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शौर्यपथ / हिन्दू पंचांग अनुसार प्रत्येक माह में पांच ऐसे दिन आते हैं जिसमें कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। ऐसी भी मान्यता या धारणा है कि इन दिनों में मरने वाले व्यक्ति परिवार के अन्य पांच लोगों को भी साथ ले जाते हैं। आओ जानते हैं पंचक के पांच रहस्य।
1. पंचक क्या है : ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चन्द्र ग्रह का धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण और शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद तथा रेवती नक्षत्र के चारों चरणों में भ्रमण काल पंचक काल कहलाता है। इस तरह चन्द्र ग्रह का कुम्भ और मीन राशी में भ्रमण पंचकों को जन्म देता है।
पंचक के नक्षत्रों का प्रभाव:-
1. धनिष्ठा नक्षत्र में अग्नि का भय रहता है।
2. शतभिषा नक्षत्र में कलह होने की संभावना रहती है।
3. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में रोग बढ़ने की संभावना रहती है।
4. उतरा भाद्रपद में धन के रूप में दंड होता है।
5. रेवती नक्षत्र में धन हानि की संभावना रहती है।
2. पंचक में नहीं करते हैं ये पांच कार्य:-
'अग्नि-चौरभयं रोगो राजपीडा धनक्षतिः।
संग्रहे तृण-काष्ठानां कृते वस्वादि-पंचके।।'-मुहूर्त-चिंतामणि
अर्थात:- पंचक में तिनकों और काष्ठों के संग्रह से अग्निभय, चोरभय, रोगभय, राजभय एवं धनहानि संभव है।
1.लकड़ी एकत्र करना या खरीदना, 2. मकान पर छत डलवाना, 3. शव जलाना, 4. पलंग या चारपाई बनवाना और दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना।
समाधान : यदि लकड़ी खरीदना अनिवार्य हो तो पंचक काल समाप्त होने पर गायत्री माता के नाम का हवन कराएं। यदि मकान पर छत डलवाना अनिवार्य हो तो मजदूरों को मिठाई खिलने के पश्चात ही छत डलवाने का कार्य करें। यदि पंचक काल में शव दाह करना अनिवार्य हो तो शव दाह करते समय पांच अलग पुतले बनाकर उन्हें भी आवश्य जलाएं। इसी तरह यदि पंचक काल में पलंग या चारपाई लाना जरूरी हो तो पंचक काल की समाप्ति के पश्चात ही इस पलंग या चारपाई का प्रयोग करें। अंत में यह कि यदि पंचक काल में दक्षिण दिशा की यात्रा करना अनिवार्य हो तो हनुमान मंदिर में फल चढ़ाकर यात्रा प्रारंभ कर सकते हैं। ऐसा करने से पंचक दोष दूर हो जाता है।
3. पंचक के प्रकार जानिए:-
1.रविवार को पड़ने वाला पंचक रोग पंचक कहलाता है।
2.सोमवार को पड़ने वाला पंचक राज पंचक कहलाता है।
3.मंगलवार को पड़ने वाला पंचक अग्नि पंचक कहलाता है।
4.शुक्रवार को पड़ने वाला पंचक चोर पंचक कहलाता है।
5.शनिवार को पड़ने वाला पंचक मृत्यु पंचक कहलाता है।
6.इसके अलावा बुधवार और गुरुवार को पड़ने वाले पंचक में ऊपर दी गई बातों का पालन करना जरूरी नहीं माना गया है। इन दो दिनों में पड़ने वाले दिनों में पंचक के पांच कामों के अलावा किसी भी तरह के शुभ काम किए जा सकते हैं।
4. पंचक में मौत का समाधान:-
गरुड़ पुराण सहित कई धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि यदि पंचक में किसी की मृत्यु हो जाए तो उसके साथ उसी के कुल खानदान में पांच अन्य लोगों की मौत भी हो जाती है।
शास्त्र-कथन है-
'धनिष्ठ-पंचकं ग्रामे शद्भिषा-कुलपंचकम्।
पूर्वाभाद्रपदा-रथ्याः चोत्तरा गृहपंचकम्।
रेवती ग्रामबाह्यं च एतत् पंचक-लक्षणम्।।'
आचार्यों के अनुसार धनिष्ठा से रेवती पर्यंत इन पांचों नक्षत्रों की क्रमशः पांच श्रेणियां हैं- ग्रामपंचक, कुलपंचक, रथ्यापंचक, गृहपंचक एवं ग्रामबाह्य पंचक।
ऐसी मान्यता है कि यदि धनिष्ठा में जन्म-मरण हो, तो उस गांव-नगर में पांच और जन्म-मरण होता है। शतभिषा में हो तो उसी कुल में, पूर्वा में हो तो उसी मुहल्ले-टोले में, उत्तरा में हो तो उसी घर में और रेवती में हो तो दूसरे गांव-नगर में पांच बच्चों का जन्म एवं पांच लोगों की मृत्यु संभव है।
मान्यतानुसार किसी नक्षत्र में किसी एक के जन्म से घर आदि में पांच बच्चों का जन्म तथा किसी एक व्यक्ति की मृत्यु होने पर पांच लोगों की मृत्यु होती है। मरने का कोई समय नहीं होता। ऐसे में पांच लोगों का मरना कुछ हद तक संभव है, परंतु उत्तरा भाद्रपदा को गृहपंचक माना गया है और प्रश्न है कि किसी घर की पांच औरतें गर्भवती होंगी तभी तो पांच बच्चों का जन्म संभव है।
पंचक में जन्म-मरण और पांच का सूचक है। जन्म खुशी है और गृह आदि में विभक्त इन नक्षत्रों के तथाकथित फल पांच गृहादि में होने वाले हैं, तो स्पष्ट है कि वहां विभिन्न प्रकार की खुशियां आ सकती हैं। पांच मृत्युओं का अभिप्राय देखें तो पांच गृहादि में रोग, कष्ट, दुःख आदि का आगम हो सकता है। कारण व्यथा, दुःख, भय, लज्जा, रोग, शोक, अपमान तथा मरण- मृत्यु के ये आठ भेद हैं। इसका मतलब यह कि जरूरी नहीं कि पांच की मृत्यु ही हो पांच को किसी प्रकार का कोई रोग, शोक या कष्ट हो सकता है।
5. पंचक का उपाय:-
'प्रेतस्य दाहं यमदिग्गमं त्यजेत् शय्या-वितानं गृह-गोपनादि च।'- मुहूर्त-चिंतामणि
पंचक में मरने वाले व्यक्ति की शांति के लिए गरुड़ पुराण में उपाय भी सुझाए गए हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार पंचक में शव का अंतिम संस्कार करने से पहले किसी योग्य विद्वान पंडित की सलाह अवश्य लेनी चाहिए। यदि विधि अनुसार यह कार्य किया जाए तो संकट टल जाता है। दरअसल, पंडित के कहे अनुसार शव के साथ आटे, बेसन या कुश (सूखी घास) से बने पांच पुतले अर्थी पर रखकर इन पांचों का भी शव की तरह पूर्ण विधि-विधान से अंतिम संस्कार किया जाता है। ऐसा करने से पंचक दोष समाप्त हो जाता है।
दूसरा यह कि गरुड़ पुराण अनुसार अगर पंचक में किसी की मृत्यु हो जाए तो उसमें कुछ सावधानियां बरतना चाहिए। सबसे पहले तो दाह-संस्कार संबंधित नक्षत्र के मंत्र से आहुति देकर नक्षत्र के मध्यकाल में किया जा सकता है। नियमपूर्वक दी गई आहुति पुण्यफल प्रदान करती हैं। साथ ही अगर संभव हो दाह संस्कार तीर्थस्थल में किया जाए तो उत्तम गति मिलती है।
आस्था / शौर्यपथ / प्रकृति में ग्रहों और नक्षत्रों की गति का मौसम परिवर्तन में बहुत बड़ा योगदान है। जिस तरह मीन सक्रांति (लगभग 15 मार्च) में सूर्य के संचरण से गर्मी का आगमन निर्धारित होता है उसी प्रकार कन्या राशि (लगभग 15 सितंबर) में सूर्य होने पर शरद ऋतु के आगमन की सूचना मिलती है। प्रकृति की घटनाओं का संबंध ग्रहों नक्षत्रों की चाल से निर्धारित होती है। मई में दो भयानक चक्रवात आए इसमें भी ग्रह-नक्षत्रों का योगदान है। 18 मई से 30 मई तक चंद्र ग्रहण, ग्रहों का वक्रीत्व,राशि परिवर्तन, उदय-अस्त सहित विभिन्न परिवर्तन हुए।
क्या है नौतपा: जब भी सूर्य का रोहिणी नक्षत्र में संचरण होता है। वह समय नौतपा का कहलाता है। इस वर्ष नौतपा 25 मई से आरंभ हो चुका है और आठ जून तक रहेगा। माना जाता है कि नौतपा अवधि में सूर्य अपनी प्रचण्ड किरणों से तपता है और यही 10-12 दिन की अवधि मानसून की गति और उसके फैलाव का निर्धारण करते हैं। फिलहाल सूर्य अपनी प्रचंड गर्मी से तप रहा है। एक जून के बाद थोड़ा बहुत मौसम में परिवर्तन हो सकता है, लेकिन अधिकतर क्षेत्रों में सूर्य की प्रचण्डता बनी रहेगी। सूर्य की इसी प्रचण्डता के मध्य मानसून का आरंभ होता है। ज्योतिषीय दृष्टिकोण से देखें तो बरसात का मौसम किसानों के अनुकूल रहेगा और समय-समय पर पर्याप्त वर्षा होती रहेगी। मौसम शास्त्र में उल्लेख है कि नौतपा की अवधि पूरी होने के 20-25 दिन के आसपास पूरे भारत में मानसून सक्रिय हो जाता है। आठ मई को नौतपा खत्म होगा। यानी 28 जून से तीन जुलाई तक मानसून देश में छा सकता है।
शौर्यपथ / बात जब तीखे मसालेदार चटपटे खाने की होती है तो राजस्थान का नाम सबसे पहले लिया जाता है। राजस्थान के बारे में कहा जाता है कि यहां के कुछ पकवान ऐसे हैं जिन्हें जिंदगी में एक बार हर व्यक्ति को जरूर टेस्ट करना चाहिए। इसी लिस्ट में राजस्थानी पकौड़ा कढ़ी का नाम भी शामिल है। तो आइए जान लेते हैं कैसे बनाई जाती है यह झटपट बनने वाली चटपटी कढ़ी।
राजस्थानी कढ़ी बनाने के लिए सामग्री-
-50 ग्राम बेसन
- 250 छाछ
- स्वादानुसार नमक
-1/2 लीटर पानी
राजस्थानी कढ़ी के पकौड़े बनाने के लिए सामग्री-
-1 कप बेसन
- 2 टेबल-स्पून बारीक कटा हुआ हरा धनिया
- एक छोटा स्पून हल्दी पाउडर
- एक चुटकी बेकिंग सोडा
- 1 टी-स्पून ज़ीरा
- थोड़ी सी बारीक कटी हुई हरी मिर्च
- नमक स्वाद अनुसार
- पकौड़े तलने के लिए तेल
कढ़ी में छोंक लगाने के लिए सामग्री-
-1 बड़ा चम्मच तेल
- 1 छोटा चम्मच राई
- थोड़े से कढ़ी पत्ते
- 1 छोटा चम्मच पिसी हुई लाल मिर्च
- 3 साबुत लाल मिर्च सूखी हुई
राजस्थानी पकौड़ा कढ़ी बनाने की विधि-
राजस्थानी पकौड़ा कढ़ी बनाने के लिए सबसे पहले एक भारी तले वाले बर्तन में बेसन और छाछ डालकर अच्छी तरह उसे मथ लें ताकि कढ़ी के घोल में बेसन की गुठली न रह जाए। अब इसमें पानी डालकर तेज आंच पर 1 उबाल आने तक लगातार चलाते रहें। अंत में इसमें स्वादानुसार नमक डाल दीजिए।
कैसे बनाएं कढ़ी के पकौड़े?
कढ़ी के पकौड़े बनाने के लिए सभी सामग्री को पानी के साथ एक बाउल में डालकर अच्छी तरह मिला लें। अब एक नॉन-स्टिक कढ़ाई में तेल गरम करें और चम्मच से घोल डालते हुए थोड़े-थोड़े पकौड़े को मध्यम आंच पर उनके सभी तरफ से सुनहरा होने तक तल लें। अंत में तेल सोखने वाले कागज पर पकौड़े निकालकर रख दें।
राजस्थानी कढ़ी में ऐसे लगाएं तड़का-
एक कढ़ाई में तेल गरम करें जिसमें दालचीनी, लौंग, लाल मिर्च, सौंफ, धनिया, ज़ीरा, मेथी दानें, कड़ी पत्ता और लाल मिर्च पाउडर डालकर मध्यम आंच पर कुछ देर तक भुन लें फिर इसमें कढ़ी डालकर इसे अच्छी तरह मिला दें। आपकी राजस्थानी पकौड़ा कढ़ी बनकर तैयार है। आप चाहे तो इस गर्मा-गर्म राजस्थानी कढ़ी को चूरमा, दाल-बाटी या फिर चावल,रोटी और परांठे के साथ परोस सकती हैं।
ब्यूटी /शौर्यपथ / स्किन को फ्लोलेस, चमकदार और स्वस्थ बनाने के लिए कई तरह के स्किन केयर रूटीन हैं जिन्हें आप फॉलो करते होंगे। कई लोग पार्लर जा कर ब्यूटी सर्विस का ऑपशन चुनते हैं, तो कई लोग घर में ही स्किन केयर रूटीन को फॉलो करते हैं। लॉकडाउन के चलते पार्लर जा कर ब्यूटी सर्विस लेने वाले लोग परेशान है। लॉकडाउन की वजह से सभी तरह की ब्यूटी सर्विस बंद हैं। ऐसे में जानते हैं कि घर में रह कर कैसे स्किन को स्वस्थ रखा जा सकता है। स्किन को स्वस्थ रखने के लिए दो समय का स्किन केयर रूटीन हमे जरूर फॉलो करना चाहिए। आइए जानते है स्किन केयर रूटीन के बारे में...
स्किन केयर डे रूटीन
स्टेप 1- सबसे पहले अपने चहरे को ठंडे पानी से धोएं।
स्टेप 2- अब अपने चेहरे को फेस वॉश से साफ करें क्योंकि यह आपकी स्किन से गंदगी को हटाने में मदद करेगा।
स्टेप 3- इसके बाद अपने चेहरे को गुलाब जल या एलोवेरा जेल से टोन करें। ड्राइ स्किन वाले त्वचा के लिए ऑर्गेनिक टोनर चुनने की कशिश करें।
स्टेप 4- अब एक मॉइस्चराइजर लें और इसे पूरे चेहरे और गर्दन पर लगाएं, ऐसा करने से आपकी स्किन को हाइड्रेशन और नमी मिलेगी।
स्किन केयर नाइट रूटीन
स्टेप 1- सबसे पहले अपने चेहरे को फेस वॉश से साफ करें ताकि स्किन से गंदगी को हटाने में मदद मिले।
स्टेप 2- अगर चेहरे पर मेकअप है तो नारियल के तेल या फिर किसी ऑरगेनिक मेकअप रिमुवर से साफ करें।
स्टेप 3- चेहरे से डेड स्किन को हटाने के लिए चेहरे पर कॉफी या फिर ब्राउन शुगर का इस्तेमाल करें। इसे आप हफ्ते में दो बार जरूर करें।
स्टेप 4- अब आप अपनी नाइट क्रीम का इस्तेमाल करें।
अगर आपकी स्किन सेंसिटिव है, तो अपने डॉक्टर की सलाह से ही रूटीन को फॉलो करें।
खाना खजाना / शौर्यपथ / भारत में शायद ही कोई होगा जिसने बिहार के लिट्टी-चोखा का स्वाद नहीं चखा होगा। लिट्टी-चोखा बिहार का एक फेमस फूड है। पर क्या आप जानते हैं जिस तरह बिहार में वेज पसंद करने वाले लोगों के बीच लिट्टी-चोखा काफी पसंद किया जाता है, ठीक उसी तरह लगभग पूरे भारत में नॉनवेज के शौकीन लोगों के बीच पश्चिम चंपारण जिले का 'चंपारण मटन करी' फेमस है। इस डिश की खासियत यह है कि यह बनने में जितनी आसान होती है खाने में उतनी ही टेस्टी भी होती है। तो आइए जान लेते हैं कैसे बनाई जाती है यह बिहार फेमस डिश 'चंपारण मटन करी'।
चंपारण मटन करी बनाने के लिए सामग्री-
-मटन-500 ग्राम
-प्याज-300 ग्राम
-लहसुन साबुत-2
-अदरक-लहसुन पेस्ट-3 चम्मच
-नमक-स्वादानुसार
-धनिया-हल्दी पाउडर-2 चम्मच
-मिर्च और गरम मसाला पाउडर-2 चम्मच
-साबुत गरम मसाला-1 चम्मच
-सरसों तेल-1 कप
-सौंफ पाउडर-1/2 चम्मच
-दालचीनी-1 चम्मच
-तेजपत्ता-2
-जीरा-1/2 चम्मच
-काली मिर्च-लौंग-1/2 चम्मच
-धनिया पत्ता-1 चम्मच
-दही-1/2 कप
चंपारण मटन करी बनाने की विधि-
चंपारण मटन करी बनाने के लिए सबसे पहले मटन को अच्छे से साफ करके किसी बर्तन में में रख लें। इसके बाद एक कढ़ाई में तेल गरम करके उसमें जीरा-तेज पत्ता, प्याज, गरम मसाला, अदरक-लहसुन पेस्ट और नमक डालकर एक मिनट पकाएं। एक मिनट बाद इसमें मटन के साथ हल्दी पाउडर आदि सामान को डालकर कुछ देर पकाने के लिए छोड़ दें। लगभग 15 मिनट बाद इसमें दही के साथ काली मिर्च, गरम मसाला और लौंग को डालकर दीजिए और एक बार चलाकर मटन को ढक दें। लगभग 20 मिनट पकने के बाद गैस को बंद करके ऊपर से धनिया पत्ता डालकर कुछ देर बाद खाने के लिए सर्व करें।
गेजेट्स /शौर्यपथ / शाओमी गजब की टेक्नोलॉजी लेकर आई है। यह शाओमी की HyperCharge फास्ट चार्जिंग टेक्नोलॉजी है। शाओमी की 200W वायर्ड चार्जिंग टेक्नोलॉजी सिर्फ 8 मिनट में ही स्मार्टफोन को फुल चार्ज कर देगी। 200W वायर्ड चार्जिंग टेक्नोलॉजी के अलावा कंपनी ने अपनी 120W वायरलेस चार्जिंग टेक्नोलॉजी भी पेश की है। कंपनी का दावा है कि यह टेक्नोलॉजी सिर्फ 15 मिनट में ही स्मार्टफोन को फुल चार्ज कर देती है।
सिर्फ 3 मिनट में ही 50% चार्ज हो जाता है फोन
शाओमी की 200 W वायर्ड चार्जिंग टेक्नोलॉजी 4,000 mAh वाली बैटरी को सिर्फ 3 मिनट में ही 50 फीसदी चार्ज कर देती है। वहीं, बैटरी को 100 फीसदी चार्ज करने में 8 मिनट का टाइम लगता है। वहीं, 120W वायरलेस चार्जिंग टेक्नोलॉजी 4,000 mAh वाली बैटरी को 10 फीसदी सिर्फ 1 मिनट में चार्ज कर देती है। जबकि 50 फीसदी बैटरी चार्ज करने में इस टेक्नोलॉजी को 7 मिनट लगते हैं। वहीं, 100 फीसदी बैटरी चार्जिंग में केवल 15 मिनट का वक्त लगता है।
80W वायरलेस चार्जिंग के बाद अब 120W हाइपर टेक्नोलॉजी
120W वायर्ड और 120W वायरलेस हाइपर चार्ज सॉल्यूशंस को Xiaommi Mi 11 Pro के कस्टम बिल्ड वर्जन में देखा गया है। 120W वायरलेस HyperCharge टेक्नोलॉजी पिछले साल अक्टूबर में आई शाओमी की 80W वायरलेस चार्जिंग के सक्सेसर के रूप में आई है। 80W वायरलेस चार्जिंग टेक्नोलॉजी 4,000 mAh वाली बैटरी को सिर्फ 19 मिनट में फुल चार्ज कर सकती है। शाओमी ने अपनी 120W चार्जिंग सॉल्यूशन की घोषणा Mi 10 Ultra के साथ की है, जो कि 4,500 mAh की बैटरी के साथ आया है। यह टेक्नोलॉजी Mi 10 Ultra को सिर्फ 23 मिनट में फुल चार्ज कर सकती है।
राजनांदगांव / शौर्यपथ / मौसम विभाग द्वारा इस वर्ष खरीफ में अच्छी वर्षा होने की संभावना जाहिर की गई है। जिसके कारण इस वर्ष जिले में कृषि रकबा में वृद्धि होने की संभावना है। कृषि विभाग द्वारा भी खरीफ में बेहतर खेती के लिये कार्य योजना तैयार कर लगातार कृषि आदान सामग्रियों (खाद एवं बीज) का सहकारी समितियों में लक्ष्य अनुसार भंडारण कराया जा रहा है। अनुमान अनुसार इस वर्ष 298520 हेक्टेयर धान का रकबा, सोयाबीन 34100 हेक्टेयर, अरहर 9650 हेक्टेयर, तिलहनी फसल 35390 हेक्टेयर तथा दलहनी फसल 19800 हेक्टेयर में लगने के अलावा 6020 हेक्टेयर में साग सब्जी फसले लगने की संभावना है।
सभी समितियों में धान, अरहर के बीज पर्याप्त मात्रा में भंडारित है, परन्तु पूर्व वर्ष की भांति इस वर्ष भी सोयाबीन के बीज की न्यूनता के कारण भंडारण में विलंब हो रहा है। ऐसे समय में जब खरीफ मौसम मुहाने पर है। खेती करने वाले किसानों को सोयाबीन के अलावा अन्य दलहन एवं तिलहन फसलों के विकल्प पर भी विचार करने की आवश्यकता है। सोयाबीन के स्थान पर अरहर फसल ऊपरी भूमि व भर्री भूमि वाले कृषक के लिये एक बेहतर विकल्प हो सकता है। क्योंकि अरहर के विभिन्न प्रकार के फसलों के साथ बुआई किये जा सकने एवं अतिरिक्त आमदनी का जरिया होने के कारण इस फसल को सोयाबीन के विकल्प के रूप में उपयोग किया जा सकता है। अरहर की बुआई का उपयुक्त समय 25 जून से 15 जुलाई तक रहता है जहां पानी की सुविधा है, वहां जल्दी बुआई करना लाभप्रद रहता है इसकी बुआई देरी की दशा में 5 अगस्त तक कर सकते हैं। अरहर के अनुशंसित किस्मों में प्रगति, प्रभात, मारूति, आशा, राजीव लोचन जैसे किस्में सूखा सहन, बांझपन निरोधक होने के साथ ही उकडा रोग निरोधक व फल्लीभेदक सहनशील इसमें है। जिसमें से प्रभात शीघ्र पकने वाली (130-135 दिन) इसमें समिति के अलावा एनएससी, कृषि विश्वविद्यालय आदि स्थानों पर उपलब्ध है।
अरहर को हमेशा पंक्तियों में बोना ही लाभप्रद होता है तथा मिश्रित फसल की दशा में अरहर को मूंग, मक्का, मुंगफली, उड़द, कोदो एवं रागी फसल के साथ इसकी सफल खेती की जा सकती है।
वर्तमान में मॉदा एवं क्यारी विधि के द्वारा कृषक अरहर फसल से अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त कर रहे है। इस विधि में दो क्यारियों के बीज मांदा बनाकर पौधों को ऊंची उठी क्यारियों में लगाते है, जिससे कि अधिक वर्षा की स्थिति में पानी क्यारी से रिसकर मॉदा में इक्कट्टा हो जाता है, जिसे असानी से खेत से बाहर निकाला जा सकता है। साथ ही सूखा पड़ने की स्थिति में केवल मॉदा में पानी भर देने से वह धीरे-धीरे फसलों को सिंचाई उपलब्ध कराते रहता है, इस प्रकार दोनों स्थितियों में यह अरहर फसल को सुरक्षित रखता है।
धान के मेढ़ों पर अरहर के लिये 1 हेक्टेयर धनहा खेत के चारों तरफ मेढ़ों पर 2 किलो ग्राम बीज व 10 किलो ग्राम डीएपी उर्वरक पर्याप्त होता है। सोयाबीन के साथ अरहर लगाने के लिये सोयाबीन के 4 से 6 कतारों के बाद अरहर की 2 कतारे लगाये। ऐसा करने से सोयाबीन कटने के बाद अरहर से अतिरिक्त उपज प्राप्त होता है।
लघु धान्य फसलों के साथ अरहर की 3 से 4 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज मिलाकर छिड़काव विधि से बोया जा सकता है अथवा कोदो के 6 कतारों के बाद अरहर की भी दो कतार बोते हैं। उर्वरक मात्रा 10 से 20 किलो ग्राम नत्रजन, 20 किलो ग्राम सल्फर तथा 20 किलो ग्राम पोटाश की मात्रा देना चाहिए।
उप संचालक कृषि जीएस धुर्वे ने आगामी खरीफ में सोयाबीन बीज के भंडारण में विलंब तथा अन्य राज्यों में बीज उपलब्ध न होने की स्थिति को देखते हुए किसानों को सोयाबीन के बेहतर विकल्प के रूप में अरहर फसल को अपनाने की अपील की है।
खाना खजाना / शौर्यपथ / आप अगर रोजाना की गेहूं की रोटी के अलावा कोई और रोटी ट्राई करना चाहते है, तो आप कर्नाटक की मशहूर अक्की रोटी ट्राई कर सकते हैं। आइए, जानते हैं क्या है रेसिपी-
सामग्री :
एक कप चावल का आटा
एक प्याज-बारीक कटा हुआ
नारियल-दो चम्मच कदूद्कस किया हुआ
गाजर-कद्दूकस
दो हरी मिर्च-बारीक कटी हुई
अदरक-कद्दूकस किया हुआ
करी पत्ते 5-7
जीरा-आधा चम्मच
धनिया पत्ती- बारीक कटी हुई
नमक स्वादानुसार
विधि :एक कटोरी में चावल के आटे, नारियल, गाजर, जीरा, हरी मिर्च, धनिया पत्ती, प्याज, अदरक और नमक डालकर अच्छे से गूंथ लें। ध्यान रखें कि आटा मुलायम रहे।
इसके बाद हल्के हाथों से रोटी को बढ़ाएं. कोशिश करें कि पानी लगाकर भी रोटी बढ़ा सकते हैं क्योंकि मुलायम होने पर रोटी टूट सकती है। इसके बाद गर्म तवे पर तेल लगाकर रोटी को दोनों तरफ से सेंके। इसके बाद नारियल और पुदीने की चटनी के साथ इसे सर्व करें।
लाइफस्टाइल /शौर्यपथ / हर लड़की अपने पार्टनर में अच्छी आदते देखना चाहती है । जहां कुछ लड़कियां हॉट लोगों की तरफ आकर्षित होती हैं, तो वहीं कुछ जॉली नेचर वाले लोगों को पसंद करती हैं, लेकिन कुछ बातें ऐसी हैं जो हर लड़की अपने ड्रीम बॉय में देखना चाहती है । अगर आप चाहते हैं कि आपकी गर्लफ्रेंड या पार्टनर आपसे हमेशा खुश रहे तो आपको भी अपने लाइफस्टाइल में कुछ बातें शामिल करनी होगी । इन बातों को छोड़ कर भी कुछ बाते ऐसी हैं जो लड़कियां अपने पार्टनर में तलाशती हैं ।
भरोसेमंद पार्टनर
भरोसेमंद पार्टनर पर ही लड़कियां विश्वास करती हैं । अपने पार्टनर का भरोसा जीतने के बाद आपके रिश्ते में कोई भी समस्या नहीं आएगी । लड़किया कभी नहीं चाहेगी की उसका पार्टर किसी और के साथ फ्लर्ट करता हुआ दिखाई दे इसलिए अपने पार्टनर पर अपना भरोसा कायम रखने के लिए भरोसा बनाए रखें । लड़कियां रिलेशनशिप में सबसे पहले यही देखती हैं कि लड़का भरोसेमंद है या नहीं
सेंस ऑफ ह्यूमर
लड़कों में सेंस ऑफ ह्यूमर लड़कियां सबसे पहले देखती हैं और वो हमेशा लड़कियों की पहली पसंद होते हैं । क्योंकि अच्छे सेंस ऑफ ह्यूमर वाले लड़के खुद भी खुश रहते हैं और दूसरों को भी खुश रखते हैं ।
समझदारी
मुश्किल समय में समझदारी से फैसला लेने वाले लड़के लड़कियों को पसंद होते हैं । समझदार और सुलझे हुए लड़के छोटी मोटी बात पर लड़ाई झगड़ा करने की बजाए या तो उसे नजरअंदाज कर देते हैं या फिर साथ बैठ कर सुलझा लेते हैं ।
हेल्पिंग नेचर
दूसरों की मदद करने वाले लड़को से भी लड़कियां खूब आकर्षित होती हैं । जो लड़के सभी की मदद करना जानते हैं, वो अपने पार्टनर से भी प्यार भरा व्यवहार करते हैं । इसलिए हेल्पिंग नेचर वाले लड़के लड़कियों की पसंद होते हैं.
सम्मान करने वाले
हर किसी को अपना सम्मान सर्वोपरि होता है । महिलाओं का सम्मान करने वाले लड़के लड़कियों की पहली पसंद होते हैं ।
सेहत /शौर्यपथ / पपीता एक ऐसा फल है, जिसे पेट खराब होने या फिर बीमार होने के वक्त ही सबसे ज्यादा याद किया जाता है लेकिन पपीते के गुण इससे कहीं ज्यादा है। डाइट में पपीता शामिल करने से आपको कई जबरदस्त फायदे होते हैं। आइए, जानते हैं कि पपीते को डाइट में शामिल करने से आपको क्या-क्या फायदे होते हैं-
एंटीऑक्सिडेंट्स से भरपूर
पपीता में कैरोटीनॉयड- एक एंटीऑक्सिडेंट है, जो मुक्त कणों को बेअसर करता है। पपीता कैरोटीनॉयड के सबसे अच्छे स्रोतों में से एक है।
कैंसर के खतरे को करता है कम
पपीते में लाइकोपीन होता है, जो कैंसर के खतरे को कम कर सकता है। ऐसा माना जाता है कि पपीता कैंसर से लड़ने में मदद करता ह। यह फल उन लोगों के लिए भी फायदेमंद माना जाता है, जिनका कैंसर का इलाज चल रहा है।
इंफेक्शन से करता है बचाव
पपीता कई फंगल इंफेक्शन्स से लड़ने में भी मददगार माना जाता है और आंतों के कीड़ों को मारने के लिए भी जाना जाता है, जो कई संक्रमणों और जटिलताओं का कारण बनता है। इसलिए गर्मियों में इस फल का सेवन आपकी बॉडी को ठंडा रखता है।
चमकदार स्किन पाने में मददगार
पपीता आपकी त्वचा को युवा और हेल्दी बनाता है। फलों में मौजूद एंटीऑक्सिडेंट अत्यधिक मुक्त कणों को बेअसर करने के लिए जिम्मेदार होते हैं, जो त्वचा को नुकसान, सैगिंग और झुर्रियों का कारण बनते हैं। लाइकोपीन और विटामिन सी से भरपूर, पपीता उम्र बढ़ने के संकेतों को कम करने में भी मदद करता है।
कब्ज का इलाज करता है
पपीता डाइजेशन में मदद करता है और आपका पेट साफ करता है। फल में विटामिन सी, फोलेट और विटामिन ई होता है, जो पेट में टॉनिक बनाता है और गति बीमारी को कम करता है।
पीरियड्स के दौरान फायदेमंद
पपीते का रस पीने से अनियमित पीरियड को सामान्य किया जा सकता है। आप अनियमित पीरियड्स के लिए कच्चे पपीते का रस भी पी सकते हैं। पपीता शरीर में गर्मी पैदा करता है और हार्मोन एस्ट्रोजन को बैलेंस करता है।
एक्ने को ठीक करता है
कई त्वचा विकारों के इलाज में पपीता बहुत प्रभावी है। इसका उपयोग मुंहासे के इलाज के लिए किया जा सकता है। आपको बस इतना करना है कि आपके शरीर के प्रभावित क्षेत्र पर पपीते की त्वचा का मांसल हिस्सा लगाएं। फल खाने से त्वचा भी साफ होगी। आप पपीते से लेटेक्स भी प्राप्त कर सकते हैं और निशान कम करने के लिए इसे जले हुए क्षेत्र पर लगा सकते हैं।
आस्था /शौर्यपथ / 26 मई को साल के पहले चंद्र ग्रहण के बाद अब 10 जून को 2021 का पहला सूर्य ग्रहण लगेगा। यह सूर्य ग्रहण हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को लगेगा। खास बात यह है कि इस दिन वट सावित्री व्रत और शनि जयंती भी है। ग्रहण का ज्योतिषीय व वैज्ञानिक महत्व भी है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ग्रहण के दौरान शुभ कार्य वर्जित होते हैं। इस दौरान पूजा-पाठ आदि की भी मनाही होती है। ग्रहण के दौरान मंदिरों के कपाट बंद कर दिए जाते हैं।
यह सूर्य ग्रहण उत्तरी अमेरिका के उत्तरी भाग, यूरोप और एशिया में आंशिक तौर पर दिखेगा। इसके अलावा इसे उत्तरी कनाडा, ग्रीनलैंड और रूस में पूर्ण रूप से देखा जा सकेगा। अगर भारत की बात करें तो इसे आंशिक तौर पर ही देखा जा सकेगा।
क्या भारत में मान्य होगा सूतक काल?
शास्त्रों के अनुसार, पूर्ण सूर्य ग्रहण में सूतक काल मान्य होता है। सूर्य ग्रहण के 12 घंटे पूर्व ही सूतक काल शुरू हो जाता है। हालांकि 10 जून को लगने वाला सूर्य ग्रहण भारत में आंशिक होगा, ऐसे में सूतक काल मान्य नहीं होगा।
वृषभ राशि पर पड़ेगा असर-
सूर्य ग्रहण का सबसे ज्यादा असर वृषभ राशि पर देखने को मिलेगा। इस दिन चंद्रमा वृषभ राशि पर संचार करेगा। ऐसे में इस राशि के जातकों को अपनी सेहत का ध्यान रखना होगा। इसके अलावा पैसों के मामलों में सावधानी बरतनी होगी। सूर्य ग्रहण के दौरान मृगशिरा नक्षत्र रहेगा।
10 जून को कितने बजे से लगेगा सूर्य ग्रहण?
10 जून 2021, दिन गुरुवार को सूर्य ग्रहण दोपहर 1 बजकर 42 मिनट से शुरू होगा, जोकि शाम 06 बजकर 41 मिनट पर समाप्त होगा।
शौर्यपथ / वह 30 मई का ही दिन था, जब देश का पहला हिन्दी अखबार 'उदंत मार्तण्ड' प्रकाशित हुआ। इसी दिन को हिन्दी पत्रकारिता दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। इस अवधि में कई समाचार-पत्र शुरू हुए, उनमें से कई बन्द भी हुए, लेकिन उस समय शुरू हुआ हिन्दी पत्रकारिता का यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। लेकिन, अब उद्देश्य पत्रकारिता से ज्यादा व्यावसायिक हो गया है।
उदंत मार्तण्ड का प्रकाशन 30 मई, 1826 ई. में कोलकाता (तब कलकत्ता) से एक साप्ताहिक पत्र के रूप में शुरू हुआ था। पंडित जुगलकिशोर सुकुल ने इसकी शुरुआत की। उस समय समय अंग्रेजी, फारसी और बांग्ला में तो अनेक पत्र निकलते थे, किन्तु हिन्दी में कोई समाचार पत्र नहीं निकलता था। पुस्तकाकार में छपने वाले इस पत्र के 79 अंक ही प्रकाशित हो पाए। ...और करीब डेढ़ साल बाद ही दिसंबर 1827 में इसका प्रकाशन बंद करना पड़ा।
उस समय बिना किसी मदद के अखबार निकालना लगभग मुश्किल ही था, अत: आर्थिक अभावों के कारण यह पत्र अपने प्रकाशन को नियमित नहीं रख सका। जब इसका प्रकाशन बंद हुआ, तब अंतिम अंक में प्रकाशित पंक्तियां काफी मार्मिक थीं...
आज दिवस लौं उग चुक्यौ मार्तण्ड उदन्त
अस्ताचल को जात है दिनकर दिन अब अन्त।
हिंदी प्रिंट पत्रकारिता आज किस मोड़ पर खड़ी है, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है। उसे अपनी जमात के लोगों से तो लोहा लेना पड़ रहा है साथ ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की चुनौतियां भी उसके सामने हैं। ऐसे में यह काम और मुश्किल हो जाता है।
एक बात और...हिंदी पत्रकारिता ने जिस 'शीर्ष' को स्पर्श किया था, वह बात अब कहीं नजर नहीं आती। इसकी तीन वजह हो सकती हैं, पहली अखबारों की अंधी दौड़, दूसरा व्यावसायिक दृष्टिकोण और तीसरी समर्पण की भावना का अभाव। पहले अखबार समाज का दर्पण माने जाते थे, पत्रकारिता मिशन होती थी, लेकिन अब इस पर पूरी तरह से व्यावसायिकता हावी है।
इसमें कोई दो मत नहीं कि हिंदी पत्रकारिता में राजेन्द्र माथुर (रज्जू बाबू) और प्रभाष जोशी दो ऐसे संपादक रहे हैं, जिन्होंने अपनी कलम से न केवल अपने अपने अखबारों को शीर्ष पर पहुंचाया, बल्कि अंग्रेजी के नामचीन अखबारों को भी कड़ी टक्कर दी।
आज वे हमारे बीच में नहीं हैं, लेकिन उनके कार्यकाल में हिन्दी पत्रकारिता ने जिस सम्मान को स्पर्श किया, वह अब कहीं देखने को नहीं मिलता। दरअसल, अब के संपादकों की कलम मालिकों के हाथ से चलती। हिन्दी पत्रकारिता आज कहां है, इस पर निश्चित ही गंभीरता से सोच-विचार करने की जरूरत है।
यहां महाकवि मैथिलीशरण गुप्त की इन पंक्तियों को उद्धृत करना भी समीचीन होगा...
हम कौन थे, क्या हो गए हैं, और क्या होंगे अभी
आओ विचारें आज मिल कर, यह समस्याएं सभी।
धर्म संसार / शौर्यपथ / भगवान श्रीकृष्ण के वैसे तो कई सखा अर्थात मित्र या दोस्त थे लेकिन बचपन में कुछ खास सखा थे। इन बाल सखाओं और सखियों के साथ श्रीकृष्ण ने अपना बचपन गुजारा था। लगभग 11 वर्ष की उम्र तक इन सखाओं के साथ रहे थे। कंस वध के लिए उन्हें गोकुल-वृंदावन को छोड़कर मथुरा जाना पड़ा था वहां भी उनके कई सखा बने था। फिर कंस वध के बाद उन्हें मथुरा को भी छोड़ना पड़ा था। उस दौरान उनके कुछ खास सखा ही उनके साथ रहे थे। आओ सभी के नाम जानते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण के कई बाल सखा थे। जैसे मधुमंगल, सुबाहु, सुबल, भद्र, सुभद्र, मणिभद्र, भोज, तोककृष्ण, वरूथप, श्रीदामा, सुदामा, मधुकंड, विशाल, रसाल, मकरन्द, सदानन्द, चन्द्रहास, बकुल, शारद और बुद्धिप्रकाश आदि। उद्धव और अर्जुन बाद में सखा बने। बलराम उनके बड़े भाई थे और सखा भी।
पुष्टिमार्ग के अनुसार अष्टसखा : कृष्ण की बाल एवं किशोर लीला के आठ आत्मीय संगी- कृष्ण, तोक, अर्जुन, ऋषभ, सुबल, श्रीदामा, विशाल और भोज।
बाल सखियां : ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार सखियों के नाम इस तरह हैं- चन्द्रावली, श्यामा, शैव्या, पद्या, राधा, ललिता, विशाखा तथा भद्रा। कुछ जगह ये नाम इस प्रकार हैं- चित्रा, सुदेवी, ललिता, विशाखा, चम्पकलता, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रंगदेवी और सुदेवी। कुछ जगह पर ललिता, विशाखा, चम्पकलता, चित्रादेवी, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रंगदेवी और कृत्रिमा (मनेली)। इनमें से कुछ नामों में अंतर है।
अष्ट सखियां : हालांकि पौराणिक ग्रंथों के अनुसार ये श्रीजी राधारानी की 8 सखियां थीं। अष्टसखियों के नाम हैं- 1. ललिता, 2. विशाखा, 3. चित्रा, 4. इंदुलेखा, 5. चंपकलता, 6. रंगदेवी, 7. तुंगविद्या और 8. सुदेवी। राधारानी की इन आठ सखियों को ही "अष्टसखी" कहा जाता है। श्रीधाम वृंदावन में इन अष्टसखियों का मंदिर भी स्थित है।
आस्था /शौर्यपथ / वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या को रखा जाएगा। इसी दिन शनि जयंती भी है और इसी दिन सूर्य ग्रहण भी है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष वट सावित्री व्रत पर्व 10 जून 2021 गुरुवार को मनाया जा रहा है। आओ जानते हैं वट सावित्री व्रत या पर्व की 10 महत्वपूर्ण बातें।
1. दो बार आता है ये पर्व : वर्ष में दो बार वट सावित्री का व्रत रखा जाता है। पहला ज्येष्ठ माह की अमावस्या को और दूसरा ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को। उत्तर भारत में अमावस्या का महत्व है तो दक्षिण भारत में पूर्णिमा का। वट पूर्णिमा 24 जून 2021 गुरुवार को है।
2. स्कन्द व भविष्य पुराण के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को किया जाता है, लेकिन निर्णयामृतादि के अनुसार यह व्रत ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को करने का विधान है।
3. यह भी कहते हैं कि भारत में अमानता व पूर्णिमानता ये दो मुख्य कैलेंडर प्रचलित हैं। हालांकि इन दोनों में कोई फर्क नहीं है बस तिथि का फर्क है। पूर्णिमानता कैलेंडर के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाया जाता है जिसे वट सावित्री अमावस्या कहते हैं जबकि अमानता कैलेंडर के अनुसार इसे ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को मनाते हैं, जिसे वट पूर्णिमा व्रत भी कहते हैं।
4. वट सावित्री अमावस्या का व्रत खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, पंजाब और हरियाणा में ज्यादा प्रचलित है जबकि वट पूर्णिमा व्रत महाराष्ट्र, गुजरात सहित दक्षिण भारत के क्षेत्रों में प्रचलित है।
5. वट सावित्री का व्रत शादीशुदा महिलाएं अपने पति की भलाई और उनकी लम्बी उम्र के लिए रखती हैं। मान्यता अनुसार इस व्रत को करने से पति की अकाल मृत्यु टल जाती है। इस व्रत को स्त्रियां अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगलकामना से करती हैं।
6. दोनों ही व्रत के दौरान महिलाएं वट अर्थात बरगद की पूजा करके उसके आसपास मन्नत का धागा बांधती है। वट अर्थात बरगद का वृक्ष आपकी हर तरह की मन्नत को पूर्ण करने की क्षमता रखता है।
7. पुराणों में यह स्पष्ट किया गया है कि वट में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है। इसलिए इस दिन वट वृक्ष की पूजा करने का विशेष महत्व है। इस दिन वट वृक्ष की पूजा करने से घर में सुख-शांति, और धनलक्ष्मी का वास होता है।
8. दोनों ही व्रतों के पीछे की पौराणिक कथा दोनों कैलेंडरों में एक जैसी है। वट वृक्ष का पूजन और सावित्री-सत्यवान की कथा का स्मरण करने के विधान के कारण ही यह व्रत वट सावित्री के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
9. सती सावित्री की कथा सुनने व वाचन करने से सौभाग्यवती महिलाओं की अखंड सौभाग्य की कामना पूरी होती है।
10. इस व्रत को सभी प्रकार की स्त्रियां (कुमारी, विवाहिता, विधवा, कुपुत्रा, सुपुत्रा आदि) रख सकती हैं।