे मन ल एहु बात ले बिचार करना चाही कि आखिर ये सुन्दर चिरई अब काबर नंदावत हवय। नीलकंठ कस अउ दूसर कतको चिरई चिरगुन अब देखे बर नइ मिलय। एखर असली कारन रूख राई अउ जंगल के कटाइ्र्र के संगे संग धान अउ किसिम किसिम के अनाज के उपजोइया खेत ल अब पाट पाट के पलाट (भूखण्ड) म बदले के काम मनखे मन करत हवय। जादा ले जादा उपज पाय के फेर म अड़बड़ रसायनिक खातु अउ कीट नाशक दवा पावडर ल खेत म डारे जाथे। इही हर नीलकंठ कस चिरई मन बर जहर बन के जान लेवा हो गे हवय।
  गांव हो कि सहर अब पक्का-पक्का घर मकान, सड़क बनत जावत हे। ते पायके चिरई चिरगुन मन ह अपन बसेरा बनाय के जगह अउ दाना-पानी बर तरसत हवय। अइसन पीरा झेलत चिरई चिरगुन के बंसज हर बाढ़े के बजाय घटत जावत हे। अउ नीलकंठ कस कतको किसिम के चिरई ल देखे बर अब मनखे मन हर तरसत हावंय।  
   अइसन बिकार के जनम देवोइया मनखे ल एंहु बात ल नइ भुलाना चाही कि किसान के मितान नीलकंठ अउ दूसर चिरई मन होथे। ए मन ह खेत म जामे फसल के नुकसान करोइया कीरा-मकोरा ल खा खाके फसल के रखवार कस काम करथे। ये अरथ म नीलकंठ हर किसान के भाग जगाने वाला, धन धान मे बढ़हर करोइया चिरई आय।
  ये बात ल दसहरा तिहार म गुने के संगे संग जम्मो किसिम के चिरई के बंसज ल बढ़ाय अउ बाचे खुचे चिरई ल बचाय के उदिम ईमानदारी से करे के बात ल मन मे ठान लेना चाही। तभे मनखे के जिनगी म सुख के दिन बाढ़ही। साल भर में खाली एक दिन नीलकंठ के दरसन करके सुख सांति ल पाय के सोच ल बदले बर परहीं अउ चिरई मन के रहे बसे के ठौर ठिकाना ल बचाय-बढ़ाय के बीड़ा उठाना पड़ही।
 विजय मिश्रा‘अमित‘
एम-8, सेक्टर-2, अग्रसेन नगर
पो0आ0- सुंदरनगर, रायपुर

शौर्य की बात। मेरी दुनिया तो उसी दिन सुनी हो गई जिस दिन तू रूठ गया था और मुझसे दूर हो गया । भले आज तू दुनिया के सामने नही है पर मेरे दिल में मेरी यादों में मेरे जेहन में तू हमें रहेगा । सब कहते है और धर्म भी कहता है कि पितृ पक्ष में पिंड दान करने से तेरे लिए स्वर्ग के दरवाजे खुल गए किंतु मुझे मालूम है कि तू स्वर्ग में ही है और मेरे साथ भी हमेशा है रीति रिवाज को निभाते हुए मैने भारी मन से पितृ पक्ष में बेटे का पिंड दान किया । मेरी जैसी किस्मत तो मेरे दुश्मन को भी ना दे भगवान । 

 मेरा निक्की तो मेरी जान है तुझे कोई देख न सके कोई सुन ना सके किंतु मैं तो रोज ही तुझसे बात करता हूं ना हर बात मानता हूं ना तेरी तू तो सब जनता है ना बेटा तू भी तो हर पल मेरे साथ रहता है । चाहे भगवान भी आ जाए पर तुझे मुझसे कोई अलग नहीं कर सकता तेरे अलावा मेरा है ही कौन रे तू ही तो मेरे जीने का सहारा है तू पास है मेरे बहुत पास है मेरी सांसों में बस है तभी तो जिंदा हूं । तू कही मत जाना बेटा तेरे बिना कुछ अच्छा नहीं लगता निक्की कुछ भी नहीं । रोज मौत को बुलाता हूं पर वो भी नही आ रहा । क्या करू बता ना कि तुझे एक बार अपने गोद में बैठा कर ढेर सारा प्यार करूं सब कुछ भूल जाऊ सिर्फ तुझे प्यार करूं जी भर कर प्यार करूं । 

  निक्की मेरे लाल कैसे जियूं तेरे बिना कुछ समझ नहीं आ रहा है बस एक अंधेरे रास्ते में चला जा रहा हूं बस चला जा रहा हूं इस यकीन पर कि किसी रास्ते में तुझे देख सकूं तुझे जी भर कर प्यार कर सकू । निक्की बेटा भले ही तेरे लिए सब कुछ कर रहा हूं फिर भी सकूं नही जब तक तू साथ नही कुछ भी ठीक नहीं है । पागलों की तरह समय गुजार रहा हूं झूठी खुशी में खुश हो रहा हूं पर मेरी असली खुशी तो तेरे साथ है । तू तो भगवान के पास है ना तो एक बार उनको बोल ना कि मुझे भी तेरे पास बुला ले ।तेरी मम्मी का हाल नही देख सकता बेटा बहुत कमजोर हूं कैसे सब संभालु तेरे बिना तू कुछ कर न बेटा तू तो सब कर सकता है तो क्या अपने पापा की इतनी सी बात नही मान सकता मुझे अपने पास बुला ले बेटा थक गया हूं रे अब हिम्मत नही अकेले चलने की आजा बेटा या मुझे बुला ले मेरे लाल ..

 

 

नसीम अहमद खान, सहायक संचालक
रायपुर/शौर्यपथ लेख / छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा पशुधन के संरक्षण और संवर्धन के लिए गांवों में निर्मित गौठान और साल भर पहले शुरू हुई गोधन न्याय योजना से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को एक नया संबल मिला है। गौठानों में गोधन न्याय योजना के तहत अब तक 100 करोड़ रूपए से अधिक की गोबर खरीदी की जा चुकी है। खरीदे गए गोबर से राज्य के लगभग 6000 गौठानों में बहुतायत रूप से वर्मी कम्पोस्ट और सुपर कम्पोस्ट का उत्पादन महिला समूहों द्वारा किया जा रहा है। गौठानों अब तक उत्पादित एवं विक्रय की गई खादों का मूल्य 120 करोड़ रूपए के पार हो गया है। गोधन न्याय योजना में ग्रामीणों की बढ़-चढ़कर भागीदारी में इसे न सिर्फ लोकप्रिय बनाया है बल्कि इसके माध्यम से जो परिणाम हमारे सामने आए हैं वह बेहद सुखद है।

गोधन न्याय योजना अपने आप में एक ऐसी अनूठी योजना बन गई है, जो बहुआयामी उद्देश्यों को अपने आप में समाहित कर लिया है। इस योजना के शुरूआती दौर में लोगों के मन में कई तरह के सवाल और इसकी सफलता को लेकर आशंकाएं थी, जिसे गौठान संचालन समिति और गौठान से जुड़ी महिलाओं ने निर्मूल साबित कर दिया है। इस योजना से हमारे गांवों मेेें उत्साह का एक नया वातावरण बना है। रोजगार के नए अवसर बढ़े हैं। पशुपालकों, ग्रामीणों को अतिरिक्त आय का जरिया मिला है। महिला स्व सहायता समूहों को को स्वावलंबन की एक नई राह मिली है।

पशुधन के संरक्षण और संवर्धन के साथ-साथ उन्हें चारे-पानी का एक ठौर देने के उदेद्श्य गांवों में स्थापित गौठान और गोधन न्याय योजना के समन्वय से वास्तव में गौठान अब ग्रामीण के आजीविका के नया ठौर बनते जा रहे है। गौठानों में महिला समूहों द्वारा जिस लगन और मेहनत के साथ आयमूलक गतिविधियां सफलतापूर्वक संचालित की जा रही है। वह अपने आप में बेमिसाल है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल का कहना है कि हमारे गांव शक्ति का केन्द्र रहे हैं। ग्रामीण संसाधनों ने इतनी शक्ति होती है कि उससे प्रदेश और देश की अर्थव्यवस्था संचालित हो। हमें अपनी संस्कृति, अस्मिता, स्वाभिमान और सम्मान से जुड़े रहकर विकास की गति को बढ़ाना हो तो इसका सबसे अच्छा साधन है अपने परम्परागत संसाधनों का सम्मान और मूल्य संवर्धन करते हुए ऐसा विकास, जिसमें बड़ी संख्या में ग्रामीण जनता की सीधी भागीदारी हो।

गोधन न्याय योजना और हमारे गौठान वास्तव में ग्रामीणों की योजना है और उन्हीं के द्वारा उन्हीं की भलाई के लिए संचालित की जा रही है। गोधन न्याय योजना के तहत गोबर खरीदी की राशि का आंकड़ा 100 करोड़ के पार हो गया है। यह कोई छोटी बात नहीं है। गोबर को बेचने वाले और खरीदने वाले और उससे वर्मी कम्पोस्ट से लेकर विविध उत्पाद तैयार करने वाले गांव के ही है। इससे यह बात स्पष्ट है कि हमारे गांव रोजगार और उत्पादन के केन्द्र बिन्दु बन सकते हैं, जो गांधी जी के ग्राम स्वराज का उद्देश्य है। छत्तीसगढ़ सरकार सुराजी गांव योजना- नरवा, गरूवा, घुरवा, बाड़ी और गोधन न्याय योजना के जरिए ग्राम स्वराज के सपने को पूरा करने की ओर तेजी से बढ़ रही है।

गोधन न्याय योजना के तहत अब तक 100 करोड़ 82 लाख रूपए की गोबर की खरीदी गौठानों में हो चुकी है। गौठान समितियों को 32 करोड़ 94 लाख तथा महिला स्व-सहायता समूहों को अब तक 21 करोड़ 42 लाख रूपए के लाभांश का वितरण किया जा चुका है। गौठानों में वर्मी कम्पोस्ट निर्माण से लेकर आय अर्जन की विविध गतिविधियों में जुटीं समूह की महिलाएं लगन और मेहनत से जुटी है। उनकी लगन और मेहनत ने यह बात प्रमाणित कर दी है, कि परिस्थितियां चाहे जितनी भी विषम हो उसे पुरूषार्थ से पराजित किया जा सकता है। महिला समूहों ने उच्च गुणवत्ता की वर्मी कम्पोस्ट और सुपर कम्पोस्ट खाद तैयार कर एक नया कीर्तिमान रचा है। छत्तीसगढ़ के गौठानों में उत्पादित वर्मी कम्पोस्ट की मांग पड़ोसी राज्य भी करने लगे हैं। झारखंड राज्य ने डेढ़ लाख क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट सप्लाई का आर्डर रायगढ़ जिले को मिला है। यह गर्व की बात है। छत्तीसगढ़ राज्य से लगे सीमावर्ती राज्यों के किसान भी छत्तीसगढ़ के बार्डर इलाके के गौठानों में आकर वर्मीकम्पोस्ट क्रय कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ सरकार की गोधन न्याय योजना को स्काच गोल्ड अवार्ड मिलना राज्य के लिए गौरव पूर्ण उपलब्धि है।

गोधन न्याय योजना के तहत अब तक राज्य में 10 हजार 112 गौठान स्वीकृत किए गए हैं जिनमें से 6112 गौठान निर्मित और संचालित हैं। इस योजना से लाभान्वित होने वालों में 44.51 प्रतिशत महिलाएं हैं। 48.10 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग, 7.82 प्रतिशत अनुसूचित जाति के तथा 40.58 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति वर्ग के पशुपालक हैं। 79 हजार से अधिक भूमिहीन परिवारों को इस योजना के माध्यम से अतिरिक्त आय का जरिया सुलभ हुआ है। महिला समूहों द्वारा गौठानों में अब तक 7 लाख 80 हजार क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट का उत्पादन किया गया है, जिसमें से 6 लाख 13 हजार क्विंटल खाद का विक्रय हो गया है। गौठानों में 3 लाख 46 हजार क्विंटल सुपर कम्पोस्ट खाद में से 1 लाख 60 हजार क्विंटल खाद बिक चुकी है। गौठानों में सफलतापूर्वक गोबर की खरीदी और आयमूलक गतिविधियों के संचालन से 1634 गौठान स्वावलंबी हो चुके हैं। यह गोधन न्याय योजना के सार्थकता और उसके जरिए होन वाले लाभ का परिणाम है।

 

छत्तीसगढ़ को कला -साहित्य की दृष्टि से समृद्धि धरा के रूप में राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय जगत में ख्याति मिली हुई है। यहां के कलाकार साहित्यकार, चित्रकार, मूर्तिकार , पत्रकार अपने परिश्रम और अपने दमखम पर अपनी विशिष्ट पहचान बनाने में सदैव आगे रहे हैं। सरकार की दया की दरकार उन्हें बहूत ज्यादा नहीं रही है। लेकिन सदियों से यह बात चली आ रही है कि, राज्याश्रय प्रप्त होने पर कला- संस्कृति- साहित्य को बढ़ावा मिलता रहा है।

*छत्तीसगढ़ बनाने में कलाकारों की क्रांतिकारी भुमिका*

छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पहले यहां के कलाकारों, साहित्यकारों और विचारकों ने नया राज्य बनाने में अपनी क्रांतिकारी भूमिका का निर्वहन बखूबी किया है , फलस्वरूप राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ की कला- संस्कृति को निसंदेह बहुत अधिक बढ़ावा मिला है।राज्याश्रय प्राप्त होने के बाद यहां की अनेक लुप्त होती कला- संस्कृति तीज- त्यौहार, खेलों को भी जबरदस्त प्रोत्साहन मिला है, किन्तु पिछले दो सालों से कोरोना वायरस के संक्रमण में बहुत से निर्धन कलाकार काल कवलित हो गए ।अभी भी बहुत से निर्धन,असहाय,कलाकार टकटकी लगाए सरकार से आर्थिक सहयोग की आस लगाए बैठे हैं।आर्थिक सहयोग के लिए उनका आवेदन संस्कृति विभाग में लम्बे समय तक लंबित रहता है। ऐसे आर्थिक रूप से कमजोर कलाकारों को यथासंभव शीघ्रातिशीघ्र मदद करने की अपेक्षा सरकार से है। ऐसे कलाकारों का महाशत्रु पापी पेट बना हुआ है।

*कलाकारों का महाशत्रु है पापी पेट*

 पापी पेट की मार से मजबूर कलाकार ही अपना स्वाभिमान बेचने मजबूर हो जाता है। ईश्वर ने कलाकारों को पेट नहीं दिया होता तो शायद ही कभी कोई कलाकार अपने आत्मसम्मान, स्वाभिमान को बेचता। कोरोना संक्रमण काल में सांस्कृतिक, सामाजिक कार्यक्रमों पर पाबंदी के कारण उत्पन्न आर्थिक तंगी ने कलाकारों को कुछ अन्य आय का जरिया अपनाने का रास्ता दिखाया। कलाकारों ने सड़क पर कपड़े बेचना, विविध दूकान खोलना,कुली, ड्राइवरी,मजदूरी करना जैसे अन्य कार्य जीविकोपार्जन के लिए शुरू कर दिया। जिसे कलाकारों की दुर्दशा का नाम दिया गया । यह उचित नहीं है।मेरे विचार से कलाकारों को यह ध्यान रखना चाहिए कि कलाकारी के साथ-साथ जीविकोपार्जन के लिए कुछ ना कुछ अन्य व्यवसाय को अपनाने की आवश्यकता बड़े से बड़े कलाकारों को भी होती है।

 पिछले चालीस वर्षों से छत्तीसगढ़ी और हिंदी रंगमंच के साथ-साथ रेडियो टीवी और अब छत्तीसगढ़ी फिल्म जगत में भी अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करने का अवसर मुझे मिला है, लेकिन वर्ष 1979 से 82 तक मुझे भी बेरोजगारी के दिन देखने मिले थे ।तब भी मेरी कला को मैं अनवरत प्रदर्शित करता था ,उन दिनों मुझे ताने भी सुनने पड़ते थे कि नाटक नौटंकी से कुछ नहीं मिलने वाला है, जीवन चलाना है तो कुछ नौकरी चाकरी ढूंढो। *कलापथ पर संघर्ष का मिला बेहतर प्रतिफल*

कलाकारों को बात बात पर सरकार की ओर मुंह ताकने की आवश्यकता नहीं है, माना कि कोरोना वायरस संक्रमण काल ने कलाकारों ,पत्रकार, कलमकार, मूर्तिकार भाइयों को भी काफी हद तक तोड़ कर रख दिया है,पर जीना है तो कोरोना वायरस को अपने दम पर ,अपनी कला के बल पर, अपनी कलम के बल पर मारना होगा।ऐसे अनेक उदाहरण कला जगत में भरे पड़े जो इस बात के साक्षी हैं‌ कि कलाकार अपनी कला के बल पर बहुत कुछ कर सकते हैं। कला के बलबूते हीशासकीय सेवा यात्रा में अतिरिक्त महाप्रबंधक (जनसंपर्क) छत्तीसगढ़ स्टेट पावर कंपनी का बड़ा पद मुझे हासिल हुआ। इस पद पर रहते हुए कला प्रतिभा को प्रदर्शित करने का सुनहराअवसर प्राप्त हुआ।   

*सरकारी मदद में न हो देरी*

 राज्य सरकार निश्चित रूप से कलाकारों को मदद करने की मंशा रखती है, लेकिन किसी भी काम में देरी जो होती है वह उस काम को सफल नहीं बना पाती। हितग्राहियों को सरकार की नियति पर संदेह होने लगता है ।सरकारी विभागों से अपेक्षा है ,कलाकारों की जो देनदारियां है उसे यथा समय भुगतान करें ।

*कलाकारों के खाने-पीने का प्रबंध स्तरीय हो*

कलापथक के कर्मी सरकार की योजनाओं के लिए जी-जान लगाकर गांव गांव जाते हैं, तो उनका भुगतान समय पर करें। एक बात का बहुत दुःख होता है ,अक्सर सरकारी कार्यक्रमों में कलाकारों के रुकने और खाने की व्यवस्था फोर्थ क्लास होती है। कांजी हाउस में भी ठहराने का उदाहरण देखने मिला है।कम से कम खाने पीने ठहरने के लिए अच्छी जगह हो ताकि एक कलाकार अपनी प्रस्तुति को दिल से कर सके, मन से कर सके।

मेरी तो यह सोच है कि एक कलाकार को अपने आप को ,अपनी कला को जीवित रखने के लिए छोटे से छोटा काम करना पड़ता है तो उसे हंसकर करना चाहिए क्योंकि हंसकर किया हुआ काम ही नाम दाम शोहरत को सुनिश्चित करता है।

‌ छत्तीसगढ़ सरकार ने हाल ही में गांव गांव की कला संस्कृति और रामायण मंडलियों को बढ़ावा देने हेतु बड़े-बड़े पुरस्कारों की घोषणा की है ।इससे कला जगत, रामायण मंडली और लोक कलाकारों के लिए बेहतरीन कदम कहा जा सकता है।

*विजय मिश्रा "अमित"*

पूर्व अति.महाप्रबंधक (जन.)

शौर्य की बात । कभी-कभी लगता है कि जिंदगी जीना बहुत मुश्किल हो रहा है हर तरफ परेशानी हर तरफ मुश्किलों का सामना करते हुए हैं परिवार को लेकर चलना असंभव सा लगता है वैसे भी अब दुनिया में शौर्य के जाने के बाद ना तो मेरी जीने की इच्छा है और ना ही शौर्य की मम्मी की किंतु शौर्य की छोटी बहन तो इस दुनिया में है ना उसकी क्या गलती वह तो अभी छोटी है उसे जीने का हक है भगवान ने उसे जिंदगी दी है और हमें जिम्मेदारी है जैसे भी हो इस जिम्मेदारी को निभाना तो है ही क्योंकि शो सॉरी की लाडली बहन सिद्धि का जीवन हमारे बिना अधूरा है आज अगर हमने अपनी परेशानियों को हल करने के लिए अपने जीवन की लीला को समाप्त कर लिया तो सिद्धि का क्या होगा क्या बिना मां बाप के सिद्धि इस दुनिया में रह पाएगी बिल्कुल नहीं आज की दुनिया में बिना मां बाप के सहारे के बच्चों का क्या हाल होता है यह किसी से छुपा नहीं है हमारी तकलीफ है हमारा दर्द अब हमारे जीवन का हिस्सा है जीवन के इस दर्द को तो हमें अब जिंदगी भर लेकर साथ चलना है मुस्कुराते हुए अपने बच्चे का पालन करना है हर दर्द को सहते हुए सिद्धि के लिए मुस्कुराना है भगवान ने हमें जो दर्द दिया उस दर्द को उस गम को छुपाते हुए अपनी बेटी के लिए उसके भविष्य के लिए है जिंदा तो रहना ही है मालूम है कि एक बार हौसला दिखाते हुए मैं और रखना अपने जीवन को तो समाप्त कर सकते हैं किंतु उससे हमारा दर्द तो हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा पर वह दर्द वह तकलीफ हम अपने साथ लेकर नहीं जा पाएंगे वह सारा दर्द सारी तकलीफ है सारी परेशानियां एक मासूम के ऊपर गाज बन कर जिंदगी भर के लिए एक मासूम की झोली में चली जाएगी उस मासूम की झोली में जिसने अभी ठीक से दुनिया भी नहीं देखी है हमें कोई हक नहीं की हम अपनी परेशानियों को अपनी तकलीफों को एक मासूम की झोली में डालकर मुक्ति पा ले।

आज मैंने देखा है कि दुनिया में ऐसे कई लोग हैं जो जरा सी परेशानियों से हार कर अपना जीवन समाप्त कर लेते हैं किंतु उनके जीवन समाप्त करने से उनके बाद आने वाली है जो पीड़ा जो तकलीफ उनके परिवार वालों को होती है वह उस परेशानियों से उन तकलीफों से बहुत कम होती है जिनके कारण लोग आत्महत्या जैसा रास्ता उठाते हैं यकीन मानिए जीवन में हर किसी को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है और यह परेशानी ना तो खत्म होती है और ना ही इसका आने का रास्ता बंद होता है जीवन में एक परेशानी आती है तो एक परेशानी जाती है एक खुशी आती है तो दूसरी खुशी जाती है खुशियां और गम इस जीवन में आता जाता रहता है परंतु इस आने-जाने के दौरान अगर हमने अपना रास्ता एक ऐसे शून्य की ओर बदल लिया तो जो परेशानियां जो दुख जो तकलीफ है हमारे पास आ रही थी वही परेशानियां वही तकलीफ है वही दर्द दुगने वेग से उनके पास चली जाएंगी जो हमारे अपने हैं जो हमारे लिए जीते हैं। आज के जीवन में खुशी और गम दिन और रात की तरह है अगर गम आते हैं तो जाएंगे भी इस पर हार मानने के बजाय डटकर मुकाबला करना चाहिए ताकि जो परेशानियां आज आई है वह चली जाएंगी और जो खुशियां आएंगी वह दुगने वेग से आएंगी कहते हैं ना कि जब इंसान को भूख लगती है तब रूखी सुखी रोटी भी पकवान लगती है उसी तरह जब गम जाता है तब जो थोड़ी खुशियां आती है वह दुनिया की है सबसे बड़ी खुशियों के समान होती है ।

आज आज जो परेशानी है वह एक न एक दिन तो चली जाएंगे क्योंकि यह दुनिया है और इस दुनिया में हर परेशानी का हर गम का कहीं ना कहीं किसी न किसी तरह इलाज हो ही जाता है बस जरूरत है तो एक सबल आत्मविश्वास की अगर आपके पास आत्मविश्वास है और प्रबल इच्छा शक्ति है तो कोई भी परेशानी लंबे समय तक टिकी नहीं रह सकती हैं आत्महत्या करने वाले लोग कमजोर होते हैं डरपोक होते हैं जो परेशानियों का मुकाबला नहीं कर सकते हैं जबकि इंसान अगर परेशानियों का मुकाबला करें तो और निखर कर सामने आता है एवं जीवन में सदा ही आगे बढ़ता है हर परेशानी कुछ ना कुछ सीख दे कर जाती है । 

10 सितंबर को दुनिया में आत्महत्या रोको दिवस के रूप में मनाया जाता है जबकि आज जरूरत है कि प्रत्येक दिन कुछ ऐसा करें की अपनों के बीच रहने वाले हैं साथियों का अपनों का ख्याल रखें उनके जज्बातों को समझें उनकी भावनाओं का कद्र करें उन्हें प्रोत्साहित करें ताकि वह समाज से मुकाबला कर सके और अपने साथ हो रहे गलत व्यवहार का पुरजोर विरोध करें ना कि उस से भागे हैं ईश्वर ने जीवन दिया है तो उस जीवन को सार्थक करने के लिए पूरे आत्मविश्वास के साथ मुकाबला करें ना कि डरपोक बंद कर जीवन लीला को समाप्त करें आपका जीवन सिर्फ आपका ही नहीं है इस पर आपके माता पिता भाई बंधु दोस्तों का समाज के लोगों का सभी का अधिकार है क्योंकि समाज हम सब से मिलकर ही बना है सही गलत का फैसला करने का अधिकार सभी के साथ मिलकर ही है दुनिया में जीवन को अगर सकारात्मक पहलू से देखा जाए तो दुनिया बहुत हसीन है अपने दर्द को अपने दुख को अपनी पलकों में समेटे हुए दुनिया का मुकाबला करना है सबसे बड़ा धर्म है और कर्म की अपना कर्म सत्कार भाव से करते रहो तो जीवन जीने का आनंद अलग ही है इसीलिए मेरी विनती है कि जीवन में अगर तकलीफ आती है तो उसका हल भी जरूर आता है।

यह बातें आज इसलिए लिख रहा हूं कि पिछले दिनों अपने कैसे मित्र गोपाल राजपूत के बारे में सुनकर काफी दुख हुआ जिस व्यक्ति से ना कभी मुलाकात हुई है ना ही वह कोई करीबी है किंतु फेसबुक फ्रेंड में होने के कारण एक दो बार बात हुई गोपाल का इस तरह जाना काफी दुख पहुंचा दिया । आज सोचता हूं की क्या हालत हो रही होगी उस मां बाप की जिसने उसे 20/ 22 वर्षों तक अपनी पलकों में बैठाकर पाला और आज एक जरा से फैसले के कारण गोपाल जी तो अपनी तकलीफ से मुक्ति पा है किंतु क्या उनके मां-बाप अब जिंदगी भर इस तकलीफ से दूर हो पाएंगे । 

मैं भी एक बाप हूं और मेरा लाल भी खेलते खेलते हैं इस दुनिया से विदा हो गया आज उसके जाने के बाद ना तो दिन अच्छा लगे ना रात अच्छी लगे ना तो सुख सुविधाओं का एहसास हो ना तो दुख दर्द का आभास हो बस जिंदगी चल रही है चेहरे पर मुखौटा लगाकर हंस लेते हैं खोखली हंसी के पीछे के दर्द को जमाने के सामने छुपा लेते हैं ताकि जो साथ है वह खुश रहे हैं जो जिम्मेदारी है उसे पूरी करें गोपाल भैया ऐसे आपको नहीं जाना था मेरा सभी से निवेदन है कि अगर आपको तकलीफ हो तो ऐसे लोगों को ढूंढो जो आपसे ज्यादा तकलीफ में जिंदगी जी रहे हैं आप उनसे प्रेरणा लेकर अपनी तकलीफों को कम कर सकते हो आपको उनसे मुकाबला करने की ताकत भी आएगी। मैं आज बहुत तकलीफ में हूं दुखी हूं किंतु फिर भी जी रहा हूं और जब तक ईश्वर ना चाहे जी लूंगा अपनी जिम्मेदारियों को निभाते रहूंगा ताकि मेरी सिद्धि मेरी रत्ना मेरे मां-बाप मेरे दोस्तों को कोई यह ना कह सके कि शरद कमजोर था डरपोक शरद हर तकलीफ में जिएगा और हर तकलीफ का मुकाबला करेगा किंतु कभी अपने जीवन को समाप्त नहीं करेगा क्योंकि डरपोक लोग ही आत्महत्या का रास्ता चुनते है । गोपाल भैया आप हमेशा मेरे दिल में रहोगे...

सम्पादकीय लेख / शौर्यपथ /
‘‘मरे मौत अकाल का,
जो काम करे चण्डाल का।
काल उसका क्या बिगाड़े,
जो भक्त हो महाकाल का।‘‘
जब-इन पंक्तियों को सुनता-पढ़ता, तब-तब अमरनाथ बर्फानी बाबा के दर्शन की अभिलाषा जागृत हो उठती थी।प्रत्येक वर्ष आषाढ़ पूर्णिमा से प्रारंभ होकर श्रावण मास की पूर्णिमा तक संपन्न होने वाली इस यात्रा को साकार करने का सुनहरा अवसर जुलाई 2015 में प्राप्त हुआ। अमरनाथ यात्रा पर जाने के पूर्व जिला चिकित्सालय से स्वास्थ प्रमाणपत्र लेने तथा पंजाब नेशनल बैंक में पंजीयन कराने की अनिवार्य प्रक्रिया को यथासमय पूर्ण किया।

यात्रा की तैयारी पूरी कर रायपुर से दिल्ली हवाई यात्रा, दिल्ली से जम्मू की यात्रा ट्रेन से एवं जम्मू से श्रीनगर (300 किलोमीटर दूरी) की हवाई यात्रा हमनें पूरी की।
श्रीनगर पहुंचकर अमरनाथ जाने के लिए बालटाल मार्ग का चयन करके 95 किलोमीटर दूर स्थित बालटाल तक जाने के लिए हमनें 18 सीटर मिनी बस को माध्यम बनाया। बालटाल पहुंचने के उपरान्त हमने आगे की यात्रा हेतु अत्यावश्यक सामान यथा गरम कपड़े, छड़ी, टार्च, दवाईयां के अलावा शेष अन्य समानों को मिनी बस में ही दो दिन के लिए छोड़ दिया। आगे बालटाल बेस केम्प में प्रवेश करते समय सैनिकों के जांच शिविर से गुजरना पड़ा, जहां कि बड़ी सूक्ष्मता से हमारी और सामानों की जांच हुई। समुद्र तट से बालटाल की ऊंचाई 10,500 फीट हैं, वहां बर्फीली हवाओं की मार झेलते हमनें किराये पर उपलब्ध टेन्ट में रात्रि विश्राम किया।

अमरनाथ गुफा तक जाने के लिएअगली सुबह प्रातः 4 बजे हम किराये के खच्चर से रवाना हुये। हजारों की संख्या में वहां खच्चरों का मेला लगा हुआ था। खच्चरों की इस भीड़ में गुम हो जाने पर अपने खच्चर को ढूंढ पाना समुद्र में मोती ढूंढ लाने जैसा ही कार्य रहा। वहां एक मजेदार अनुभव हुआ ज्यादातर खच्चर वालों की निगाह दुबले-पतले तीर्थयात्रियों की तरफ रहती है। दाम पूरा और खच्चर पर बोझ कम पड़े, यह उनकी सोच होती हैं। हम आगे बढ़े तभी रास्ते ‘‘डोमैल कंट्रोल गेट‘‘ पर हमारें स्वास्थ प्रमाण पत्र, परिचय पत्र एवं पंजीयन तिथि पत्र की जांच सैनिकों द्वारा की गई्। (यात्रियों को निर्धारित पंजीकृत तिथि पर यात्रा करना होता है)।
डोमैल गेट पर वैधानिक प्रक्रियाएं पूर्ण करके भोलेनाथ का जयकारा लगाते हुये हमारी टोली अमरनाथ गुफा की ओर चल पड़ी। लगभग 13 किलोमीटर के रास्ते में बर्फ, कीचड़ ,और खच्चरों की लीद के कारण भारी फिसलन थी। अत्यंत संकरीले और सर्पीले घुमावदार उतार-चढ़ावयुक्त पहाड़ के ऐसे मार्ग पर खच्चरों को सधे हुये कदमों से चलते हुए देखकर लगता था मानो खाई में नहीं गिरने का उन्हें वरदान प्राप्त हैं। बालटाल से अमरनाथ गुफा तक जाने हेतु दूरूह-खतरनाक रास्ते से गुजरना होता है। यही वजह है कि ज्यादातर यात्री पहलगाम की ओर से यात्रा करना पंसद करते हैं। बालटाल से अमरनाथ गुफा पहुंचने में केवल एक दिन तथा पहलगाम से तीन दिन का समय लगता है।
पहाड़ी मार्ग पर एक ओर गहरी खाई थी तो दूसरी ओर पहाड़ी दीवार। नियमानुसार खच्चरों को पहाड़ी रास्ते के खाई की ओर किनारे-किनारे तथा पैदल यात्रियों को पहाड़ं से सट कर चलना होता है। ऐसे भयावह मार्ग में चलते हुए खच्चर पर सवार तीर्थ यात्री को मृत्यु अपनी मुट्ठी में नजर आती हैं और उसके मुख से उस समय केवल बम-बम भोले का सुर ही निकलता है।
ऐसे ही भोले भंडारी का नाम जपते सांस गिनते हम उस स्थल पर पहुंच गये जहां से अमरनाथ की गुफा हमें स्पष्ट दिखाई दे रहीं थी। उस समय आश्चर्यमिश्रित हर्ष से भाव-विभोर हमारे मुंह से शब्द नहीं निकल पा रहे थे। यहां खच्चर से उतरते ही हमारे पांव भुरभुरे सफेद बर्फ में धंस-धंस जा रहे थे। दूर-दूर तक वहां बर्फीली जमीन पर स्थापित रंग-बिरंगे टेन्ट यूं अहसास करा रहे थे मानो सफेद चादर पर विभिन्न रंगों के फूलों की कशीदाकारी की गई हो। सूर्य की किरणों से चमचमाते पर्वत शिखर पर नजरें टिक नहीं पा रही थी।
हमनें वहां एक टेन्ट किराये पर लिया। वहीं हमें 50 रूपये प्रति बाल्टी की दर पर गरम पानी उपलब्ध हो गया। बर्फीली सतह पर स्नान करने का अनुठा अनुभव लेकर हम भोलेनाथ की गुफा दर्शन करने चल पड़े। वहां रास्ता को आसान बनाने के लिए रास्ते पर जमे बर्फ को हटाने सैनिक दल सतत् जुटे हुये थे, फलस्वरूप सहजतापूर्वक हम पवित्र गुफा के द्वार पर पहुंच गये।
श्री अमरनाथ की गुफा समुद्र सतह से 12729 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह मानव निर्मित मंदिर नहीं बल्कि प्रकृति द्वारा निर्मित एक उबड़-खाबड़ 30 फीट चौड़ी और करीब 60 फीट लम्बी प्रकृति निर्मित गुफा है। इसके द्वार पर कोई किवाड़ नहीं हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने पार्वती मैया को इसी गुफा में अमर कथा सुनाया था। पवित्र गुफा के भीतर प्रकृति निर्मित हिम शिवलिंग (लगभग 17 फीट ऊंची) के साथ ही श्री गणेश पीठ तथा पार्वती पीठ के दर्शन हुये।
एक अद्भुत और आश्चर्यचकित कर देने वाली बात वहां दिखाई दी कि गुफा के बाहर बुरादे की भांति भुरभुरा बर्फ का संसार बिखरा पड़ा है ।वहीं गुफा के भीतर निर्मित शिव लिंग, श्री गणेश पीठ तथा पार्वती पीठ पक्के कड़े बर्फ निर्मित थे। गुफा के भीतर ऊपर से जल की बूंदें टप-टप टपक रही थी। वहां उपस्थित भक्तों ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि गुफा के ऊपर पर्वत पर श्रीराम कुण्ड हैं। गुफा के भीतर वन कबूतरों का होना चमत्कृत करता हैं। इनका दर्शन शुभ माना जाता है अतः तीर्थयात्री बैचेन आंखों से गुफा के भीतर इन्हें तलाशते हैं।
पवित्र गुफा में मनभर समय बिताने के उपरान्त हम टेन्ट की ओर लौट चले। उस समय रास्ते भर लगे लंगरों में निःशुल्क बंट रहे केसरयुक्त दूध, खीर, दही, चांवल, छोले-भटूरे जैसे विभिन्न स्वादिष्ट व्यंजनों का भरपूर स्वाद हमनें लिया। रात में वहां बर्फीली सतह पर बने टेन्ट के भीतर बिछे मोटे तारपोलिन के ऊपर भारी-भरकम गददे और रजाई में सोने का अनुभव भी अद्भुत रहा। आंखों में नींद के बजाय भोलेनाथ की गुफा समाई हुई थी लेकिन भारी थकान की वजह से कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला। सुबह चहुंओर फैली बर्फीली सतह पर ही दैनिक दिनचर्या से निवृत्त होकर हम वापस बालटाल के लिए लौट चले।
इस यात्रा पथ पर तैनात सैनिकों को देखकर सिर श्रद्धा से झुक जाता था। इनकी सक्रियता से ही कठिन मार्ग की यात्रा सुरक्षित सुगमता से संपन्न हो पाती हैं। यहां पर भक्ति भाव में डूबे लंगर संचालकों की सेवा भी नमन योग्य हैं जो कि सरसराती बर्फीली हवा के मध्य तीर्थयात्रियों की सेवा में निःशुल्क गरमा-गरम लजीज व्यंजन परोसने के लिए आतुर रहते हैं। उन्हें देखकर भगवान श्रीराम की सेवा में लीन भीलनी शबरी की याद बरबस आ गई थी।
कश्मीर की हसीन वादियों के बीच अमरनाथ की पवित्र गुफा आज भी अपनी ओर खींचती हैं और भाव-विभोर मन कह उठता है - ‘‘ऐसी फिजा न मिलेंगी सारे जहां में, जन्नत अगर हैं कहीं, तो हिन्दुस्तान में।‘‘
विजय मिश्रा‘‘अमित’’ पूर्वअति.महाप्रबंधक(जन)

विजय मिश्रा ‘‘अमित’’
पूर्वअति.महाप्रबंधक(जन.) सम्पादकीय लेख / शौर्यपथ /दुनिया में तरह-तरह के आदमी होते हैं। जिनमें से एक प्रकार ‘‘फोकट छाप पेपर पढ़ने वालों‘‘ का भी होता है । फोकट की चीज खाने-पीने के लिए हर घड़ी इनकी जीभलपलपाती रहती है। लाज-शरम से इन लोगों का दूर-दूर तक कोई नाता नहीं रहता। ऐसे लोगों के लिए ही कहावत चल पड़ी है कि ‘बेशरम सदा सुखी‘ ।
फोकट छाप पेपर पढ़ने वाले लोग रेलगाड़ी,बस और प्रतीक्षालयों में बहुतायत में पाये जाते हैं।
पिछले बुधवार की बात है, जब मैं दुर्ग से रायपुर जाने के लिए लोकल रेलगाड़ी में यात्रा कर रहा था । उस समय एक समाचार पत्र बेचने वाला आया। वह बेचारा पूरे डिब्बे घूम-घूम कर गला फाड़-फाड़ कर पेपर ले लो, पेपर चिल्लाता रहा। पर किसी भी यात्री के कान में जूं नहीं रेंगी।प्रतिदिन सुबह अखबार पढ़ने की मेरी आदत है। इसलिए मैने पॉकेट एक समाचार पत्र खरीद लिया।
बस, मैं पेपर क्या खरीदा फोकट छाप पेपर पढ़ने वालों की तो लाटरी लग गई। मैं अभी पेपर का पहला पन्ना पढ़ना शुरू किया था कि बाजू में बैठे सज्जन बोल पडे़-भाई साहब, बीच का पन्ना देंगे क्या ? उनका आग्रह सुनकर पेपर का एक पेज मैं उनके हवाले करने लगा। तभी मेरे सामने की सीट पर बैठे एक हीरोनुमा लड़के ने कहा-प्लीज अंकल, खेल पेज मुझे दे दीजिए।मेरा पेपर पढ़ना एक तरफ रह गया और मैं फोकट छाप पेपर पढ़ने वालों को एक एक पेज बांटते चला गया। अंत में मेरे हाथ एक भी पेज नहीं बचा,क्योंकि, जो एक पेज अपने पढ़ने के लिए रखा था, उसे भी सामने बैठी मेमसाहब लगभग झपटने के अंदाज में ले ली और बोली-मेरा स्टेशन आने वाला है, पहले मैं पेपर पढ़लेती हूं, आप तो बाद में आराम से पढ़ सकते है। रेलगाड़ीजैसे-जैसे आगे बढ़ते जा रही थी।उसी रफतार से मेरे पेपर के पन्ने फोकट छाप पेपर पढ़ने वालों के एक हाथ से दूसरे हाथ, दूसरे हाथ से तीसरे हाथ में चले जा रहे थे, अंत में यह स्थिति आ गई कि पेपर का असली मालिक कौन हैं? यह बताने वाला भी कोई नहीं बचा था ।एक फोकट छाप पेपर पढ़ने वाले ने तो अपनी सभी सीमायें लांघ दी। वह हरे चना बूट खा-खाकर मेरे पेपर के पन्नों में छिलकों को जमा करने लगा। उसकी यह हरकत देखकर मेरी भृकुटी तन गई। मैंने कहा-अरे भाई साहब, पेपर दे दीजिए, ये पढ़ने के लिए है न कि चना बूट का कचरा जमा करने के लिए।

मेरी बात सुनकर वह बिगड़ैल सांड की तरह मेरे ऊपर ही गरज उठा। वह बोला-देखो मिस्टर, मुझे समझाने की कोशिश मत करो, जिस आदमी से मैं पेपर लिया हूं, वह तो इसे छोड़कर पिछले स्टेशन में ही उतर चुका है। उसकी बात सुनकर मैं हैरान रह गया। मुझे लगा मानो मेरे हाथों से तोता उड़ गया हो। मन मार के हाथ मलते मैं मेरे पेपर के बाकी पेज की दशा-दुर्दशा देखने में जुट गया।
क्षक्षक्षमैंने देखा कि एक फोकटिया मेरे पेपर में छपे शिक्षाकर्मी की भर्ती के विज्ञापन को काट रहा है। तभी मुझे याद आया कि मेरी बेटी भी शिक्षाकर्मी के लिए आवेदन करने वाली है। मैंने झट से उसे रोका और बताया कि -भाई जी, ये विज्ञापन मेरे काम का हैं। इसे काटिए मत। मेरी यह बात सुनकर वह आंखे फाड़े मुझे घूरते हुए बोला- ठीक है न आपके काम का है तो अगले स्टेशन में इसकी फोटो कापी कराकर आपको दे दूंगा। कम से कम मानवता के नाते थोड़ा धीरज तो रखें। मैं चलती गाड़ी से कूद कर भाग नहीं जाऊंगा।
अगले स्टेशन पर गाड़ी रूकी तो वो फोकटिया पेपर की फोटो कापी करा के लाता हूं कहकर उतर गया। गाड़ी छूट गई पर वह लौटकर नहीं आया।मुझे मानवता सिखाने वाले उस फोकटिया के दिए धोखा की पीड़ा से उबरने के लिए मैं आंखें मीचें गश खाय चुपचाप बैठा रहा। थोड़ी देर बाद आंख खुली तो देखा कि एक संभ्रात महिला अपने रोते हुए बच्चों को मनाने लिए मेरे अखबार को चीर फाड़कर हवाई जहाज बनाने का उपक्रम कर रही है । ऐसा करने से मेरे रोकने पर वह खिसियाई बिल्ली की तरह गुर्राकर बोली-सड़ा सा दो पैसे के पेपर के लिए आपकी जान छूटी जा रही है। बच्चा कितना रो रहा हैं वह आपको दिखाई नहीं दे रहा है क्या ? उसके तेवर देखकर मेरी बोलती बंद हो गई । फोकट छाप पेपर पढ़ने वालो से अपना पेपर कैसे बचाऊं, यह सोच ही रहा थी तभी एक ओर नजारा देखने को मिला। मेरे पेपर की आड़़ में झाड़ काटते दो युवक-युवती दिखे। वे दोनों पेपर के बीच के पन्ने को खोलकर पेपर के एक एक छोर को एक-एक हाथ में पकड़कर ऐसे बैठे थे कि पेपर के पीछे वे क्या कर रहे हैं कोई भी देख पाने में असमर्थ था।
ये सब को देखते-देखते दोनों हाथ से सिर पकड़कर मैं सोचने लगा कि फोकट छाप पेपर पढ़ने वालों के लिए जब पेपर इतने काम की चीज है तो भगवान उन्हें पेपर खरीदने की सद्बुद्धि क्यों नहीं दे देता ? यही सोचते-सोचते गांठ बांध लिया कि अब कभी ट्रेन में समाचार पत्र खरीदने की भूल नहीं करूंगा ।
(ये लेखक के अपने विचार है )

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