September 30, 2025
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शौर्य की बाते ( सम्पादकीय )

शौर्य की बाते ( सम्पादकीय ) (189)

 शौर्यपथ / छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा प्रस्तावित युतियुक्तिकरण  योजना (School Rationalization Policy) एक ऐसी पहल है, जो आने वाले समय में प्रदेश के शैक्षणिक नक्शे पर दूरगामी बदलाव लाने जा रही है। वर्तमान में भले ही यह योजना कुछ राजनीतिक दलों और संगठनों के लिए विरोध का विषय बनी हो, परंतु इसके मूल में निहित उद्देश्य और लाभों पर गौर किया जाए तो यह स्पष्ट होता है कि यह योजना शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता, दक्षता और समावेशिता की ओर एक सशक्त कदम है।

⚖️ क्या है युतियुक्तिकरण योजना?

युतियुक्तिकरण योजना का मूल उद्देश्य ऐसे शासकीय विद्यालयों का एकीकरण करना है, जहां छात्र संख्या अत्यंत कम है—30-40 या 50 के आसपास। इस प्रक्रिया के अंतर्गत आसपास के ऐसे स्कूलों को एक केंद्रीकृत विद्यालय में विलय किया जाएगा, जहां उचित भवन, पर्याप्त शिक्षक, प्रशासनिक स्टाफ, क्लर्क और संसाधन उपलब्ध होंगे। इसके माध्यम से न केवल बच्चों को बेहतर शैक्षणिक वातावरण मिलेगा, बल्कि शासन के खर्चों का भी समुचित उपयोग सुनिश्चित होगा।

? वर्तमान व्यवस्था की गंभीर चुनौतियां

छत्तीसगढ़ के सुदूर ग्रामीण अंचलों और कस्बों में आज भी अनेक शासकीय विद्यालय ऐसे हैं, जो नाममात्र की छात्र संख्या के साथ संचालित हो रहे हैं। इन स्कूलों में मात्र एक शिक्षक के भरोसे स्कूल की पूरी व्यवस्था चलाना किसी संवैधानिक शिक्षा अधिकार की आत्मा के साथ न्याय नहीं है। इतना ही नहीं, स्टाफ की कमी, भवनों की मरम्मत, प्रशासनिक अभिलेखों के रख-रखाव जैसी अनिवार्य व्यवस्थाएं शासन पर प्रति विद्यालय लाखों रुपये का व्यय लाद रही हैं।

?? कम छात्र संख्या = कम प्रतिस्पर्धा, सीमित मानसिक विकास

कम छात्रों की कक्षा में प्रतिस्पर्धा का वातावरण नहीं पनपता, जो बच्चों के समग्र मानसिक विकास में बाधा उत्पन्न करता है। आज जब देश NEP-2020 के तहत 21वीं सदी की प्रतिस्पर्धात्मक शिक्षा व्यवस्था की ओर बढ़ रहा है, तब बच्चों को सीमित संसाधनों में शिक्षित करना उन्हें पीछे छोड़ने जैसा होगा।

? एकीकृत विद्यालय – गुणवत्ता की नई परिभाषा

युतियुक्तिकरण के तहत अगर 5 विद्यालयों के छोटे बच्चों को मिलाकर एक उच्चतर, सुव्यवस्थित स्कूल में समाहित किया जाए, तो—

अनुभवी शिक्षक उपलब्ध होंगे
विज्ञान, गणित, कला, खेल आदि विषयों में विशेषज्ञता होगी
छात्र आपसी प्रतियोगिता के माध्यम से अधिक प्रगति करेंगे
शासन द्वारा प्रति विद्यार्थी बजट प्रभावी तरीके से गुणवत्ता पर निवेश किया जा सकेगा
डिजिटल व स्मार्ट क्लास जैसे नवाचार संभव होंगे

? ग्रामीण और शहरी संतुलन की ओर एक पहल

आज शहरी स्कूलों में छात्र संख्या अधिक व संसाधन अपेक्षाकृत बेहतर हैं। वहीं ग्रामीण क्षेत्र के स्कूल संसाधनों और शिक्षकों की कमी से जूझते हैं। युतियुक्तिकरण इस असंतुलन को पुनर्संतुलित कर सकता है। जिस प्रकार से समृद्ध निजी स्कूलों में शिक्षा के स्तर को लेकर प्रतिस्पर्धा होती है, उसी प्रकार सरकारी स्कूल भी आने वाले वर्षों में नवाचार, प्रतिस्पर्धा और उत्कृष्टता के मानदंड स्थापित कर सकेंगे।

? विपक्ष का विरोध और शासन की दूरदृष्टि

विपक्षी दलों का यह तर्क कि ‘स्कूल बंद किए जा रहे हैं’ या ‘शिक्षा को पीछे ले जाया जा रहा है’, एक आंशिक और सतही दृष्टिकोण है। यदि 5 विद्यालयों के 40-50 छात्रों को एक उच्चतर स्कूल में लाया जाए, तो कुल लगभग 300 छात्रों के लिए एक बेहतर संस्थान विकसित किया जा सकता है। इसमें किसी प्रकार की शिक्षा की कटौती नहीं, बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता और प्रासंगिकता को बढ़ावा देना ही प्रमुख उद्देश्य है।

? यूटी युक्तिकरण : शिक्षा के माध्यम से समृद्ध समाज की ओर

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की यह योजना न केवल प्रशासनिक कुशलता का परिचायक है, बल्कि एक दूरदर्शी शैक्षणिक दृष्टिकोण भी प्रस्तुत करती है। शिक्षा ही समाज, प्रदेश और राष्ट्र की सबसे बड़ी पूंजी है। यदि शिक्षा सशक्त होगी तो प्रदेश की आने वाली पीढ़ी रोज़गार, नवाचार और राष्ट्र निर्माण में अग्रणी भूमिका निभाएगी।

? निष्कर्ष : सुनहरे भविष्य की नींव

युतियुक्तिकरण योजना को केवल संख्या या भवन के घटाव के रूप में नहीं, बल्कि गुणवत्ता, प्रतिस्पर्धा और मानसिक विकास की नींव के रूप में देखा जाना चाहिए। यह योजना छत्तीसगढ़ को शिक्षित, सक्षम और प्रतिस्पर्धी राज्य बनाने की दिशा में उठाया गया एक ऐतिहासिक कदम है। आने वाले वर्षों में जब शासकीय विद्यालय भी निजी स्कूलों को टक्कर देने लगें, तब यह स्पष्ट हो जाएगा कि यह विरोध नहीं, बल्कि एक भविष्यगामी क्रांति का प्रारंभ था।

? लेखक : शरद पंसारी
संपादक – शौर्यपथ दैनिक समाचार

✍️ विशेष लेख | शौर्य विश्लेषण

नागपुर में हाल ही में आयोजित एक पुस्तक विमोचन समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत का एक संक्षिप्त लेकिन गूढ़ वक्तव्य पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया है। उन्होंने कहा:

"जब आपको कोई 75 साल का होने पर बधाई देता है, तो इसका मतलब होता है कि अब आपको रुक जाना चाहिए और दूसरों को काम करने देना चाहिए।"

भागवत का यह वक्तव्य प्रथम दृष्टया एक सामान्य सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ में दिया गया बयान प्रतीत होता है, लेकिन इसकी राजनीतिक व्याख्या भी तेजी से होने लगी है — खासकर तब जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले वर्ष (2026 में) अपनी 75वीं वर्षगांठ मनाने वाले हैं।


? प्रसंग: मोरोपंत पिंगले पर विमोचन समारोह

संघ प्रमुख मोहन भागवत नागपुर में संघ विचारक दिवंगत मोरोपंत पिंगले पर लिखी पुस्तक “मोरोपंत पिंगले: द आर्किटेक्ट ऑफ हिंदू रिवाइवलिज्म” के विमोचन कार्यक्रम में बोल रहे थे। इसी दौरान उन्होंने यह टिप्पणी की।

भागवत ने मोरोपंत पिंगले के जीवन और दृष्टिकोण की चर्चा करते हुए कहा कि:

"75 वर्ष की उम्र में उन्होंने सार्वजनिक जिम्मेदारियों से स्वयं को अलग करना एक नैतिक अनुशासन माना था।"

इस संदर्भ में भागवत ने कहा कि यह एक "सीख" है — जिससे नई पीढ़ी को अवसर देने की भावना निहित है।


? राजनीतिक और वैचारिक विमर्श

इस बयान को जैसे ही सार्वजनिक विमर्श में जगह मिली, राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा होने लगी कि कहीं यह वक्तव्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संभावित भविष्य को लेकर कोई संकेत तो नहीं है।

RSS लंबे समय से यह संकेत देता आया है कि संस्था में आयुसीमा और उत्तरदायित्व को लेकर अनुशासन की परंपरा है। संघ के भीतर 75 वर्ष की आयु पार करने पर सक्रिय जिम्मेदारियों से स्वयं हटने का नैतिक अनुशासन देखा गया है।

प्रधानमंत्री मोदी स्वयं भी कई मौकों पर "नए नेतृत्व को स्थान देने" की बात करते रहे हैं, हालांकि उन्होंने अपने रिटायरमेंट को लेकर कभी कोई स्पष्ट टिप्पणी नहीं की।


? क्या यह प्रधानमंत्री मोदी के लिए संकेत है?

यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि मोहन भागवत का बयान सीधे तौर पर प्रधानमंत्री मोदी के लिए ही था, लेकिन निम्न कारणों से यह चर्चा को जन्म देता है:

  1. प्रधानमंत्री मोदी 2026 में 75 वर्ष के हो जाएंगे।

  2. संघ की आंतरिक परंपरा में 75 वर्ष के बाद जिम्मेदारियों से मुक्त होने का चलन है।

  3. भागवत ने यह बयान ऐसे समय में दिया जब देश में 2029 की तैयारियों पर सोचने का समय आ चुका है।

हालांकि, यह भी उतना ही सत्य है कि भारतीय राजनीति में आयु से अधिक जनाधार और परिणाम को प्राथमिकता दी जाती है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में पार्टी को मिली लगातार दो बड़ी चुनावी जीतें इस यथार्थ का प्रमाण हैं।


⚖️ एक संतुलित दृष्टिकोण क्यों ज़रूरी है?

एक ओर मोहन भागवत का बयान अनुभव और सेवा के सम्मान के साथ प्रत्यावर्तन (transition) की संस्कृति को दर्शाता है, वहीं दूसरी ओर यह किसी के लिए आवश्यक सेवानिवृत्ति का आदेश नहीं, बल्कि आत्मनिरीक्षण और उत्तरदायित्व सौंपने की प्रेरणा है।

यह बयान हमें इस बात की भी याद दिलाता है कि संस्थाएं तभी जीवित रहती हैं जब वे नई ऊर्जा और विचारधारा को स्थान देती हैं, लेकिन साथ ही यह भी महत्वपूर्ण है कि वर्तमान नेतृत्व की उपलब्धियों का समुचित मूल्यांकन हो।


? निष्कर्ष: संकेत, संवाद और संतुलन

संघ प्रमुख मोहन भागवत के इस वक्तव्य को अगर केवल प्रधानमंत्री मोदी के संदर्भ में देखना सीमित दृष्टिकोण होगा। यह एक व्यापक संस्था आधारित चिंतन है जिसमें सेवा, विराम, उत्तरदायित्व, और उत्तराधिकार का संतुलन है।

भारत जैसे विविधतापूर्ण लोकतंत्र में यह जरूरी है कि इस तरह के बयानों को राजनीति के सीमित चश्मे से देखने के बजाय वैचारिक परिपक्वता और संस्थागत अनुशासन के संकेत के रूप में भी समझा जाए।

शौर्यपथ सम्पादकीय -

छत्तीसगढ़ पुलिस सेवा में दो दशक से अधिक का अनुभव, कर्तव्यनिष्ठा से भरा जीवन, और उपलब्धियों से सजी कार्ययात्रा — यह परिचय है दुर्ग कोतवाली में पदस्थ थाना निरीक्षक श्रीमती ममता अली शर्मा का, जिन्होंने हाल ही में डीएसपी के पद पर पदोन्नति प्राप्त कर इतिहास रच दिया है।

? एक रिकॉर्ड, जो बना प्रेरणा की मिसाल

श्रीमती ममता अली शर्मा, दुर्ग कोतवाली में पदस्थ रहते हुए डीएसपी पद पर पदोन्नति पाने वाली छत्तीसगढ़ पुलिस की पहली महिला थाना प्रभारी बनी हैं। यह केवल एक पदोन्नति नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक क्षण है, जो आने वाली पीढ़ियों की महिला अधिकारियों के लिए प्रेरणा बन गया है। दुर्ग कोतवाली उनके लिए एक ऐसा अध्याय बन गया है, जहां उन्होंने सेवा के अंतिम दौर में एक स्वर्णिम रिकॉर्ड रच डाला।

?‍♀️ सेवा की शुरुआत और सशक्त यात्रा

वर्ष 2000 में सब-इंस्पेक्टर के रूप में छत्तीसगढ़ पुलिस में नियुक्ति पाने वाली ममता जी की पहली पोस्टिंग बिलासपुर में हुई थी। सागर पुलिस अकादमी से प्रशिक्षण प्राप्त कर उन्होंने जिस निष्ठा और समर्पण से अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया, वह उन्हें आज इस ऊंचाई तक ले आया।

25 वर्षों की सेवा यात्रा में ममता जी ने ब्रेवरी अवार्ड, पर्यावरण सम्मान, डीजीपी अवार्ड सहित अनेकों प्रशंसा पत्र और सम्मान प्राप्त किए। उनकी बेदाग छवि और जुझारू कार्यशैली ने उन्हें विभाग में विशिष्ट स्थान दिलाया है।

?‍♀️ एक यादगार रात्रि – बहादुरी की जीवंत मिसाल

ममता जी के जीवन का एक किस्सा आज भी उनके स्मृति-पटल पर जीवंत है। एक बार जब वह मुख्यमंत्री ड्यूटी से लौट रही थीं, अचानकपुर के जंगल मार्ग पर उन्हें शिकारियों की संदिग्ध गतिविधियों का आभास हुआ। बिना किसी योजना के, सूझबूझ और टीम वर्क के साथ उन्होंने शिकारियों को मृत शिकार सहित रंगे हाथों पकड़ लिया। यह क्षण उनके जीवन की सबसे साहसी और गर्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक बन गया।

? परिवार – शक्ति का आधार

अपने कर्तव्यों के साथ-साथ ममता जी एक आदर्श पत्नी और माता भी हैं। उनके पति एक व्यवसायी हैं और दो पुत्र – एक 16 वर्षीय और दूसरा 12 वर्षीय – उनकी दुनिया का केंद्र हैं। उनका छोटा और सशक्त परिवार ही उनकी शक्ति और प्रेरणा का स्त्रोत है।

? शिक्षा और व्यक्तित्व

श्रीमती ममता अली शर्मा ने बीएससी एवं एमए (अंग्रेज़ी) की शिक्षा ग्रहण की है। पढ़ाई और पेशे के संतुलन से उन्होंने यह सिद्घ किया है कि एक महिला बहुआयामी बनकर समाज में नई दिशा दे सकती है।

? एक संदेश नारी शक्ति को

वह दौर था जब महिलाएं शिक्षिका या कार्यालयी कामों तक सीमित थीं। ऐसे समय में ममता जी ने पुलिस सेवा को चुना और यह साबित किया कि यदि संकल्प हो तो कोई भी क्षेत्र महिलाओं के लिए वर्जित नहीं। उनका जीवन उन सभी युवतियों के लिए एक सशक्त उदाहरण है जो अपने सपनों को साहस और निष्ठा से साकार करना चाहती हैं।


? शौर्यपथ की ओर से शुभकामनाएं

शौर्यपथ दैनिक समाचार पत्र की सम्पूर्ण टीम की ओर से श्रीमती ममता अली शर्मा को उज्ज्वल भविष्य के लिए ढेरों शुभकामनाएं। वे जिस तरह समाज और व्यवस्था को सशक्त करने की दिशा में कार्य कर रही हैं, वह न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि समूचे देश की महिलाओं के लिए गौरव और प्रेरणा का विषय है।


? मातृशक्ति को नमन ?
? नारी शक्ति को सलाम ?

✍️ लेखक - शरद पंसारी, संपादक, शौर्यपथ दैनिक समाचार पत्र

"जहां चाह वहां राह होती है, और जहां नारी संकल्प कर ले, वहां इतिहास बनता है।"

शौर्यपथ सम्पादकीय -

छत्तीसगढ़ पुलिस सेवा में दो दशक से अधिक का अनुभव, कर्तव्यनिष्ठा से भरा जीवन, और उपलब्धियों से सजी कार्ययात्रा — यह परिचय है दुर्ग कोतवाली में पदस्थ थाना निरीक्षक श्रीमती ममता अली शर्मा का, जिन्होंने हाल ही में डीएसपी के पद पर पदोन्नति प्राप्त कर इतिहास रच दिया है।

? एक रिकॉर्ड, जो बना प्रेरणा की मिसाल

श्रीमती ममता अली शर्मा, दुर्ग कोतवाली में पदस्थ रहते हुए डीएसपी पद पर पदोन्नति पाने वाली छत्तीसगढ़ पुलिस की पहली महिला थाना प्रभारी बनी हैं। यह केवल एक पदोन्नति नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक क्षण है, जो आने वाली पीढ़ियों की महिला अधिकारियों के लिए प्रेरणा बन गया है। दुर्ग कोतवाली उनके लिए एक ऐसा अध्याय बन गया है, जहां उन्होंने सेवा के अंतिम दौर में एक स्वर्णिम रिकॉर्ड रच डाला।

?‍♀️ सेवा की शुरुआत और सशक्त यात्रा

वर्ष 2000 में सब-इंस्पेक्टर के रूप में छत्तीसगढ़ पुलिस में नियुक्ति पाने वाली ममता जी की पहली पोस्टिंग बिलासपुर में हुई थी। सागर पुलिस अकादमी से प्रशिक्षण प्राप्त कर उन्होंने जिस निष्ठा और समर्पण से अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया, वह उन्हें आज इस ऊंचाई तक ले आया।

25 वर्षों की सेवा यात्रा में ममता जी ने ब्रेवरी अवार्ड, पर्यावरण सम्मान, डीजीपी अवार्ड सहित अनेकों प्रशंसा पत्र और सम्मान प्राप्त किए। उनकी बेदाग छवि और जुझारू कार्यशैली ने उन्हें विभाग में विशिष्ट स्थान दिलाया है।

?‍♀️ एक यादगार रात्रि – बहादुरी की जीवंत मिसाल

ममता जी के जीवन का एक किस्सा आज भी उनके स्मृति-पटल पर जीवंत है। एक बार जब वह मुख्यमंत्री ड्यूटी से लौट रही थीं, अचानक मार्ग लोरमी क्षेत्र के जंगल  पर उन्हें शिकारियों की संदिग्ध गतिविधियों का आभास हुआ। बिना किसी योजना के, सूझबूझ और टीम वर्क के साथ उन्होंने शिकारियों को मृत शिकार सहित रंगे हाथों पकड़ लिया। यह क्षण उनके जीवन की सबसे साहसी और गर्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक बन गया।

? परिवार – शक्ति का आधार

अपने कर्तव्यों के साथ-साथ ममता जी एक आदर्श पत्नी और माता भी हैं। उनके पति एक व्यवसायी हैं और दो पुत्र – एक 16 वर्षीय और दूसरा 12 वर्षीय – उनकी दुनिया का केंद्र हैं। उनका छोटा और सशक्त परिवार ही उनकी शक्ति और प्रेरणा का स्त्रोत है।

? शिक्षा और व्यक्तित्व

श्रीमती ममता अली शर्मा ने बीएससी एवं एमए (अंग्रेज़ी) की शिक्षा ग्रहण की है। पढ़ाई और पेशे के संतुलन से उन्होंने यह सिद्घ किया है कि एक महिला बहुआयामी बनकर समाज में नई दिशा दे सकती है।

? एक संदेश नारी शक्ति को

वह दौर था जब महिलाएं शिक्षिका या कार्यालयी कामों तक सीमित थीं। ऐसे समय में ममता जी ने पुलिस सेवा को चुना और यह साबित किया कि यदि संकल्प हो तो कोई भी क्षेत्र महिलाओं के लिए वर्जित नहीं। उनका जीवन उन सभी युवतियों के लिए एक सशक्त उदाहरण है जो अपने सपनों को साहस और निष्ठा से साकार करना चाहती हैं।


? शौर्यपथ की ओर से शुभकामनाएं

शौर्यपथ दैनिक समाचार पत्र की सम्पूर्ण टीम की ओर से श्रीमती ममता अली शर्मा को उज्ज्वल भविष्य के लिए ढेरों शुभकामनाएं। वे जिस तरह समाज और व्यवस्था को सशक्त करने की दिशा में कार्य कर रही हैं, वह न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि समूचे देश की महिलाओं के लिए गौरव और प्रेरणा का विषय है।


? मातृशक्ति को नमन ?
? नारी शक्ति को सलाम ?

✍️ लेखक - शरद पंसारी, संपादक, शौर्यपथ दैनिक समाचार पत्र

"जहां चाह वहां राह होती है, और जहां नारी संकल्प कर ले, वहां इतिहास बनता है।"

 शौर्यपथ सम्पादकीय / जब देश नींद में होता है, तब कुछ आंखें खुली रहती हैं — न सायरन बजता है, न तिरंगा लहरता है, न तालियाँ बजती हैं — लेकिन वो लोग हैं, जो हर ख़तरे की आहट पर बुलेटप्रूफ जैकेट पहनकर अंधेरे में कूद जाते हैं। वे हैं — NSG कमांडो, जिन्हें हम ब्लैक कैट्स के नाम से जानते हैं।

भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) कोई सामान्य बल नहीं, बल्कि विशेष परिस्थितियों में कार्यरत एक अत्यंत कुशल, गोपनीय और तकनीकी रूप से उन्नत बल है। इनकी पहचान उनकी वर्दी से नहीं, बल्कि अदृश्य साहस, मौन वीरता और दृढ़ संकल्प से होती है।
?️ 26/11: जब वीरता अमर हो गई

26 नवंबर 2008, मुंबई – वो काला दिन जब आतंकियों ने देश की व्यस्ततम महानगर को लहूलुहान कर दिया। सैकड़ों निर्दोष लोगों की जान खतरे में थी। तब NSG कमांडो मेजर संदीप उन्नीकृष्णन अपने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई में उतरे।

उनके अंतिम शब्द, "Don't come up, I will handle them", आज भी हर सच्चे भारतीय के हृदय को झकझोर देते हैं। उन्होंने ताज होटल में अकेले मोर्चा संभालते हुए, अपने घायल साथी को बचाया और आतंकियों को निष्क्रिय किया, लेकिन स्वयं वीरगति को प्राप्त हुए। उनकी शहादत, सिर्फ एक व्यक्ति का बलिदान नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय चेतना का जागरण है।
?️ NSG: जो हर खामोश जंग लड़ते हैं

NSG का गठन 1984 में हुआ था, लेकिन उनकी अधिकांश कार्यवाहियां आज भी गुप्त रहती हैं। ये वही बल है जो आतंकवाद, अपहरण, वीआईपी सुरक्षा, और शहरी युद्ध जैसे कार्यों में अंतिम विकल्प के रूप में सामने आता है।

जब देश ऑपरेशन ब्लू स्टार की पीड़ा को भूला नहीं था, तब ऑपरेशन ब्लैक थंडर (1988) में NSG ने बिना किसी बड़ी क्षति के उग्रवादियों को निष्क्रिय किया — यह उनकी रणनीतिक कुशलता और मानवीय सोच का परिचायक था।
?️ वीरता का सम्मान शब्दों से परे है

क्या हम कभी हवलदार सुरेंद्र सिंह या कर्नल संदीप सेन का नाम याद करते हैं? शायद नहीं, क्योंकि ये कमांडो गोपनीयता की शपथ के साथ जीते हैं, और मरते भी हैं। ना कैमरों के सामने आते हैं, ना सोशल मीडिया पर छाए रहते हैं — लेकिन हर बार जब देश पर संकट आता है, सबसे पहले यही लोग आगे बढ़ते हैं।
?? हमारी जिम्मेदारी

आज जब सोशल मीडिया पर झूठी तस्वीरों और नकली कहानियों से वीरता की छवि बनाई जा रही है, हमें वास्तविक नायकों की पहचान करनी होगी। NSG कमांडो की कहानियाँ न केवल प्रेरक हैं, बल्कि हमें याद दिलाती हैं कि स्वतंत्रता और सुरक्षा, दोनों मुफ्त नहीं होतीं।
✍️ अंत में...

इन कमांडोज़ की कोई "फैन फॉलोइंग" नहीं होती, ना ही ये गले में मेडल टांगे घूमते हैं। ये परछाइयों में लड़ने वाले योद्धा हैं, जिनके कारण हम उजालों में चैन की सांस ले पाते हैं।

उनके लिए, एक सलामी काफी नहीं — सचेत नागरिकता, फर्जी खबरों से परहेज, और राष्ट्रहित में जागरूकता ही उनकी असली श्रद्धांजलि है।

 22 जून 1968 – 22 जून 2025
लेखक: शौर्यपथ विशेष प्रतिनिधि

 परिचय: धरती से शीर्ष तक की यात्रा
छत्तीसगढ़ की राजनीति में यदि किसी महिला नेता ने जमीनी राजनीती से लेकर राष्ट्रीय मंच तक अपने व्यक्तित्व, नेतृत्व और दृष्टिकोण से गहरी छाप छोड़ी है, तो वह हैं सुश्री सरोज पांडे। 22 जून 1968 को जन्मी सरोज पांडे आज भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं, और संगठन में एक मजबूत, भरोसेमंद स्तंभ के रूप में पहचानी जाती हैं।
  उनकी राजनीतिक यात्रा दुर्ग से आरंभ हुई, लेकिन उनकी सोच और संगठनात्मक कौशल ने उन्हें देशव्यापी पहचान दिलाई। उनके जन्मदिवस के इस अवसर पर उनके द्वारा किए गए महत्वपूर्ण कार्यों और उनके जीवन के प्रेरणादायी प्रसंगों को स्मरण करना न केवल श्रद्धांजलि है, बल्कि प्रेरणा का स्रोत भी है।
 राजनीतिक सफर: संघर्ष, समर्पण और सफलता
➤ दुर्ग नगर निगम से राष्ट्रीय मंच तक
वर्ष 2000: दुर्ग नगर निगम की महापौर निर्वाचित, जहां उन्होंने अपने कुशल प्रशासन से स्वच्छता, पेयजल, सड़कों और सामुदायिक विकास में मील के पत्थर स्थापित किए।
वर्ष 2008: दुर्ग विधानसभा सीट से विधायक चुनी गईं।
वर्ष 2009: दुर्ग लोकसभा सीट से सांसद निर्वाचित होकर दिल्ली की संसद तक पहुंची।
 यह रिकॉर्ड उन्हें विशेष बनाता है — एक साथ महापौर, विधायक और सांसद बनने वाली महिला नेता।

 संगठन में महत्वपूर्ण भूमिकाएं और कार्यभार
 राष्ट्रीय पदों पर विश्वस्त जिम्मेदारी
सरोज पांडे भारतीय जनता पार्टी की उन नेताओं में हैं जिन पर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने संगठन को विस्तार देने के लिए प्रभारी, सहप्रभारी और पर्यवेक्षक के रूप में कई राज्यों में जिम्मेदारियां सौंपीं, जिनमें प्रमुख हैं:
उत्तर प्रदेश: महिला मोर्चा की प्रभारी और संगठन सशक्तिकरण की जिम्मेदारी।
झारखंड और उत्तराखंड: चुनावी रणनीति, संगठन विस्तार और महिला सशक्तिकरण योजनाओं के लिए पर्यवेक्षक।
बिहार, ओडिशा एवं महाराष्ट्र: प्रभारी के रूप में नियुक्त होकर पार्टी को नई दिशा दी।
छत्तीसगढ़: संगठन में कई बार पुनः सक्रिय भूमिका में, जहां उन्होंने चुनावी प्रबंधन में उत्कृष्ट भूमिका निभाई।
 महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष
भारतीय जनता पार्टी के महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने महिला कार्यकर्ताओं के बीच संवाद, प्रशिक्षण और नेतृत्व विकास की एक नई संस्कृति की शुरुआत की।
 भाजपा की राष्ट्रीय महासचिव और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष
पार्टी ने उन्हें संगठन के शीर्ष पद — राष्ट्रीय महासचिव और वर्तमान में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जैसे पदों पर आसीन किया।
इन पदों पर रहते हुए उन्होंने नीति निर्धारण, संवाद और कार्यकर्ता जुड़ाव जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य किया।

 प्रभावशाली वक्ता और मीडिया की प्रिय नेत्री
सरोज पांडे की पहचान एक तेजस्वी वक्ता और तर्कसंगत प्रवक्ता के रूप में भी है।
वे समाचार चैनलों, जनसभाओं, पार्टी फोरम्स पर गंभीर विषयों को सहज भाषा में रखती हैं।
उनके भाषणों में साफ सोच, स्पष्ट उद्देश्य और संगठन की दृढ़ता झलकती है।

 कार्यकर्ताओं की नेता, संगठन की शक्ति
सरोज पांडे की राजनीति केवल पद आधारित नहीं रही, बल्कि कार्यकर्ताओं के साथ जमीन पर खड़ी राजनीति रही है।
वे लगातार बूथ स्तर से लेकर मंडल, जिला और प्रदेश स्तर तक कार्यकर्ता संवाद करती रही हैं।
संगठनात्मक प्रशिक्षण, संवाद यात्रा और कार्यकर्ता सम्मान समारोहों में उनका उत्साह प्रेरणादायक रहा है।

 कुछ विशेष उपलब्धियां और स्मरणीय घटनाएं
2010 में "21वीं सदी की प्रभावशाली महिला नेता" पुरस्कार प्राप्त।
2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के स्टार प्रचारक के रूप में कई राज्यों में जनसभाएं लीं।
छत्तीसगढ़ में भाजपा के रणनीतिक चुनावी प्रबंधन की थिंक टैंक सदस्य रहीं।
महिला अधिकार, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में उन्होंने संसद में कई मुद्दों को पुरजोर ढंग से उठाया।

 जन्मदिवस पर संदेश
शौर्यपथ परिवार की ओर से सुश्री सरोज पांडे जी को जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
ईश्वर से प्रार्थना है कि उन्हें उत्तम स्वास्थ्य, दीर्घायु और निरंतर जनसेवा का अवसर मिलता रहे।
उनका जीवन न केवल एक प्रेरणा है, बल्कि आज की राजनीति में नैतिकता, नारी नेतृत्व और निष्ठा का प्रतीक है।
"सरोज पांडे — एक नाम, एक पहचान, एक आंदोलन।"
"जहां महिला शक्ति, विचार और संगठन के संगम से उठता है विश्वास का सूरज।"

भिलाई/दुर्ग । शौर्यपथ विशेष।  

    इंसानियत का कोई धर्म नहीं होता, और मदद का कोई वक़्त नहीं — इस सोच को वास्तविकता में जीने वाले लोगों की सूची में इंद्रजीत सिंह उर्फ ‘छोटू’ का नाम पूरे सम्मान के साथ लिया जाता है। दुर्ग-भिलाई क्षेत्र ही नहीं, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ में इंद्रजीत सिंह छोटू एक ऐसा नाम है, जिसने ट्रांसपोर्ट व्यवसाय को सिर्फ व्यापार नहीं, बल्कि सेवा का माध्यम बना दिया। शौर्यपथ समाचार द्वारा शहर के ऐसे गणमान्य व्यक्तियों का एक संक्षिप्त जीवन परिचय एवं उनके द्वारा समाज के उठान के लिए किये कार्यो का उल्लेख करते हुए उनके द्वारा समाज के लिए किये कार्यो की एक छोटी सी झलक प्रस्तुत कर रहे है उम्मीद है सम्मानित पाठको को यह लेख पसंद आएगा .

परिचय से परे – व्यक्तित्व की गरिमा

  भिलाई के निवासी इंद्रजीत सिंह छोटू ट्रांसपोर्ट सेक्टर में एक स्थापित नाम हैं, लेकिन उनके लिए पहचान का असली मानक है – सामाजिक कार्यों के लिए उनकी निःस्वार्थ प्रतिबद्धता।
ड्राइवर, क्लीनर, मजदूर, खिलाड़ी, बेसहारा बच्चे, गरीब परिवार – कोई भी तबका हो, इंद्रजीत सिंह ‘छोटू’ हर बार आगे आते हैं। उनकी सोच हमेशा यही रही है कि “जिस समाज से मिला है, उसे लौटाना भी हमारा कर्तव्य है।”

ड्राइवर-क्लीनर के लिए सुरक्षा कवच

   इंद्रजीत सिंह के प्रयासों से सैकड़ों ट्रक ड्राइवरों और क्लीनरों को बीमा सुरक्षा, हेलमेट, मेडिक्लेम, और सड़क सुरक्षा संबंधित प्रशिक्षण दिए गए। उन्होंने ट्रांसपोर्टरों की समस्याओं को लेकर प्रशासन से लेकर सरकार तक सुनियोजित संवाद बनाए रखा है, जिससे नीतिगत सुधार की मांग बार-बार उठती रही।



खिलाड़ियों को मिलता है हौसला

  छोटू खुद एक खेल-प्रेमी हैं। उन्होंने स्थानीय स्तर के अनेक क्रिकेट, कबड्डी, फुटबॉल टूर्नामेंट में आर्थिक सहयोग और मंच देकर ग्रामीण खिलाड़ियों को उभरने का मौका दिया है। कई बार राष्ट्रीय स्तर पर चयनित खिलाड़ियों को ट्रेवल और किट सहयोग देकर प्रेरणा दी।



गरीब बेटियों के विवाह की जिम्मेदारी

  यहां सिर्फ आर्थिक मदद नहीं, बल्कि पिता समान भावनात्मक जुड़ाव भी देखने को मिलता है। अब तक 40 से अधिक निर्धन परिवारों की बेटियों के विवाह में सहयोग, पूरी शादी की व्यवस्था, कपड़े, गहने, भोजन, और वर-वधू की विदाई तक की पूरी ज़िम्मेदारी निभा चुके हैं।

आपदा में सेवा – जब सब पीछे हटते हैं, छोटू आगे होते हैं

 चाहे कोरोना काल हो या सड़क हादसा, इंद्रजीत सिंह छोटू ने एम्बुलेंस, भोजन, मेडिकल किट और ऑक्सीजन सिलेंडर तक उपलब्ध करवाए। लॉकडाउन में भूखे ट्रक ड्राइवरों के लिए भोजन वितरण का उनका नेतृत्व आज भी याद किया जाता है।

ट्रांसपोर्ट सेक्टर के मसीहा

  ट्रांसपोर्टरों के हक के लिए प्रभावी यूनियन प्रतिनिधि की भूमिका निभाते हुए उन्होंने माल ढुलाई दरों की पारदर्शिता, पथ कर में छूट, और अनुचित चालान के खिलाफ अभियान चलाए हैं।

समाज को संदेश

  इंद्रजीत सिंह जैसे लोग हमें यह सिखाते हैं कि नाम कमाने के लिए मंच नहीं, नीयत चाहिए। उन्होंने यह सिद्ध किया है कि अगर आपका दिल सच्चा है तो समाज खुद आपकी पहचान बन जाता है।
आज जब समाज में स्वार्थ और दूरी बढ़ती जा रही है, ‘छोटू भैया’ जैसे लोग उम्मीद का वह दीपक हैं जो बिना कहे सबके लिए जलता है।

उपसंहार

इंद्रजीत सिंह उर्फ छोटू आज सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि समर्पण, सेवा और सजग नागरिकता का प्रतीक बन चुके हैं। युवा पीढ़ी को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए कि व्यवसाय के साथ-साथ समाजसेवा भी पूरी तन्मयता से की जा सकती है।

    

दुर्ग। शौर्यपथ। राजनितिक व्यंग
  कभी कांग्रेस की गूंज से गूंजने वाला दुर्ग शहर अब सन्नाटे की गिरफ्त में है। कांग्रेस के कार्यकर्ता खुद को सत्ता में रहकर भी यतीम महसूस कर रहे हैं और मंच पर बैठे नेता कुर्सी गिनने में व्यस्त हैं। जंबो कमेटी बनी, पर आंदोलन में दिखते हैं बस कुछ ‘फिक्स’ चेहरे—जैसे कोई बासी फिल्म का री-रन।

“विरोध” अब पोस्टर तक सीमित रह गया है, जबकि कार्यकर्ता सिर्फ व्हाट्सएप ग्रुप में सक्रिय दिखाई देते हैं।
कांग्रेस की दुर्ग शहर इकाई, कभी जोश और जूनून की मिसाल मानी जाती थी, आज निष्क्रियता और गुटबाजी की भेंट चढ़ चुकी है। चुनावी हारें—विधानसभा, लोकसभा और निगम—कह रही हैं कि संगठन में कहीं कुछ बहुत ज्यादा ‘ठहर’ गया है।
  इसी राजनीतिक जड़ता के बीच दुर्ग ग्रामीण कांग्रेस के अध्यक्ष राकेश ठाकुर एक अपवाद की तरह उभरे हैं। उनके नेतृत्व में संगठन की हलचलें दिखती हैं, विरोध प्रदर्शन होते हैं, नारे लगते हैं और कार्यकर्ताओं में आत्मबल लौटता दिखता है। ऐसे में कार्यकर्ताओं की यह मांग तेजी से उभर रही है कि अब दुर्ग शहर को भी एक राकेश ठाकुर चाहिए।

जिन्होंने सत्ता में मलाई खाई, वो संगठन की लड़ाई में गायब क्यों हैं?
  कार्यकर्ता अब सवाल करने लगे हैं। जब सत्ता थी, तब स्टेज पर हीरो बनकर चमकने वाले नेता अब आंदोलन में “साइलेंट मोड” पर क्यों हैं? क्या कांग्रेस अब भी “अनुमोदन” और “चाटुकारिता” की राजनीति से बाहर नहीं निकल पाई?

राहुल गांधी का बयान—“बारात में नाचने वाले घोड़े नहीं, ज़मीन पर लड़ने वाले कार्यकर्ता चाहिए”—शहर कांग्रेस पर सटीक बैठता है। अब जरूरत है एक ऐसे अध्यक्ष की जो सोशल मीडिया के नेता नहीं, सड़कों के सिपाही हों। जो सिर्फ फोटो खिंचवाने के लिए नहीं, पार्टी के लिए पसीना बहाने के लिए तैयार हों।
  देखना दिलचस्प होगा कि प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व अब भी “कठपुतली अध्यक्ष” के भरोसे चलता है या एक सक्रिय कार्यकर्ता नेता को संगठन की कमान सौंपता है।
कांग्रेस की वापसी सिर्फ नारों से नहीं, नेतृत्व में बदलाव से ही संभव है।

संपादकीय समाचार
लेखक – शरद पंसारी | शौर्यपथ समाचार

दुर्ग।
छत्तीसगढ़ की राजनीति में इन दिनों फिर से हलचल तेज हो गई है। भारतीय जनता पार्टी की सरकार में मंत्री पद के दो स्थान अभी भी रिक्त हैं, और इसी बीच दुर्ग विधायक गजेंद्र यादव के समर्थकों द्वारा उनके जन्मदिन पर लगाए गए बधाई पोस्टरों ने सियासी चर्चाओं को एक नई दिशा दे दी है।
  दुर्ग विधानसभा क्षेत्र के चौक-चौराहों पर लगे इन विशाल बधाई पोस्टरों ने जहां एक ओर विधायक की लोकप्रियता को दिखाने का प्रयास किया है, वहीं दूसरी ओर यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि क्या यह पोस्टर राजनीति मंत्री पद की दौड़ में कोई असर डाल पाएगी?
  गौर करने वाली बात यह है कि पोस्टरों में शामिल कई चेहरे ऐसे लोगों के हैं जो न तो भाजपा संगठन की मूलधारा से जुड़े रहे हैं और न ही पूर्ववर्ती कांग्रेस शासन काल में किसी विरोध प्रदर्शन या जन आंदोलन में सक्रिय नजर आए। चुनाव के पहले जिन कार्यकर्ताओं ने सड़कों पर संघर्ष किया, वे चेहरे अब इन बधाई पोस्टरों में कहीं नहीं दिखते।
  यह स्थिति केवल दुर्ग तक सीमित नहीं रही है। कुछ महीनों पहले वैशाली नगर विधायक रिकेश सेन के जन्मदिन पर भी ऐसा ही नजारा देखने को मिला था, जब उनके पोस्टरों से न केवल वैशाली नगर बल्कि भिलाई नगर क्षेत्र भी पट गया था। उस समय भी राजनीतिक गलियारों में यही चर्चा थी कि क्या लोकप्रियता का यह दिखावा मंत्रिमंडल तक पहुंच का साधन बन सकता है?
  प्रदेश भाजपा में यह सवाल अब प्रमुखता से उभर रहा है कि क्या संगठन की असली शक्ति – वह समर्पित कार्यकर्ता वर्ग जिसने वर्षों तक पार्टी की नींव को सींचा है – को दरकिनार कर, केवल बाहरी समर्थन और पोस्टरबाज़ी के आधार पर किसी को मंत्री बनाया जाएगा?

इस सियासी पटल पर मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के लिए यह एक महत्वपूर्ण निर्णय होगा कि वह मंत्री पद के लिए चयन में संगठन की गहराई और निष्ठावान कार्यकर्ताओं की भूमिका को प्राथमिकता दें या फिर सोशल मीडिया और बधाई पोस्टरों में दिखाई दे रही लोकप्रियता को।
  फिलहाल, दुर्ग में गजेंद्र यादव के जन्मदिन को भव्य बनाने के लिए समर्थकों की फौज पूरी तरह सक्रिय है। शहर में हर चौराहे पर लगे पोस्टर यही संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि गजेंद्र यादव न केवल जनता के बीच लोकप्रिय हैं, बल्कि अगला मंत्री बनने की दौड़ में भी मजबूत दावेदार हैं।
  राजनीति के इस पोस्टर युद्ध में अंतिम निर्णय तो भारतीय जनता पार्टी के संगठन और मुख्यमंत्री के विवेक पर निर्भर करेगा, परंतु यह तय है कि आने वाले दिनों में छत्तीसगढ़ की सियासत में यह मुद्दा और भी गर्माने वाला है।
  शौर्यपथ समाचार की यह कोशिश हमेशा रहेगी कि वह राजनीतिक घटनाओं के हर पहलू को निष्पक्ष रूप से अपने सम्मानित पाठकों तक पहुंचाए।

सम्पादकीय विश्लेषण (शरद पंसारी )

   रायपुर। शौर्यपथ। छत्तीसगढ़ की राजनीति एक बार फिर मंत्रिमंडल विस्तार की संभावनाओं को लेकर गर्म है। वर्तमान भाजपा सरकार में 11 मंत्री कार्यरत हैं, जबकि दो पद रिक्त हैं। ऐसे में दावेदारों की लंबी सूची और राजनीतिक हलकों में गूंजती चर्चाओं के बीच एक बड़ा सवाल फिर से खड़ा हो गया है—क्या मंत्री चयन में जातिगत संतुलन ज़रूरी है, या फिर योग्यता, अनुभव और विकास के प्रति सोच को प्राथमिकता मिलनी चाहिए?

जनता ने कई बार दिया है जाति से ऊपर उठकर फैसला

राजनीति में जातीय समीकरण लंबे समय से एक निर्णायक भूमिका निभाते आए हैं, लेकिन हालिया चुनाव परिणाम बताते हैं कि जनता अब धीरे-धीरे इस सीमित सोच से ऊपर उठ रही है। रायपुर दक्षिण से वर्षों तक विधायक रहे बृजमोहन अग्रवाल के सांसद बनने के बाद हुए उपचुनाव में सुनील सोनी ने बड़ी जीत दर्ज की, यह दिखाता है कि जातिगत फैक्टर नहीं, बल्कि कार्य और छवि ही निर्णायक भूमिका में थे।

इसी तरह, दुर्ग विधानसभा सीट से गजेंद्र यादव की जीत भी यह स्पष्ट करती है कि जनता ने सिर्फ जातीय समीकरण नहीं, बल्कि मजबूत जनसंपर्क और विकास के मुद्दों पर मतदान किया।

मंत्रिमंडल में अनुभव बनाम नवाचार

प्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्था में एक मंत्री पर पूरे विभाग का भार होता है। ऐसे में अनुभवहीनता कई बार निर्णय क्षमता को प्रभावित करती है। वर्तमान मंत्रिपरिषद में कुछ मंत्री ऐसे हैं जिन्होंने अपनी सक्रियता और कार्यशैली से जनता का विश्वास अर्जित किया है, परंतु अनुभव की दृष्टि से कई विभागों में शून्यता भी देखी गई है।

अब जब विस्तार की घड़ी नजदीक है, तो यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि पार्टी नेतृत्व अनुभव और प्रशासनिक दक्षता को प्राथमिकता देगा या फिर सिर्फ क्षेत्रीय और जातीय संतुलन को ध्यान में रखकर निर्णय करेगा।

अनुभवी नामों की चर्चा जो हो सकते हैं मंत्रिमंडल का हिस्सा

राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज़ है कि यदि अनुभव को महत्व दिया गया, तो अमर अग्रवाल, अजय चंद्राकर, लता उसेंडी और राजेश मूणत जैसे वरिष्ठ विधायक मंत्रिपरिषद में वापसी कर सकते हैं। इन सभी नेताओं का प्रशासनिक अनुभव और जनता के बीच अच्छी पकड़ रही है।

जनता को चाहिए परिणाम, न कि पदों की बाजीगरी

सवाल सीधा और सटीक है — आम जनता को इससे फर्क नहीं पड़ता कि कौन मंत्री बनता है, फर्क इससे पड़ता है कि उनके क्षेत्र में सड़क बनेगी या नहीं, पानी आएगा या नहीं, अस्पताल और स्कूल कितने मजबूत होंगे।

मंत्रिमंडल विस्तार में अगर यही मूल भावना प्राथमिक होगी, तो न सिर्फ सरकार की छवि मजबूत होगी, बल्कि जनता का भरोसा भी नई ऊंचाई पर पहुंचेगा।

निष्कर्ष:
अब निर्णय सत्ता के केंद्र में बैठे नेताओं के हाथ में है — क्या वे विकास को प्राथमिकता देंगे, या समीकरणों में उलझकर मौके गंवा देंगे? आने वाला वक्त इसका जवाब जरूर देगा, लेकिन जनता को अब सिर्फ एक चीज़ चाहिए — परिणाम।

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