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सेहत /शौर्यपथ /गर्मियों के मौसम में चिलचिलाती धूप के अलावा सबसे बड़ी समस्या होती है तेज तपती धूप, हीट स्ट्रोक यानी लू लगने की समस्या। जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, वैसे-वैसे लू लगने का खतरा भी बढ़ता जाता है। ऐसे में कुछ बदलाव भी आवश्यक होते हैं जिससे कि हम इस समस्या से निजात पा सकें।
अगर किसी व्यक्ति को हीट स्ट्रोक हो जाए तो शरीर में पानी की कमी हो जाती है जिससे डिहाइड्रेशन और बेहोशी जैसी समस्या देखने को मिलती है। आइए जानते हैं आपको हिट स्ट्रोक से बचने के लिए क्या करना चाहिए-
1. इन दिनों दोपहर की तेज तपती धूप में निकलने से बचें।
2. जहां तक हो सके आंखों पर धूप से बचने वाला चश्मा लगाएं।
3. गर्मी के दिनों में नारियल का पानी पीना लाभदायी रहता है, यह हीट स्ट्रोक से बचाता है।
4. शरीर में पानी की कमी न होने दें। दिनभर में कम से कम 8 से 10 गिलास पानी जरूर पीएं, वरना पानी की कमी से डिहाइड्रेशन जैसी समस्या हो सकती है।
5. अपनी डाइट में कच्चे प्याज को शामिल करें। कच्चा प्याज का सेवन गर्मी में लाभदायी माना गया है।
6. दिन में दही, कच्चे आम का पना व छाछ इनका जरूर सेवन करें।
7. इन दिनों नींबू पानी भी शरीर की गर्मी को बाहर निकालता है और ठंडक पहुंचाता है। इसके लिए 1 गिलास पानी में आधा नींबू और 2 छोटे चम्मच शकर मिक्स करके नींबू पानी बनाकर उसका सेवन करें।
सेहत /शौर्यपथ अभी नौतपा चल रहा है और गर्मी की तपिश भी बढ़ गई हैं। ऐसे में मेहंदी लगाना सेहत और ब्यूटी दोनों के लिहाज से ही फायदेमंद साबित हो सकता है। हाथों पर रचने वाली खूबसूरत मेहंदी के तो सभी दीवाने होते हैं, लेकिन इसके सेहत और खूबसूरती के फायदे जानेंगे तो इसे और भी पसंद करने लगेंगे। जानिए आपकी सेहत और सौंदर्य को निखारने में कितनी कारगर है यह मेहंदी।
पढ़ें 10 सेहत के फायदे-
1. खून साफ करने के लिए मेहंदी को औषधि के तौर पर प्रयोग किया जा सकता है। इसके लिए रात को साफ पानी में मेहंदी भिगोकर रखें और सुबह इसे छानकर पिएं।
2. घुटनों या जोड़ों में दर्द की समस्या होने पर मेहंदी और अरंडी के पत्तों को बराबर मात्रा में पीस लें और इस मिश्रण को हल्का सा गर्म करके घुटनों पर लेप करें।
3. सिरदर्द या माइग्रेन जैसी परेशानियों के लिए भी मेहंदी एक बेहतरीन विकल्प है। ठंडक भरी मेहंदी को पीसकर सिर पर लगाने से काफी फायदा होगा।
4. शरीर के किसी स्थान पर जल जाने पर मेहंदी की छाल या पत्ते लेकर पीस लीजिए और लेप तैयार किजिए। इस लेप को जले हुए स्थान पर लगाने से घाव जल्दी ठीक होगा।
5. मेहंदी में दही, आंवला पाउडर, मेथी पाउडर मिलाकर घोल तैयार करें और इसे बालों में लगाएं। 1 से 2 घंटे बालों में रखने के बाद बाल धो लें। ऐसा करने से बाल काले, घने और चमकदार होते हैं।
6. तासीर में ठंडी होने के कारण मेहंदी का उपयोग शरीर में बढ़ी हुई गर्मी को कम करने में किया जाता है। हाथों और पैर के तलवों में मेहंदी लगाने से शरीर की गर्मी कम होती है।
7. इसके अलावा मेहंदी के ताजे पत्तों को तोड़कर साफ पानी में भिगो दें और रात भर रखने के बाद इसे सुबह छानकर पिएं। यह प्रयोग भी शरीर की गर्मी को दूर करने में मददगार है।
8. नौतपे की तेज गर्मी में आपको राहत मिलेगी, क्योंकि मेहंदी का लेप सिर को ठंडक देता है। इसलिए इसका इस्तेमाल आपको तरोताजा रखने में मदद करेगा।
9. मेहंदी में एंटीसेप्टिक गुण मौजूद होते हैं। यह आपकी बालों की समस्या जैसे रूसी, खुजली व बालों का झड़ना आदि समस्या से निजात दिलाएगा।
10. मेहंदी में दही मिलाने पर यह गर्मियों में राहत पाने के लिए बहुउपयोगी साबित होता है। इसका इस्तेमाल आप हफ्ते में एक बार कर सकते हैं।
ब्यूटी टिप्स /शौर्यपथ / आपके किचन में है ऐसी वस्तु जिससे आपके बाल और त्वचा बेहद खूबसूरत और स्वस्थ हो जाएंगे। हम बात कर रहे हैं बैकिंग सोडा की। भारतीय किचन की कई ऐसी डिश हैं जिनमें सोडे का इस्तेमाल जरूरी होता है इसलिए यह हर घर में पाया जाता है। बैकिंग सोड़ा असल में सोडियम बाइकार्बोनेट होता है। यह प्राकृतिक होता है और सफेद रंग के पाउडर में मिलता है।
आइए जानते है बैकिंग सोडा से होने वाले 10 फायदों के बारे में-
1. अगर चेहरे पर मुहांसों की समस्या है तो इसके लिए बैकिंग सोड़ा बहुत असरकारक है। इसके एंटीसेप्टिक और एंटीइफ्लेमैटोरी गुणों के कारण यह मौजूद मुंहासों के आकार को छोटा करता है तथा नए आने से रोकता है। बैकिंग सोड़े में त्वचा के पीएच को नियंत्रित रखने का गुण होता है जिससे त्वचा में आई खराबी से बचाव होता है।
2. बैकिंग सोडे के इस्तेमाल के लिए एक चम्मच सोड़ा लेकर पानी के साथ पेस्ट बनाकर उसे त्वचा पर 1 से 2 मिनट छोडऩा है और फिर ठंडे पानी से धो लेना है। इस पेस्ट का इस्तेमाल हर दिन एक बार अगले दो से तीन दिन करना चाहिए फिर इसे एक हफ्ते तक एक या दो बार कर देना चाहिए।
3. सफेद दांतों की चाहत रखने वाले लोगों के लिए बैकिंग सोड़ा बहुत कारगर उपाय है। बैकिंग सोड़ा दांतों पर से पीलेपन की परत हटा देता है। इसके साथ ही यह बैक्टेरिया द्वारा बनने वाले एसिड को हटाकर दांतों को प्लाक से बचाता है। इसके लिए आप अपने टूथब्रश पर टूथपेस्ट के साथ बैकिंग सोड़ा भी ले लीजिए और दो मिनिट तक ब्रश कीजिए। हर दिन एक बार कुछ दिन तक ऐसा करने से दांतों पर से पीलापन दूर हो जाएगा। ध्यान रहें कि ज्यादा मात्रा में बैकिंग सोड़ा के इस्तेमाल से बचें। किसी भी उपाय को कम दिन के लिए ही अपनाएं। ज्यादा समय तक इस्तेमाल करने से बैकिंग सोड़ा दांतों पर से प्राकृतिक एनामल की परत को हटा देगा।
4. बैकिंग सोड़ा अल्केलाइन प्रकृति का होता है और इसका धूप में झुलसी त्वचा पर बेहतरीन असर होता है। इसके इस्तेमाल से जलन और खुजली बंद हो जाती है। यह एंटीसेप्टीक होने के कारण सनबर्न में काफी असरकारक होता है। इसके लिए एक या दो चम्मच बैकिंग सोड़ा को एक कप पानी में घोल बनाकर एक साफ कपड़े को इस घोल में डुबाना चाहिए और उस जगह रखना चाहिए जहां धूप में त्वचा झुलस चुकी हो। इसे पांच से दस मिनट रहने दीजिए और दिन में दो से तीन बार यह उपयोग दोहराएं।
5. शरीर में त्वचा के रंग का एक जैसा न होना भी बहुत से लोगों को परेशान करता है। अगर आप चमकती त्वचा की इच्छा रखते है तो बैकिंग सोड़ा आपकी मदद कर सकता है। बैकिंग सोड़ा में डेड स्कीन को हटाने का गुण होता है इसके अलावा यह पीएच लेवल को भी संतुलित रखता है जिससे त्वचा खूबसूरत बनी रहती है।
6. इसके अलावा एक चम्मच बैकिंग सोड़ा और एक चम्मच नीबू ज्यूस में एक्स्ट्रा वर्जिन जैतून तेल की चार पांच बूंदे मिला लें। इस पेस्ट को चेहरे पर लगाएं। इसे पांच मिनट लगा रहने दें और फिर चेहरा ठंडे पानी से धो लें। एक हफ्ते में दो से तीन बार यह उपाय आजमाया जा सकता है।
7. गर्दन, कोहनी के कालेपन से परेशान है, तो एक चमच बैकिंग सोडा लें, इसमें नारियल तेल मिला लें। अब इस पेस्ट को अपने गर्दन और कोहनी पर लगाएं। इसका नियमित नहाने से पहले इस्तेमाल करें। कुछ दिनों में असर आपके सामने होंगे।
8. नाखून के रंग को लेकर अगर आप चिंतित है तो बैकिंग सोडे से बढ़कर कोई भी उपाय नही। बैकिंग सोडे में ब्लीचिंग और एक्सफोलिएटिंग गुण होते हैं जिससे नाखून का रंग सुधर जाता है।
9. आधा कप पानी, एक तिहाई चम्मच हाइड्रोजन पेरॉक्साइड और एक चम्मच बैकिंग सोड़ा को मिलाकर अच्छा घोल बना लें। अपने नाखून इस घोल में दो से तीन मिनट तक डूबो कर रखिए। पंद्रह दिन में एक बार यह उपाय आजमाया जा सकता है।
10. बैकिंग सोडा के विषय में खास बात यह है कि इसमें एंटीबैक्टेरियल, एंटीफंगल, एंटीसेप्टिक और एंटीइंफ्लेमैटोरी खूबियां होती हैं। इसके अलावा यह सर्दी जुकाम से लेकर, मुंह की दिक्कत और त्वचा संबंधी रोग से बचाव करता है।
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जीवनी /शौर्यपथ /28 मई 1883 को नासिक के भगूर गांव में जन्मे विनायक दामोदर सावरकर स्वतंत्रता सेनानी एवं प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे। जानिए उनके जीवन की ये 10 खास बातें-
* वीर सावरकर ने राष्ट्रध्वज तिरंगे के बीच में धर्म चक्र लगाने का सुझाव सर्वप्रथम दिया था जिसे राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने माना।
* उन्होंने ही सबसे पहले पूर्ण स्वतंत्रता को भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का लक्ष्य घोषित किया। वे ऐसे प्रथम राजनीतिक बंदी थे जिन्हें विदेशी (फ्रांस) भूमि पर बंदी बनाने के कारण हेग के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में मामला पहुंचा।
* वे पहले क्रांतिकारी थे जिन्होंने राष्ट्र के सर्वांगीण विकास का चिंतन किया तथा बंदी जीवन समाप्त होते ही जिन्होंने अस्पृश्यता आदि कुरीतियों के विरुद्ध आंदोलन शुरू किया।
* दुनिया के वे ऐसे पहले कवि थे जिन्होंने अंडमान के एकांत कारावास में जेल की दीवारों पर कील और कोयले से कविताएं लिखीं और फिर उन्हें याद किया। इस प्रकार याद की हुई 10 हजार पंक्तियों को उन्होंने जेल से छूटने के बाद पुन: लिखा।
* सावरकर द्वारा लिखित पुस्तक 'द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस-1857 एक सनसनीखेज पुस्तक रही जिसने ब्रिटिश शासन को हिला डाला था।
* विनायक दामोदर सावरकर दुनिया के अकेले स्वातंत्र्य-योद्धा थे जिन्हें 2-2 आजीवन कारावास की सजा मिली, सजा को पूरा किया और फिर से वे राष्ट्र जीवन में सक्रिय हो गए।
* वे विश्व के ऐसे पहले लेखक थे जिनकी कृति 1857 का प्रथम स्वतंत्रता को 2-2 देशों ने प्रकाशन से पहले ही प्रतिबंधित कर दिया।
* वे पहले स्नातक थे जिनकी स्नातक की उपाधि को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण अंग्रेज सरकार ने वापस ले लिया।
* वीर सावरकर पहले ऐसे भारतीय राजनीतिज्ञ थे जिन्होंने सर्वप्रथम विदेशी वस्त्रों की होली जलाई।
* वीर सावरकर पहले ऐसे भारतीय विद्यार्थी थे जिन्होंने इंग्लैंड के राजा के प्रति वफादारी की शपथ लेने से मना कर दिया। फलस्वरूप उन्हें वकालत करने से रोक दिया गया।
शौर्यपथ / अमरनाथ की गुफा श्रीनगर से करीब 145 किलोमीटर की दूरी हिमालय पर्वत श्रेणियों में स्थित है। समुद्र तल से 3,978 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह गुफा 150 फीट ऊंची और करीब 90 फीट लंबी है। अमरनाथ यात्रा की शुरुआत संभवत: जुलाई में शुरु होगी जो 22 अगस्त तक चल सकती है। लेकिन इस समय पर फेरबदल भी हो सकता है। यहां की यात्रा जुलाई माह में प्रारंभ होती है और यदि मौसम अच्छा हो तो अगस्त के पहले सप्ताह तक चलती है। आओ जानते हैं यात्रा संबंधी 6 हितायतें।
1. श्री अमरनाथ यात्रा 2021 का पंजीकरण करवाने के लिए भारत भर में बैंकों की नामित शाखाओं के माध्यम से पंजिकरण करवाकर ही यात्रा पर जाएं। पंजीकरण और यात्रा परमिट सबसे पहले आने वाले को सबसे पहले के आधार पर किया जाता है। 13 वर्ष उम्र से कम या 75 वर्ष से ऊपर और गर्भवती महिलाओं का पंजिकरण नहीं होता है। हर यात्री को आवेदन पत्र और अनिवार्य स्वास्थ्य प्रमाणपत्र यात्रा परमिट प्राप्त करने के लिए प्रस्तुत करना होता है। पंजीकरण के साथ ही यात्रियों को बीमा कवर मिलता है। इसके अलावा यात्रा के जोखिम को देखते हुए श्रद्धालु यात्रा पर निकलने से पहले अलग से बीमा करवा सकते हैं।
2. यात्रा पर जाने से पहले ठंड से बचने के लिए उचित कपड़े रख लें। कई बार ऐसा होता है कि जिन्हें ठंड बर्दाश्त नहीं होती है उनके लिए समस्या खड़ी हो जाती है। यात्रा में ज्यदा सामान नहीं ले जाएं बस जरूरत का सामान ही ले जाएं। जरूरी सामान में कंबल, छाता, रेल कोट, वाटरप्रूफ बूट, छड़ी, टार्च, स्लीपिंग बैग आदि रख लें। खाने के सामान में सूखे मेवे, टोस्ट, बिस्किट और पानी की बोतल जरूर रख लें। अपने सामान से लदे घोड़ों/खच्चरों और कुलियों के साथ ही रहें। पंजीकृत लेबर, खच्चर और पालकी वालों की सेवाएं ही लें।
3. अमरनाथ की यात्रा के मार्ग में कई लोगों का ऑक्सिजन की कमी महसूस होती है ऐसे में सावधानी बरतें। जिन लोगों में आयरन और कैल्शियम की होती हैं उनके शरीर में ऑक्सिजन लेवल भी जल्द ही घट जाता है। कई लोग इसके लिए कर्पूर का उपयोग भी करता है। कर्पूर को नाक के पास लगाकर सूंघा जाता है।
4. परिवार के साथ यात्रा कर रहे हैं तो यात्रा के सभी नियमों और रुट को अच्छे से समझ लें। तय समय पर ही यात्रा कैप पर पहुंच जाएं। यदि ग्रुप में यात्रा कर रहे हैं तो अपने ग्रुप से दूर ना हों, एकत्रित होकर ही यात्रा करें। फिट रहने के लिए यात्रा से कुछ दिन पूर्व प्रतिदिन 4-5 किलोमीटर सुबह-शाम सैर करें।
पहाड़ों पर यात्रा के लिए महिलाएं साड़ी के बजाय सलवार सूट या पैंट पहनें।
5. यात्रा करने के बाद अन्य कहीं घूमने का प्लान है तो राज्य के माहौल को अच्छे से समझ लें और अनुकूल स्थिति में ही अन्य किसी की यात्रा का निर्णय लें। संदिग्ध व्यक्ति या वस्तु की जानकारी तुरंत सुरक्षाकर्मियों को दें। खाली पेट यात्रा ना करें।
6. अमरनाथ यात्रा पर जाने के लिए 2 रास्ते हैं- एक पहलगाम होकर जाता है और दूसरा सोनमर्ग बालटाल से जाता है। यानी देशभर के किसी भी क्षेत्र से पहले पहलगाम या बालटाल पहुंचना होता है। इसके बाद की यात्रा पैदल की जाती है। सरकार द्वारा निर्धारित रास्ते से ही यात्रा करें। चेतावनी वाले स्थानों पर न रुकें, आगे बढ़ते रहें।
धर्म संसार /शौर्यपथ /लक्ष्मीजी 8 अवतार बताए गए हैं:- महालक्ष्मी, जो वैकुंठ में निवास करती हैं। स्वर्गलक्ष्मी, जो स्वर्ग में निवास करती हैं। राधाजी, जो गोलोक में निवास करती हैं। दक्षिणा, जो यज्ञ में निवास करती हैं। गृहलक्ष्मी, जो गृह में निवास करती हैं। शोभा, जो हर वस्तु में निवास करती हैं। सुरभि (रुक्मणी), जो गोलोक में निवास करती हैं और राजलक्ष्मी (सीता) जी, जो पाताल और भूलोक में निवास करती हैं।
अष्टलक्ष्मी माता लक्ष्मी के 8 विशेष रूपों को कहा गया है। माता लक्ष्मी के 8 रूप ये हैं- आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी। आओ जानते हैं कि विजयलक्ष्मी कौन है और माता का मंत्र क्या है।
विजयलक्ष्मी या जायालक्ष्मी :
1. विजया का मतलब है जीत। विजय या जया लक्ष्मी जीत का प्रतीक है। जो देवी धन क्षेत्र में जीत दिलाती है।
2. माता का स्वरूप एक लाल साड़ी पहने एक कमल पर बैठे, आठ हथियार पकड़े हुए रूप में दिखाई देता है। वर्ण गुलाबी आभा लिए हुए देह पर सुसज्जित हीरे, मोदी और रत्न जड़ित स्वर्ण आभूषण उनकी शोभा बढ़ाते हैं।
3. उनके हाथों में चक्र, शंख, कमल, तलवार, ढाल, भाल और एक हाथ की अभयमुद्रा और दूसरे की वर मुद्रा है।
4. संध्याकाल में ईशानमुखी होकर देवी की पंचोपचार से विधिवत पूजा करते हैं। गौघृत का दीप जलाएं, चंदन की अगरबत्ती जलाएं, गुलाब का फूल चढ़ाएं, अबीर लगाएं, साबूदाने की खीर का भोग लगाएं, तथा विशेष मंत्र से एक माला जपें और अंत में आरती करें।
5. मंत्र : ॐ क्लीं कनकधारायै नम:।।
धर्म संसार / शौर्यपथ / भगवान श्रीकृष्ण के कई बाल सखा थे। जैसे मधुमंगल, सुबाहु, सुबल, भद्र, सुभद्र, मणिभद्र, भोज, तोककृष्ण, वरूथप, श्रीदामा, सुदामा, मधुकंड, विशाल, रसाल, मकरन्द, सदानन्द, चन्द्रहास, बकुल, शारद और बुद्धिप्रकाश आदि। उद्धव और अर्जुन बाद में सखा बने। बलराम उनके बड़े भाई थे और सखा भी।
पुष्टिमार्ग के अनुसार अष्टसखाओं के नाम : कृष्ण की बाल एवं किशोर लीला के आठ आत्मीय संगी- कृष्ण, तोक, अर्जुन, ऋषभ, सुबल, श्रीदामा, विशाल और भोज। आओ जानते हैं इस बार मधुमंगल के बारे में संक्षिप्त जानकारी।
मधुमंगल :
1. मधुमंगल श्रीकृष्ण के बाल सखा थे जो गोकुल में रहते थे। मधुमंगल गरीब ब्राह्मण की संतान थे। मधुमंगल पौर्णमासी देवी का पौत्र और श्रीसांदीपनिजी का पुत्र था।
2. यह भगवान श्रीकृष्ण का प्रिय सखा और परम विनोदी था, इसीलिए उसे 'मसखरे मनसुखा' भी कहते थे। बाल कृष्ण जब भी कोई कार्य करते थे तो मधु मंगल की राय जरूर लेते थे।
3. एक बार मधुमंगल के श्रीकृष्ण का रूप धर लिया था ताकि सभी गोपियां उससे भी प्रेम कर सके और उसे भी लड्डू मिल सके। तभी वहां घोड़े का रूप धारण करके केशी दैत्य आ धमका। उसने सोच यही कृष्ण है तो वह मधुमंगल को मारने लगा तभी श्रीकृष्ण ने मधुमंगल को बचाकर उस दैत्य का वध कर दिया। इस घटना के बाद मधुमंगल ने कसम खा ली थी कि आज के बाद में कभी कृष्ण रूप नहीं धरूंगा। जहां यह घटना घटी थी उस स्थल को केशीघाट कहते हैं। इसी तरह ऐसी कई घटनाएं हैं जो मधुमंगल से जुड़ी हुई है।
4. भगवान कन्हैया ने अपने सभी सखाओं से कहा कि हम आज मधुमंगल के घर का भोजन करेंगे। यह सुनकर मधुमंगल अपने घर गया और अपनी माता पूरनमासी से कन्हैया के भोजन की व्यवस्था के लिए कहने लगा। इस पर बेचारी निर्धन माता की बोलीं- बेटा तुम तो जानते ही हो हमें एक समय का भोजन भी ठीक से नहीं मिल पाता है। इस पर मधुमंगल ने अपने घर में ढूंढ़ने पर पाया कि एक हांड़ी में तीन दिन पुरानी कड़ी रखी है। मधुमंगल ने सोचा कि दूध दही माखन को खाने वाले अपने प्यारे सखा को मैं ये नहीं खिला सकूंगा। इसलिए मधुमंगल उस कड़ी को झाड़ी में छुपकर अकेले ही पीने लगा, तभी वहां पर कन्हैया आ जाते हैं और छुपकर कड़ी पीने का कारण पूछते हैं। इस पर मधुमंगल ने सारा वृतांत सुनाया। यह सुनकर कन्हैया के प्रेमाश्रु बहने लगे।
5. मधु मंगल को भरपेट भोजन नहीं मिलता था इसीलिए वह दुबला पतला और कमजोर था। एक दिन बालकृष्ण ने मधुमंगल अर्थात मनसुखा के कंधे पर हाथ रखकर कहा कि मनसुखा तुम मेरे मित्र हो या नहीं? मनसुखा बोला, हां मैं तुम्हारा मित्र हूं। तब कन्हैया ने कहा कि ऐसा दुर्बल मित्र मुझे पसंद नहीं। तुम मेरे जैसे तगड़े हो जाओ।
यह सुनकर मनसुखा रोने लगा और बोला, कन्हैया तुम राजा के पुत्र हो। तुम्हारी माता तुम्हें रोज दूध और माखन खिलाती है। इससे तुम तगड़े हो गए हो। मैं तो गरीब हूं। मैंने कभी माखन नहीं खाया। मेरी मां मुझे छाछ ही देती है। यह सुनकर कन्हैया ने कहा कि मैं तुम्हें हर रोज माखन खिलाऊंगा। मनसुखा बोला यदि तुम हर रोज मुझे माखन खिलाओगे तो तुम्हारी मां क्रोधित हो जाएगी। तब कन्हैया कहते हैं कि अरे! अपने घर का नहीं, पर बाहर से कमाकर मैं तुम्हें खिलाऊंगा। इस प्रकार श्रीकृष्ण अपने मित्र के लिए माखन चोर बन गए।
खाना खजाना /शौर्यपथ /अगर आप कोई स्पेशल रेसिपी की तलाश में हैं, तो आप इस कुल्हड़ वाली खीर ट्राई कर सकते हैं-
सामग्री :
1 लीटर दूध
डेढ़ कप कप चावल
2 चम्मच बादाम
2 चम्मच पिस्ता
आधा चम्मच केसर
100 ग्राम चीनी
1 चम्मच किशमिश
1 चम्मच हरी इलायची का पाउडर
विधि :
सबसे पहले कुल्हड़ पानी में भिगोकर एक तरफ रख दें। चावलों को भी आधे घंटे के लिए पानी में भिगो दें।
एक बर्तन में दूध गरम करें और जब वह उबलने लगे तो उसमें चावल डाल दें। मध्यम आंच पर चावल और दूध के मिश्रण को पकाएं। लगातार इसे चलाते रहें और फिर ड्राई फ्रूटस भी डाल दें। ड्राई फ्रूट्स डालने के बाद एक बार फिर मिश्रण को चलाएं और कम आंच पर पकने दें।
अब इसमें थोड़ा सा केसर और इलायची पाउडर डालकर अच्छी तरह से चलाएं। 1 मिनट बाद गैस बंद कर दें और खीर को ठंडा होने दें।
ठंडी होने के बाद खीर को कुल्हड़ों में डालें और ऊपर से केसर और ड्राई फ्रूट्स डालकर सर्व करें। गार्निश करने के लिए आप चाहे तो इसमें ऊपर से आइसक्रीम स्कूप भी एड कर सकते हैं।
सेहत /शौर्यपथ / जिन लोगों ने कोरोना से हाल ही में जंग जीती है यानी रिकवर हो चुके हैं। उन्हें कुछ सावधानियां जरूर रखनी चाहिए, वरना पूरी तरह कोरोना से ठीक होने के बाद भी उन्हें कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। जैसे, रिकवर हुए लोगों को ज्यादा मात्रा में प्रोटीन, विटामिन और मिनरल्स की जरूरत है, ताकि उनकी सेहत फिर से पूरी तरह से ठीक हो सके।
इन बातों का रखें ध्यान-
कोविड-19 के लिए उचित व्यवहार का पालन करते रहें (मास्क, हाथों व सांस की
हाईज़ीन, शारीरिक दूरी)
- पर्याप्त मात्रा में गुनगुना पानी पिएं।
- डॉक्टरों द्वारा बताए गए इम्युनिटी बूस्टर लें।
- घर का काम एवं प्रोफेशनल काम को चरणबद्ध रूप से नियमित रूप से फिर शुरू
करें।
- संतुलित व पोषणयुक्त आहार लें, ताजा एवं आसानी से पचने वाला भोजन करें।
- पर्याप्त नींद लें एवं आराम करें।
- धूम्रपान व अल्कोहल लेने से बचें।
- कोविड-19 के लिए बताई गई दवाई नियमित तौर से लें और यदि कोई अन्य बीमारी हो, तो उसका इलाज करें।
- घर में खुद के स्वास्थ्य की जांच, जैसे तापमान लेना, ब्लड प्रेशर, खून में शुगर मापना (अगर डायबिटिक हैं, तो), पल्स ऑक्सीमीटर से ऑक्सीजन की जांच वगैरह (अगर डॉक्टर परामर्श दे) करते रहें।
- अगर लगातार सूखी खांसी/गला खराब बना हुआ है, तो नमक के पानी से गरारे करें और स्टीम लेते रहें। डॉक्टर के परामर्श से खांसी की दवाई लें।
- तेज बुखार, सांस फूलने, ऑक्सीजन लेवल 95 से कम होने, छाती में दर्द, ध्यान केंद्रित करने में कमजोरी के शुरुआती लक्षणों के प्रति सावधान रहें।
सेहत /शौर्यपथ /कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बीच ब्लैक फंगस,व्हाइट फंगस और यलो फंगस के मामले सामने आ रहे हैं। सोशल मीडिया पर इन फंगस को लेकर कई तरह की भ्रामक जानकारियां फैलाई जा रही हैं। जबकि, विशेषज्ञों को कहना है कि जितना इन्हें खतरनाक बताया जा रहा है ऐसा नहीं है। सतर्कता बरतने से इन फंगस से लड़ा जा सकता है। हालांकि, म्यूकर माइकोसिस (ब्लैक फंगस) कोरोना से ठीक हो चुके मरीजों में ज्यादा देखा जा रहा है। आइए जानते हैं कि इन फंगस को लेकर चल रहे भ्रम से आप कैसे बच सकते हैं।
नाक के जरिए फैलता है संक्रमण
- यह फंगस नाक के जरिये शरीर में प्रवेश करता है। वहां यह रक्तवाहिनी को बंद करता है।
- इससे उस क्षेत्र की रक्त की आपूर्ति बंद हो जाती है और नाक में भारीपन लगता है।
- यह नाक के पास ही साइनस में चला जाता है। साइनस वह खोखला हिस्सा होता है जो गाल के पास होता है।
- साइनस एयर नाक के पास ही आंख होती है। वहां से ये आंख में चल जाता है।
भाप लेने से नहीं फैलता ब्लैक फंगस
एम्स पटना की ईएनटी विभाग की अध्यक्ष डॉक्टर क्रांति ने बताया कि भाप लेने से म्यूकोर माइकोसिस होने का खतरा बढ़ जाता है, ऐसा नहीं है। सोशल मीडिया पर वायरल एक डॉक्टर के इस वीडियो के दावे के सवाल के जवाब में उन्होंने यह बात कही। इस वीडियो में कहा गया था कि लोग ज्यादा भाप ले रहे हैं इससे नाक के जरिए म्यूकोर शरीर में प्रवेश कर रहा है।
लंबे समय तक मास्क लगाने से नहीं फैलता
पीजीआई चंडीगढ़ के ईएनटी विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर रमनदीप विरक ने बताया कि लोगों को मास्क को बदलते रहना जरूरी है, लेकिन एक ही मास्क लंबे समय तक लगाने से लोगों को म्यूकोर माइकोसिस हो रहा है, यह गलत है।
शुगर के मरीज ध्यान रखें
इसका संक्रमण उन्हीं लोगों को होता है जो या तो शुगर के मरीज है और उनकी प्रतिरोधक क्षमता कम हो गई है। उन्होंने कहा कि ब्लड में शुगर की मात्रा अधिक हो और प्रतिरोधक क्षमता कम हो तो इस फंगस को आपके शरीर में भोजन मिल जाता है। यह हमारे आसपास ही मौजूद रहता है।
कूलर की हवा से नहीं फैलता
ब्लैक फंगस कूलर की हवा में नहीं फैलता। यह हवा में, पौधों में, बाथरूम में और हमारे आसपास ही हो सकता है लेकिन यह उससे एक दूसरे व्यक्ति को नहीं फैलता है। यह बहुत लोगों के शरीर के ऊपर भी हो सकता है, लेकिन संक्रमण उसी व्यक्ति को करता है जिसकी प्रतिरोधक क्षमता कम होती है।
ऐसा न करें
एम्स के ईएनटी विभाग के डॉक्टर कपिल सिक्का ने बताया कि कई लोग ऐसे भी आए, जिन्होंने मुंह से बीटाडीन के गार्गल करने की बजाय नाक में इसका इस्तेमाल किया। यह जानलेवा हो सकता है। उन्होंने कहा कि कोरोना के मरीजों को बीटाडीन गार्गल करने के लिए कहते हैं लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि नाक में इसका इस्तेमाल किया जाए।
-यह जरूर ध्यान रखें-
- शुगर का स्तर नियंत्रित रखें
- स्टेरॉइड का सेवन अच्छे डॉक्टर की सलाह पर ही करें
-प्रारम्भिक लक्षण होने पर डॉक्टर को दिखाएं
मरीजों में मृत्यु दर बढ़ सकती है : विशेषज्ञ
म्यूकर माइकोसिस (ब्लैक फंगस) से पीड़ित मरीजों में इस बार मृत्यु दर बढ़ सकती है। यह कहना है देश के सबसे बड़े संस्थानों के उन विशेषज्ञों का जो ऐसे मरीजों का इलाज कर रहे हैं। दिल्ली के ईएनटी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर कपिल सिक्का ने कहा कि कोरोना काल से पहले म्यूकोर माइकोसिस से पीड़ित मरीजों में 50 फीसदी तक मृत्यु दर देखी जाती थी लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण की वजह से यह बढ़ सकती है।
धर्म संसार /शौर्यपथ / वैदिक काल या पौराणिक भारत में भी समय-समय पर महामारी या संक्रमण का प्रकोप बना रहता था। इसी के चलते समाज में छुआछूत का प्रचलन भी बढ़ा। वर्तमान की अपेक्षा प्राचीनकाल में चिकित्सा सुविधाएं इतनी नहीं थी। ऐसे में जब कोई बीमारी, संक्रमण या महामारी फैलती थी तो लोग अपने अनुभव का उपयोग करके ही उससे बचने का उपाय करते थे। इसी अनुभव के आधार पर प्राचीनकालीन विद्वानों ने लोगों को बीमारी से बचाने के लिए या संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए सूतक-पातक के नियम बनाए। इसके अलावा भी साफ और स्वच्छ रहने के नियम भी बनाए। आयुर्वेद में वसंत ऋतु को कई गंभीर बीमारियों और रोगों का जनक माना गया है। वसंत ही नहीं किसी भी ऋतु परिवर्तन पर रोग और संक्रमण बढ़ जाता है। ऐसे में सावधानी रखने की आवश्यकता होती है। आओ जानते हैं उन्हीं नियमों को।
1. जन्म का संक्रमण : जन्म के अवसर पर जो नाल काटा जाता है और जन्म होने की प्रक्रिया के दौरान जो हिंसा होती है, उसमें लगने वाला दोष या पाप प्रायश्चित के रूप में पातक माना जाता है। इस दौरान भी संक्रमण का खतरा बना रहता है। बच्चे के जन्म के बाद महिला और बच्चे को एक कमरे में अलग कर दिया जाता था और साफ सफाई पर ज्यादा ध्यान दिया जाता था। जन्म संस्कार में मुंडन क्रिया तक संक्रमण से बचने के तौर तरीके अपनाए जाते थे।
प्रसूति नवजात की मां को 45 दिन का सूतक रहता है। प्रसूति स्थान 1 माह अशुद्ध माना जाता है। इसीलिए कई लोग अस्पताल से घर आते हैं तो स्नान करते हैं। पुत्री का पीहर में बच्चे का जन्म में 3 दिन का, ससुराल में जन्म दे तो उन्हें 10 दिन का सूतक रहता है। अगर परिवार की किसी स्त्री का गर्भपात हुआ है तो जितने माह का हुआ है उतने दिन का ही पातक माना जाएगा।
बच्चा पैदा होने के बाद महिला के शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। साथ ही, अन्य रोगों के संक्रमण के दायरे में आने के मौके बढ़ जाते हैं। इसलिए 10-40 दिनों के लिए महिला को बाहरी लोगों से दूरी बना कर रखा जाता है। जैसे ही बच्चा संसार के वातावरण में आता है तो कुछ बच्चों को बीमारियां जकड़ लेती हैं। शारीरिक कमजोरियां बढ़ने लगती है और कभी कभी बच्चों को डॉक्टर इंक्यूबेटर पर रखते हैं जिससे वो बाहरी प्रदूषित वातावरण से बचाया जा सके।
2. मरण का संक्रमण : गरुड़ पुराण के अनुसार परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु होने पर लगने वाले सूतक को 'पातक' कहते हैं। जैसे व्यक्ति की मृत्यु होने के पश्चात गोत्रज तथा परिजनों को विशिष्ट कालावधि तक अशुचित्व और अशुद्धि प्राप्त होता है, उसे सूतक कहते हैं। अशुचित्व अर्थात अमंगल और शुद्ध का विपरित अशुद्धि होता है।
मृत व्यक्ति के परिजनों को 10 दिन तथा अंत्यक्रिया करने वाले को 12 से 13 दिन (सपिंडीकरण तक) सूतक पालन कड़ाई से करना होता है। मूलत: यह सूतक काल सवा माह तक चलता है। सवा माह तक कोई किसी के घर नहीं जाता है। सवा माह अर्थात 37 से 40 दिन। 40 दिन में नक्षत्र का एक काल पूर्ण हो जाता है। घर में कोई सूतक (बच्चा जन्म हो) या पातक (कोई मर जाय) हो जाय 40 तक का सूतक या पातक लग जाता है।
3. अन्य कार्यों में संक्रमण : मरण के अवसर पर दाह सांसकार से हुई हिंसा का दोष या पाप प्रायश्चित स्वरूप पातक माना जाता है। इसी प्रकार दाढ़ी बनवाना और बाल कटवाने से भी संक्रामण का खतरा रहता है।
किसी की शवयात्रा में जाने को एक दिन, मुर्दा छूने को 3 दिन और मुर्दे को कन्धा देने वाले को 8 दिन की अशुद्धि मानी जाती है। घर में कोई आत्मघात करले तो 6 माह का पातक माना जाता है। छह माह तक वहां भोजन और जल ग्रहण नहीं किया जा सकता। वह मंदिर नहीं जाता और ना ही उस घर का द्रव्य मंदिर में चढ़ाया जाता है।
ताधूमसेवने सर्वे वर्णा: स्नान् आचरेयु:
वमने श्मशुकर्मणि कृते च।- विष्णु स्मृति
विष्णु स्मृति के अनुसार शमशान से लौट रहे हों, आपको उल्टी हो चुकी हो, दाढ़ी बनायी या बाल कटवाकर लौट रहे हों तो आपको घर में आकर सबसे पहले स्नान करना चाहिए। नहीं तो आपको संक्रमण का खतरा बना रहता है।
4. मासिक धर्म का संक्रमण : महिलाओं के मसिक चक्र के दौरान में संक्रमण का खतरा बना रहता है इसीलिए प्राचीनकाल से ही भारतीय परंपरा में महिलाओं को उक्त दिनों के दौरान अलग कर दिया जाता था। ऐसी महिलाएं घर में ना तो भोजन बना सकती है और ना ही वह घर के अन्य कोई कार्य कर सकती है। इस दौरान महिला को अलग रहकर ही अपना कार्य खुद ही करना होता था। उसे दूर से ही भोजन परोस दिया जाता था। उसके स्नान की व्यवस्था भी अलग ही होती थी।
5. ग्रहण का संक्रमण : ग्रहण और सूतक के पहले यदि खाना तैयार कर लिया गया है तो खाने-पीने की सामग्री में तुलसी के पत्ते डालकर खाद्य सामग्री को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है। ग्रहण के दौरान मंदिरों के पट बंद रखे जाते हैं। देव प्रतिमाओं को भी ढंककर रखा जाता है। ग्रहण के दौरान पूजन या स्पर्श का निषेध है। केवल मंत्र जाप का विधान है। ग्रहण के दौरान यज्ञ कर्म सहित सभी तरह के अग्निकर्म करने की मनाही होती है। ऐसा माना जाता है कि इससे अग्निदेव रुष्ट हो जाते हैं।
6. महामारी का संक्रमण : यदि किसी भी घर के सदस्य को ऐसा रोग हुआ जिससे दूसरों को भी रोग होने की संभावना है तो ऐसे सदस्य को घर से बाहर कुटिा बनाकर रहना होता था। कई परिस्थिति में तो ऐसे लोगों को गांव के बाहर उसकी व्यवस्था कर दी जाती थी। कई परिस्थिति में तो उसे घर के सदस्य रोगी को छोड़कर कहीं ओर चले जाते थे। ऐसे में रोगी को कई तरह के नियमों का पालन करना होता था जिसकी जानकारी उसे दे दी जाती थी।
भूपावहो महारोगो मध्यस्यार्धवृष्ट य:।
दु:खिनो जंत्व: सर्वे वत्सरे परिधाविनी।
अर्थात परिधावी नामक सम्वत्सर में राजाओं में परस्पर युद्ध होगा महामारी फैलेगी। बारिश असामान्य होगी और सभी प्राणी महामारी को लेकर दुखी होंगे।
बृहत संहिता में वर्णन आया है कि 'शनिश्चर भूमिप्तो स्कृद रोगे प्रीपिडिते जना' अर्थात जिस वर्ष के राजा शनि होते है उस वर्ष में महामारी फैलती है। विशिष्ट संहिता अनुसार पूर्वा भाद्र नक्षत्र में जब कोई महामारी फैलती है तो उसका इलाज मुश्किल हो जाता है। विशिष्ट संहिता के अनुसार इस महामारी का प्रभाव तीन से सात महीने तक रहता है।
7. बदलना होते हैं वस्त्र : शास्त्रों के कई जगह कहा गया है कि एक दिन से ज्याद वस्त्र को नहीं पहना चाहिए क्योंकि यह जीवाणु और विषाणु युक्त हो जाता है।
न अप्रक्षालितं पूर्वधृतं वसनं बिभृयात्।- विष्णु स्मृति
व्यक्ति को एक बार पहना गया कपड़ा धोए बिना फिर से धारण नहीं करना चाहिए।
8. गीले वस्त्र से शरीर को नहीं पोंछना चाहिए : शास्त्रों के अनुसार स्नान के बाद सूखे वस्थ या तौलिये से ही अंग को पोंछना चाहिए। गीले कपड़ों से शरीर को पोंछने से त्वचा के संक्रमण की संभावना बढ़ जाती।
अपमृज्यान्न च स्नातो गात्राण्यम्बरपाणिभि:।- मार्कण्डेय पुराण
9. सिर और मुंह ढककर ही करते थे ये कार्य : प्राचीनकाल में मलमूत्र त्यागने के स्थान घर से दूर होते थे। वहां पर भी वाधूल स्मृति और मनुस्मृति के अनुसार यह नियम थे कि ऐसा करते समय नाक, मुंह और सिर ढका रहना चाहिए क्योंकि उक्त स्थान पर संक्रमण फैलने का खतरा रहता है।
घ्राणास्ये वाससाच्छाद्या मलमूत्रं त्यजेत् बुध:।
नियम्य प्रयतो वाचं संवीतांगोस्वगुण्ठित:।- वाधूल स्मृति
10. हनव क्रिया : कभी कभी जब परिवार में सारी प्रक्रियाओं का अनुसरण होने पर भी संक्रमण की संभावनाएं बरकरार रहती है इसलिए अंतिम शस्त्र के रूप में हवन किया जाता है। हवन होने के बाद घर का वातावरण शुद्ध हो जाता है और सूतक-पातक प्रक्रिया की मीयाद भी पूरी हो जाती है।
सभी तरह के संक्रमण से बचने के लिए प्राचीन काल में हमारे ऋषि मुनियों ने कुछ नियम बनाए थे जिसमें भोजन के नियम, उपवास के नियम, स्नान के नियम और शयन के नियम भी शामिल है। प्रकृति परिवर्तन की बेला को ही नववर्ष कहा गया है। इसी को ध्यान में रखते हुए नवरात्र के 9 दिन तय किए गए। इस दौरान उपवास के साथ ही पवित्र और सात्विक भोजन करने से शक्ति और शुद्धि बनी रहती है।
भारतीय संस्कृति में हाथ मिलाने की नहीं नमस्कार करने की परंपरा भी इसी कारण जन्मी है। शाकाहार को महत्व देना, संध्याकाल के पूर्व ही भोजन कर लेना और प्रात:काल जल्दी उठकर संध्यावंदन करना या योग ध्यान करना भी सभी तरह के रोग से बचने का ही उपाय है। इसके साथ ही आयुर्वेद के अनुसार जीवन यापन करने की सलाह दी जाती है।
आस्था / शौर्यपथ /हिन्दू माह के अनुसार नारद जयंती हर वर्ष ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाई जाती है। अंग्रेजी माह के अनुसार इस पर 27 मई 2021 गुरुवार को यह जयंती मनाई जाएगी। आओ जानते हैं कि नारदजी का जन्म कैसे हुआ था।
ब्रह्मा के मानस पुत्र : हिन्दू मान्यताओं के अनुसार नारद मुनि का जन्म सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी की गोद से हुआ था। ब्रह्मवैवर्तपुराण के मतानुसार ये ब्रह्मा के कंठ से उत्पन्न हुए थे। नारदमुनि को ब्रह्मा का मानस पुत्र माना जाता है।
एक अन्य कथा के अनुसार दक्षपुत्रों को योग का उपदेश देकर संसार से विमुख करने पर दक्ष क्रुद्ध हो गए और उन्होंने नारद का विनाश कर दिया। फिर ब्रह्मा के आग्रह पर दक्ष ने कहा कि मैं आपको एक कन्या दे रहा हूं, उसका कश्यप से विवाह होने पर नारद पुनः जन्म लेंगे।
पुराणों में ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि राजा प्रजापति दक्ष ने नारद को शाप दिया था कि वह दो मिनट से ज्यादा कहीं रुक नहीं पाएंगे। यही वजह है कि नारद अक्सर यात्रा करते रहते हैं। अथर्ववेद में भी अनेक बार नारद नाम के ऋषि का उल्लेख है। भगवान सत्यनारायण की कथा में भी उनका उल्लेख है।
यह भी कहते हैं कि दक्ष प्रजापति के 10 हजार पुत्रों को नारदजी ने संसार से निवृत्ति की शिक्षा दी जबकि ब्रह्मा उन्हें सृष्टिमार्ग पर आरूढ़ करना चाहते थे। ब्रह्मा ने फिर उन्हें शाप दे दिया था। इस शाप से नारद गंधमादन पर्वत पर गंधर्व योनि में उत्पन्न हुए। इस योनि में नारदजी का नाम उपबर्हण था। यह भी मान्यता है कि पूर्वकल्प में नारदजी उपबर्हण नाम के गंधर्व थे। कहते हैं कि उनकी 60 पत्नियां थीं और रूपवान होने की वजह से वे हमेशा सुंदर स्त्रियों से घिरे रहते थे। इसलिए ब्रह्मा ने इन्हें शूद्र योनि में पैदा होने का शाप दिया था।
इस शाप के बाद नारद का जन्म शूद्र वर्ग की एक दासी के यहां हुआ। जन्म लेते ही पिता के देहान्त हो गया। एक दिन सांप के काटने से इनकी माताजी भी इस संसार से चल बसीं। अब नारद जी इस संसार में अकेले रह गए। उस समय इनकी अवस्था मात्र पांच वर्ष की थी। एक दिन चतुर्मास के समय संतजन उनके गांव में ठहरे। नारदजी ने संतों की खूब सेवा की। संतों की कृपा से उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ। समय आने पर नारदजी का पांचभौतिक शरीर छूट गया और कल्प के अन्त में ब्रह्माजी के मानस पुत्र के रूप में अवतीर्ण हुए।
लाइफस्टाइल /शौर्यपथ / शादी करते ही लड़कियों का न सिर्फ घर बदलता है बल्कि बेटी से बहू बनते ही उनकी कई आदतों में भी तुरंत कई नए बदलाव देखने को मिलने लगते हैं। लड़कियों में आए इन बदलावों की वजह से कई बार दोस्त या परिजन तक हैरानी में पड़ जाते हैं कि यह वही लड़की है या फिर कोई और। अगर आपकी भी जल्द शादी होने वाली है तो पहले से ही जान लें वो कौन से ऐसे बड़े बदलाव हैं जो शादी के तुरंत बाद हर लड़की में देखने को मिलते हैं।
-जिम्मेदार बन जाती हैं लड़कियां-
शादी से पहले बेफ्रिकी का दामन ओढ़े रहने वाली लड़की शादी के तुरंत बाद एक जिम्मेदार लड़की बन जाती है। उसे खुद-ब-खुद अपनी जिम्मेदारियों का अहसास होने लगता है। वो परिवार की जरूरत का ध्यान रखने से लेकर घर के हिसाब-किताब की जिम्मेदारी भी बखूबी निभाने लगती है।
करियर-
शादी के साथ जिम्मेदारी भी आती हैं। शादी से पहले हर लड़की अपने करियर पर बहुत फोकस रहती है लेकिन शादी के तुरंत बाद परिवार उनकी पहली प्राथमिकता बन जाता है। घर की जिम्मेदारियों और बच्चों को संभालते हुए उनका करियर उनके लिए न चाहते हुए भी दूसरे नंबर पर आ जाता है।
पैसे बचाने का हुनर-
कुछ वक्त पहले तक जो लड़की पैसे खर्च करते समय एक बार के लिए भी नहीं सोचा करती था वो अचानक से शादी के बाद अपने खर्चों में कटौती करके परिवार की जरूरतों को पहले ध्यान में रखकर खर्च करने लग जाती है।
कम हो जाता है बाहर घूमना-फिरना-
शादी से पहले जिस लड़की को दोस्तों के साथ पार्टी में जाना, घूमना-फिरना पसंद होता है शादी के बाद उसकी प्राथमिकताएं बदल जाती हैं। उसके लिए उसकी पहली प्राथमिकता अब अपने परिवार के साथ वक्त बिताना हो जाता है।
अपने हर फैसले में परिवार को शामिल करना-
शादी के बाद लड़कियां पहले से ज्यादा जिम्मेदार और परिवार के लिए समर्पित हो जाती हैं। शादी से पहले अपना हर फैसला खुद लेने वाली लड़की शादी के बाद अपने हर फैसले में अपने पति और परिवार को शामिल करना बिल्कुल नहीं भूलती।
सेहत /शौर्यपथ / लॉकडाउन के दौरान ज्यादातर लोगों का बाहर आना-जाना बहुत कम हो गया जिसके चलते उनकी फिटनेस प्रभावित हुई। ज्यादातर लोगों का वजन बढ़ गया, ऐसे में कई बीमारियों का खतरा सताने लगता है, अगर आप भी वजन या बैली फैट घटाने के बारे में सोच रहे हैं, तो आप अलसी का इस्तेमाल शुरू कर दें।
गुणों से भरी है अलसी
अलसी के बीज में प्रोटीन, फाइबर, हेल्दी फैट, कैल्शियम, ओमेगा-3 फैटी एसिड जैसे पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। यह इम्युनिटी को मजबूत बनाता है जबकि इसमें पाए जाने वाला फाइबर पाचन एवंमेटाबोलिज्म को सुधारता है। कच्चे आम की चटनी, घिया की सब्जी, ओटमील में अलसी के बीज का उपयोग किया जा सकता है। इसके अलावा अलसी के भूने बीज या पाउडर का सेवन करने से भी वजन घटता है।
ऐसे वजन कम करती है अलसी
वजन घटाने में अलसी बीज में मौजूद डायटरी फाइबर आपकी मदद कर सकता है। फ्लेक्स सीड पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि रोजाना 30 ग्राम फाइबर शरीर से अतिरिक्त चर्बी को हटा सकता है। शोध में यह भी पाया गया है कि हाई फाइबर युक्त डाइट न सिर्फ वजन, बल्कि टाइप 2 डायबिटीज और हृदय रोग के जोखिम को भी कम कर सकती है। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार डायटरी फाइबर का सेवन करने से मोटापा दूर किया जा सकता है। रिपोर्ट बताती है कि फाइबर और बॉडी फैट के बीच विपरित संबंध है, यानी अधिक फाइबर युक्त भोजन का सेवन आपके वजन को नियंत्रित करने में मदद करेगा
वजन घटाने के सभी कारगर तरीकों में अलसी एक प्रभावी उपाय है, जो शरीर से अतिरिक्त चर्बी को निकालने में मदद कर सकती है। अलसी के बीज उन सभी खाद्य पदार्थों से समृद्ध होते हैं, जिनकी जरूरत वजन घटाने के लिए होती है, जैसे फाइबर, ओमेगा 3 फैटी एसिड और एंटीऑक्सीडेंट आदि। नीचे जानिए कि अलसी में मौजूद औषधीय गुण किस प्रकार वजन कम करने में योगदान कर सकते हैं। ऐसे में अगर आप तेजी से वजन घटाना चाहते हैं, तो रोजाना अलसी का सेवन शुरू कर दीजिए, इससे आप 10 दिनों में लगभग पांच किलो तक वजन घटा सकते हैं।
अलसी के फायदे-
-अलसी में मौजूद एंटी-ऑक्सीडेंट्स और फाइटोकैमिकल्स, बढ़ती उम्र के लक्षणों को कम करती है, जिससे त्वचा पर झुर्रियां नहीं होती और कसाव बना रहता है। इससे त्वचा स्वस्थ व चमकदार बनती है।
-अलसी में अल्फा लाइनोइक एसिड पाया जाता है, जो ऑथ्राईटिस, अस्थमा, डाइबिटीज और कैंसर से लड़ने में मदद करता है। खास तौर से कोलोन कैंसर से लड़ने में यह सहायक होता है।
-सीमित मात्रा में अलसी का सेवन, खून में शर्करा के स्तर को नियंत्रित करता है। इससे शरीर के आंतरिक भाग स्वस्थ रहते हैं, और बेहतर कार्य करते हैं।
-इसमें उपस्थित लाइगन नामक तत्व, आंतों में सक्रिय होकर, ऐसे तत्व का निर्माण करता है, जो फीमेल हार्मोन्स के संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
-अलसी के तेल की मालिश से शरीर के अंग स्वस्थ होते हैं, और बेहतर तरीके से कार्य करते हैं। इस तेल की मसाज से चेहरे की त्वचा कांतिमय हो जाती है।
-शाकाहारी लोगों के लिए अलसी, ओमेगा-3 का बेहतर विकल्प है, क्योंकि अब तक मछली को ओमेगा-3 का अच्छा स्त्रोत माना जाता था,जिसका सेवन नॉन-वेजिटेरियन लोग ही कर पाते हैं।
-अलसी में ओमेगा-3 भरपूर मात्रा में पाया जाता है जो रक्त प्रवाह को बेहतर कर, खून के जमने या थक्का बनने से रोकता है, जो हार्ट-अटैक का कारण बनता है। यह रक्त में मौजूद कोलेस्ट्रॉल को कम करने में भी सहायक है।