August 03, 2025
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शौर्य की बाते ( सम्पादकीय )

शौर्य की बाते ( सम्पादकीय ) (178)

शौर्य की बाते / शौर्य वो नाम जिस पर मेरी दुनिया टिकी है . शौर्य हाँ यही नाम है जिससे मेरी पहचान बनी किन्तु अब सिर्फ नाम ही रह गया मेरी जिदगी में . जिस शौर्य के बिना एक पल जीना दूभर था अब सारी जिन्दगी उसी के बिना जीना है क्योकि शौर्य ने जीने के लिए अपनी बहन को जो छोड़ दिया शायद शौर्य को भी मालूम था कि उसके मम्मी पापा उसके बिना नहीं रह इसलिए अपने जन्म के 9 साल बाद अपनी छोटी बहन को बुला लिया दुनिया में और खुद दुनिया से दूर एक अनजाने जगह पर लम्बी सफर के लिए चला गया . और दे दी जिम्मेदारी सिद्धि की . हम तो शौर्य के साथ ही चले जाते पर सिद्धि का क्या होता .उसके जीने के हक को कैसे छिनते . शायद यही हमारा भाग्य है कि एक पत्थर की तरह जिन्दगी जी रहे है जिसमे ना कोई अहसास ना कोई भाव बस सिर्फ सुनी सुबह और अँधेरी रात कब सुबह होती है कब रात इसका भी कोई अहसास नहीं .
आज त्यौहार का समय चल रहा है सब तरफ एक उमंग दिख रही है एक उत्साह है किन्तु ये सब हमारे लिए बेमानी है जिन्दगी तो हमने जी ली बस अब एक कहानी के अंत का इंतज़ार है कब हमारी कहानी का आखरी अध्याय लिखा जाएगा इसी पल के इंतज़ार में हम दोनों जी रहे है ताकि जब अंत हो तब नयी शुरुवात फिर से शौर्य के संग हो . हम तुझे बहुत याद करते है मेरे लाल बस तुझे ही याद करते है . आजा मेरे लाल आजा मेरा बेटा आजा निक्की ...( शरद पंसारी - एक बेबस बाप )

शौर्यपथ विशेष / बिहार में विधान सभा चुनाव की तारीख नजदीक आते ही नौकरियों का अम्बार लग गया तो कही शराबबंदी हटाने के वादे किये जा रहे तो कही दल बदलुओ को सबक सिखाने की बात हो रही है जिस के मन में जो आये वादे पर वादे किये जा रहा है . खैर चुनावी वादों का पिटारा कितना भरा होता है और कितना खाली अब आम जनता भी समझने लगी है और सोंचने पर विवश भी हो रही है . बिहार के चुनाव में तेजस्वनी यादव 10 लाख की नौकरी देने का वादा कर रहे है किन्तु इन नौकरी के वादे में करोडो का भुगतान कैसे होगा इसका कोई जवाब नहीं दे पा रहे है वही भाजपा के राष्ट्रिय अध्यक्ष देश में लगभग 300 आतंकी के प्रवेश की आशंका जता कर भाजपा को जिताने की अपील कर रहे है अब अचानक ये आतंकी कहा से आगये इसका जवाब भाजपा राष्ट्रिय अध्यक्ष ही दे सकते है .
बिहार विधानसभा चुनाव में हो रही रैली को देख कर ऐसा नहीं लगता कि ये वही भारत है जहां अभी कोरोना के मरीज सबसे ज्यादा पाए जा रहे है और लगातार संख्या में बढ़ोतरी हो रही है . सोशल डिस्टेंस का ज्ञान देने वाले नेता सिर्फ टीवी में ही ज्ञान दे रहे है उन्हें पुरे देश में इसका पालन करवाने की अपील की जा रही है किन्तु बिहार और मध्यप्रदेश के उपचुनाव में ये सोशल डिस्टेंस सिर्फ किवदंती बनकर रह गयी है . खैर ये चुनावी वादे है राजनैतिक पार्टी कितना सिद्धांत पर चलती है और कितने वादे पुरे करती है ये भविष्य की गर्त में है क्योकि यहाँ यह भी देखा गया है कि सत्ता के लिए सारे सिद्धांत ताक पर रख दिए जाते है एक दुसरे पर आरोप की छड़ी लगाने वाले नेता सत्ता के लालच में देशभक्त और देशद्रोही की श्रेणी में एक दुसरे को तौलने और पाला बदलने से भी नहीं चुकते ये चलता रहा है और भविष्य में भी चलता रहेगा .
किन्तु इन वादों के बीच देश की वित्त मंत्री ने जो ब्यान दिया उससे देश की जनता को काफी आहात हुई है . बिहार चुनाव के देश की वित्त मंत्री ने अपने चुनावी वादे में कोरोना आपदा की तकलीफ को भी भुनाने में देर नहीं की कुछ समय पहले यही वित्त मंत्री जी ने प्याज की बढ़ती कीमत पर कहा था कि प्याज की कीमत बढऩे पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योकि हम प्याज नहीं खाते तब भी उनके इस तरह के ब्यान की काफी आलोचना हुई थी अब एक बार फिर वित्त मंत्री ने भारत के आम जनता के जिन्दगी में तूफ़ान मचने वाले कोरोना बिमारी पर एक ब्यान दे दिया वित्त मंत्री ने कहा कि अगर बिहार में भाजपा की जीत होगी तो बिहार की जनता को मुफ्त में कोरोना वेक्सिन दी जाएगी . वित्त मंत्री जी क्या भारत के सभी नागरिक और बिहार के नागरिक एक ही देश के निवासी नहीं है फिर ये कैसा सत्ता का नशा और कैसी सत्ता की ताकत आप वित्त मंत्री है जनता के द्वारा चुनी जनप्रतिनिधि है देश के लोकतंत्र में एक बड़े पद में विराजमान है आपने पद ग्रहण करते समय कसम खाई थी कि बिना भेदभाव के देश की सेवा करुँगी कहा गयी अब वो कसम .क्या आम जनो की जान की कीमत लगाना सही है . सिर्फ भारत ही नहीं पूरा विश्व कोरोना वेक्सिन का इंतज़ार कर रहा है और आप है कि सत्ता में जीत के बदले वेक्सिन की कीमत भी तय कर दी कि मुफ्त लगेगा या पैसे से लगाया जायेगा खैर आपकी गलती भी नहीं है भारत की विशाल जनसँख्या में अभी भी ऐसे कई लोग है जो आपके इस फैसले को देशभक्ति के रूप में प्रचारित करेंगे चलिए आपकी बात सही हो और बिहार में आपकी सत्ता आ जाये फिर कम से कम एक प्रदेश में तो मुफ्त में वेक्सिन लगवा दीजियेगा बस ये बता दीजिये कि वेक्सिन कब आएगी , क्या अच्छे दिन जैसे इंतज़ार करना पड़ेगा , क्या जिस तरह सालाना 2 करोड़ नौकरी के वादा पूरा होने का इंतज़ार कर रहे उस तरह इन्तजार करना पड़ेगा या सिर्फ जुमलेबाजी है जो भी हो एक बार तो सच बोल दीजिये कि हमारी जिन्दगी बचेगी कि नहीं हम भी उस देश के निवासी है जिस देश में आप वित्त मन्त्री है ...( शरद पंसारी की कलम से )

शौर्य की बाते / मेरा बेटा निक्की उसका जन्म दिन १२ अगस्त को और मेरा जन्मदिन १२ अक्तूबर को किन्तु देखिये कैसा योग है बचपन में जो भूल हुई वही भूल जिन्दगी के कुछ साल इतनी ख़ुशी दे गया कि उस भूल को अपना सौभाग्य समझने लगा और आज वही भूल जिन्दगी भर का दर्द बन गयी जिन्दगी का हर गुजरा कल एक दर्द बनकर उभर जाता है . भूल कुछ यु हो गयी थी कि फ़ार्म में १२ अक्तूबर की जगह १२ अगस्त हो गया और इस तरह १२ अगस्त के दिन जन्मदिन सभी शासकीय दस्तावेज में अंकित हो गए और एक दिन ऐसा आया कि वही १२ अगस्त मेरी खुशियों का सबसे बड़ा दिन हो गया जब मेरा लाल १२ अगस्त २००६ को इस दुनिया में कदम रखा तब से १२ अगस्त और १२ अक्तूबर दो दिन अपने जन्मकी खुशिया मनाने लगा किन्तु आज जब भी इस दिन को याद करता हूँ तो १२ अगस्त याद आ जाता है और मेरा लाल फिर से मेरे सामने खडा हो जाता है एक जिन्दा अहसास की तरह . अब तू ही बता ऐ जिन्दगी मै अपने जन्मदिन की खुशिया कैसे मनाऊ क्या खुदगर्ज बन जाऊ और अपने लाल को भूल जाऊ जिसने मुझे १४ साल खुशिया दी साल में दो बार जन्मदिन मनाने का मौका दिया अब क्या साल में दो बार मौत को गले लगाऊ .
मै तो इतना कमजोर हूँ की वो भी नहीं कर सकता तभी तो मेरा लाल मुझसे दूर हुए २० माह हो गए अब भी जी रहा हूँ खूब मजे कर रहा हूँ दिनभर ऐश करता हूँ पाखंडी हूँ मै जो बेटे के लिए रोता हूँ पर उसके पास जाने से डरता हूँ और इंतज़ार करता हूँ कि कोई ले जाए . चलो आज एक कदम तो आगे बढ़ ही गया हूँ बेटे तक जाने के लिए . कहते है ना सबकी जिन्दगी का समय उपर वाले ने तय किया है और सब को बस तय समय के इंतज़ार में दिन काटना है तो बेटा आज मैंने भी अपनी जिन्दगी के एक साल और काट लिए अब तेरे और करीब आ गया हूँ बस तू कही मत जाना बेटा मेरा इंतज़ार करना मेरे लाल फिर हम एक साथ रहेंगे हमेशा हमेशा के लिए कभी दूर नहीं होंगे मम्मी और मै एक साथ आयेंगे रे . तेरी मम्मी की ख़ुशी तो सिर्फ छलावा है तू तो अच्छे से जानता है ना अब सब तेरे ऊपर है कब हमे अपने पास बुलाता है सिद्धि से तो तू बात करता है बेटा हमसे ही नाराज है जब आयेंगे तो फिर बताना तेरी सारी नाराजगी दूर कर देंगे और एक बार फिर १२ अगस्त और १२ अक्तूबर को खुशियों की बारिश होगी बस अब खुशियों के सावन का इंतज़ार है बेटा वो भी जल्दी ही आ जायेगा बस तू धैर्य रखना . लव यु निक्की ..

शौर्यपथ । निक्की बेटा आज तेरी मम्मी का जन्मदिन है इस दुनिया मे लोग अपने जन्मदिन में खुश होते है खुशियां बांटते है पर बेटा हम तो ऐसे बदनसीब है कि खुशियां एक दरवाज़े से आती है तो दुख के 100 दरवाजे खुल जाते है । जिंदगी खुशियों से आबाद होने के बजाए दुख के सागर में डूब जाती है ऐसी जिंदगी हो गई हमारी । तू जानता है बेटा तेरे बिना एक एक पल मौत के इंतजार में जी रहे है हर पल मर रहे है तेरी मा को बेटा मैं कोई खुशी नही दे पाया कितनी भी कोशिश कर लूं खुशियां देने की खुशी कम दुख ज्यादा दिया । कभी कभी तो लगता है मेरी जिंदगी का कोई मकसद ही नही बेकार इस दुनिया मे जी रहा हूँ और इस सबका कारण तू है तू गया तो हमे भी साथ ले जाता बेटा हम भी तेरे साथ खुशी खुशी चलते लेकिन तू तो छलिया निकला रे अपने पीछे अपनी बहन को छोड़ गया तू तो सब जानता है कि तेरे बिना एक पल जीना भी हजार मौत के बराबर है पर तुझे तो अकेले जाना था और हमे नही लेजाने की सोंच कर सिद्धि को छोड़ दिया अब सिद्धि को कैसे छोड़े हम वो तो मासूम है उसे तो जीने का हक है उसका हक के छीन ले रे । देख ना बेटा तू तो भगवान है तुझे सब मालूम है कि तेरे बिना जिंदगी बंजर है हंसी के पीछे गम का सागर है अब इस भवसागर से पार तू ही लगा सकता है । कुछ ऐसा कर बेटा कि हम एक बार फिर साथ हो जाये तेरे लिए कोई भी काम असंभव नही है तो कुछ कर ताकि तेरी मम्मी के चेहरे में खुशी लौट आये । मैं तो मेरी रत्ना को लाया था पलको में बैठाकर किन्तु उसे कोई खुशी नही दे पाया कांटो के बिस्तर पर सुला दिया फूलों की जगह पथरीले रास्ते पर सफर करवा दिया कैसे करूँ क्या करूँ अब तू ही बता सकता है मेरे लाल तेरी जुदाई सहने की हिम्मत नही है और जिंदगी है कि लम्बी होती जा रही है इतनी लंबी की एक पल सदियों समान लगने लगी है देख न आज फिर खुशियों के रास्ते गम का सागर आ गया हमारी खुशी तुझसे है तेरे बिना जग वीराना आजा बेटा देख आज तेरी मम्मी का जन्मदिन है जो तेरे बिना अधूरा है तू है तो सब कुछ तू नही तो कुछ भी नही क्या तू अपनी मम्मी को हैप्पी बर्थडे नही बोलेगा मेरे लाल आजा मेरे लाल तेरा अभागा पापा तेरा इंतज़ार कर रहा है खुशियों का इंतजार कर रहा है इस पल को एक बार फिर खुशियों में बदल दे इस वीरान जिंदगी में बहार ले आ बेटा जो तेरे बिना अधूरा है अपनी मम्मी के लिए आजा निक्की आजा निक्की तेरा अभागा बाप विनती कर रहा आजा बेटा छोटी बहन के लिए आजा मम्मी के लिए लौट आ बेटा

शौर्यपथ लेख । कोरोना एक दहशत का नाम है अभी इस दुनिया मे इसका कोई इलाज मौजूद नही है ऐसे में दूरी और सफाई ही एक मात्र इलाज रह गया । इतनी दहशत की टेस्ट कराने में भी लोगो को भय हो रहा ऐसी खतरनाक बीमारी की पॉजिटिव आने से भला किसी को खुशी हो सकती है क्या किसी बेटे के पॉजिटिव रिपोर्ट आने से माँ की जिंदगी के दुख भरे दिन खुशियों में बदल सकते है । किंतु कहते है ना कि जिंदगी के हर मोड़ पर सुख पर दुख पर कोई न कोई सीख मिलती ही है बस ग्रहण करने वाला चाहिए ऐसी ही एक घटना ने एक माँ के एकांत को दूर कर दिया । 10 दिन की जद्दोजहद के बाद सुरेश अपनी कोरोना नेगटिव की रिपोर्ट हाथ मे लेकर अस्पताल के रिसेप्शन पर खड़ा था। आसपास कुछ लोग तालियां बजा रहे थे,उसका अभिनंदन कर रहे थे। एक जंग जो जीत कर आया था वो। लेकिन सुरेश के चेहरे पर बेचैनी की गहरी छाया थी। गाड़ी से घर के रास्ते भर उसे याद आता रहा "आइसोलेशन" नामक खतरनाक दौर का संत्रास। न्यूनतम सुविधाओं वाला छोटा सा कमरा,अपर्याप्त उजाला,मनोरंजन के किसी साधन की अनुपलब्धता,ये सब था वहां। कोई बात नही करता था ना नजदीक आता था। खाना भी बस प्लेट में भरकर सरका दिया जाता था। कैसे गुजारे उसने 10 दिन वही जानता था। बस! मन मे कुछ ठोस विचार और उस का चेहरा संतोष से भर गया। घर पहुचते ही स्वागत में खड़े उत्साही पत्नी,बच्चों को छोड़ कर सुरेश सीधे घर के एक उपेक्षित से कोने के कमरे में गया,माँ के पावों में पड़कर रोया और उन्हें ले कर बाहर आया। पिता की मृत्यु के बाद पिछले 5 वर्ष से एकांतवास/आइसोलेशन भोग रही माँ से कहा की आज से तुम हम सब एक साथ एक जगह पर ही रहेंगे। माँ को लगा बेटे की नेगटिव रिपोर्ट उन की जिंदगी की पॉजिटिव रिपोर्ट हो गयी है।

शौर्यपथ लेख / कंगना रनौत एक मशहूर हिरोइन देश की सबसे ज्यादा चर्चित महिला जो कभी ड्रग्स लेती थी , क्लबो में डांस करती थी , बीफ खाती थी आज फ़िल्मी दुनिया की पोल खोल रही है अपने आप को झाँसी की रानी , तो कभी अबला , तो कभी घर दुबारा बनाने के पैसे नहीं है की बात करने वाली एक ऐसी ज्ञानवान महिला जो चुनाव में उस जगह भी शिवसेना के उम्मीदवार को मज़बूरी में वोट डाल दी जहां शिवसेना का उम्मीदवार ही नहीं खडा था , एक ऐसी महिला जो अपने आप को महिलाओ की खैरख्वा बताती है जो इन्साफ की लड़ाई के लिए किसी से भी भीड़ जाती है यहाँ तक की मुंबई महानगर पालिका की कार्यवाही के लिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को दोषी मानती है और मुबई को pok जैसे शब्द से तुलना करने में भी पीछे नहीं हटती है , एक ऐसी महिला जो अपने अवैध रूप से बने घर को राम मंदिर से जोडती है , एक ऐसी बहादुर महिला जिसे केंद्र सरकार ने वाई श्रेणी की सुरक्षा दी है क्योकि वो महाराष्ट्र सरकार पर आरोप लगा रही है क्योकि जिसने अवैधानिक रूप से अपने कार्यालय का निर्माण किया है जिस पर मामला अब अदालत में विचाराधीन है ऐसी महान महिला ने वर्तमान में देश के सबसे बड़े काण्ड हाथरस काण्ड में घटना के १६ दिन बाद मृत मासूम के लिए इन्साफ की आवाज़ उठाई .
अब भई कंगना ने आवाज़ उठाई है तो बात तो बड़ी होगी ही और चर्चा तो होगी ही क्योकि वो कंगना है देश की सबसे मशहूर सेलिब्रिटी जिसे तुरंत वाई श्रेणी की सुरक्षा मिल गयी उस कंगना ने मनीषा के साथ हुए उत्तर पप्रदेश की बेटी हाथरस जिले की रहने वाली मासूम मनीषा के साथ हुए घटना पर १६ दिन बाद अपना आक्रोश जताया . किन्तु इस बार आक्रोश जताने का अंदाज़ कुछ जुदा था जो कंगना अपने कार्यालय के टूट जाने पर सीधे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पर आरोप लगाईं उस कंगना ने मनीषा के साथ हुए दुर्दांत हादसे पर एक ट्वीट किया उसके ट्वीट पर नज़र डालते है देखिये कंगना जी ने क्या कहा
"अपना गुस्सा ट्विटर पर ज़ाहिर किया. उन्होंने लिखा, “मुझे हमारे योगी आदित्यनाथ पर पूरी तरह से विश्वास हैं. उन्होंने जिस तरह से प्रियंका रेड्डी के दोषियों को घटनास्थल पर ही गोली मारने का हुकुम दिया था, वैसे ही हाथरस भी उनसे इस न्याय की उम्मीद कर रहा है.”


ट्वीट को ध्यान से पड़ने वालो को ये बात तो साफ़ समझ आ जाएगी की इतने बड़े काण्ड और १५ दिन बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जिन्होंने घटना को संज्ञान में तब लिया जब हमारे देश के यशस्वी , लोकप्रिय प्रधानमन्त्री नरेन्द्र दामोदर दास जी मोदी ने संज्ञान लेने की बात कही . वो तो भला हो हमारे प्रधानमंत्री जी का जिन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को घटना की जानकारी दे दी और कार्यवाही की बात कही वरना अगर कही प्रधानमंत्री जी किसी राजनितिक यात्रा पर विदेश प्रवास में होते और किसी कारणवश कुछ दिन और बीत जाते तो ना जाने क्या होता खैर जो हुआ अब उस पर जांच होगी क्योकि अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भारत के सच्चे देशभक्त मोहमाया से दूर श्री योगी आदित्यनाथ जी ने मामले को संज्ञान लिया और १५ दिन बाद कड़ी कार्यवाही की बात की तो ऐसे में १५ दिन तक मौन रहने वाली आदरणीय कंगना जी भला कैसे चुप रहती एक ट्वीट तो बनता ही है और दे मारा एक ट्वीट और करने लगी इन्साफ की उम्मीद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी से . इन्साफ तो खैर अब होगा ही मनीषा के साथ हुए कृत्य का , मनीषा की मृत देह के साथ हुए कृत्य का और उस कृत्य का भी जिसमे एक माँ को जिसने ९ माह अपनी कोख में जिस बेटी को पाला और दुनिया से १९ साल तक बचा के रखा जिसका अंतिम दर्शन करना भी नसीब नहीं हुआ चंद पुलिस वालो के कारण उन पुलिस वालो के कारण जो ला एंड आर्डर की रक्षा करते है जिसका नियंत्रण प्रदेश के मुखिया के हाथ में है किन्तु यहाँ कंगना जी ने प्रदेश के मुखिया से उम्मीद जाहिर की इन्साफ की अपनी ही नियत का दोहरा चेहरा दिखा दी कंगना ने अरे कंगना जी जब आपका कार्यालय टुटा तो वो कार्य बीएमसी का था तब क्यों नहीं आप प्रदेश के मुखिया से इन्साफ की उम्मीद करते हुए गुहार लगाईं क्या महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने आपका बंगला तोडा था जिस तरह मनीषा के साथ हुए हादसे में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कोई गलती नहीं है उसी तरह आपका आशियाना तोड़ने में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की कोई गलती नहीं है . अगर आप सोंचती है कि प्रदेश के मुखिया की गलती है तो यह बात दोनों ही प्रदेश में लागू होगी अगर आप घटना की ही तुलना कर लेती तो घर टूटना और अस्मत लूटना दोनों में जमीन आसमान का अंतर है घर तो फिर बन जायेगा किन्तु क्या मनीषा वापस आएगी . दुनिया की कोई ताकत अब उसे वापस नहीं ला सकती . ऐसी दोहरी निति से आपने स्वयं ही साबित कर दिया की तलुवे चाटो और मौज करो ......
( शरद पंसारी - संपादक शौर्यपथ दैनिक समाचार )

शौर्यपथ लेख । कंगना एक ऐसा नाम जो भारतीय मीडिया की trp बनी हुई है अपना ईमान बेचकर कंगना को इंसाफ दिलाने का ढोंग रचने वाले महिलाओं के सम्मान की बात करने वाले गंदी राजनीति के सेनापतियों क्या कंगना के साथ कोई गलत हुआ जो ऐसे चीख चीख कर इंसाफ की दुहाई देने निकले या सिर्फ सत्ता के लिए ही सारी गन्दी राजनीति करने की सोंच ली है । जाहिलो अगर कंगना के साथ गलत हुआ है तुम्हारे हिसाब से तो क्या मनीषा के साथ गलत नही हुआ कंगना का तो हिसाब कोर्ट में हो जाएगा दो चार फिल्में करेगी तो बंगला एक बार फिर बन जायेगा किन्तु क्या मनीषा वापस आएगी क्या मा की सुनी गोद फिर भर जाएगी । कंगना की महाराष्ट्र सरकार से जंग शुरू हुई और y श्रेणी सुरक्षा मिल गयी वो भी तुरंत , कोर्ट में मामला पहुंच गया वो भी तुरंत , दलाल मीडिया की फौज पहुंच गई कंगना के आस पास वो भी तुरंत अपने आप को झांसी रानी कहने लगी जिसे घोड़े में बैठने तक की जानकारी नही अपने आप को नशा के विरुद्ध एक नायिका पेश करने लगी जो बीफ खाती है जो ड्रग्स लेती है यह बात उस कंगना ने ही स्वीकार आज वही अपने को एक लड़ाकू महिला घोषित कर रही । कंगना जो कर रही अपने लिए कर रही किन्तु कंगना को इंसाफ देने की बात करने वाले अब कहा है जब एक मासूम के साथ अत्याचार हुआ और जिंदगी और मौत के जंग में मौत की जीत हो गई अब क्यो बोल नही फुट रहे महिलाओं के सम्मान की बात करने वाले क्या उनकी नजर में मनीषा का कोई अस्तित्व नही क्या मनीषा देश की बिटिया नही । मनीषा के मामले में क्यो नही बोल फुट रहे उन लोगो के जो कंगना को इंसाफ दिलाने निकले थे यहाँ तक अपनी प्रोफाइल पर भी कंगना की फ़ोटो लगा रखी उस कंगना की जिसे यह भी याद नही कि एक साल पहले उसने किस पार्टी को वोट दिया था आज उनके लिए कंगना बड़ी हो गई और मनीषा का कोई अस्तित्व नही राह गया । शर्म आती है ऐसे देशभक्तों पर हिन्दू होने का अभिमान करने वाले तलुवे चाटने वालो पर जो 10 दिनों में एक बार भी मनीषा के लिए इंसाफ की दुहाई नही दे रहे । अरे भाई वो मनीषा एक मासूम बच्ची थी जिसे 4 दरिंदो ने मारा है एक झटके में नही टिल टिल पल पल तड़फा कर मारा है और वह रे हिंदुत्व की राग अलापने वाली सरकार एक हिन्दू लड़की को एक कुवारी हिन्दू लड़की की मृत देह को परिजनों की अनुमति के बिना रात में अंतिम संस्कार कर दिए और पूरी प्रशासन मौन है । योगी जी आप तो हिंदुत्व का झंडा उठाते हो क्यो हो गया ऐसा जघन्य कांड आपके राज में माना आपका कोई दोष नही मासूम के बलात्कार की घटना से और ना ही आपकी सरकार का कोई दोष किन्तु घटना के बाद जो कार्यवाही हुई क्या वो त्वरित कार्यवाही की श्रेणी में आता है घटना के बाद मृत शरीर का जो अपमान हुआ वो हिन्दू भावना को आघात नही पहुंचता । कुवारी कन्या को हम हिन्दू पूजते है देवी का रूप मानते है कहते है जिस बाप के सौ भाग्यो के पुण्य का नतीजा सौभाग्यवती कन्या का रूप में घर मे प्रवेश करता है आज उस बाप के दिल मे क्या गुजर रही होगी जिसकी मासूम निरपराध बेटी के अंतिम दर्शन और दाह संस्कार का भी अवसर नही मिला आपके राज में क्या ऐसा ही होता है राम राज्य अगर ऐसा राम राज्य है तो नही चाहिए मुझे राम राज्य जहां एक हीरोइन की अवैध इमारत टूटने पर उसे देशभक्त घोषित कर दलाल मीडिया उसके तलवे चाट रही हो और एक मासूम की मौत पर कन्या को देवी का रूप मानने वाले दिखावटी लोग एक शब्द भी नही बोल रहे । एक हथनी की क्रूरता से मौत हुई तो कुत्ते जैसे भौकने वाले सोशल मीडिया की गली में आ कर चिल्लाने लगे वही जब एक मासूम की क्रूरता से मौत हुई तो सारे मौन है क्या ऐसे लोगो को ही समाज दोगला कहता है । मैं एक साधारण सा इंसान हूँ एक बेटा और एक बेटी का बाप हूँ मै कुछ नही कर सकता किन्तु दिल से उस मासूम के पिता के साथ हूँ । मासूम मनीषा को इंसाफ मिले या ना मिले किन्तु उस मासूम के पिता को जिंदगी भर का दर्द पहले बलात्कारियों ने दिया और उसके बाद प्रशासन के उन अधिकारियों ने दिया जिन्होंने मासूम मनीषा का बिना विधान के आधी रात में अंतिम संस्कार किया । ( शरद पंसारी - संपादक शौर्यपथ दैनिक समाचार )

शौर्यपथ लेख । पत्रकार यानी कि चौथा स्तंभ जो कि अब नाम का ही चौथा स्तंभ है । कौन सा पत्रकार सुरक्षित रहेगा कौन सा पत्रकार असुरक्षित अब ये सत्ता के ऊपर निर्भर हो गया है । अगर पत्रकार सत्ता के अवैधानिक कार्यो को उजागर कर तो वह पत्रकार ज्यादा समय तक सुरक्षित नही हो सकता । आज पत्रकार को सुरक्षित रहना है तो सत्ता के हिसाब से चलना पड़ता है तभी पत्रकार सुरक्षित रह सकता है ये छोटे और बड़े बेनर के पत्रकार को अच्छे से मालूम है । किंतु आज भी ऐसे पत्रकार है जो 1947 से पहले की शैली अपना रहे है जब देश गुलाम था जब अंग्रेजो का शासन था तब के पत्रकार ऐसे थे जो कलमवीर थे और खुल कर अपनी बात लिखते थे गुलाम भारत मे भी पत्रकार उतने असुरक्षित नही थी जितने आज है । आज अधिकतर बेनर किसी ना किसी राजनैतिक पार्टी की विचारधारा के आगोश में है अगर वह विचारधारा सत्ताधारी के अनुसार हो तो सुरक्षित ही नही समृद्ध पत्रकार की श्रेणी में गिना जाएगा । ऐसा नही है कि सिर्फ छत्तीसगढ़ में ये हालात है पूरे देश मे यही आलम है तभी तो पत्रकार या तो किसी समिति के अध्यक्ष है किसी सदन के सदस्य है या फिर किसी दल के अघोषित प्रचारक । देश मे गरीबी , शिक्षा , स्वास्थ्य , रोजगार के मुद्दे अब गायब हो गए है उसकी जगह ले ली है बेतुकी बातों ने फला हीरोइन कितने बार कपड़े बदली कितने बार रोइ कितने बार हंसी क्या पहनी क्यो पहनी , फला आदमी देश भक्त है या समाज का दुश्मन ये फैसला कुछ चापलूस पत्रकार अपने आकाओं को खुश करने के लिए उछलते रहते है और खुद को न्याय पालिका तक समझते है । ऐसी ऐसी बाते सामने लाते है कि कभी कभी ऐसा लगता है देश की इंटेलिजेंस एजेंसी सिर्फ टाइम पास कर रही असली काम यही कर रहे एक प्रश्नवाचक चिन्ह और सूत्र की बात कर किसी को बजी देशद्रोही , समाज का दुश्मन , देशभक्त , समाज सुधारक तक का तमगा दे देते है । कुछ ऐसे ही पक्षपात और एकतरफा स्थिति के कारण भूपेश सरकार ने चुनाव के समय पत्रकार सुरक्षा कानून की बात की थी और इस चुनावी वादों को मूर्त रूप देने का आश्वासन दिया था । आज भूपेश सरकार को सत्ता संभाले लगभग दो साल हो गए किन्तु आज भी छत्तीसगढ़ में पत्रकार सुरक्षित नही है जब भी पत्रकारों पर कोई हमला होता है तो इसे आपसी रंजिश की बात कह कर मामले को दूसरा रूप देने की बात चालू हो जाती है । ऐसे कई मामले सामने आ भी चुके है लेकिन हम वर्तमान मामले की ही बात करे तो कमल शुक्ला के साथ जिस तरह जी घटना हुई उससे एक बार फिर पत्रकार समूह को सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या सरकार गठन के दो साल बाद भी पत्रकारों के लिए सुरक्षा कानून पर कोई ठोस पहल होगी । कई अखबारों में गृह मंत्री का बयान प्रकाशित हुआ कि दोनों पार्टी में वादी परिवादी में जो भी गलत होगा उस पर कार्यवाही होगी गृह मंत्री का यह बयान एक दक्ष राजनैतिक बयान था जिसमे उनके द्वारा पत्रकारों की सुरक्षा की बात पर कोई जवाब नही दिया गया वही दूसरी तरफ कांग्रेस के प्रवक्ता ने कहा कि घटना को अंजाम देने वालो को पार्टी से निष्काषित कर दिया गया क्या निष्कासन ही सही रास्ता है क्या कांग्रेस के मुखिया का वादा स्थानीय कांग्रेस संगठन भूल गया । वीडियो में देखने से साफ लग रहा है कि कमल शुक्ला पर आक्रमण करने वाला किस विश्वास के साथ बात कर रहा था जैसे कि शहर की प्रशासनिक व्यवस्था पर उसका ही राज हो और जब fir दर्ज हुई तो एक शिकायत कमल शुक्ला के खिलाफ प्रेषित कर दी ताकि मामला बराबर का हो जाये । हा भई हो भी सकता है क्योंकि सरकार के एक अपरोक्ष अंग हो सत्ताधारी दल के सक्रिय सदस्य हो इसलिए किसी बात का डर नही आज जब fir दर्ज हुई तो याद आ गया कि कमल शुक्ला ने पूर्व में कभी जान से मारने की धमकी दी थी । चलो याद तो आया पर तब क्यो मौन थे जब जान से मारने की धमकी दी थी तभी पहुंच जाते कानून के दरवाजे और शिकायत कर देते तब किस बात ने रोक रखा था महोदय आपको । एक पत्रकार को सरे आम मार कर कौन सी बहादुरी दिखा दिए पत्रकार ने तो कलम से लड़ाई लड़ी तुम भी कलम से लड़ लेते भाई तुम्हे तो किसी ने नही रोका था शिकायत से । आज जब चौतरफा वीडियो वायरल हुआ तो सब याद आ गया । वैसे तुम भी सही हो महोदय क्योकि पत्रकार एक नही है यहां तो पत्रकारिता में भी राजनीति जगजाहिर है पुराने और वरिष्ठ पत्रकार पर हमला होता है तो बवाल खड़ा हो जाता है किंतु जब मझोले और छोटे पत्रकार पर कोई विपदा आती है तो यही कुछ वरिष्ठ पत्रकार होते है जो समर्थन तो नही करते उल्टे विरोध के स्वर निकलते है । ऐसा नही कि सभी वरिष्ठ पत्रकार ऐसा करते है कुछ ऐसे वरिष्ठ आज भी है जो युवा पीढ़ी का दिल से स्वागत करते है और सही गलत के बारे में बताते है । आज जो भी घटना पत्रकारों के साथ हो रही उसमें कुछ हद तक जिम्मेदार पत्रकार भी है एकता में बल की बात तो करते है पर एकता में अभी भी अभाव है । आज पत्रकार अगर एक हो जाये तो मारपीट की बात तो दूर कोई तिरछी आंख भी नही करेगा । इस तरह की घटना से शासन को , पत्रकारों को भी सीख लेने की ज़रूरत है क्योंकि अगर देश के चार स्तम्भ में से एक स्तम्भ पत्रकार है तो उनकी मजबूती भी सबसे ज्यादा जरूरी है । बस एक बार दिल मे हांथ रखकर ज़रूरत है उस कल्पना की जिसमे ये देखे की तीन स्तम्भ के सहारे देश का लोकतंत्र कैसे और कब तक खड़ा रहेगा ...( शरद पंसारी - संपादक दैनिक शौर्यपथ समाचार पत्र )

शौर्यपथ लेख / शहर में लॉक डाउन की घोषणा हुई और इस घोषणा से पहले जिला प्रशासन ने आम जनता की राय ली ऐसा सुनने में आया जब इस बात की गहराई तक गए तो पता जला कि एक बैठक हुई और शहर के जनप्रतिनिधि , व्यापारी संगठन और जिला प्रशासन के बड़े अधिकारियों ने मिल कर ये फैसला लिया कि शहर में एक बार फिर लॉक डाउन होना चाहिए और बहुत ही सख्त इतना सख्त कि हवा भी इधर से उधर ना हो सके सभी दुकाने बंद रहेंगी , सभी पेट्रोल पम्प बंद रहेंगे , सब्जी दूकान बंद रहेगी , राशन दूकान बंद रहेगी . सुनकर अच्छा लगा कि चलो शासन ने कोई सख्त कदम उठाया और जनता के हित की बात सोंची . पर क्या किसी ने भी यह सोंचा कि इन १० दिनों के सख्त लॉक डाउन और उसमे भी ७ दिनों का अति सख्त लॉक डाउन का क्या परिणाम निकलेगा . और आम जनता मिडिल क्लास जनता , गरीब तबके के लोगो पर इसका क्या असर पड़ेगा . गरीब और मध्यम वर्ग की पीड़ा क्या जनप्रतिनिधि समझते है , क्या अधिकारी समझते है , क्या व्यापारिक संगठन के मठाधीश समझते है . मेरे नजर से तो कोई भी नहीं समझता इनमे से .
चलिए आप ही अपने दिल पर हाँथ रखकर बताइये फैसले लेने वाले महोदय १० दिन तो क्या अगर १०० दिन भी लॉक डाउन रहेगा तो भी शहर के किसी भी निर्वाचित जनप्रतिनिधि को कोई परेशानी नहीं आएगी ना ही उनके घर में राशन की दिक्कत होगी और ना ही किसी अन्य तरह की परेशानी १०० दिन भी अगर घर पर रहेंगे तो भी उनकी सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा . ऐसी ही हालत व्यापारी संगठन की है शहर के व्यापारी संगठन वालो में से कोई ऐसा व्यापारी हो तो हमे जरुर बताइए जिसे १० तो क्या अगर १०० दिन भी लॉक डाउन रहे और घर के अंदर रहना पड़े तो कितने होंगे जिन्हें दो वक्त की रोटी के लिए मोहताज़ होना होगा . यहाँ बात नफ़ा नुक्सान की नहीं दो वक्त की भूख मिटाने की हो रही है . ऐसी ही हालत बड़े बड़े पद में विराजमान शासकीय अधिकारी की ही बात करे तो एक भी ऐसा अधिकारी बता दीजिये जिन्हें दो वक्त पेट की आग शांत करने की चिंता होगी . मेरी नजर में इनमे से कोई नहीं है .


क्या शहर में सिर्फ गणमान्य नागरिक ही रहते है जिनकी राय ली जाती है क्या शहर की आम जनता के जीवन का कोई मोल नहीं है ये वही गणमान्य नागरिक है जो अपने व्यापर में कई बार शासन के नियमो की धज्जी उड़ाते हुए व्यापार करते है और ये देते है अपनी राय कि शहर में लॉक डाउन होना चाहिए क्या कोई ऐसा जनप्रतिनिधि है जो गरीब जनता की बात सुने तकलीफ सुन कर समस्या का हल करे यहाँ तो स्थिति इसी है कि जनप्रतिनिधि ज्ञान पेलने पर माहिर है क्योकि पेट के आग की इन्हें चिंता नहीं है अपनी नाकामी हुपाने और झूठी वाहवाही लुटने में ही इन्हें आत्म संतुष्टि मिलती है .
क्या फैसला लेने वाले मठाधिशो ने कभी सोंचा है कि १० दिन के लॉक डाउन में उस परिवार का क्या होगा जो रोज मजदूरी करता है और रोज घर में दो वक्त का खाना खाता है क्या उस परिवार का सोंचा है जो घर में बेरोजगार बैठा है , क्या उस व्यक्ति की पीड़ा का आभास है इन्हें जो अपनी तकलीफों के बावजूद इस लिए काम करता है कि रात को अपने परिवार को दो वक्त की रोटी दे सके . साहब पेट की आग क्या होती है फैसले लेने वाले को कभी अहसास ही नहीं है छोटी छोटी जरुरत को भी ना पूरी करने वाला इन १० दिनों में कैसे एक एक दिन गुजारेगा इस बात का अहसास एसी कमरे में हॉट काफी और कोल्ड काफी पीने वालो को यक़ीनन नहीं होगा इनके लिए तो १० दिन एक टार्गेट है क्योकि सारी सुविधाए , सारी शक्तियों के बाद भी ये महामारी से लड़ने के लिए कोई रास्ता तो नहीं निकाल रहे जिसे जनता का हित हो अपितु यही रास्ता निकाल लिए कि १० दिन घर में आराम करो . अरे साहब कौन १० दिन घर में आराम करेगा गरीब व्यक्ति १० दिन ऐसे बिताएगा जैसे एक एक पल सजा काट रहा हो और नजरो के सामने परिवार के सदस्यों की जरुरत को पूरी न कर पाने की पीड़ा सहन करते हुए ११ वे दिन का इंतज़ार करते हुए एक एक पल गिनता रहेगा और दिल से उन लोगो को बद्दुआ देगा जो जो इसके कारण है क्योकि १० दिन शासन के नियम को मानने वाला यही गरीब परिवार होता है इन १० दिनों की पीड़ा का अहसास अगर करना है तो आप रहो अपने आलिशान बंगले में किन्तु साथ यह भी करो कि घर से दो वक्त की रोटी के सारे इंतजाम हटा दो और देखो फिर कैसे आपको भी ये १० दिन १० साल जैसे लगेंगे .


चलिए साहब आप लोगो का फैसला सर आँखों पर ये १० दिन आपके आदेश अनुसार घर पर किन्तु क्या इन दस दिनों के बाद आने वाला समय सामान्य हो जाएगा क्या १० दिनों बाद जो भीड़ बाजार में उतरेगी उसे नियंत्रण कर पायेंगे , १० दिनों बाद जो वातावरण निर्मित होगा उससे क्या कोरोना और विस्फोट नहीं लेगा क्या १० दिनों के लॉक डाउन के बाद सब सामान्य हो जायेगा अगर ऐसा है तो १० क्या आप १५ दिन कर दो लॉक डाउन किन्तु उसके बाद भी अगर स्थिति सामान्य नहीं होगी तो क्या फैसले लेने वाले गणमान्य शहर की जनता के सामने ये कबुल करेंगे कि हमारा फैसला गलत था . हमे मालूम है नहीं करेंगे क्योकि आप लोगो से गलती नहीं होती साहब गलती तो गरीबो से होती है कानून तो गरीबो के लिए है , सारे नियम गरीबो के लिए है अगर आप के फैसले को सफलता मिलेगी तो बड़े बड़े प्रोपोगंडा करके अपनी कामयाबी बताएँगे किन्तु असफल होते ही सारा दोष एक बार फिर गरीब जनता के उपर लगा कर अपनी बुद्धिमता का परिचय देंगे क्योकि आप तो धरती के भगवन बन गए है किन्तु साहब कभी दिल से सोंचना इस दुनिया के बाद भी एक दुनिया है जहा आपका रुतबा नहीं आपके कर्म काम आते है और जिसके दरबार में कोई राजा नहीं होता कोई रंक नहीं होता सब एक सामान होते है और कर्मो का हिसाब देते है उस दरबार में ही सबका निष्पक्ष फैसला होता है . साहब आप लोगो के फैसले शिरोधार्य बस फैसले लेते समय आम जनता की तकलीफों के बारे में आम जनता से ही सवाल कीजिये ख़ास जनता क्या जाने आम जनता की तकलीफ अब तो बस यही दुआ है कि ये १० दिन पल पल के हिसाब से निकल जाए क्योकि पल पल का हिसाब ऍम जनता और गरीब जनता को ही करना है और करेगा भी क्योकि यही वो जनता है जो कानून का सम्मान करती है नियमो का पालन करती है लोकतंत्र की रक्षा करती है एक समाज के निर्माण में अपना अहम् योगदान देती है और वैश्विक महामारी से कही ज्यादा इस बात की चिंता में लीन रहती है कि परिवार को दो वक्त की रोटी कैसे नसीब हो ...( शरद पंसारी - संपादक दैनिक शौर्यपथ समाचार पत्र )

शौर्यपथ लेख / कृषि बिल जिसे पास करवाने के लिए मेरी नजर में मत विभाजन होना था नहीं हुआ संख्या बल के आधार पर भारत के सबसे बड़े बिल को पास कर दिया गया . कृषि बिल पर कौन राजनीती कर रहा ये हमारा मुद्दा नहीं है मुद्दा ये है कि कृषि बिल को जो कि किसानो के लिए एक महत्तवपूर्ण बिल है क्योकि भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है ऐसे में बिल पास करवाने का जो तरीका निकाला गया क्या हो सही था . क्या संख्या बल के दम पर चुने हुए सांसद बिना किसी की राय लिए कृषको के भाग्यविधाता बनने की कोशिश नहीं कर रहे है . इतने बड़े विधेयक को पास करने की इतनी जल्दबाजी क्यों की गयी क्या यही भारत का लोकतंत्र है जहा संख्या बल के दम पर विपक्ष को दबाया जा रहा है . इस बिल पर कौन राजनीति कर रहा है सत्ता पक्ष या विपक्ष ये अलग मुद्दा है किन्तु यहाँ जिस तरह नियमो की अनदेखी की जा रही है क्या ये एक नए प्रथा को जन्म नहीं दे रहा है . चलिए ये मान लिया जाए कि कृषि बिल किसानो के हित का है तो सरकार इस बात को लिखित में क्यों नहीं दे रही है कि किसानो को उनकी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलेगा . संसद में इस बात को ऑन रिकार्ड क्यों नहीं स्वीकार कर रही है कि किसानो को समर्थन मूल्य ( न्यूनतम मूल्य ) प्राप्त होगा . चलो मान लिया जाये कि मोदी सरकार किसानो के हित के लिए आगे बढ़ रही है तो इस बात में आखिर सरकार को परेशानी क्यों हो रही है संसद में लिखित में न्यूनतम समर्थन मूल्य की बात को स्वीकार करने में . आज राज्यसभा में सबको यह बात तो दिखी कि किस तरह से सांसदों का उग्र व्यवहार था किन्तु ये कोई क्यों नहीं देख रहा है कि आखिर इतने उग्र क्यों हुए सांसद कि उन्हें उप सभापति के चेयर तक जाना पडा रुल बुक फाड्नी पड़ी और माइक से छेड़खानी करने की नौबत आयी . चाहे कोई भी स्थिति हो इस तरह का व्यवहार निंदनीय है किन्तु क्या ये सही है कि रुल बुक के अनुसार अगर कोई भी सांसद किसी बिल के लिए मत विभाजन की मांग करता है तो सदन के सभापति / उपसभापति को नियमानुसार सदन के सदस्यों की मांग को माननी पड़ती है और मत विभाजन की प्रक्रिया निभानी होती है किन्तु यहाँ क्या हुआ एक से ज्यादा सदस्य मत विभाजन की मांग करते रहे रुल बुक के अनुछेद की याद दिलाते रहे सदन के लिए बनाए गए नियमो के अनुसरण की बात करते रहे किन्तु सदन के अनुछेद को नहीं माना गया . जब सदन के अनुछेद को नहीं माना जा रहा है तो फिर रुल बुक का क्या औचित्य शायद यही पीड़ा लेकर सदन के सदस्य / सदस्यों ने रुल बुक को फाड़ दिया होगा खैर रुल बुक को फाड़ने वाले और सदन के नियमो की अवहेलना करने वाले सांसदों को एक हफ्ते के लिए सस्पेंड कर दिया गया है किन्तु की सिर्फ सदस्यों की ही गलती हुई इस सारे घटना क्रम में और किसी की गलती नहीं है . क्या सदन में संख्या बल है तो जंगल राज की तरह व्यवहार होगा सरकार का . लोकतंत्र में सर्व सम्मति का उच्च स्थान है किन्तु साथ ही विपक्ष की बात को सुनने का और निराकरण करने की परम्परा भी रही है किन्तु क्या वर्तमान स्थिति में ऐसा हो रहा है कोई भी बात स्पष्ट रूप से आखिर क्यों नहीं कही जा रही है सदन के बाहर जिस बात के वादे किये जा रहे है वही बात सदन के अंदर कहने में आखिर क्या परेशानी . अगर मन साफ़ है और नियत सही है तो सदन के अंदर भी उसी बात को कही जा सकती है जिसे बाहर बार बार सफाई देने के लिए कहा जा रहा है .


कृषि बिल में आखिर ऐसी क्या बात है जो किसानो को तो परेशान कर रही है साथ ही सरकार के घटक दल भी विरोध कर रहे है किन्तु यहाँ एक बार फिर संख्या बल का नशा सर पर होने का दंभ दिख रहा है जिसके कारण यह भी नहीं दिख रहा है कि सालो पुरानी साथी पार्टी की नारजगी का भी कोई असर सरकार पर नहीं पड़ रहा है . आज भले ही सारी बाते आपके पक्ष में हो किन्तु ये समय है यहाँ इंदिरा गांधी जैसी सरकार को भी धुल चाटनी पड़ी है राजनितिक के मैदान में . इस देश में ऐसे ऐसे राजनितिक कारनामे हुए है कि जब सारा देश मोदी के पक्ष में था तब दिल्ली विधान सभा में भाजपा को मुह की खानी पड़ी , छत्तीसगढ़ में स्थिति बदतर हुई , सत्ता के कारण शिवसेना - भाजपा में दरार हो गयी - सत्ता के खेल में जनता की पसंद को दरकिनार कर मध्यप्रदेश , हरियाणा , गोवा , कर्णाटक ,बिहार में कैसे सरकार बनी ये सभी ने देखा यहाँ कितने बार लोकतंत्र की हत्या हुई इस पर सब मौन रहे .


कृषि बिल से सरकार का कहना है कि इससे किसानो को बहुत लाभ होगा और विपक्ष का कहना है कि नुक्सान होगा . किसानो को क्या और कैसे फायदा होगा ये किसान को समझाने की जिम्मेदारी बिल पास करवाने वालो की होती है / सरकार की होती है आखिर सरकार क्यों नहीं किसानो के शंकाओ का समाधान कर रही . सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या मर्यादा तोड़ने की सारी जिम्मेदारी सिर्फ विपक्ष की होती है सत्ता पक्ष की नहीं होती ताली एक हाँथ से नहीं बजती और यही हाल कल संसद में हुआ . कल के व्यवहार से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि सरकार के बिल को पास करवाने के लिए प्रश्नकाल को भी दफन करने का फैसला क्या सही है आखिर उपसभापति ने विपक्ष की मांग को भी क्यों नहीं माना , प्रवर समिति में भेजने की मांग को भी क्यों नहीं माना क्या ये निति संगत है . कृषि बिल संसद में ध्वनी मत से पास हुआ किन्तु संसद फेल हो गया . हाउस रुल 252 के अनुसार कोई भी सदस्य चाहता है या चेयरमेन के फैसले को चेलेंज करता है तो रुल 252 के तहत मत विभाजन का आदेश देना होता है किन्तु जिस तरह से कल की कार्यवाही हुई उससे साफ सन्देश जाता है कि सरकार किसी भी तरह से बिल उसी दिन पास कराना चाहती थी और हुआ भी यही कृषि बिल ध्वनी मत से पास हो गया और आठ सांसद एक हफ्ते के लिए सस्पेंड हो गए .


इन सबमे सबसे बड़ी बात जो ध्यान देने वाली है उसके अनुसार वर्तमान सरकार एनडीए -2 में कुल 82 बिल पास हुए जिसमे से 17 बिल प्रवर समिति को / मत विभाजन के लिए भेजे गए यानी कि लगभग २० प्रतिशत बिल में विपक्ष की राय को महत्तव दिया गया उसी तरह एनडीए 1 में 25 प्रतिशत बिल को पास कराने के लिए विपक्ष के राय को महत्तव दिया गया वही अगर यूपीए 2 ( सरकार ) की बात करे तो 71 प्रतिशत बिल के लिए विपक्ष की राय ली गयी वही यूपीए -1 में 60 प्रतिशत बिल पास होने के लिए विपक्ष को महत्तव दिया गया . इन आंकड़ो से ही साफ़ नजर आता है कि वर्तमान सरकार संख्या बल के आधार पर किस तरह बिल पास करवा रही है . बिल पास होने के कई मायने है पूर्ण बहुमत से बिल पास होना मतलब सभी की पूर्ण सहमती , मत विभाजन से बिल पास होना मतलब वो बिल जिस पर विपक्ष सवाल उठा रही है और सत्ता पक्ष समर्थन कर रही है ऐसे बिल के पास होने के लिए सदन के चेयर पर्सन द्वारा मत विभाजन करवाना और बहुमत के आधार पर बिल को पास या फेल करना जिसमे विवाद की स्थिति अल्प समय के लिए होती है किन्तु ध्वनिमत से बिल पास करना यानी कि विपक्ष की शंकाओं को नजर अंदाज करते हुए सत्ता पक्ष बल संख्या के आधार पर बिल को पास करवा लेती है उसे ध्वनिमत से पास हुआ बिल करार दिया जाता है और ऐसा ही कृषि बिल के साथ हुआ राज्यसभा में कृषि बिल विवादों के बीच विपक्ष की मांगो को नजरंदाज कर यहाँ तक कि सत्ता के घटक दलों की भावना को भी नजर अंदाज कर पास करा लिया गया और एक नए प्रथा का श्री गणेश जो हुआ है उस पर एक सीढ़ी और आगे बढ़ गयी सरकार इस तरह कृषि प्रधान देश में जमीनी किसानो से चर्चा किये बिना सरकार ने एक नए नियम को लागू कर दिया अब इससे किसानो को फायदा है या नुक्सान ये तो आने वाला समय ही बताएगा . ( शरद पंसारी - संपादक - शौर्यपथ दैनिक समाचार पत्र )

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