June 22, 2025
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खाना खजाना / शौर्यपथ पनीर पसंद करने वाले लोगों को पनीर खाने का बहाना चाहिए होता है। अगर आप रेगुलर पनीर की डिश बनाकर खाते-खाते-बोर हो चुके हैं तो इस बार ट्राई करें पनीर की ये स्नैक्स रेसिपी पनीर अनारदाना कबाब। आइए जानते हैं कैसे बनाई जाती है ये टेस्टी रेसिपी।

पनीर अनारदाना कबाब के लिए सामग्री-
-500 ग्राम पनीर
-2 मीडियम हरी शिमला मिर्च चकोर टुकड़ों में कटी हुई
-2 मीडियम टमाटर चकोर टुकड़ों में कटी हुई
-3 टेबल स्पून तेल
-1 टी स्पून चाट मसाला

पनीर अनारदाना कबाब को मेरिनेट करने के लिए-
-हंग कर्ड
-1 टी स्पून अदरक का पेस्ट
-1 टी स्पून लहसुन का पेस्ट
-1/2 टी स्पून क​शमिरी लाल मिर्च पाउडर
-एक चुटकी हल्दी पाउडर
-1/2 टी स्पून गरम मसाला पाउडर
-2 टी स्पून अनारदाना पाउडर
-2-3 टेबल स्पून फ्रेश क्रीम
-1 टी स्पून नींबू का रस
-नमक

पनीर अनारदाना कबाब बनाने का तरीका-
पनीर अनारदाना कबाब बनाने के लिए सबसे पहले पनीर को टुकड़ों को एक इंच लम्बाई और मोटाई में काट लें। अब मेरिनेट करने वाली सारी सामग्री को मिलाकर पनीर के टुकड़ों को इसमें 15 मिनट के लिए मेरिनेट करने के लिए रख दें।

अब तवे पर तेल गर्म करके उसमें पनीर के टुकड़ों को डालकर गोल्डन ब्राउन क्रिस्पी होने तक फ्राई करें। फ्राई होने पर पनीर के इन टुकड़ों को एक पेपर टॉवल पर निकाल लें। अब शिमला मिर्च और टमाटर के टुकड़ों को बाकी बचे मेरिनेट के पेस्ट में लपेटकर तवे पर बचे हुए तेल में 2 से 3 मिनट के लिए भून लें।

अब शिमला मिर्च और टमाटर के टुकड़ों के साथ पनीर के टुकड़ों को टूथपिक में लगाकर ऊपर से उसमें चाट मसाला छिड़ककर गर्मागर्म सर्व करें।

 

सेहत / शौर्यपथ / अक्सर आपने सुना होगा कि स्ट्रेस लेने से व्यक्ति चिड़चिड़ा हो जाता है, उसका किसी से बात करने का मन नहीं करता, यहां तक कि वो अपने परिवार और दोस्तों से भी ढंग से बात नहीं करना चाहता। बावजूद इसके अगर हम कहें कि लाइफ में थोड़ा स्ट्रेस बेहद जरूरी है तो? सुनकर आप भी सोच में पड़ गए होंगे कि भला ये क्या बात हुई, पर ये सच हैं। आइए जानते हैं कैसे कुछ चीजों के लिए स्ट्रेस लेने से लाइफ बन सकती है कूल।

सुबह जल्दी उठना-
आमतौर पर लोगों को सुबह जल्दी उठना बेहद तनावपूर्ण लगता है। अगर आप भी इस लिस्ट में शामिल हैं तो ये तनाव लेने की आदत डाल लें। जरा सोचिए, सुबह जल्दी उठने से आप अपने पूरे दिन को अच्छे से व्यवस्थित कर सकते हैं। ऐसा करने से आपके सभी जरूरी काम टाइम से पूरे होंगे और आप बिना बात का तनाव लेने से बच जाएंगे।

एक्सरसाइज करना न भूलें-
अगर आप सुबह जल्दी उठकर एक्सरससाइज या मेडिटेशन करते हैं तो आपका शरीरिक स्वास्थ्य तो ठीक रहता ही है बल्कि आप मानसिक रूप से भी अच्छा महसूस करते हैं। खुद को पॉजिटिव बनाए रखने के लिए रोजाना एक्सरसाइज करें।

सफाई करना-
खुद के साथ अपने आस-पास की जगह को भी साफ रखें। गंदा घर या अव्यवस्थित पड़ी चीजें व्यक्ति को डिप्रेशन में डाल सकती हैं। भले ही शुरूआत में आपको ये काम थोड़ा तनावपूर्ण लग सकता है लेकिन स्वच्छ वातावरण सकारात्मक सोच को जन्म देता है और आप तनाव से दूर रहते हैं।

पढ़ाई करना-
कहावत है कि किताबें आपकी सबसे अच्छी दोस्त होती हैं। खुद को तनाव से दूर रखने के लिए अच्छी किताबें पढ़ने के लिए थोड़ा समय निकालें। भले ही आपको यह काम थोड़ा तनावपूर्ण लगे लेकिन यकीन मानिए किताबें पढ़ने का शौक हर किसी के लिए बेहद फायदेमंद होता है। इस स्ट्रेस को लेने से न सिर्फ आपकी विभिन्न विषयों के प्रति आपकी जानकारी बढ़ती है बल्कि आपकी सोच का दायरा भी व्यापक होता है।

खाना बनाना-
एक अच्छा पौष्टिक भोजन न सिर्फ आपके स्वास्थ्य का ध्यान रखता है बल्कि आपके स्ट्रेस को भी दूर रखने में मदद करता है। इसलिए खाना बनाने के इस स्ट्रेस को रोजमर्रा के जीवन में शामिल करके इसे अपनी हॉबी बनाएं और खुद को स्ट्रेस और बीमारियों से दूर रखें ।

 

धर्म/ शौर्यपथ / न्याय के देवता शनि कर्म के ग्रह माने जाते हैं। इन की बुरी दृष्टि से बचने के लिए लोग क्या-क्या उपाय नहीं करते। शनि हमेशा मेहनती लोगों का साथ देते हैं। इनकी कृपा लोगों पर रहे तो ये रंक को राजा और राजा को रंक भी बना सकते हैं। गरीबों की सेवा करने वाले और कर्मठ लोगों पर इनकी हमेशा अच्छी दृष्टि रहती है। आपको बता दें कि शनि की कुछ राशियों पर हमेशा मेहरबान रहते हैं। कहा जाता है कि ये राशियां शनिदेव की पसंदीदा राशियां है। आइए जानें इन राशियों के बारे में:
तुला राशि के लोगों पर हमेशा शनि की अच्छी दृष्टि रहती है। तुला राशि के लोग विनम्र स्वभाव के होते हैं। ये लोग विवाद से दूर रहते हैं। तुला राशि के लोग मेहनत और ईमानदारी से जीवन निर्वाह करना पसंद करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि अगर इस राशि के लोग मेहनती हों और गरीबों की सहायता करने वाले हों तो उनकों सफलता निश्चित ही मिलती है।
कुंभ राशि के लोगों पर भी शनि मेहरबान रहते हैं। शनि देव कुंभ राशि के स्वामी है। इस राशि के लोगों को शनि हमेशा मेहनत का फल देते हैं। इनके थोड़े से प्रयत्न से शनि देव प्रसन्न होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि कुंभ राशि के जातक बहुत सीधे और शांत होते हैं। ये किसी से धोखा आदि नहीं करते हैं। न्याय प्रिय देवता शनि इसी वजह से इस राशि के लोगों पर अपनी अच्छी दृष्टि रखते हैं।
कुंभ राशि के लोग मानवीय और परोपकारी होते हैं। ये लोग समाज की भलाई के लिए कुछ भी कर सकते हैं। यही वजह है कि शनिदेव को यह राशि पसंद है।
मकर राशि के लोगों पर भी शनिदेव की अच्छी नजर रहती है। शनिदेव इस राशि के लोगों को हमेशा उनके अच्छे कार्यों का फल समय पर देते हैं। इनके जीवन में खुशियां ही खुशियां रहती है। मकर राशि के लोग गंभीर और सहनशील होते है। ये लोग मन के विपरीत कभी कुछ नहीं करते। शनि अगर इनकी राशि में अच्छा होते तो वारे न्यारे कर सकता है।

सेहत / शौर्यपथ / पतझड़ में जन्मे बच्चों में अस्थमा, हे फीवर और खानपान से संबंधित एलर्जी होने का खतरा ज्यादा होता है। एक हालिया शोध में यह खुलासा हुआ है। ब्रिटेन में दुनिया में सबसे अधिक एलर्जी की दर है, यहां की 20 प्रतिशत से अधिक आबादी कम से कम एक एलर्जी विकार से पीडि़त है।
कोलोराडो की नेशनल ज्यूइश हेल्थ की शोधकर्ता डॉक्टर जेसिका हुई ने कहा, हमने अपने क्लिनिक में इलाज किए गए प्रत्येक बच्चे को देखा और पाया कि जो बच्चे पतझड़ में पैदा हुए थे, उनमें एलर्जी से जुड़ी सभी स्थितियों का अनुभव करने की अधिक संभावना थी। अब हम इस बारे में अधिक अध्ययन कर रहे हैं कि ऐसा क्यों है और हम दृढ़ता से मानते हैं कि यह त्वचा पर मौजूद बैक्टीरिया के कारण होता है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि ज्यादातर एलर्जी बचपन में ही शुरू होती है जब एलर्जी फैलाने वाले रोगाणु सूखी हुई त्वचा से अंदर प्रवेश करते हैं। इससे एलर्जी की एक श्रृखंला की शुरुआत हो जाती है जिसे एटॉपिक मार्च कहते हैं।
ब्रिटेन में पांच में से एक बच्चे को एक्जीमा की शिकायत है। जिन्हें एक्जीमा की शिकायत होती है उनके शरीर में हानिकारक बैक्टीरिया का स्तर ज्यादा होता है। इससे एलर्जी पैदा करने वाले रोगाणुओं को नष्ट करने की उनकी क्षमता कम हो जाती है। शोधकर्ताओं का मानना है कि पतझड़ में पैदा होने वाले बच्चों की त्वचा बेहद कमजोर होती है और इसलिए ये बार-बार एलर्जी का शिकार हो जाते हैं।

शिक्षा / शौर्यपथ / जीवन में हर कोई जीतना चाहता है लेकिन कभी-कभी काफी प्रयासों के बाद भी हम हार जाते हैं। जीवन के किसी पड़ाव पर हारना बुरा नहीं है लेकिन हारकर वापस न उठना या हारे हुए मन से जीते जाना बहुत बुरा है लेकिन कभी न कभी ऐसा होता है जब किसी हार से हम बुरी तरह प्रभावित हो जाते हैं और हमारी हिम्मत जवाब दे जाती है। ऐसे में खुद को फिर से खड़ा करने के लिए कुछ बातों पर ध्यान देना चाहिए-
अपनी जीत को याद करें
आपको जब भी लगे कि अब आप हारने के बाद फिर से खड़े नहीं हो सकते, तो आपको जरुरत है कि आप जीत को याद करते हुए सोचें कि एक दिन वो भी था, जब आपको जीत हासिल हुई थी। ऐसे में आप महसूस करेंगे कि आपके मन से नकारात्मकता जाने लगेगी।

जानवरों से सीखें
इंसान किताबों से सीखता है लेकिन जानवरों की प्रकृति से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। सभी जानवर भोजन की तलाश में इधर-उधर घूमते हुए मेहनत करते हैं। वो रोजाना यही काम करते हैं लेकिन फिर भी कभी हार नहीं मानते और मेहनत करते रहते हैं।
अपने लक्ष्य को फिर से याद करें
आपकी हार ने अगर हौंसला तोड़ दिया है, तो अपने लक्ष्य को दुबारा याद करें। आप यह सोचें कि आपको अगर अपना लक्ष्य मिल जाता है, तो आपके जीवन में क्या बदलाव आता है। इससे आपका हौंसला बढ़ जाएगा।
अपने करीबियों को याद करें
आप दुबारा कोशिश करते हैं और लक्ष्य को पा लेते हैं, तो आपके करीबियों पर इसका क्या असर पड़ेगा, यह सोचिए कि आप लक्ष्य को पाकर उनके जीवन में क्या बदलाव ला सकते हैं। ऐसा करने से आप निराशा को भूलकर आगे बढऩे का निर्णय लें पाएंगे।

आचार्य चाणक्य ने नीति शास्त्र में व्यक्ति को सफल बनाने की बातों का जिक्र किया है। आचार्य चाणक्य एक महान शिक्षाविद और कुशल अर्थशास्त्री भी थे। चाणक्य की नीतियां आप भी लोगों को जीवन में सही रास्ता दिखा रही हैं। नीति शास्त्र में चाणक्य ने धन, तरक्की, वैवाहिक जीवन, मित्रता और दुश्मनी संबंधी समस्याओं का उपाय बताया है।

चाणक्य के अनुसार, व्यक्ति को जीवन में सफल होना है तो उसे नीति शास्त्र को जीवन में अपना लेना चाहिए। चाणक्य ने नीति शास्त्र में बताया है कि व्यक्ति में कौन-से ऐसे दो गुण होने चाहिए, जो दुश्मनों को भी मित्र बना देता है।

1. विनम्रता-

चाणक्य के अनुसार, व्यक्ति को हमेशा विनम्र होना चाहिए। विनम्रता से व्यक्ति लोगों के दिलों में राज करता है। विनम्र व्यक्ति क्रोध से मुक्त होता है और उसे समाज में भी मान-सम्मान मिलता है। आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जो काम व्यक्ति धैर्य के साथ करता है, उसे सफलता प्राप्त होती है। चाणक्य कहते हैं कि क्रोध पर काबू पाने के लिए व्यक्ति को विनम्रता का गुण अपनाना चाहिए। इसके साथ ही कई बार दु्श्मन भी आपकी विनम्रता के सामने झुक जाता है और दोस्ती का हाथ खुद ही बढ़ा देता है।

2. सत्य बोलना-

चाणक्य कहते हैं कि व्यक्ति को किसी भी परिस्थिति में झूठ नहीं बोलना चाहिए। नीति शास्त्र के अनुसार, झूठ बोलने से व्यक्ति की प्रतिभा का नुकसान होता है। झूठ बोलने वाला व्यक्ति समाज में मान-सम्मान नहीं पाता है। ऐसे व्यक्ति से लोग दूरी बनाकर रखते हैं और कोई भरोसा नहीं करता है। इसलिए व्यक्ति को हमेशा झूठ से दूर रहना चाहिए।

 

सेहत / शौर्यपथ / वजन घटाने की कोशिशों में जुटे हैं? कैलोरी में कटौती से लेकर एक्सरसाइज तक सब आजमाकर देख लिया, पर मोटापा पीछा छोडऩे का नाम ही नहीं ले रहा? अगर हां तो एक बार लो-कार्ब डाइट आजमाकर देखें। 2020 यूरोपियन एंड इंटरनेशनल ओबेसिटी कांग्रेस में पेश एक डच अध्ययन में कार्बोहाइड्रेट से परहेज को बढ़ते वजन पर काबू पाने में सबसे असरदार करार दिया गया है। खासकर टाइप-2 डायबिटीज से जूझ रहे या खतरे के निशान पर पहुंचे लोगों में।
शोधकर्ताओं के मुताबिक मोटापे के शिकार 75 फीसदी लोग इस बात से अनजान होते हैं कि उनमें इंसुलिन के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई है। दरअसल, 'इंसुलिन रेजिस्टेंसÓ पनपने पर शरीर में पहुंचने वाली शक्कर ऊर्जा में तब्दील नहीं हो पाती। इससे फास्टफूड, मीठे और तैलीय पकवानों से दूरी बनाने तथा जिम में घंटों पसीना बहाने के बावजूद वजन घटाने के अभियान में कुछ खास कामयाबी नहीं मिल पाती है। मोटापे पर नियंत्रण हासिल करने के लिए व्यक्ति का कार्बोहाइड्रेट की मात्रा में कमी लाना जरूरी हो जाता है।
प्रोफेसर एलेन गोवर्स के नेतृत्व में हुए इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने टाइप-2 डायबिटीज से पीडि़त 380 वयस्कों पर 'कैलोरी रिस्ट्रिक्शन डाइटÓ, 'लो कार्ब डाइटÓ और '6*6 डाइटÓ का असर आंका। '6*6 डाइटÓ में तीन चरणों में कार्बोहाइड्रेट के सेवन में कमी लाई जाती है। प्रतिभागी के जहां प्रोसेस्ड खाने पर पूर्ण पाबंदी होती है। वहीं, प्रोटीन और फाइबर की खुराक बढ़ाते हुए उसे तीनों पहर के खाने में सब्जी जरूर शामिल करने की सलाह दी जाती है।
एक साल बाद गोवर्स और उनके साथियों ने पाया कि '6*6 डाइटÓ वजन घटाने में 'कैलोरी रिस्ट्रिक्शन डाइटÓ से दोगुना ज्यादा असरदार थी। इससे इंसुलिन की कार्यक्षमता बढ़ाने और रक्तचाप नियंत्रित रखने में भी मदद मिली, वो भी बिना किसी दवा के। बकौल गोवर्स, अध्ययन से साफ है कि डायबिटीज, प्री-डायबिटीज, मेटाबॉलिक सिंड्रोम सहित इंसुलिन के प्रति संवेदनशीलता से जुड़ी अन्य स्वास्थ्य समस्याएं झेल रहे मरीजों में वजन घटाने के लिए सिर्फ कैलोरी में कमी लाना काफी नहीं है। कार्बोहाइड्रेट, फैट, प्रोटीन, फाइबर सहित विभिन्न मैक्रो और माइक्रो पोषक तत्वों की संतुलित आपूर्ति सुनिश्चित करना भी बेहद जरूरी है।
'6*6 डाइटÓ सबसे ज्यादा फायदेमंद-
-'6*6 डाइटÓ में कैलोरी में कटौती पर जोर नहीं दिया जाता है। व्यक्ति को गुड फैट से लैस खाद्य वस्तुएं, मसलन मछली, बादाम, ऑलिव ऑयल, फलियां और अंकुरित अनाज खाने की पूरी छूट होती है। हालांकि, प्रोसेस्ड फूट खाने की मनाही रहती है। कार्बोहाइड्रेट से पूर्ण परहेज से इसलिए रोका जाता है, ताकि ग्लुटेन एलर्जी न विकसित हो। इसमें शरीर कार्बोहाइड्रेट पचाने की क्षमता खो देता है।
तीन चरण में होती है डाइटिंग-
-पहले चरण में दिनभर में 36 ग्राम से ज्यादा कार्बोहाइड्रेट नहीं लेना होता। वहीं, प्रोटीन की खुराक 1.2 ग्राम प्रति किलोग्राम शारीरिक वजन के बराबर लानी होती है। जब मोटापे में उल्लेखनीय कमी आने लगे तो दूसरे चरण में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा थोड़ी बढ़ा दी जाती है। वहीं, तीसरे चरण में जब वजन कटौती का लक्ष्य पूरा हो जाए तो व्यक्ति सामान्य मात्रा में कार्बोहाइड्रेट लेने लगता है।
लाजवाब असर-
-46.9त्न प्रतिभागी सालभर में 5त्न या उससे अधिक वजन घटाने में कामयाब हुए
-40त्न का ब्लड शुगर सामान्य हो गया, रक्तचाप में भी उल्लेखनीय कमी देखी गई
-30त्न थी ब्लड शुगर तो 40त्न थी वजन घटाने वालों की संख्या लो-कार्ब डाइट ग्रुप में
-50 से 100 ग्राम कार्बोहाइड्रेट लेने की इजाजत होती है इस डाइट में, कैलोरी में कमी पर ज्यादा जोर रहता है

रेडियो वार्ता ’लोकवाणी’ की दसवीं कड़ी में ’समावेशी विकास-आपकी आस’ विषय पर मुख्यमंत्री ने साझा किए अपने विचार
सभी की आजीविका और बेहतर आमदनी की व्यवस्था समावेशी विकास का मूलमंत्र
महान विभूतियों की न्याय की अवधारणा में मिला विकास का ’छत्तीसगढ़ी मॉडल’
राजमेरगढ़ और कबीर चबूतरा में बनेगा ईको रिसार्ट और कैफेटेरिया


रायपुर / शौर्यपथ / मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आज प्रसारित अपनी रेडियो वार्ता लोकवाणी की दसवीं कड़ी में ‘समावेशी विकास-आपकी आस’ विषय पर श्रोताओं के साथ अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी, पंडित नेहरू, सरदार पटेल, डॉ. अम्बेडकर, शास्त्री, आजाद, मौलाना जैसे हमारे नेता जिस न्याय की बात करते थे, उसी साझी विरासत से हमें विकास का छत्तीसगढ़ी मॉडल मिला है। समावेश का सरल अर्थ होता है- समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलना, सभी की भागीदारी, सबके विकास की व्यवस्था। उन्होंने कहा कि किसान को जब हम अर्थव्यवस्था की धुरी मान लेंगे तो समझ लीजिए कि समावेशी विकास की धुरी तक पहुंच गए हैं। छत्तीसगढ़ सरकार ने किसानों को अर्थव्यवस्था के केन्द्र में रखा है। इसके साथ ही अर्थव्यवस्था में किसान, ग्रामीण, अनुसूचित जाति- अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग, महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के गंभीर प्रयास करते हुए राज्य सरकार सबसे विकास की व्यवस्था कर रही है।
‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ के वेदवाक्य में है समावेशी विकास की भावना
मुख्यमंत्री ने ‘समावेशी विकास-आपकी आस’ विषय पर आपने विचार रखते हुए कहा कि मेरा दृढ़ विश्वास है कि देश और प्रदेश की आर्थिक- सामाजिक समस्याओं का समाधान, समावेशी विकास से ही संभव है। हम अपने राज्य में समावेशी विकास की अलख जगा रहे हैं और इस दिशा में आगे बढ़ेंगे। ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ के वेदवाक्य में भी यही भावना है, जो हमारी सांस्कृतिक विरासत है। सवाल उठता है कि प्रचलित व्यवस्था में किसका समावेश नहीं है? कौन छूटा है? तो सीधा जवाब है कि जिसे संसाधनों पर अधिकार नहीं मिला, जिसके पास गरिमापूर्ण आजीविका का साधन नहीं है, विकास के अवसर नहीं हैं या जो गरीब है। वही वर्ग तो छूटा है। हमारी प्रचलित अर्थव्यवस्था में किसान, ग्रामीण, अनुसूचित जाति- अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग, महिलाओं की भागीदारी बहुत कम रही है। ऐसा नहीं है कि प्रयास शुरू ही नहीं हुए बल्कि यह कहना उचित होगा कि वह मुहिम कहीं भटक गई, कहीं जाकर ठहर गई। थोड़ा पीछे जाकर देखें तो महात्मा गांधी, पंडित नेहरू, सरदार पटेल, डॉ. अम्बेडकर, शास्त्री, आजाद, मौलाना जैसे हमारे नेता जिस न्याय की बात करते थे, उसी साझी विरासत से हमें छत्तीसगढ़ी मॉडल मिला है। नेहरू जी ने देश के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में पंचवर्षीय योजनाओं का सिलसिला शुरू किया था। उसी की बदौलत भारत की बुनियाद हर क्षेत्र में, विशेष तौर पर आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में मजबूत हुई थी। उन्होंने कहा कि 11वीं पंचवर्षीय योजना काल (2007 से 2012) में भारत की अर्थव्यवस्था में ‘समावेशी विकास’ की अवधारणा को काफी मजबूती के साथ रखा गया था। उस समय यूपीए की सरकार थी और प्रधानमंत्री थे मनमोहन सिंह अर्थात देश की बागडोर कुशल अर्थशास्त्री के हाथों में थी। लक्ष्य था कि देश की जीडीपी अर्थात सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर को 8 प्रतिशत से बढ़ाकर 10 प्रतिशत तक लाना है। यह भी तय हुआ था कि विकास दर को लगातार 10 प्रतिशत तक बनाए रखना है ताकि वर्ष 2016-17 तक प्रति व्यक्ति आय को दोगुना किया जा सके। 12वीं पंचवर्षीय योजना काल 2012 से 2017 के लिए भी जीडीपी को 9 से 10 प्रतिशत के बीच टिकाए रखने का लक्ष्य रखा गया था। आज भारत की विकास दर 3 प्रतिशत के आसपास है। वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में देश की विकास दर में लगभग 24 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है, जो दुनिया में सर्वाधिक गिरावट है। कोरोना की समस्या तो पूरी दुनिया में है। अमेरिका के सर्वाधिक कोरोना प्रभावित होने के बावजूद वहां की जीडीपी मात्र 10 प्रतिशत गिरी है। जबकि भारत की जीडीपी दुनिया में सर्वाधिक 24 प्रतिशत गिरी है। इस हालात को समझना होगा।
सभी की आजीविका और बेहतर आमदनी की व्यवस्था समावेशी विकास का मूलमंत्र
मुख्यमंत्री ने समावेशी विकास की अवधारणा को छत्तीसगढ़ में लागू किया करने के संबंध में कहा कि समाज के जो लोग चाहे वे छोटे किसान हों, गांव में छोटा-मोटा काम-धंधा करने वाले लोग हों, खेतिहर मजदूर हांे, वनोपज पर आश्रित रहने वाले वन निवासी तथा परंपरागत निवासी हों, चाहे कमजोर आर्थिक स्थिति वाले परिवार की महिलाएं हों, ग्रामीण अंचलों में परंपरागत रूप से काम करने वाले बुनकर हांे, शिल्पकार हांे, लोहार हों, चर्मकार हों, वनोपज के जानकार हों, सभी के पास कोई न कोई हुनर है, जो उन्हें परंपरागत रूप से मिलता है। समय की मार ने उनकी चमक, उनकी धार को कमजोर कर दिया है। उनके कौशल को बढ़ाया जाए, उनके उत्पादों को अच्छा दाम मिले, अच्छा बाजार मिले तो वे बड़ा योगदान कर सकते हैं। ऐसे सभी लोगों की आजीविका और बेहतर आमदनी की व्यवस्था करना ही समावेशी विकास का मूलमंत्र है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हमें यह समझना होगा कि हर परिवार के पास आजीविका का साधन हो। मुख्यतः अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, आर्थिक रूप से कमजोर तबकों को राज्य के संसाधन और उनकी आय के साधन सौंपकर हम आर्थिक विकास के लाभों के समान वितरण का लक्ष्य हासिल कर सकते हैं। दिसम्बर 2018 से छत्तीसगढ़ में हमने जिस तरह की नीति-रीति अपनाई है, उसे देखकर समावेशी विकास को समझा जा सकता है।
किसानों को माना अर्थव्यवस्था की धुरी
मुख्यमंत्री ने रेडियो वार्ता के श्रोताओं से कहा कि किसान को जब हम अर्थव्यवस्था की धुरी मान लेंगे तो समझ लीजिए कि समावेशी विकास की धुरी तक पहुंच गए हैं। ‘राजीव गांधी किसान न्याय योजना’ से प्रदेश के 19 लाख किसानों को लाभ मिल रहा है। दो किस्तों में 3 हजार करोड़ का भुगतान हो चुका है। अब जल्दी ही पूरे 5700 करोड़ रू. भुगतान का वादा भी पूरा हो जाएगा। हमने न सिर्फ धान के किसानों को 2500 रूपए प्रति क्विंटल देने का वादा पूरा किया है, बल्कि मक्का, गन्ना के साथ छोटी-छोटी बहुत सी फसलों का भी बेहतर दाम देंगे। राज्य सरकार ने कर्ज माफी की, सिंचाई कर माफ किया और अब न्याय योजनाओं का सिलसिला भी शुरू कर दिया है। गोधन न्याय योजना के चालू होते ही गौठान निर्माण में तेजी आई है। हर 15 दिन में हम खरीदे गए गोबर का भुगतान कर रहे हैं। स्व-सहायता समूह से जुड़कर ग्रामीण महिलाएं गोबर खरीदकर, वर्मी कम्पोस्ट बना रही हैं। इस तरह से ग्रामीण जनता ही नहीं, बल्कि अनेक संस्थाओं को भी अपनी भूमिका निभाने का अवसर मिला। ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए गांव के सभी वर्गों का एकजुट होना, मेरे ख्याल से सिर्फ आर्थिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक क्रांति भी है। जिस तरह से कुछ लोग गाय और शिक्षा प्रणाली को लेकर सिर्फ बातें करते थे, करते कुछ नहीं थे। उन्हें यह देखना चाहिए कि हमारे 40 नए इंग्लिश मीडियम स्कूलों में प्रवेश भी अब सम्मान का विषय बन गया है। ‘पढ़ाई तुंहर दुआर’ ‘पढ़ाई तुंहर पारा’, जैसे लोक अभियानों से हमने बच्चों को पढ़ाई से जोड़े रखा है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हमें वरिष्ठ सांसद राहुल गांधी जी ने ही न्याय योजना शुरू करने, हर ब्लॉक में फूडपार्क खोलने जैसे व्यावहारिक उपाय बताए थे। हमने 200 फूडपार्क खोलने की योजना बना ली है और इनमें से 100 से ज्यादा के लिए जमीन का इंतजाम भी हो गया। औद्योगिक विकास को ब्लॉक स्तर पर पहुंचाने वाली नई औद्योगिक नीति लागू कर दी है। मुख्यमंत्री को श्रोताओं ने बताया कि आमचो बस्तर, आमचो ग्राम, आमचो रोजगार योजना के माध्यम से उन्हें लाभ मिलना शुरू हो गया है। इसी तरह पंचायत में लगाए सर्वर से भी लोगों को लाभ मिल रहा है। राजनांदगांव जिले के गर्रापार के श्री मानवेन्द्र साहू ने नरवा-गरवा -घुरवा- बारी के माध्यम से समावेशी विकास और रोजगार के संबंध में मुख्यमंत्री से जानकारी चाही। मुख्यमंत्री ने कहा कि सुराजी गांव योजना को आप लोगों ने जिस तरह से हाथों-हाथ लिया है, उससे मैं बहुत उत्साहित हूं। यह योजना वास्तव में ग्रामवासियों को ही चलानी है। नरवा का पानी सिंचाई के लिए भी जरूरी है और अन्य कार्यों के लिए भी। गरवा, गौठान, गोधन न्याय योजना सब एक दूसरे से जुड़ गए हैं। जैविक खाद भी बन रही है और मूर्तियां भी। हर गौठान में समिति भी हैं और इनके साथ महिला स्व-सहायता समूह भी बन रहे हैं। सब मिलकर अपने गांव की जमीन को उपजाऊ भी बना रहे हैं और रोजगार का नया-नया साधन भी अपना रहे हैं। गौठान, गोधन, बाड़ी, जैविक खाद निर्माण विपणन आदि के माध्यम से लाखों लोगों के लिए रोजगार के रास्ते बन रहे हैं। गांव के संसाधन को जब गांव के लोग अपना समझकर उसे आर्थिक उन्नति के लिए उपयोग में लाते हैं, तो यह समावेशी विकास का सबसे अच्छा उदाहरण बन जाता है। मेरा पूरा विश्वास है कि आप सब लोग मिलकर गांवों को सचमुच में चमन बना देंगे और यही छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी ताकत होगी।
छत्तीसगढ़ ने साबित किया: समावेशी विकास ही सर्वांगीण विकास का रास्ता
मुख्यमंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ ने यह साबित किया है कि समावेशी विकास ही सर्वांगीण विकास का रास्ता है। उन्होंने कहा कि हमने यह देखा कि किसी भी तरह किसानों, ग्रामीणों, आदिवासियों, महिलाओं, युवाओं की जेब में नगद राशि डाली जाए। यह राशि डेढ़ साल में 70 हजार करोड़ रू. तक पहुंच गई। इस तरह प्रदेशवासियों को मान-सम्मान के साथ उनके स्वावलंबन का रास्ता बनाया है। हमारी योजनाओं से हर तबके को लाभ मिला। बिजली बिल हाफ, छोटे भू-खंडों की खरीदी-बिक्री, गाइड लाइन दरों में 30 प्रतिशत कमी, पंजीयन शुल्क में कमी, राजस्व संबंधी मामलों का निपटारा, भूमिहीनों को भूमि प्रदाय और ऐसे अनेक सुधार किए जिसके कारण आम आदमी का जीवन आसान हुआ। इस तरह लाखों लोगों के हाथ प्रदेश की अर्थव्यवस्था को संभालने में मददगार बने। हमने कोरोना संकट के बीच, एक ओर जहां सरकारी कर्मचारियों का वेतन यथावत् रखा, कोई कटौती नहीं की, वहीं प्रवासी मजदूरों सहित उद्योग, व्यापार और कारोबार जगत पर विश्वास किया। किसानों से लेकर व्यापारियों तक, सबके बीच हमारा विश्वास का रिश्ता बना है, उसी के कारण खेती भी चली और उद्योगों के पहिये भी चले। हमारी नीतियों से गांवों से लेकर शहरों तक वित्तीय तरलता बनी रही जिससे लोगों को रोजगार मिला और बेरोजगारी की दर घटी। हमने यूपीए सरकार की महात्मा गांधी नरेगा योजना की विरासत को संजोया और उसमें प्राण फूंके, जिससे देश में मनरेगा के तहत काम और मजदूरी देने वाले अग्रणी राज्य बने। तेंदूपत्ता की संग्रहण मजदूरी 4 हजार रू. करके ही चुप नहीं बैठे, बल्कि लघु वनोपजों की खरीदी 7 से बढ़ाकर 31 वस्तुओं तक पहुंचा दी। जो महुआ 17 रू. में बिकता था उसे 30 रू. किलो में खरीदा। ऐसे तमाम काम जनता की जरूरतें और दुख-दर्द को समझने वाली सरकार ही कर सकती है। अपनी संस्कृति से लेकर जनता की आर्थिक स्थिति तक से सीधा जुड़ाव, उनकी स्वास्थ्य सेवाओं से लेकर, हर परिस्थिति में शिक्षा-दीक्षा के इंतजाम, पोषण और प्रगति के इंतजाम करना ही हमारा मुख्य उद्देश्य रहा है। लॉकडाउन के बीच भी पीडीएस, आंगनबाड़ी, मध्याह्न भोजन योजना, कुपोषण मुक्ति अभियान पूरी गति से चलता रहा, जिसके कारण कुपोषण की दर में भी कमी आई। ऐसे सभी प्रयास जो आम जनता या कमजोर तबकों को सीधे मदद करते हैं, ये सब समावेशी विकास के प्रयास ही हैं। जिसका नतीजा राज्य के सर्वांगीण विकास के रूप में मिल रहा है। मुख्यमंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ ने यह साबित किया है कि समावेशी विकास ही सर्वांगीण विकास का रास्ता है।
राजमेरगढ़ और कबीर चबूतरा में सात करोड़ रूपए की लागत से विकसित किए जाएगा ईको रिसार्ट और कैफेटेरिया
    मुख्यमंत्री ने कहा कि गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही जिला गठन के 6 माह के अंदर, वहां करीब 100 करोड़ रूपए के विकास कार्यों की स्वीकृति मिल चुकी है। कई कार्य प्रगति पर हैं। मरवाही अनुभाग, मरवाही नगर पंचायत, सरकारी अंग्रेजी माध्यम शाला तथा महंत बिसाहूदास उद्यानिकी महाविद्यालय, एक के बाद एक नई-नई उपलब्धियां नए जिले के खाते में जुड़ती जा रही हैं। नए जिले में पर्यटन विकास की संभावनाओं को साकार किया जाएगा। साथ ही इसे ग्रामीण विकास के रोल मॉडल के रूप में विकसित किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने लोकवाणी में ही घोषणा करते हुए कहा कि राजमेरगढ़ और कबीर चबूतरा की प्राकृतिक छटा और ऐतिहासिक महत्व का सम्मान करते हुए यहां ईको रिजॉर्ट, कैफेटेरिया तथा अन्य पर्यटन अधोसंरचनाओं का विकास तेजी से किया जाएगा। फिलहाल इसके लिए 7 करोड़ रू. की लागत से विकास कार्य शीघ्र शुरू होंगे।
कोरोना संक्रमण की रोकथाम और उपचार के लिए किए जा रहे हर संभव उपाय
मुख्यमंत्री ने प्रदेश में कोरोना संकट से निपटने के लिए किए जा रहे प्रयासों की जानकारी देते हुए कहा कि मार्च 2020 की स्थिति में केवल एम्स रायपुर में ही कोविड टेस्टिंग की सुविधा थी, जिसे बढ़ाना एक बड़ी चुनौती थी। आज की स्थिति में राज्य के सभी 6 शासकीय मेडिकल कॉलेज, 4 निजी लैब में आर.टी.पी.सी.आर. टेस्ट, 30 लैब में ट्रू नॉट टेस्ट तथा 28 जिला अस्पतालों सहित सभी सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में रैपिड एंटीजन किट से टेस्ट की व्यवस्था कर दी गई है। मार्च 2020 में प्रदेश में कोरोना संक्रमित मरीजों के उपचार की सुविधा केवल एम्स रायपुर में थी, लेकिन राज्य शासन ने सुनियोजित कार्ययोजना से अब तक 29 शासकीय, 29 डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल, 186 कोविड केयर सेन्टर की स्थापना कर दी है। 19 निजी अस्पतालों को भी उपचार हेतु मान्यता दी गई है। मार्च 2020 की स्थिति में 54 आईसीयू बिस्तर तथा 446 जनरल बेड उपलब्ध थे, जिसमें बढ़ोतरी करते हुये अब 776 आईसीयू बेड्स तथा 28 हजार 335 जनरल बेड उपलब्ध करा दिए गए हैं, जो कि एक बड़ी उपलब्धि है। राज्य के सरकारी अस्पतालों में आपातकालीन सुविधा हेतु 148 वेन्टिलेटर थे। जो अब बढ़कर 331 हो गए हैं। मुख्यमंत्री बघेल ने कहा कि संक्रमण की रोकथाम और उपचार के लिए हर संभव उपाय किए जा रहे है।
एसिम्टोमेटिक मरीजों को होम आइसोलेशन की सुविधा: टेलीमेडिसिन परामर्श केन्द्र से उपचार हेतु मार्गदर्शन
मुख्यमंत्री ने कहा कि इस वक्त सबसे बड़ी जरूरत है कि सब लोग मिलकर हिम्मत का परिचय दें। सावधानी और साहस से यह दौर भी निकल जाएगा। राज्य में ज्यादातर व्यक्ति एसिम्टोमेटिक श्रेणी के आ रहे हैं। इसको लेकर भी भ्रमित होने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन फेस मास्क और फेस शील्ड के महत्व को समझें। हाथ साफ करने के लिए साबुन-पानी, सेनेटाइजर का उपयोग करें। भीड़ से बचें। एसिम्टोमेटिक मरीजों के होम आइसोलेशन की सुविधा भी नियमानुसार उपलब्ध है। लगातार समीक्षा और सुधार से स्थितियों को बेहतर किया जा रहा है। टेलीमेडिसिन परामर्श केन्द्र के माध्यम से पूर्ण जानकारी, उपचार हेतु मार्गदर्शन व दवाईयॉ उपलब्ध कराने की सुविधा भी दी है। संकट अभी टला नहीं है। सावधानी जरूरी है।

दुर्ग / शौर्यपथ / ट्यूशन फीस को लेकर प्रशासन, प्रायवेट स्कूल और पालकों के बीच टकराव चरम सीमा में पंहुच गया है और अब पैरेंट्स एसोसियेशन ने भी ट्यूशन फीस को लेकर अधिनियम और संहिता का हवाला देकर शिक्षा विभाग और प्रायवेट स्कूलों को कटघरे में खड़ा करने की तैयारी कर रहा है।
फैक्ट फाईल
आयकर अधिनियम 1961 की धारा 80 सी के अनुसार ट्यूशन फीस वह फीस होता है, जो हम अपने बच्चों के पढ़ाई के लिए स्कूल को देते है, जिसमें डेवलपमेंट, डोनेशन, कैपिटेशन और लेट फीस शामिल नहीं है। शिक्षा संहिता नियम 124ए अघ्याय 9-शिक्षा शुल्क पेज नं. 831 के अनुसार ट्यूशन फीस या शैक्षणिक शुल्क का आशय यह कि शासकीय एंव आशाकीय विद्यालयों में विभिन्न पाठ्यक्रम संबंधी एवं पाठ्येत्तर गतिविधियों के संचालन हेतु जो शुल्क लिया जाता है, उसे ट्यूशन फीस या शैक्षणिक शुल्क कहा जाता है। स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा जारी सर्कुलर गत 22 अप्रैल 2016 के अनुसार स्कूल में फीस का निर्धारण स्कूल के पालकों की आम सहमति और जिला शिक्षा अधिकारी की उपस्थिति में निर्धारित किया जाएगा। सीबीएसई एफिलियेशन बायलॉस 2018 के अनुसार स्कूलों में फीस पीटीए (पैरेंट्स टीचर एसोसियेशन) द्वारा स्कूलों में दी जा रही सुविधाओं के अनुसार निर्धारित होगा। यह कि, फीस अधिसूचित/अनुमोदित करने के उपरांत इसे जनसामान्य को अवगत कराने हेतु विद्यालय के सूचना पटल में प्रदर्शित किया जाना अनिवार्य है। यह कि, स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा जारी सर्कुलर 22.04.2016 के अनुसार शुल्क निर्धारण के उपरांत यदि यह पाया जाता है कि, शुल्क का निर्धारण याथोचित रूप से नहीं किया गया है एवं इस संबंध में पालक वर्ग संतुष्ट नहीं है तो जिला शिक्षा अधिकारी इस हेतु समग्र रूप से उत्तरदायी होगें।
इन मदों में ले रहे हैं निजी स्कूल फीस
प्रदेश के 8 हजार प्राईवेट स्कूल शिक्षण शुल्क, डेवलपमेंट फीस,मेडिकल शुल्क, बिल्डिंग शुल्क,मेंनटेंनेंश शुल्क, टर्म फीस,बागवानी शुल्क, योगा शुल्क,अमलगमेटेड फंड, निर्धन छात्र शुल्क, स्मार्ट क्लास, परिवहन शुल्क,वार्षिक शुल्क,एडमिशन शुल्क,डायरी शुल्क,आईडी कार्ड शुल्क,टाई-बेल्ट शुल्क,रेडक्रास शुल्क, परीक्षा शुल्क,क्रीड़ा शुल्क विज्ञान शुल्क,स्काउड/गाईड शुल्क, पत्रिका शुल्क, छात्र समूह बीमा योजना शुल्क, क्रियाकलाप/एक्टिविटी शुल्क, लेट फीस, बोर्ड एफिलियेशन फीस, कम्प्युटर फीस,लैब फीस, कॉसन मनी का फीस लिया जाता है।

रायपुर / शौर्यपथ / छत्तीसगढ पैरेंट्स एसोसियेशन के प्रदेश अध्यक्ष क्रिष्टोफर पॉल ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर यह जानकारी दिया गया कि देश में निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम वर्ष 2009 से प्रभावशाली है और निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार नियम वर्ष 2010 से प्रभावशाली है। छत्तीसगढ़ सरकार ने भी निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार नियम वर्ष 2010 से लागू कर दिया, लेकिन इस कानून को प्रायवेट स्कूलों में ज्यादा और सरकारी स्कूलों में कम उपयोग किया जाता है, क्योंकि वर्ष 2010 से लेकर 2020 तक इस अधिनियम के अंतर्गत पात्र बच्चों को सिर्फ प्रायवेट स्कूलों में प्रवेश दिलाया जा रहा है और अब तक लगभग 2.85 लाख बच्चों को प्रवेश दिलाया जा चुका है। वहीं इस अधिनियम के अंतर्गत कितने पात्र बच्चों को सरकारी स्कूलों में भर्ती कराया गया, इसकी जानकारी शिक्षा विभाग के पास नहीं है, जबकि इस कानून के अंतर्गत सर्वप्रथम पात्र बच्चों को सरकारी स्कूलों में फिर अनुदान प्राप्त प्रायवेट स्कूलों में और अंत में गैर सहायता प्राप्त प्रायवेट स्कूलों में प्रवेश दिलाया जाना है, लेकिन शिक्षा विभाग द्वारा विगत दस वर्षो में आरटीई कानून के अतंर्गत सर्वप्रथम पात्र बच्वों प्रायवेट स्कूलों में प्रवेश दिलाया जा रहा है और अब जब प्रायवेट स्कूल और पालकों के बीच ट्यूशन फीस को लेकर गतिरोध बढ़ते जा रहा है, तो प्रमुख सचिव स्कूल शिक्षा विभाग कह रहे है कि यदि प्रायवेट स्कूलों में पालकों को परेशानी हो रही है तो सरकारी स्कूल में आ जाए, जहां ऑनलाईन क्लासेस चल रही है।
जरा सोचिए, पालक अपने बच्चों को प्रायवेट अंग्रेजी मिडियम स्कूल से निकाल कर सरकारी हिन्दी मिडियम स्कूल में भर्ती कराए, जहां टीचरों और संसाधन की भारी कमी है, यदि सरकारी स्कूल इतना अच्छा है तो फिर आरटीई के अंतर्गत विगत दस वर्षो में पात्र बच्चों को सरकारी स्कूल में प्रवेश क्यों नहीं कराया गया? क्यों 2.85 लाख बच्चों को प्रायवेट स्कूलों में प्रवेश दिलाया गया?
प्रमुख सचिव स्कूल शिक्षा विभाग के इस गैर जिम्मेदार बयान का छत्तीसगढ पैरेंट्स एसोसियेशन घोर विरोध करता है। शिक्षा का अधिकार कानून का पहले सरकारी स्कूलों में कड़ाई से पालन कराया जाना चाहिए, जहां टीचरों और संसाधन के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति किया जा रहा है और मानदंडों, मानको और शर्तो की धाजियां उड़ाई जा रही है।
पैरेंट्स एसोसिएशन के रायपुर जिला सचिव पनेश त्रिवेदी ने कहा कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा का अधिकार कानून का यदि कड़ाई से पालन कराया जाए तो आधी से अधिक स्कूलों में ताला लग जाएगा और ऐसे सरकारी स्कूलों में पालको को अपने बच्चों को पढ़ाने की नसीहत देने वाले अधिकारीयों की तत्काल छुट्टी कर दिया जाएगा।

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