August 18, 2025
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शौर्यपथ

शौर्यपथ

मुख्यमंत्री ने वनांचल क्षेत्र झलमला और नगर पंचायत सहसपुर लोहारा के भेंट मुलाकात कार्यक्रम में आम नागरिकों से सीधा संवाद कर रूबरू हुए

कवर्धा / शौर्यपथ /

   मुख्यमंत्री  भूपेश बघेल ने आज अपने प्रदेश व्यापी भेंट मुलाकात के कबीरधाम जिले के  प्रवास के दौरान सोमवार को विकासखण्ड मुख्यालय  सहसपुर लोहारा में नवीन राजस्व अनुविभाग मुख्याल कार्यालय का शुभारंभ किया। इन अवसर पर जिले के प्रभारी मंत्री  टीएस सिंह देव, कैबिनेट मंत्री  मोहम्मद अकबर, पंडरिया विधायक  ममता चंद्राकर, कलेक्टर  जनमेजय महोबे   एवं क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि विशेष रूप से उपस्थित थे।
क्षेत्रवासियों को प्रशासनिक सुविधा और वनांचल, दूर-दराज के ग्रामीणों की सुविधा के लिए सहसपुर लोहारा में अनुविभाग कार्यालय का विधिवत शुभारंभ किया। ग्रामीणों के लंबे समय की मांग को मुख्यमंत्री बघेल ने साकार कर नई उपलब्धियों का उपहार भेंट की है। कैबिनेट मंत्री श्री मोहम्मद अकबर के विशेष प्रयास से यह उपलब्धि क्षेत्रवासियों को मिली है।
    मुख्यमंत्री  भूपेश बघेल ने आज तहसील सहसपुर लोहारा को अनुविभाग का स्वरूप देकर इसका शुभारंभ किया। उन्होंने क्षेत्रवासियों को सहसपुर लोहारा को अनुविभाग बनने पर बधाई एवं शुभकामनाएं दी।
 उल्लेखनीय है कि वर्ष 2022-23 के बजट में तहसील सहसपुर लोहारा को अनुविभाग का दर्जा दिया गया। आज इसके शुभारंभ के बाद यह जिला का चौथा नंबर का अनुविभाग होगा। इसके अंतर्गत 1 नगरीय निकाय, कुल 96 ग्राम पंचायत, 198 गांव शामिल है। तहसील का भगौलिक क्षेत्र 61479 हेक्टयर है। सहसपु में 01 स्वास्थ्य केन्द्र, 05 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और 25 उपस्वास्थ्य केन्द्र संचालित है। तहसील सहसपुर के अंतर्गत 22 धान खरीदी केन्द्र, 5 राजस्व निरीक्षक मंडल और 45 पटवारी हल्का है। वर्ष 2011 के जनगणना अनुसार सहसपुर तहसील की जनसंख्या 152238 है। जिसमें 72792 पुरूष और 72929 महिला है।
 उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल  कबीरधाम जिला प्रवास के दौरान कवर्धा विधानसभा के प्रदेशव्यापी भेंट मुलाकात कार्यक्रम वनांचल क्षेत्र झलमला और नगर पंचायत सहसपुर लोहारा में आम नागरिकों से सीधा संवाद कर रूबरू हुए। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल प्रदेशव्यापी भेंट मुलाकात कार्यक्रम में विधानसभा के ग्रामीण और वनांचलों में पहुंचकर अपनी योजनाओं के बारे में लोगों को जानकारी दे रहे हैं। साथ ही जानकारी और फीडबैक वे स्वयं लिए।

दुर्ग / शौर्यपथ / कलेक्टर पुष्पेंद्र मीणा एवं निगम आयुक्त रोहित व्यास आज जेपी स्कूल बैकुंठ धाम पहुंचे। छत्तीसगढ़िया ओलंपिक खेल में शामिल होने वाले खिलाड़ियों का उन्होंने स्वयं खेल में शामिल होकर उत्साहवर्धन किया। कलेक्टर श्री मीणा ने भंवरा अपने हाथ में लिया तो वही निगम आयुक्त रोहित व्यास ने पिट्टूल में एक कुशल खिलाड़ी की तरह बेहतर प्रदर्शन किया। कलेक्टर ने कहा कि मानसिक एवं शारीरिक विकास के लिए खेल आवश्यक है वहीं जहां छत्तीसगढ़ी परंपरा से जुड़े हुए खेल को खेलने का मौका मिले तो निवासरत लोगों के लिए इसका उत्साह और भी बढ़ जाता है। कलेक्टर एवं निगमायुक्त खेल मैदानों जहां पर छत्तीसगढ़िया ओलंपिक खेल का आयोजन हो रहा है वहां पहुंचे और खेल में शामिल हुए। जब से खेल का आयोजन प्रारंभ हुआ है तब से लेकर प्रतिदिन खेल खेलने वालों में गजब का उत्साह दिख रहा है। महिलाएं हो, चाहे बच्चे हो, युवा हो सभी खेल में शामिल हो रहे हैं। उल्लेखनीय है कि माननीय मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी के निर्देश पर छत्तीसगढ़िया ओलंपिक खेल का आयोजन सभी जिलों में किया जा रहा है वही इस खेल को लेकर शहर में भिलाईवासी काफी उत्साहित है, और हर दिन खेल प्रांगण में पहुंचकर खेल में अपना दमखम साबित कर रहे हैं। शहर के महापौर नीरज पाल ने जनप्रतिनिधियों के साथ छत्तीसगढ़िया खेल का खूब लुफ्त उठाया और जमकर खेल में अपना उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। भिलाई निगम ने अपील है कि 11 अक्टूबर तक प्रथम चरण के खेल का आयोजन होना है जिसमें अधिक से अधिक संख्या में शामिल हो सकते हैं। विजेताओं को अगले चरणों के खेल में भाग लेने का मौका मिलेगा और वह पुरस्कार भी अर्जित कर सकेंगे। खेल मैदान में आज अपर आयुक्त अशोक द्विवेदी, वैशाली नगर निगम के जोन अध्यक्ष रामानंद मौर्या, महापौर परिषद के सदस्य एवं खेल प्रभारी आदित्य सिंह ने भी खेल का खूब आनंद लिया। 14 प्रकार के छत्तीसगढ़िया खेल जिसमें पिट्टुल, गिल्ली डंडा, संखली, लंगडी दौड़, कबड्डी, खो-खो, रस्साकशी, बाटी (कंचा), बिल्ल्स, गेड़ी दौड़, भंवरा, 100 मीटर दौड़ एवं लंबी कूद का खेल शामिल है का लोग खेल मैदानों में पहुंचकर और खेलकर खूब आनंद ले रहे हैं। दिनांक 11 अक्टूबर दिन मंगलवार को राधिका नगर स्लॉटर हाउस मैदान, शांति नगर दशहरा मैदान, जेपी स्कूल बैकुंठ धाम, आईटीआई मैदान खुर्सीपार तथा सेक्टर 9 फुटबॉल ग्राउंड में खेल का मुकाबला होगा जहां पहुंचकर ऑन द स्पॉट रजिस्ट्रेशन कराकर खेल में तुरंत भाग ले सकते हैं।

   नई दिल्ली /शौर्यपथ /चेन्नई के नंदमबक्कम इलाके में भारतीय सेना में भर्ती के लिए आयोजित की गई परीक्षा में 28 मुन्नाभाईयों को पकड़ा गया है। ये सभी ब्लूटूथ का इस्तेमाल कर परीक्षा में धांधली कर रहे थे। आपको बता दें कि नंदमबक्कम के एक स्कूल में आर्मी की ग्रुप सी श्रेणि की परीक्षा में एक हजार उम्मीदवारों ने भाग लिया। परीक्षा पर्यवेक्षकों को कुछ ऐसे लोगों पर शक हुआ जो असहज लग रहे थे।
पर्यवक्षों ने शक के आधार पर इन परीक्षार्थियों की गहन जांच की। जांच के दौरान उन्होंने पाया कि वे परीक्षा में नकल करने के लिए ब्लूटूथ तकनीक का इस्तेमाल कर रहे थे।
पर्यवेक्षकों ने 28 लोगों को धोखाधड़ी करते हुए पकड़ा। उन्हें नंदमबक्कम पुलिस को सौंप दिया गया। पुलिस इस मामले में केस दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। इन सभी 28 लोगों को सेना में किसी भी पद के लिए आवेदन करने से रोक दिया जाएगा।

नई दिल्ली / शौर्यपथ / 82 साल की उम्र में मुलायम सिंह यादव अपने साथ जुड़ी कई यादों को यहीं छोड़कर इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह गए हैं। लंबे राजनीतिक जीवन में कई ऐसे घटनाक्रम हैं जो मुलायम को पॉलिटिक्स के अखाड़े में भी उस्ताद बनाते हैं। इस खबर में हम उन पांच फैसलों पर बात करेंगे, जिन्हें लेकर मुलायम ने देश की राजनीतिक हवा ही बदल दी...
अखाड़ों पर बड़े-बड़े पहलवानों को चित करने वाले मुलायम सिंह यादव राजनीति के अखाड़े में भी मंझे हुए पहलवान माने जाते रहे। बड़े-बड़े दावों से उन्होंने राज्य ही नहीं देश की हवा भी बदल कर रख दी। चलिए बिना रुके जानते हैं उन पांच फैसलों को।
कार सेवकों पर गोली चलाने का आदेश
साल 1967 में पहली बार विधानसभा की सीढ़ी चढ़कर राजनीति में कदम रखने वाले मुलायम सिंह यादव महज 22 साल में देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बन गए। हालांकि एक साल बाद ही अयोध्या में राम मंदिर पर आंदोलन तेज होने के बाद उनका एक फैसला आज भी लोगों के जेहन में तरोताजा है। 1990 में उन्होंने आंदोलनकारी कार सेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया था। इस घटना में कई लोग मारे गए। उनके इस फैसले की काफी आलोचना भी हुई थी। मुलायम ने खुद एक बार कहा था कि वह फैसला उनके लिए आसान बिल्कुल नहीं था।
जनता दल से अलग होकर बनाई समाजवादी पार्टी
साल 1992 में नेताजी ने जनता दल से अपनी राहें जुदा कर दी और समाजवादी के रूप में अपनी पार्टी का गठन करके देश की राजनीति में कदम आगे बढ़ाए। पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों के बीच लोकप्रिय मुलायम सिंह यादव के लिए यह एक बड़ा कदम था। मुलायम सिंह यादव तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। इसके अलावा केंद्र की राजनीति में भी सक्रिय रहे। वह देश के रक्षा मंत्री भी रह चुके हैं।
जब मुलायम ने बचाई मनमोहन सरकार
मनमोहन सिंह के नेतृत्व में देश में यूपीए सरकार थी। साल 2008 में अमेरिका के साथ परमाणु करार के बाद जब वामपंथी दलों ने यूपीए से अपना गठबंधन पीछे कर दिया तो उस वक्त मुलायम सिंह ही थे जो संकटमोचक बनकर सामने आए और यूपीए सरकार को गिराने से बचा लिया। मुलायम ने बाहर से समर्थन करके मनमोहन सरकार बचाई थी।
कल्याण सिंह से हाथ मिलाकर भाजपा को चौंकाया
कहा जाता था कि विरोधियों को इल्म भी होता था और मुलायम सिंह यादव राजनीतिक दांव चलकर पटखनी दे देते थे। एक ऐसा ही कदम नेताजी ने साल 2003 में चला। जब भाजपा से निकाले गए कल्याण सिंह के साथ मुलायम ने हाथ मिलाया। हालांकि इससे पहले साल 1999 में कल्याण सिंह ने अपनी अलग पार्टी भी बनाई। साल 2002 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सिर्फ चार सीट जीत पाई। मुलायम ने कल्याण सिंह के साथ गठबंधन में सरकार बनाई और उनके बेटे राजवीर सिंह को सरकार में महत्वपूर्ण पद देकर दोस्ती निभाने से भी नहीं चूके। एक साल बाद कल्याण सिंह फिर से भाजपा में शामिल हुए लेकिन 2009 में कल्याण सिंह ने फिर मुलायम का हाथ थामा।
अखिलेश को यूपी की सत्ता पर बैठाया
मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी ने 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव में विरोधियों को चित किया और 403 सीटों में से 223 सीटों पर जीत हासिल की। उस वक्त भी माना जा रहा था कि मुलायम चौथी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद संभालेंगे लेकिन, तभी मुलायम ने एक और राजनीतिक दांव चला और अपने बेटे अखिलेश यादव के नाम पर सीएम पद की मुहर लगा दी। मुलायम ने सियासी विरासत सौंपकर अखिलेश के राजनीतिक जीवन को राह दिखाई। किसी ने भी अखिलेश के नाम पर आपत्ति नहीं जताई। हालांकि यह और बात है कि बाद में अखिलेश के नेतृत्व पर सवाल उठाकर चाचा शिवपाल यादव ने अलग राहें पकड़ी। कुछ वक्त बाद मुलायम सिंह को भी साइडलाइन करके अखिलेश पार्टी के चीफ बन गए।

     नई दिल्ली /शौर्यपथ  /सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने का निर्देश देने की अपील वाली याचिका पर सुनवाई से सोमवार को इनकार कर दिया। जस्टिस एस के कौल और जस्टिस अभय एस ओका ने याचिकाकर्ता से पूछा कि आखिर इससे कौन-सा मौलिक अधिकार प्रभावित हो रहा है। पीठ ने कहा, 'क्या यह अदालत का काम है? आप ऐसी याचिकाएं दायर ही क्यों करते हैं कि हमें उस पर जुर्माना लगाना पड़े? कौन-से मौलिक अधिकार का उल्लंघन हुआ? आप अदालत आए हैं तो क्या हम नकारात्मक नतीजे की परवाह किए बिना यह करें?'
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील ने न्यायालय में कहा कि गौ संरक्षा बहुत जरूरी है। बेंच ने वकील को आगाह किया कि वह जुर्माना लगाएगी, जिसके बाद उन्होंने याचिका वापस ले ली और मामले को खारिज कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट गैर-सरकारी संगठन गोवंश सेवा सदन और अन्य की एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था। इसमें केंद्र को गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने का निर्देश देने का मांग की गई थी।
 गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की मांग पुरानी
   गौरतलब है कि गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की मांग पुरानी है। बीते साल दिसंबर में राज्यसभा में भाजपा के एक सदस्य ने गौ-हत्या पर रोक लगाने के लिए केंद्रीय कानून बनाए जाने की मांग की थी। बीजेपी नेता किरोड़ी लाल मीणा ने गौहत्या पर रोक के लिए केंद्रीय कानून बनाने के साथ ही गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि सनातन और हिंदू धर्म में गाय की पूजा की जाती है।
 भाजपा सांसद ने शून्यकाल के दौरान कहा, 'गाय भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है और उसे माता का दर्जा प्राप्त है। ऐसे में गौ-हत्या होने से सामाजिक समसरता प्रभावित होने लगती है।' वहीं, भाजपा के महेश पोद्दार ने बायो-एथनॉल के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए शीघ्र ही नीति बनाने की मांग की। उन्होंने कहा कि पेट्रोलियम की खरीद पर एक ओर विदेशी मुद्रा खर्च होती है, वहीं इसके उपयोग से प्रदूषण भी बढ़ता है। ऐसे में अगर बायो-एथनॉल के उपयोग को बढ़ावा दिया जाए तो किसानों को भी फायदा मिलेगा।

        नई दिल्ली /शौर्यपथ /दिल्लीवालों के लिए खुशखबरी है। दिवाली से पहले मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सोमवार को पानी के बकाया बिलों पर लगने वाली लेट फीस 100 फीसदी माफ करने का ऐलान किया है। अब उपभोक्ता बिना लेट फीस के अपने पुराने बकाया बिलों का भुगतान कर सकते हैं। इसके साथ ही यमुना सफाई को लेकर भी कई ऐलान किए।
     अरविंद केजरीवाल ने एक के बाद एक लगातार तीन ट्वीट कर कहा, ''दिल्ली की जनता को पानी के बकाया बिलों से राहत दिलाने के लिए सरकार ने बड़ा निर्णय लिया है। पानी के बकाया बिलों पर लगने वाली लेट फीस ( लेट पेमेंट सरचार्ज) 31 दिसंबर 2022 तक के लिए 100% माफ रहेगी। यानि आप बिना लेट फीस की चिंता किए अपने पुराने बकाया बिल भर सकते हैं।''
       उन्होंने कहा, ''यमुना को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए आज एक बेहद महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट को मंजूरी दी है। इसके तहत केशोपुर व नजफगढ़ में गिरने वाले 85 MGD सीवर को रोजाना साफ कर नजफगढ़ नाले में डाला जाएगा। इससे यमुना के पानी का प्रदूषण 30% तक घटेगा। यह कदम यमुना साफ करने में बहुत मददगार साबित होगा।''
    ''यमुना के पानी को साफ करने के लिए दिशा में तीन और महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट आज मंजूर किए - बादली, निगम बोध व मोरी गेट नालों पर कुल 55 एमजीडी के सीवेज पंपिंग स्टेशन बनाए जाएंगे। इससे इन नालों का गंदा पानी यमुना में नहीं जाएगा।''

   नई दिल्ली /शौर्यपथ  /चुनाव आयोग द्वारा शिवसेना का नाम और चुनाव चिह्न फ्रीज किए जाने के मामले में उद्धव ठाकरे ने दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया है। हाई कोर्ट में दाखिल याचिका में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री ने दलील दी है कि आयोग ने बिना किसी सुनवाई के ही यह आदेश पास कर दिया था। ठाकरे ने दावा किया है कि उन्होंने मामले में मौखिक सुनवाई की अपील की थी, इसके बावजूद उनका पक्ष नहीं सुना गया।
याचिका में किया यह दावा
ठाकरे के मुताबिक चुनाव आयोग ने शिवसेना के नाम और चुनाव निशान धनुष-बाण को फ्रीज करने में कुछ ज्यादा ही जल्दबाजी दिखाई है। उन्होंने कहा कि 1966 में पार्टी की स्थापना के बाद से ही यह हमारा प्रतीक चिह्न है। इससे हमारी पार्टी की पहचान स्थापित होती है। याचिका में उद्धव ठाकरे द्वारा कहा गया है कि यह सिंबल, उनके पिता बाल ठाकरे द्वारा डेवलप और डिजाइन किया गया है। यह भी कहा गया है कि इसका कॉपीराइट भी बाल ठाकरे के पास है।
कहा-शिंदे के दावे जैसा कोई पद ही नहीं
याचिका के मुताबिक एकनाथ शिंदे ने दावा किया है कि उनके पास शिवसेना के मुख्य नेता का पद है। जबकि पार्टी संविधान में संठनात्मक ढांचे में इस तरह का कोई पद ही नहीं बनाया गया है। उद्धव ठाकरे ने दलील दी है कि वह शिवसेना के पक्ष प्रमुख यानी चुने हुए अध्यक्ष हैं। उन्हें पार्टी और उसके प्रतीक के प्रतिनिधित्व से हटाकर शिंदे को देना गलत है। वजह, शिंदे जिस पद का दावा कर रहे हैं शिवसेना का संविधान उसको मान्यता ही नहीं देता। ठाकरे ने यह भी दावा किया है कि एकनाथ शिंदे ने पार्टी अध्यक्ष के तौर पर बहुमत साबित नहीं किया है। वहीं ठाकरे ने ऑर्गनाइजेशनल विंग के साथ पार्टी कैडर में भी खुद को स्थापित किया है।

     नई दिल्ली / शौर्यपथ  /पात्रा चॉल स्कैम मामले में शिवसेना नेता संजय राउत को राहत नहीं मिली है। अब उन्हें 17 अक्टूबर तक जेल में ही रहना होगा। उनकी न्यायिक हिरासत 17 अक्टूबर तक बढ़ा दी गई है। इसी दिन उनकी जमानत याचिका पर भी सुनवाई होगी। इससे पहले कोर्ट ने 10 अक्टूबर तक उन्हें न्यायिक हिरासत में भेजा था।
बता दें कि 1 अगस्त को ईडी ने उन्हें वित्तीय अनियमितता के आरोप में गिरफ्तार किया था। 31 जुलाई को ईडी अधिकारियों ने शिवसेना नेता के कई ठिकानों पर छापा  मारा था और उनके साथ ही परिवार से भी पूछताछ की थी। इससे पहले 28 जून को एजेंसी ने उन्हें मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पूछताछ के लिए समन किया था। आरोप है कि पात्रा चॉल मामले में 1034 करोड़ रुपये का घोटाला किया गया है।
संजय राउत की पत्नीका भी नाम इस घोटाले से जुड़ा हुआ है। ईडी ने उन्हें भी पूछताछ के लिए समन भेजा था। राउत महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के निकटतम सहयोगी माने जाते है। सूत्रों ने बताया था कि छापे के दौरान ईडी ने उनके घर से 11.50 लाख रुपये कैश जब्त किए थे।
पिछले साल  अप्रैल में ईडी ने संजय राउत की पत्नी की 11.15 करोड़ रुपये की संपत्ति अटैच कर ली थी जिसमें दादर का एक फ्लैट भी था। इसके अलावा स्वप्ना पाटकर के साथ साझेदारी में उनकी कुछ जमीनें भी थीं। ईडी का कहना हैकि संजय राउत की पत्नी  वर्षा को आरोपी प्रवीण राउत की पत्नी माधवी ने पैसे भेजे थे। दोनों के बीच 1 करोड़ 6 लाख रुपये का लेनदेन हुआ था।

     नई दिल्ली / शौर्यपथ  /धरती पुत्र कहे जाने वाले समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के जीवन का सफर आज पूरा हो गया। सुबह करीब 8 बजे उन्होंने गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में अंतिम सांस ली। इसके साथ ही समाजवादी विचारधारा और उत्तर प्रदेश की सियासत के युग का समापन हो गया है। 1992 में समाजवादी पार्टी का गठन कर मुलायम सिंह यादव ने अपने राजनीतिक जीवन को अलग दिशा दी थी। तब से वह तीन बार सीएम बने, देश के रक्षा मंत्री भी बने थे। लेकिन चौथी बार जब सीएम बनने का मौका 2012 में मिला तो अपनी जगह पर बेटे को विरासत सौंप दी। अखिलेश यादव ने पिता के आशीर्वाद पर सीएम बनने के बाद 5 साल का कार्यकाल पूरा जरूर किया, लेकिन उसके बाद वह 2017 में वापस नहीं लौटे।
विरोधियों पर कभी नहीं किए निजी हमले, बनी रही मर्यादा
यही नहीं 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके अलावा 2014 और 2019 के आम चुनाव भी अखिलेश यादव के लिए तमाम प्रयासों के बाद भी निराशाजनक ही रहे। ऐसे में राजनीतिक विश्लेषक उन्हें सीख देते रहे हैं कि वह अपने पिता मुलायम सिंह यादव से सीख ले सकते हैं। अखिलेश यादव की सियासत में कई बार भावुकता में लिए गए फैसले नजर आते हैं। इसके अलावा वह व्यक्तिगत और तीखे हमले भी विरोधियों पर करते रहे हैं। इस मोर्चे पर वह मुलायम सिंह यादव से सीख ले सकते हैं। उन्होंने किसी भी नेता पर निजी हमले नहीं किए। राम मंदिर आंदोलन हो या फिर मायावती से अदावत के दिन, मुलायम सिंह यादव ने विरोधियों पर कभी निजी हमले नहीं किए।
समाजवादियों के पूरे कुनबे को साधते थे मुलायम
इसके अलावा मुलायम सिंह यादव की एक खूबी थी कि वह हमेशा संभावनाएं बनाकर रखते थे। उन्होंने 2003 में भाजपा का साथ लिया तो वहीं परमाणु करार के मद्दे पर यूपीए की गिरती सरकार को सहारा भी दिया। यही नहीं मुलायम सिंह यादव हमेशा टीम मैन कहे जाते थे। मोहन सिंह, जनेश्वर मिश्र, आजम खां, अमर सिंह, राजा भैया समेत ऐसे तमाम नेताओं को वह साथ लेकर चलते थे, जो परस्पर विरोधाभासी थे। लेकिन मुलायम सिंह ने सबको एक मंच पर ही लाने की हमेशा कोशिश की। यही नहीं मुलायम सिंह यादव जब सक्रिय रहे, परिवार में भी कोई रार नहीं होने दी।
कैसे अखिलेश को दिया ताज और शिवपाल को भी नहीं किया नाराज
मुलायम सिंह यादव ने जब 2012 में अखिलेश यादव को सीएम का पद दिया तो छोटे भाई शिवपाल को भी पीडब्ल्यूडी जैसा अहम मंत्रालय दिया और प्रदेश अध्यक्ष भी बनाया। रामगोपाल को दिल्ली की सियासत का जिम्मा सौंप दिया। आजम खां और अमर सिंह को भी साध कर रखा। इस तरह मुलायम सिंह यादव की सियासत में सबके लिए जगह बनी थी। यही एकता राजनीति में संदेश देने के लिए अहम थी। इस मामले में अखिलेश यादव अपने पिता से पीछे ही दिखे हैं। लिहाजा उन्हें अपने दिवंगत पिता की विरासत के साथ ही सियासत को भी समझना और सीखना होगा।

     नई दिल्ली / शौर्यपथ  /यह मेरी दिनचर्या के रोज के दिनों जैसा ही एक दिन था। मैं मध्‍य प्रदेश के गुना जिले के एक कॉलेज में क्‍लास लेने के बाद टीचिंग स्‍टाफ के रूम में बैठा था। कुछ सोच ही रहा था कि फोन की घंटी ने मेरी सारी एकाग्रता तोड़ दी। मैंने फोन उठाकर हैलो बोला... उधर से बोलने वाला नोबेल मिल गया...नोबेल मिल गया... कहकर चिल्‍लाने लगा। मैं कुछ समझ ही नहीं पाया। मैंने फिर पूछा... क्‍या नोबेल... किसे मिल गया? अब फोन के दूसरे छोर पर मौजूद व्‍यक्ति ने कहा, ‘अरे कैलाश सत्‍यार्थी को नोबेल शांति पुरस्‍कार देने की घोषणा हो गई है।’ अब चौंकने की बारी मेरी थी। मैंने इधर-उधर देखा तो कुछ और आंखें मेरी ओर ही थीं। मैंने कुछ बोलना चाहा लेकिन मुंह से आवाज ही नहीं निकली। थोड़ी देर मैं यूं ही खड़ा रहा, कट चुके फोन का रिसीवर लेकर। फिर एक-एक कर लोग मुझे बधाई देने लगे और मैं बुत सा बना सबकी बधाई लेता रहा।
आज 10 अक्‍टूबर के दिन बरबस ही ये सब मुझे क्‍यों याद आ रहा है। ये सोचते हुए मैं और भी कई यादों के भंवर में खो जाता हूं। दरअसल, जिन कैलाश सत्‍यार्थी को 10 अक्‍टूबर, 2014 को नोबेल शांति पुरस्‍कार देने की घोषणा की गई थी वह कोई और नहीं बल्कि रिश्‍ते में मेरे चाचा लगते हैं। वैसे मैं उनसे तीन साल ही छोटा हूं, इसलिए हमारे बीच चाचा-भतीजा से ज्‍यादा रिश्‍ता ‘दोस्‍त’ जैसा ही रहा। मैं ही नहीं बल्कि पूरे विदिशा जिले में ही सभी लोग उन्‍हें ‘दद्दा’ कहकर संबोधित करते हैं। हमने एक साथ स्‍कूल में कई साल साथ गुजारे। आपसी लड़ाई-झगड़े, खेलकूद और शिकायतों की एक लंबी फेहरिस्‍त है, जो अब भी कल की तरह ताजा हो जाती हैं। कभी-कभी सोचता हूं कि जिन कैलाश सत्‍यार्थी को मैं बचपन से जानता हूं, वो तो था ही नोबेल विजेता बनने के काबिल। किशोरावस्‍था से ही कैलाश जी घर से लेकर बाहर होने वाले अन्‍याय के खिलाफ विरोधी तेवर रखते थे। मैंने उनकी इन आदतों को बचपन से देखा है। ब्राहृमण परिवार में जन्‍म लेने के
नाते हम शुरू से ही छुआछूत और जाति प्रथा को समझते थे।
 कैलाश जी में शुरू से ही इसे लेकर एक विद्रोह की मन:स्थिति रहती थी। फिर चाहे वो घर में आने वाली मेहतरानियों को रोटी फेंककर देने की बात हो या दलितों को मंदिर से दूर रखने की। कभी-कभी लगता है कि कैलाश जी को शायद ईश्‍वरीय वरदान था कि उन्‍हें सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ना है। यह साल 1969 की बात है। देश में महात्‍मा गांधी जी की जन्‍म शताब्‍दी मनाई जा रही थी। उस समय कैलाश जी की उम्र 15 साल थी। हम दोनों ज्‍यादातर साथ-साथ रहते थे। उस समय शहर के चौराहे पर एक कार्यक्रम में नेताजी छुआछूत और जात-पात को लेकर जोरदार भाषण दे रहे थे। हम भी वहां थे। नेताजी की बातों से प्रेरित होकर कैलाश जी के मन में विचार आया कि क्‍यों न एक ऐसे भोज का आयोजन किया जाए, जिसमें मेहतरानियां(मैला ढोने वाली) भोजन बनाएं और ऊंची जाति के लोग उस भोजन को अन्‍य जातियों के साथ ग्रहण करें।
कैलाश जी ने अपने दोस्‍तों के साथ चंदा एकत्र कर सारी व्‍यवस्‍था की। मेहतरानियों ने आकर खाना बना दिया। अब इंतजार था उच्‍च जातियों के लोगों का और खासकर उन नेताजी का। गांधी पार्क में हो रहे इस आयोजन में इंतजार करते-करते रात के 10 बज गए लेकिन न नेताजी आए और न ही उच्‍च जाति के लोग। कैलाश जी के चेहरे पर उभरी निराशा थोड़ी देर बाद गुस्‍से में और फिर आंसुओं की शक्‍ल में निकल पड़ी। उत्‍सव जैसा माहौल गमगीन हो चुका था। एक खामोशी सी छाई हुई थी। थोड़ी देर बाद कैलाश जी ने आगे बढ़कर थाली उठाई और गांधी जी की प्रतिमा के नीचे बैठकर खाने लगे। आंखों से आंसु टपक रहे थे और हाथ में ‘कौर’ था।
मेहतरानियों ने कैलाश जी से कहा, ‘बेटा तूने तो हमारी इज्‍जत बढ़ाने के लिए वह काम कर दिया, जो कभी किसी ने नहीं किया। तुझे तो खुश होना चाहिए।’ इसके बाद उन मेहतरानियों ने वहां मौजूद सभी बच्‍चों के साथ खाना खाया। सभी को लगा कि चलो जो भी था अच्‍छा रहा। लेकिन असली कहानी तो शुरू होनी थी घर जाने के बाद। इसका कैलाश जी को अंदाजा ही नहीं था। रात के सन्‍नाटे में वे पैदल-पैदल घर की ओर बढ़ रहे थे। घर का माहौल एक अलग ही शक्‍ल धारण किए हुए था। ब्राहृमण समुदाय के तमाम लोग और पंडित तमतमाए चेहरों के साथ कैलाश जी को घूर रहे थे। मानो वह कोई गंभीर अपराध करके आए हों। हालांकि कैलाश जी इन सबसे बिना विचलित हुए एक तरफ खड़े थे।
अब लड़ाई आमने-सामने की थी, एक तरफ कैलाश जी और दूसरी तरफ धर्म के ठेकेदार। पंडितों ने फैसला सुना दिया कि कैलाश जी को हरिद्वार जाकर गंगा में स्‍नान करना होगा और वहां से आने के बाद ब्रहृम भोज करवाना होगा। ब्राहृमणों के पैर धोकर पानी भी पीना होगा। ऐसा न करने पर कैलाश जी को जाति से बाहर करने की भी धमकी दी गई। हर कोई अवाक था, खासकर कैलाश जी के परिजन, क्‍योंकि वे कैलाश जी के स्‍वभाव को जानते थे। कैलाश जी ने धर्म के ठेकेदारों की बात को मानने से साफ इनकार कर दिया। साथ ही उन्‍होंने कहा, ‘तुम क्‍या मुझे जाति से निकालोगे, मैं खुद ही अपने नाम से जाति निकाल दूंगा।’ पंडितों के दबाव में परिजनों ने घर के बाहर एक छोटे कमरे में कैलाश जी के रहने की व्‍यवस्‍था कर दी। उनकी मां उनके कमरे के बाहर ही एक थाली में भोजन रख देती थीं।
इस घटना से छुआछूत और जाति प्रथा के प्रति कैलाश जी का विरोध और मजबूत हो गया। कैलाश जी ने तय किया कि वह अपने नाम से जाति ही हटा देंगे। इस तरह कैलाश जी ने अपने नाम से ‘शर्मा’ उपनाम हटाकर ‘सत्‍यार्थी’ जोड़ दिया। ‘सत्‍यार्थी’ का अर्थ होता है ‘सत्‍य की तलाश करने वाला’। इस तरह वह कैलाश शर्मा से कैलाश सत्‍यार्थी बन गए। कभी-कभी सोचता हूं कि एक 15 साल का लड़का किसी सामाजिक बुराई को खत्‍म करने के लिए इतना दृढ़निश्‍चयी कैसे हो सकता है? इस उम्र में तो खेलने-कूदने, शैतानी करने और घूमने-फिरने की ही बातें होती हैं। फिर लगता है कि शायद मैं सौभाग्‍यशाली था कि कैलाश जी के इस संघर्ष का गवाह बना। ऐसी अनेक घटनाएं रहीं, जब कैलाश जी विरोध करने से पीछे नहीं हटे। कैलाश जी आर्य समाज से भी जुड़े थे। एक बार उन्‍होंने प्रस्‍ताव रखा कि हर हफ्ते होने वाले हवन को दलितों के घर पर भी करना चाहिए न कि केवल मंदिरों या उच्‍च जाति वालों के घर में।
 कैलाश जी का मानना था कि इससे स्‍वामी दयानंद सरस्‍वती के समाज में समरसता फैलाने के सपने को पूरा करने में मदद मिलेगी। लेकिन धर्म के ठेकेदार यहां भी कुंडली मारकर बैठे थे, कैलाश जी की बात को नहीं माना गया। इसके बाद कैलाश जी ने अपने गृह जिले विदिशा में एक आर्य समुदाय की स्‍थापना की और दलितों के घर में पूरे रीति-रिवाज से हवन की शुरुआत की। ऐसा ही एक प्रकरण राजस्‍थान का भी याद आ रहा है। राजसमंद जिले में नाथद्वारा मंदिर में दलितों के प्रवेश पर प्रतिबंध था। कैलाश जी ने इसकेखिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ी। इस दौरान उन पर जानलेवा हमला भी हुआ। कानूनी लड़ाई जीतने के बाद उन्‍होंने दलितों के साथ पूरे धार्मिक रीति-रिवाज से पूजा की।

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