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सेहत /शौर्यपथ / PCOD आज के वक्त में सबसे कॉमन बीमारी महिलाओं को होने लगी है। यह बीमारी जरूर आम हो सकती है है। लेकिन इसका प्रभाव जान ले सकता है।
जी हां, यह बीमारी महिलाएं और लड़कियां दोनों में हो रही है। इसकी वजह से थायराइड, मेंस्ट्रुएशन प्रॉब्लम, अनचाहे बाल आना, वजन बढ़ना जैसी समस्याएं घर करने लगी है। अगर इस पर कंट्रोल नहीं किया जाता है तो कैंसर जैसी गंभीर बीमारी भी आपको घेर सकती है। बेहतर होगा समय रहते सही डाइट और शरीर का ध्यान रखना शुरू कर दिया जाएं। आज इस पोस्ट में आप जानेंगे कि पीसीओडी होने पर कैसे अपने शरीर का ध्यान रखें-
1. डाइट- अपनी डाइट में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर को शामिल करें। इससे आपको वजन कम करने में मदद मिलेगी। कोशिश करें हर 3 घंटे में छोटा-छोटा मील लेते रहें। आप चाहे तो डॉक्टर से चर्चा कर मल्टीविटामिन टैबलेट भी ले सकते हैं।
2. एक्सरसाइज- जी हां, बेहतर होगा पीसीओडी और पीसीओएस के बारे में पता चलने के बाद आप अपने लाइफस्टाइल में बदलाव कर लें। इन दोनों बीमारीयों का मुख्य कारण है आपका खराब लाइफस्टाइल। प्रॉपर डाइट के साथ आप फिजिकल एक्टिविटी पर भी वर्क करना शुरू कर दें। शुरुआत में आप छोटे-छोटे वर्कआउट कर सकते हैं। जॉगिंग, एरोबिक्स, वॉक, योगा जैसी फिजिकल एक्टिविटी आप शुरू कर सकते हैं।
3. जंक फूड- जंक फूड आपकी लाइफ को जंक कर सकते हैं। वहीं इससे उभरने के लिए आपको लंबी जंग लड़ना पड़ सकती है। अगर आपको पीसीओडी या पीसीओएस के बारे में पता चलता है तो जंक फूड खाने से बचें। जंक फूड में मैदा, चीज, ऑयल जैसी चीजें होती जो आपको मोटा बनाती है। जैसे-जैसे आपका मोटापा बढ़ता जाएगा पीसीओडी या पीसीओएस जैसी बीमारी भी बढ़ने लगेगी।
4. शुगर- इस बीमारी में जितना हो सकें मीठा कम कर दें। इससे आपके वजन पर कंट्रोल बना रहेगा। वहीं रिफाइंड शुगर हानिकारक होती है। इसकी जगह पर आप गुड़ का इस्तेमाल भी कर सकते हैं।
5. स्ट्रेस- पीसीओडी बीमारी अक्सर स्ट्रेस के कारण ही होती है। इसलिए बेहतर होगा अगर आप स्ट्रेस को ना कह दें और पॉजेटिव थिंकिंग के साथ कोई भी कार्य की शुरुआत करें क्योंकि पॉजिटिव सोच आपको किसी बीमारी से उभरने में जल्दी मदद करती है।
लाइफस्टाइल /शौर्यपथ /यूं तो राजस्थान की तेजस्वी व ओजस्वी, जप-तप, धर्म-कर्म गुणों से परिपूर्ण माटी में कई वीर-वीरांगनाओं ने जन्म लेकर इसका रुतबा ऊंचा किया है लेकिन महाराणा प्रताप उन चुनिंदा शासकों में से एक हैं जिनकी वीरता, शौर्य-पराक्रम के किस्से और गौरवमयी संघर्ष गाथा को सुनकर हर किसी के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। अमर राष्ट्रनायक, दृढ़ प्रतिज्ञ और स्वाधीनता के लिए जीवन भर मुगलों से मुकाबला करने वाले साहसिक रणबांकुर महाराणा प्रताप को जंगल-जंगल भटक कर घास की रोटी खाना मंजूर था, लेकिन किसी भी परिस्थिति व प्रलोभन में अकबर की अधीनता को स्वीकार करना कतई मंजूर नहीं था।
1540 ईसवी को राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में पिता उदयसिंह की 33वीं संतान और माता जयवंताबाई की कोख से जन्मे मेवाड़ मुकुट-मणि महाराणा प्रताप जिन्हें बचपन में 'कीका' कहकर संबोधित किया जाता, जो अपनी निडर प्रवृत्ति, अनुशासन-प्रियता और निष्ठा, कुशल नेतृत्व क्षमता, बुजुर्गों व महिलाओं के प्रति विशेष सम्मानजनक दृष्टिकोण, ऊंच-नीच की भावनाओं से रहित, निहत्थे पर वार नहीं करने वाले, शस्त्र व शास्त्र दोनों में पारंगत एवं छापामार युद्ध कला में निपुण व उसके जनक थे।
महाराणा प्रताप कुटनीतिज्ञ, राजनीतिज्ञ, मानसिक व शारीरिक क्षमता में अद्वितीय थे। उनकी लंबाई 7 फीट और वजन 110 किलोग्राम था तथा वे 72 किलो के छाती कवच, 81 किलो के भाले, 208 किलो की दो वजनदार तलवारों को लेकर चलते थे। उनके पास उस समय का सर्वश्रेष्ठ घोड़ा 'चेतक' था, जिसने अंतिम समय में जब महाराणा प्रताप के पीछे मुगल सेना पड़ी थी तब अपनी पीठ पर लांघकर 26 फीट ऊंची छलांग लगाकर नाला पार कराया और वीरगति को प्राप्त हुआ। जबकि इस नाले को मुगल घुड़सवार पार नहीं कर सकें।
पिता उदयसिंह द्वारा अपनी मृत्यु से पहले ही अपनी सबसे छोटी पत्नी के पुत्र जगमाल को अपना उत्तराधिकारी घोषित करने से मेवाड़ की जनता असहमत थी। महाराणा प्रताप ने मेवाड़ छोड़ने का निर्णय किया लेकिन जनता के अनुनय-विनय के बाद वे रुक गए और 1 मार्च, 1573 को उन्होंने सिंहासन की कमान संभाली। उस समय दिल्ली में मुगल शासक अकबर का राज था और उसकी अधीनता कई हिन्दू राजा स्वीकार करने के लिए संधि-समझौता कर रहे थे, तो कई मुगल औरतों से अपने वैवाहिक संबंध स्थापित करने में लगे थे। लेकिन इनसे अलग महाराणा प्रताप को अकबर की दासता मंजूर नहीं थी। इससे आहत होकर अकबर ने मानसिंह और जहांगीर के अध्यक्षता में मेवाड़ आक्रमण को लेकर अपनी सेना भेजी। 18 जून, 1576 को आमेर के राजा मानसिंह और आसफ खां के नेतृत्व में मुगल सेना और महाराणा प्रताप के बीच हल्दीघाटी का युद्ध हुआ। माना जाता है कि इस युद्ध में न तो अकबर की जीत हो सकी और न ही महाराणा प्रताप की हार हो सकी। एक तरफ अकबर की विशालकाय, साजो-सामान से सुरक्षित सेना थी तो दूसरी ओर महाराणा प्रताप की जुझारू सैनिकों की फौज थी।
हल्दीघाटी के ऐतिहासिक युद्ध के बाद महाराणा प्रताप परिवार सहित जंगलों में विचरण करते हुए अपनी सेना को संगठित करते रहे। एक दिन जब उन्होंने अपने बेटे अमरसिंह की भूख शांत करने के लिए घास की रोटी बनाई तो उसे भी जंगली बिल्ली ले भागी। इससे विचलित होकर महाराणा प्रताप का स्वाभिमान डगमगाने लगा। उनके हौसले कमजोर पड़ने लगे। ऐसी अफवाह फैल गई कि महाराणा प्रताप की विवशता ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली। तभी बीकानेर के कवि पृथ्वीराज राठौड़ ने महाराणा को पत्र लिखकर उनके सुप्त स्वाभिमान को पुन: जगा दिया। फिर महाराणा प्रताप को मरते दम तक अकबर अधीन करने में असफल ही रहा।
अंततः महाराणा प्रताप की मृत्यु अपनी राजधानी चावंड में धनुष की डोर खींचने से उनकी आंत में लगने के कारण इलाज के बाद 57 वर्ष की उम्र में 29 जनवरी, 1597 को हो गई।
महाराणा प्रताप की मृत्यु का समाचार सुनकर अकबर की आंखों में भी प्रताप की अटल देशभक्ति को देखकर आंसू छलक आए थे। मुगल दरबार के कवि अब्दुर रहमान ने लिखा है, 'इस दुनिया में सभी चीज खत्म होने वाली है। धन-दौलत खत्म हो जाएंगे लेकिन महान इंसान के गुण हमेशा जिंदा रहेंगे।
प्रताप ने धन-दौलत को छोड़ दिया लेकिन अपना सिर कभी नहीं झुकाया। हिन्द के सभी राजकुमारों में अकेले उन्होंने अपना सम्मान कायम रखा।'
और तो और एक बार अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन भारत के दौरे पर आ रहे थे, तो उन्होंने अपनी मां से पूछा… मैं आपके लिए भारत से क्या लेकर आऊं, तो उनकी मां ने कहा था भारत से तुम हल्दीघाटी की मिट्टी लेकर आना जिसे हजारों वीरों ने अपने रक्त से सींचा है।
लेकिन, इन सब के उपरांत भी इतिहास की पाठ्य पुस्तकों में महाराणा प्रताप की वीरता के अध्याय पढ़ाने की बजाय अकबर की महानता के किस्से पढ़ाना इस सच्चे राष्ट्रनायक के बलिदान के साथ नाइंसाफी है।
धरती के इस वीर पुत्र के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी कि जब उसकी महानता व माटी के प्रति कृतज्ञता की कहानी हरेक जन तक पहुंचाई जाएगी।
धर्म संसार /शौर्यपथ / अक्षय तृतीया का पर्व हर साल वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्यप्रदेश सहित पूरे उत्तर भारत में मनाया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में इसे आखातीज या अक्खा तीज कहते हैं। आओ जानते हैं 10 पौराणिक तथ्य।
अक्षय तृतीया तिथि शुभ मुहूर्त:-14 मई 2021 को सुबह 05 बजकर 38 मिनट से प्रारंभ होकर 15 मई 2021 को सुबह 07 बजकर 59 मिनट तक रहेगी। इस बीच पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 05 बजकर 38 मिनट से दोपहर 12 बजकर 18 मिनट तक रहेगा। पूजा की कुल अवधि 06 घंटा 40 मिनट रहेगी। बताया जाता है कि वर्ष में साढ़े तीन अक्षय मुहूर्त है। जिसमें प्रथम व विशेष स्थान अक्षय तृतीया का है।
क्यों मनाई जाती है अखातीज : अक्षय तृतीया (अखातीज) को अनंत-अक्षय-अक्षुण्ण फलदायक कहा जाता है जो कभी क्षय नहीं होती उसे अक्षय कहते हैं। बताया जाता है कि वर्ष में साढ़े तीन अक्षय मुहूर्त है। जिसमें प्रथम व विशेष स्थान अक्षय तृतीया का है। अक्षय मुहूर्त होने के कारण इस दिन विवाह करना, गृह प्रवेश करना और सोना खरीदना बहुत ही शुभ माना जाता है। खासकर अक्षय तृतीया के स्वर्ण खरीदना और विवाह करने का सबसे ज्यादा महत्व है। क्योंकि इस दिन जो भी कार्य किया जाता है उसका क्षय नहीं होता है। नाश नहीं होता है।
इस दिन को स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना गया है। समस्त शुभ कार्यों के अलावा प्रमुख रूप से शादी, स्वर्ण खरीदने, नया सामान, गृह प्रवेश, पदभार ग्रहण, वाहन क्रय, भूमि पूजन तथा नया व्यापार प्रारंभ कर सकते हैं। इस दिन आप चाहे तो ऑनलान सोना खरीद सकते हैं। जो लोग 'स्वर्ण रश योजना' से जुड़े हैं वे तो खरीदते ही हैं।
अक्षय तृतीया के दिन स्नान, ध्यान, जप-तप करना, हवन करना, स्वाध्याय और पितृ तर्पण करने से पुण्य मिलता है। अक्षय तृतीया के दिन पंखा, चावल, नमक, घी, चीनी, सब्जी, फल, इमली और वस्त्र वगैरह का दान अच्छा माना जाता है।
10 पौराणिक तथ्य :
1. इस दिन भगवान नर-नारायण सहित परशुराम और हय ग्रीव का अवतार हुआ था।
2. बद्रीनारायण के कपाट भी इसी दिन खुलते हैं। मां गंगा का अवतरण भी इसी दिन हुआ था।
3. इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर के पूछने पर यह बताया था कि आज के दिन जो भी रचनात्मक या सांसारिक कार्य करोगे, उसका पुण्य मिलेगा। अक्षय तृतीया के दिन ही वृंदावन के बांके बिहारी जी के मंदिर में श्री विग्रह के चरणों के दर्शन होते हैं। सुदामा भगवान कृष्ण से मिलने पहुंचे थे।
4. अक्षय तृतीया के दिन श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ, श्री सूक्त का पाठ या श्री रामचरितमानस के अरण्य काण्ड का पाठ करना चाहिए। इससे जीवन में ऋषियों का आशीर्वाद, धन, यश, पद और प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है।
5. जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभनाथ का जन्म चैत्र कृष्ण नौवीं के दिन सूर्योदय के समय हुआ। उन्हें आदिनाथ भी कहा जाता है। जैन धर्म के मतानुसार भगवान ऋषभदेव ने एक वर्ष की पूर्ण तपस्या करने के पश्चात इक्षु (शोरडी-गन्ने) रस से पारायण किया था। जब यह घटना घटी थी तब अक्षय तृतीया थी इसलिए यह महत्वपूर्ण दिन माना जाता है।
6. अक्षय तृतीया के पावन दिन पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष प्रदान होता है।
7. अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा विधि-विधान से करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।
8. इसी दिन सतयुग और त्रैतायुग का प्रारंभ हुआ था और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ।
9. अक्षय तृतीया के दिन से ही वेद व्यास और भगवान गणेश ने महाभारत ग्रंथ लिखना शुरू किया था। इसी दिन महाभारत की लड़ाई खत्म हुई।
10. ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का जन्म भी इसी दिन हुआ था।
शौर्यपथ /आज पूरा देश कोरोना वायरस की दूसरी लहर का सामना कर रहा है। कोविड19 की यह दूसरी लहर पिछले साल से भी ज्यादा खतरनाक बताई जा रही है क्योंकि इस साल युवाओं में संक्रमण बहुत तेजी से फैल रहा है और सांस लेने में परेशानी के चलते इस बीमारी ने और भी भयावह रूप ले लिया है। ऐसे में लोग बचाव के साथ समय पर इस बीमारी का पता लगाने के लिए समय-समय पर अपना ऑक्सीजन लेवल चेक कर रहे हैं। हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने प्रशासन को निर्देश दिया है कि वह कोविड -19 के लक्षणों से पीड़ित लोगों को 6 मिनट के टेस्ट के बारे में जागरूक करे। इस टेस्ट को घर पर बहुत आसानी से किया जा सकता है। आइए, जानते हैं इस टेस्ट को करने का तरीका -
ऐसे करें ऑक्सीजन लेवल चेक-
टेस्ट के बाद पॉजिटिव रिपोर्ट आने पर लोगों को घर पर ऑक्सीमीटर का उपयोग करके अपने ऑक्सीजन के स्तर की जांच करनी चाहिए। लोग अपनी उंगली पर ऑक्सीमीटर लगाकर छह मिनट का वॉक टेस्ट भी कर सकते हैं। अपनी तर्जनी या मध्यमा अंगुली में ऑक्सीमीटर पहनें। अब 6 मिनट के लिए एक समान सतह पर विराम लिए बिना चलें। 6 मिनट के बाद, यदि ऑक्सीजन का स्तर नीचे नहीं जाता है, तो व्यक्ति को स्वस्थ माना जाता है।
ऐसे रखें नजर-
ऑक्सीजन का स्तर 1 फीसदी या 2 फीसदी कम हो जाए तो चिंता की कोई बात नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस मामले में, व्यक्ति को ऑक्सीजन के स्तर पर नजर रखने के लिए दिन में एक या दो बार एक्सरसाइज करना चाहिए। यदि ऑक्सीजन का स्तर 93 प्रतिशत से कम हो जाता है और व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ होती है, तो व्यक्ति को तुरंत हॉस्पिटल जाना चाहिए। अस्थमा से पीड़ित लोगों के लिए टेस्ट की सलाह नहीं दी जाती है। साथ ही, 60 वर्ष से अधिक आयु के लोग छह के बजाय तीन मिनट तक वॉकिंग टेस्ट कर सकते हैं।
इन बातों का रखें ध्यान-
ऐसे कपड़े और जूते पहनें जो हल्के और आरामदायक हों।
चलने के लिए बेंत, छड़ी या वॉकर का इस्तेमाल कर सकते हैं।
टेस्ट करने से पहले हल्का भोजन करें।
आप अपनी सामान्य दवाएं ले सकते हैं।
टेस्ट के दो घंटे के भीतर व्यायाम न करें।
लाइफस्टाइल /शौर्यपथ /‘आप अगर खाना नहीं खाओगे, तो रात में भूत आ जाएगा।’ क्या आपने भी अपने बच्चे को खाना खिलाने के लिए ऐसा ही कोई बहाना बनाया है? आपका जवाब अगर हां है, तो आपको यह बात समझने की जरूरत है कि कभी-कभी हम बच्चों को अच्छी बातें सिखाने के लिए कुछ ऐसा बोल जाते हैं, जिससे कि उनके मन में कई डर घर कर जाते हैं। इसके अलावा बच्चे अनजाने में ही कई गलत आदतें सीख जाते हैं। इस कारण आपको कुछ बातें याद रखनी चाहिए-
लालच देकर कोई काम न कराएं
आमतौर अपनी बात मनवाने के लिए माता-पिता बच्चे को कोई लालच देते हैं। जैसे होमवर्क पूरा करने या बाहर न जाने के बदले उसे आइसक्रीम या खिलौने का लालच। ऐसा करना बेहद गलत है क्योंकि इसके बाद भी बच्ची सही बर्ताव करने के बदले आपसे अपनी डिमांड को पूरा करवाने की कोशिश करेगा।
किसी के सामने कोई एक्टिंग करने के लिए कहना
आमतौर पर माता-पिता बच्चों को कोई डांस या एक्टिंग करने के लिए कहते हैं। ऐसा करना शायद एंटरटेनिंग लगे, लेकिन इससे बच्चों के दिमाग पर गलत असर पड़ता है। बार-बार ऐसा कहने पर बच्चे को लगने लगता है कि अगर वह ये सब नहीं करेगा, तो उसके मम्मी-पापा उसे प्यार नहीं करेंगे या फिर मारेंगे।
किसी के सामने बच्चों पर न चिल्लाएं
अधिकतर माता-पिता बच्चों को किसी मॉल में, पब्लिक प्लेस में या फिर किसी पार्क में ही डांटना शुरू कर देते हैं। इस दौरान बच्चा आपकी बातें न सुनकर वो इस बात पर ध्यान देने लगता है कि आसपास के लोग सुन रहे हैं इसलिए हमेशा बच्चे को एकांत में उसके व्यवहार के बारे में बताएं ताकि वे अपने बुरे व्यवहार को छोड़ सके।
दूसरे बच्चों से तुलना
अपना बच्चा सभी को प्यारा लगता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप अपने बच्चे को फील गुड कराने के लिए उसकी तुलना दूसरों बच्चों से करेंगे। कई बार ऐसा होता है कि बच्चे को मोटिवेट करने के लिए माता-पिता किसी बच्चे को बुरा बताते हुए अपने बच्चे की तुलना करते हैं। ऐसा करने से आपका बच्चा उस दूसरे बच्चे के लिए मन में नेगेटिव इमेज बना लेगा। आगे चलकर यह नेगेटिव चीज उसकी पर्सनैलिटी का हिस्सा भी बन सकती है।
गलती करने पर गुस्सा करना
कभी-कभी मां-बाप अपने ऑफिस का गुस्सा या किसी और बात का गुस्सा अपने बच्चों पर निकाल देते हैं। साथ ही माता-पिता गुस्से में अपने बच्चे को उस गलती की सजा दे देते हैं, जिसे नजरअंदाज किया जा सकता था। बच्चे को अनुशासन सिखाते वक्त अपनी दूसरी समस्याओं और गुस्से को अलग रखें।
सेहत /शौर्यपथ /चॉकलेट का नाम सुनते ही मुंह में पानी आ जाता है लेकिन कुछ लोग वेट गेन होने की वजह से चॉकलेट से दूर बना लेते हैं। आपको भी अगर चॉकलेट खाने से इसी वजह से डर लगता है, तो आप अपनी डाइट लिस्ट में डार्क चॉकलेट जोड़ सकते हैं। डार्क चॉकलेट खाने से एंग्जायटी से छुटकारा मिलता है। वहीं, इसे खाने के और भी फायदे हैं-
दिल के लिए फायदेमंद
चॉकलेट से दिल से संबंधित बीमारियां दूर हो सकती हैं। डार्क चॉकलेट हार्ट अटैक के खतरे को 50% और कॉरनेरी बीमारी को 10% तक कम करता है इसलिए चॉकलेट को सीमित मात्रा में खाने से शरीर को नुकसान नहीं फायदा मिलता है।
लो ब्लड प्रेशर में
लो ब्लडड प्रेशर में थोड़ी डार्क चॉकलेट खाने की सलाह दी जाती है। ये मूड को भी सही करती है। साथ ही इससे ब्लड प्रेशर भी कंट्रोल रहता है।
कॉलस्ट्रोल घटाए
कम चॉकलेट खाने से कॉलस्ट्रोल की मात्रा कम होती है। यह शरीर में मौजूद खराब कॉलस्ट्रोल को कम करने के साथ-साथ अच्छे कॉलस्ट्रोल को बनाने में मदद करती है।
डिप्रेशन भगाए
चॉकलेट में सेरोटोनिन पाए जाने के कारण यह हमारे दिमाग को तरोताजा रखता है और तनाव को हावी नहीं होने देता।
फैट कंट्रोल
चॉकलेट में पाए जाने वाला कोको पाउडर फैट को कम करने में मदद करता है। लेकिन खाते समय हमें हमेशा यह ध्यान रखें कि चॉकलेट की मात्रा कम होने के साथ-साथ चॉकलेट में 60% कोको की मात्रा होनी चाहिए।
ब्लड सर्कुलेशन को करे ठीक
चॉकलेट में पाए जाने वाला कंपाउंड हमारे रक्त संचार को सुधारने का काम करता है। यह मस्तिष्क में रक्त वाहिका फैलने के साथ रक्त के संचार को भी बढ़ा देता है।
थकान दूर करे
हमेशा थकान रहने से व्यक्ति को सिर दर्द, शरीर में दर्द और हृदय संबंधित समस्याओं से ग्रसित हो जाता है। यदि आप 50 ग्राम चॉकलेट रोज खाए, तो आप इन समस्याओं से छुटकारा पा सकते हैं।
चेहरे की झुर्रियों को करे दूर
चॉकलेट में पाए जाने वाला एंटीऑक्सीडेंट हमारी त्वचा को तरोताजा रखने में मदद करता है। यदि आप चॉकलेट का सेवन करें, तो जल्दीो रिकल्स की टेंशन से फ्री हो सकते हैं।
खाना खजाना /शौर्यपथ / पास्ता लवर्स को इसके अलग-अलग फ्लेवर चखने का बहुत शौक होता है। आज हम आपके लिए पास्ता को हेल्दी फ्लेवर के साथ बनाने की रेसिपी लेकर आए हैं।
सामग्री :
2 कप उबला हुआ पास्ता
2 कप नारियल का दूध
3 टेबल स्पून सूजी का आटा
1 टेबल स्पून अदरक-लहसुन का पेस्ट
1 प्याज, टुकड़ों में कटा हुआ
स्वादानुसार नमक
स्वादानुसार चिली फलेक्स
स्वादानुसार ओरिगानो
स्वादानुसार काली मिर्च पाउडर
विधि :
एक पैन में कुछ मक्खन और जैतून का तेल डालें। सूजी के आटे को भून लें।
नारियल का दूध डालें और उबाल लें। गैस बंद कर दें।
एक पैन में, प्याज, अदरक और लहसुन को भूनें। उबला हुआ पास्ता और नारियल का दूध सॉस डालें। नमक और अन्य मसाला डालें। एक मिनट के लिए पकाएं और परोसें।
शौर्यपथ /शौर्यपथ / कोरोना संक्रमित व्यक्ति जिन्हें स्वाद और गंध का एहसास नहीं हो रहा है उनके लिए यह राहत भरी खबर है, ऐसे मरीज गंभीर होने के खतरे से दूर हैं। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में 220 मरीजों पर हुए रिसर्च में यह खुलासा हुआ है।
शोधकर्ता डॉ. हरेन्द्र कुमार का कहना है कि रिसर्च के लिए दो कैटेगरी बनाई गई है। इसमें एक कैटेगरी में उन मरीजों को लिया गया है जिन्हें स्वाद और गंध नहीं मिल रही थी। दूसरे एक कैटेगरी उन मरीजों की थी जिन्हें स्वाद और गंध मिल रही थी।
इन दोनों में तुलानात्मक अध्ययन किया गया तो पता चला स्वाद और गंध नहीं पाने वाले कुल नौ मरीज भर्ती हुए और जिन्हें स्वाद और गंध मिल रही थी उनमें 34 लोग अस्पताल में भर्ती हो गए। इनमें आठ लोगों की मौत भी हो गई।
शोधकर्ता ईएनटी विभाग के डॉ. हरेन्द्र कुमार का कहना है कि रिसर्च में यह देखा जाना था कि कोरोना वायरस का हमला स्वाद और गंध पर किस तरह डालता है। मरीज किस हद तक गम्भीर होते हैं। डॉ. हरेन्द्र कुमार का कहना है कि मेरठ मेडिकल कालेज ने भी इस पर रिसर्च किया जा रहा है यहां भी लगभग 50 मरीजों में इस तरह की फाइंडिंग मिली है। इस विषय पर वह रिसर्च पेपर लिख रहे हैं।
अधिकतर सामान्य दवाओं से ठीक हुए
रिसर्च करने वाले डॉक्टर हरेन्द्र कुमार का कहना है कि स्वाद और गंध नहीं पाने वाले अधिकतर मरीजों को सामान्य दवाओं और होम आइसोलेशन पर रखा गया। पाया गया कि 10 से 15 दिन के अंदर वह कोरोना निगेटिव हो गए। हालांकि स्वाद और गंध नहीं मिलने की शिकायत कुछ को महीने भर तो किसी में डेढ़ महीने बनी रही।
ओलिफेक्टिरी ग्रंथि प्रभावित होने से ब्रेन व फेफड़े सुरक्षित रहे
डॉ. हरेन्द्र कुमार का कहना है कि जांच में पता चला कि नाक में पाए जाने वाले ओलिफेक्टिटरी ग्रंथि पर कोरोना का जबरदस्त हमला हुआ। कोरोना वायरस यही ठहरा रहा और न वह ब्रेन की ओर जा सका और न ही फेफड़े में उतर सका। ऐसे में ब्रेन और श्वसन तंत्र सुरक्षित रहे। मरीज एक्यूट आर्गन फेल्योर से बचे रहे।
टिप्स ट्रिक्स /शौर्यपथ / लंच या डिनर पर कोई मेहमान आने वाला हो और जल्दबाजी में बनाए गए चावल ज्यादा पकने की वजह से हलवे जैसे हो गए हैं तो टेंशन छोड़ इन टिप्स और ट्रिक्स को अपनाकर मेहमानों को करें इम्प्रेस। आइए जानते हैं क्या है ये गजब के टिप्स।
ओवन की लें मदद-
अगर चावल बहुत गीले या खिचड़ी जैसे हो गए हैं तो आप चावल का ज्यादा पानी सूखाने के लिए उन्हें 5 मिनट ओवन में पकाएं। ओवन के तापमान को 350 °F (177 °C) पर रखें। चावल को एक-समान रूप से एक कुकी शीट या बेकिंग पेन पर फैला लें। इन्हें 5 मिनट के लिए ओवन में पकने दें।
डोसा-अगर चावल ज्यादा पक चुके हैं और उन्हें सर्व नहीं किया जा सकता है तो आप अपने खाने के मेन्यू में थोड़ा सा बदलाव करते हुए बड़ी आसानी से अधिक पके हुए चावलों की मदद से बहुत ही स्वादिष्ट डोसा तैयार कर सकती हैं। इसके लिए आप सबसे पहले ओवरकुक्ड चावल को एक बाउल में लेकर इसमें सूजी और दही मिलाकर लगभग 30 मिनट के लिए इस मिश्रण को ढांक कर सेट होने के लिए अलग रख दें। 30 मिनट बाद घोल का गाढ़ापन देखते हुए जरूरत अनुसार पानी मिलाएं। फिर इसमें एक पैकेट ईनो और नमक मिलाएं। डोसे का घोल तैयार है। अब आप इसे नॉन स्टिक तवे पर डाल कर क्रिस्पी डोसा बन सकती हैं।
खीर -चावल यदि ज्यादा पक कर गल गए हों तो आप उनसे खाने के साथ परोसी जाने वाली स्वीट डिश खीर बना सकते हैं।
चावल के क्रेकर्स-चावल को एक बेकिंग शीट पर जितना संभव हो, उतना पतला करके फैला लें। चावल को 2 घंटे के लिए 200 °F (93 °C) पर बेक होने दें। जैसे ही आप उन्हें बाहर निकाल लें, उन्हें छोटे पीस में तोड़ लें। एक बर्तन में 400 °F (204 °C) पर गरम हुए तेल में इन पीस को फ्राई कर लें। जैसे ही आपके क्रेकर्स ऊपर उठकर आ जाएं, एक चम्मच से उन्हें बाहर निकाल लें। परोसने से पहले उन्हे एक पेपर टॉवल पर निकाल दें।
टिप्स ट्रिक्स /शौर्यपथ आप कितनी ही टेस्टी सब्जी क्यों न बना लें लेकिन अगर उसमें नमक ज्यादा हो गया, तो आपकी पूरी मेहनत खराब चली जाती है। ज्यादा नमक होने से बाकी मसालों का टेस्ट भी खराब हो जाता है और साथ ही ज्यादा नमक खाने से ब्लड प्रेशर बढ़ता है। आइए, जानते हैं कि अगर सब्जी या फिर किसी और डिश में नमक ज्यादा हो गया है, तो आप इसे कैसे सही कर सकते हैं।
-सब्जी या सूप में नमक ज्यादा हो गया है तो आलू छीलकर डाल दें और सर्व करने से पहले इसे निकाल लें। ऐसा करने से सब्जी या सूप का ज्यादा नमक आलू सोख लेगा और स्वाद में कोई कमी नहीं रहेगी।
-अगर ग्रेवी वाली सब्जी में नमक ज्यादा हो गया है तो आटे की बड़ी लोई डाल दें। इससे उसका खारापन आटे में समा जाएगा। बाद में इस लोई को निकाल लें।
-आप चाहें तो इसमें 1-2 चम्मच दही डालकर भी सब्जी में ज्यादा हुए नमक को कम किया जा सकता है।
-दाल में अगर नमक ज्यादा हो जाए तो नींबू का रस डाल सकते हैं।
-अगर सब्जी ज्यादा तीखी हो गई है तो इसमें एक बड़ा चम्मच घी डाल दें।
-नींबू के कसलेपन की वजह से हम इसे पूरी तरह निचोड़ नहीं पाते। नींबू का रस निकालने के लिए इसे 15 से 20 सेकेंड के लिए माइक्रोवेव में गर्म करें या गैस की आंच दिखाकर इसे गर्म कर लें। इसके बाद नींबू निचोड़ें, ऐसा करने से इसका सारा रस आसानी से निकल आएगा।
-मिर्च काटने से कई लोगों के हाथों में जलन होने लगती है। ऐसे में मिर्च काटने से पहले हाथों में थोड़ा तेल या घी लगा लें। हाथ चिकने नहीं करना चाहते तो कैंची से मिर्च काटें।
-फ्रीजर में फटाफट बर्फ जमानी है तो पानी को हल्का गर्म करके जमने के लिए रखें। इस तरह बर्फ जल्दी जमेगी।
शौर्यपथ / इस वर्ष 02 मई 2021 को विश्व हास्य दिवस मनाया जा रहा है। प्रतिवर्ष मई के पहले रविवार को विश्व हास्य दिवस यानी वर्ल्ड लाफ्टर डे मनाया जाता है। यह संकेत देता है कि आज भले ही इसने योग और चिकित्सा के साथ हाथ मिला लिया है पर इसकी अहमियत हमारे जीवन में हमेशा बनी रहेगी। फिर चाहे अपनाने का तरीका कैसा भी हो।
विश्व हास्य दिवस का शुभारंभ वर्ष 1998 में किया गया। इस दिवस को अमल में लाने का श्रेय हास्य योग आंदोलन के संस्थापक डॉ. मदन कटारिया को जाता है। उन्होंने ही 11 जनवरी 1998 को मुंबई में पहली बार विश्व हास्य दिवस को मनाया था। इसे मनाने का उद्देश्य समाज के बढ़ते तनाव को कम कर उन्हें सुखी जीवन जीने की सीख देना था। तब से हर वर्ष मई महीने के पहले रविवार को हास्य दिवस मनाया जाता है।
हंसने से तन-मन में उत्साह का संचार होता है और दिल से हंसना तो किसी दवा से कम नहीं। यह एक उत्तम टॉनिक का काम करती है। इसलिए आज जगह-जगह पर हास्य क्लब बनाए जा रहे हैं, ताकि भागदौड़ भरी जिंदगी में तनाव से मुक्ति मिले।
जानिए क्यों लगाए हंसी के ठहाके...
1. क्या आप जानते हैं कि बातचीत करते समय हम जितनी ऑक्सीजन लेते हैं उससे छः गुना अधिक ऑक्सीजन हंसते समय लेते हैं। इस तरह शरीर को अच्छी मात्रा में ऑक्सीजन मिल जाती है।
2 . मनोवैज्ञानिक भी तनाव से ग्रसित व्यक्तियों को हंसते रहने की सलाह देते हैं। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि जब आप मुस्कराते हैं तो आपका मस्तिष्क अपने आप सोचने लगता है कि आप खुश हैं- यही प्रक्रिया पूरे शरीर में प्रवाहित करता है और आप सुकून महसूस करने लगते हैं।
3. जब आप हंसना शुरू करते हैं तो शरीर में रक्त का संचार तीव्र होता है। तनाव में भी हंसने की क्षमता हो तो दुःख भी कुछ कम लगने लगता है।
4. हंसने के लाभ भी बहुत होते हैं जैसे- हंसते समय क्रोध नहीं आता।
5.हंसने से आत्मसंतोष के साथ सुखद अनुभूति होती है।
6.शरीर में नई स्फूर्ति का संचार होता है।
7. हंसने से मन में उत्साह का संचार होता है।
8.ब्लड प्रेशर कम होता है।
9. हंसी मांसपेशियों में खिंचाव कम करती है।
10. हंसी दर्द दूर करती है
11. इससे शरीर के साथ-साथ दिमाग की भी एक्सरसाइज होती है।
हंसना-हंसाना अपनी आदतों में शामिल कीजिए और फिर देखिए तनाव आपके पास फटक तक नहीं पाएगा, साथ ही आपका स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा।
आस्था /शौर्यपथ / जो जन्मा है वह मरेगा ही चाहे वह मनुष्य हो, देव हो, पशु या पक्षी सभी को मरना है। ग्रह और नक्षत्रों की भी आयु निर्धारित है और हमारे इस सूर्य की भी। इसे ही जन्म चक्र कहते हैं। जन्म मरण के इस चक्र में व्यक्ति अपने कर्मों और चित्त की दशा अनुसार नीचे की योनियों से उपर की योनियों में गति करता है और पुन: नीचे गिरने लगता है। यह क्रम तब तक चलता है जब तक की मोक्ष नहीं मिल जाता है। कई बार स्थितियां बदल जाती हैं, आओ जानते हैं गरुड़ पुराण अनुसार कि मरने के बाद क्यों नहीं शव को अकेला छोड़ा जाता है।
दाह संस्कार कुछ समय के लिए टाल देते हैं इन 3 कारणों से
1. सूर्यास्त के बाद हुई है मृत्यु तो हिन्दू धर्म के अनुसार शव को जलाया नहीं जाता है। इस दौरान शव को रातभर घर में ही रखा जाता और किसी न किसी को उसके पास रहना होता है। उसका दाह संसाकार अगले दिन किया जाता है। यदि रात में ही शव को जला दिया जाता है तो इससे व्यक्ति को अधोगति प्राप्त होती है और उसे मुक्ति नहीं मिलती है। ऐसी आत्मा असुर, दानव अथवा पिशाच की योनी में जन्म लेते हैं।
2. यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु पंचक काल में हुई है तो पंचक काल में शव को नहीं जलाया जाता है। जब तक पंचक काल समाप्त नहीं हो जाता तब तक शव को घर में ही रखा जाता है और किसी ना किसी को शव के पास रहना होता है। गरुड़ पुराण सहित कई धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि यदि पंचक में किसी की मृत्यु हो जाए तो उसके साथ उसी के कुल खानदान में पांच अन्य लोगों की मौत भी हो जाती है। इसी डर के कारण पंचक काल के खत्म होने का इंतजार किया जाता है परंतु इसका समाधान भी है कि मृतक के साथ आटे, बेसन या कुश (सूखी घास) से बने पांच पुतले अर्थी पर रखकर इन पांचों का भी शव की तरह पूर्ण विधि-विधान से अंतिम संस्कार किया जाता है। ऐसा करने से पंचक दोष समाप्त हो जाता है।
3. यदि कोई मर गया है परंतु उसका दाह संस्कार करने के लिए उसका पुत्र या पुत्री समीप नहीं होकर कहीं दूर है तो उनके आने का इंतजार किया जाता है। तब तक शव को घर में ही रखा जाता है और किसी ना किसी को शव के पास रहना होता है। कहते हैं कि पुत्र या पुत्री के हाथों ही दाह संस्कार होने पर मृतक को शांति मिलती है अन्यथा वह भटकता रहता है।
शव के अकेला नहीं छोड़े जाने के 3 कारण
1. शव को अकेला छोड़ दिया जाए तो उसके आसपास लाल चींटियां या अन्य कोई नरभक्षी रेंगने वाला प्राणी या पशु आकर शव को खास सकता है। इसीलिए वहां कोई ना कोई व्यक्ति बैठकर शव की रखवाली करता है।
2. रात में मृत शरीर को अकेला छोड़ दिया जाए तो आसपास भटक रही बुरी आत्माएं भी उसके शरीर में प्रवेश कर सकती हैं। इससे मृतक के साथ-साथ परिवार को भी संकट का सामना करना पड़ सकता है।
3. शव को इसलिए भी अकेला नहीं छोड़ा जाता क्योंकि मृतक की आत्मा वहीं पर रहती है। जब तक उसका शरीर जल नहीं जाता तब तक उसका उस शरीर से किसी ना किसी रूप में जुड़ाव रहता है। साथ ही वह अपने परिजनों को भी देखता है। अकेला छोड़ दिए जाने से उसका मन और भी ज्यादा दुखी हो जाता है। हालांकि अधिकतर लोग गहरी नींद में चले जाते हैं। बहुत ज्यादा स्मृतिवान या चेतनावान ही जान पाते हैं कि मैं मर चुका हूं।
अन्य कारण :
1. यह भी माना जाता है कि यदि ज्यादा समय हो जाए तो शव से निकलने वाली गंध के चलते कई तरह के बैक्टिरियां भी पनपने लगते हैं और मक्खियां भी भिनभिनाने लगती है। इसीलिए वहां इस दौरान अगरबत्ती की सुगंध और दीपक भी जलाया जाता है।
2. यह भी कहा जाता है कि शव को अकेले छोड़ने से कई लोग जो तांत्रिक कर्म करते हैं उनके कारण भी मृत आत्मा संकट में पड़ सकती है। इसीलिए भी कोई ना कोई शव की रखवाली करता रहता है।
3. शव के आसपास जगह को साफ-सुधरा किया जाता है और धूप के साथ ही दीपक भी जलाया जाता है ताकि वहां दूर तक उजाला फैला रहे। इसका भी यह कारण है कि मृतक कहीं अधोगति में नहीं चला जाए, क्योंकि रात्रि के अंधकार में अधोगति वाले कीट-पतंगे, रेंगने वाले जीव-जंतु और निशाचर प्राणी ज्यादा सक्रिय रहते हैं। उस दौरान आत्मा यदि गहरी तंद्रा में है तो उसके अधोगति में जाने की संभावना भी बढ़ जाती है।
उल्लेखनीय है कि भीष्म पितामह ने अधोगति से बचने के लिए ही सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया था। उत्तरायण में प्रकृति और चेतना की गति उपर की ओर होने लगती है।
पुराणों के अनुसार व्यक्ति की आत्मा प्रारंभ में अधोगति होकर पेड़-पौधे, कीट-पतंगे, पशु-पक्षी योनियों में विचरण कर ऊपर उठती जाती है और अंत में वह मनुष्य वर्ग में प्रवेश करती है। मनुष्य अपने प्रयासों से देव या दैत्य वर्ग में स्थान प्राप्त कर सकता है। वहां से पतन होने के बाद वह फिर से मनुष्य वर्ग में गिर जाता है। यदि आपने अपने कर्मों से मनुष्य की चेतना के स्तर से खुद को नीचे गिरा लिया है तो आप फिर से किसी पक्षी या पशु की योनी में चले जाएंगे। यह क्रम चलता रहता है। अर्थात व्यक्ति नीचे गिरता या कर्मों से उपर उठता चला जाता है।
उपनिषदों के अनुसार एक क्षण के कई भाग कर दीजिए उससे भी कम समय में आत्मा एक शरीर छोड़ तुरंत दूसरे शरीर को धारण कर लेता है। यह सबसे कम समयावधि है। सबसे ज्यादा समायावधि है 30 सेकंड। परंतु पुराणों के अनुसार यह समय लंबा की हो सकता है 3 दिन, 13 दिन, सवा माह या सवाल साल। इससे ज्यादा जो आत्मा नया शरीर धारण नहीं कर पाती है वह मुक्ति हेतु धरती पर ही भटकती है, स्वर्गलोक चली जाती है, पितृलोक चली जाती है या अधोलोक में गिरकर समय गुजारती है।
आस्था /शौर्यपथ / भगवान नृसिंह विष्णुजी के सबसे उग्र अवतार माने जाते है। नृसिंह जयंती पर उनके बीज मंत्र के जप से शत्रुओं का नाश होकर कोर्ट-कचहरी के मुकदमे आदि में विजय प्राप्त होती है। इससे शत्रु शमन होकर पराक्रम में बढ़ोतरी होती है तथा आत्मविश्वास में भी वृद्धि होती है। नृसिंह मंत्र से तंत्र मंत्र बाधा, भूत पिशाच भय, अकाल मृत्यु का डर, असाध्य रोग आदि से छुटकारा मिलता है तथा जीवन में शांति की प्राप्ति हो जाती है।
प्रतिदिन कैसे जपे मंत्र :
जीवन में सर्वसिद्धि प्राप्ति के लिए 40 दिन में पांच लाख जप पूर्ण करें।
* उपरोक्त मंत्र का प्रतिदिन रात्रि काल में जाप करें।
* मंत्र जप के दौरान नित्य देसी घी का दीपक जलाएं।
* 2 लड्डू, 2 लौंग, 2 मीठे पान और 1 नारियल भगवान नृसिंह को पहले और आखरी दिन भेंट चढ़ाएं।
* अगले दिन विष्णु मंदिर में उपरोक्त सामग्री चढ़ा दीजिए।
* अंतिम दिन दशांश हवन करें।
* अगर दशांश हवन संभव ना हो तो पचास हजार मंत्र संख्या और जपे।
1. भगवान नृसिंह का बीज मंत्र-
इसके लिए लाल रंग के आसन पर दक्षिणाभिमुख बैठकर रक्त चंदन या मूंगे की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।
भगवान नृसिंह का बीज मंत्र- 'श्रौं'/ क्ष्रौं (नृसिंहबीज)।
इस बीज में क्ष् = नृसिंह, र् = ब्रह्म, औ = दिव्यतेजस्वी, एवं बिंदु = दुखहरण है। इस बीज मंत्र का अर्थ है ‘दिव्यतेजस्वी ब्रह्मस्वरूप श्री नृसिंह मेरे दुख दूर करें'।
2. संकटमोचन नृसिंह मंत्र-
ध्याये न्नृसिंहं तरुणार्कनेत्रं सिताम्बुजातं ज्वलिताग्रिवक्त्रम्।
अनादिमध्यान्तमजं पुराणं परात्परेशं जगतां निधानम्।।
अगर आप कई संकटों से घिरे हुए हैं या संकटों का सामना कर रहे हैं, तो भगवान विष्णु या श्री नृसिंह प्रतिमा की पूजा करके उपरोक्त संकटमोचन नृसिंह मंत्र का स्मरण करें। समस्त संकटों से आसानी से छुटकारा मिल जाएगा।
अन्य नृसिंह मंत्र-
ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्।
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्यु मृत्युं नमाम्यहम्॥
* नृम नृम नृम नर सिंहाय नमः ।
भगवान नृसिंह की कथा, पूजन विधि और मंत्र
नृसिंह जयंती व्रत वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को किया जाता है। इस वर्ष 25 मई 2021, मंगलवार को यह पर्व मनाया जाएगा। इस दिन भगवान श्री नृसिंह ने खंभे को चीरकर भक्त प्रह्लाद की रक्षार्थ अवतार लिया था।
पुराणों के अनुसार इस पावन दिवस को भक्त प्रह्लाद की रक्षा करने के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंह रूप में अवतार धारण किया था। इसी वजह से यह दिन भगवान नृसिंह के जयंती रूप में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। जानिए इस दिन कैसे करें पूजन-
पूजन विधि एवं मंत्र-
* इस दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में सोकर उठें।
* संपूर्ण घर की साफ-सफाई करें।
* इसके बाद गंगा जल या गौमूत्र का छिड़काव कर पूरा घर पवित्र करें।
तत्पश्चात निम्न मंत्र बोले-
भगवान नृसिंह के पूजन का मंत्र -
नृसिंह देवदेवेश तव जन्मदिने शुभे।
उपवासं करिष्यामि सर्वभोगविवर्जितः॥
इस मंत्र के साथ दोपहर के समय क्रमशः तिल, गोमूत्र, मृत्तिका और आंवला मल कर पृथक-पृथक चार बार स्नान करें। इसके बाद शुद्ध जल से स्नान करना चाहिए।
पूजा के स्थान को गोबर से लीपकर तथा कलश में तांबा इत्यादि डालकर उसमें अष्टदल कमल बनाना चाहिए।
अष्टदल कमल पर सिंह, भगवान नृसिंह तथा लक्ष्मीजी की मूर्ति स्थापित करना चाहिए। तत्पश्चात वेदमंत्रों से इनकी प्राण-प्रतिष्ठा कर षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए।
रात्रि में गायन, वादन, पुराण श्रवण या हरि संकीर्तन से जागरण करें। दूसरे दिन फिर पूजन कर ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
*इस दिन व्रती को दिनभर उपवास रहना चाहिए।
*सामर्थ्य अनुसार भू, गौ, तिल, स्वर्ण तथा वस्त्रादि का दान देना चाहिए।
*क्रोध, लोभ, मोह, झूठ, कुसंग तथा पापाचार का त्याग करना चाहिए।
*इस दिन व्रती को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
भगवान नृसिंह के बीज मंत्र-
- ॐ श्री लक्ष्मीनृसिंहाय नम:।।
नृसिंह अवतार की कथा- जब हिरण्याक्ष का वध हुआ तो उसका भाई हिरण्यकशिपु बहुत दुःखी हुआ। वह भगवान का घोर विरोधी बन गया। उसने अजेय बनने की भावना से कठोर तप किया। तप का फल उसे देवता, मनुष्य या पशु आदि से न मरने के वरदान के रूप में मिला। वरदान पाकर तो वह मानो अजेय हो गया।
हिरण्यकशिपु का शासन बहुत कठोर था। देव-दानव सभी उसके चरणों की वंदना में रत रहते थे। भगवान की पूजा करने वालों को वह कठोर दंड देता था और वह उन सभी से अपनी पूजा करवाता था। उसके शासन से सब लोक और लोकपाल घबरा गए। कहीं ओर कोई सहारा न पाकर वे भगवान की प्रार्थना करने लगे। देवताओं की स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान नारायण ने हिरण्यकशिपु के वध का आश्वासन दिया।
उधर दैत्यराज का अत्याचार दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा था। यहां तक कि वह अपने ही पुत्र प्रहलाद को भगवान का नाम लेने के कारण तरह-तरह का कष्ट देने लगा। प्रहलाद बचपन से ही खेल-कूद छोड़कर भगवान के ध्यान में तन्मय हो जाया करता था। वह भगवान का परम भक्त था। वह समय-समय पर असुर-बालकों को धर्म का उपदेश भी देता रहता था।
असुर-बालकों को धर्म उपदेश की बात सुनकर हिरण्यकशिपु बहुत क्रोधित हुआ। उसने प्रहलाद को दरबार में बुलाया। प्रहलाद बड़ी नम्रता से दैत्यराज के सामने खड़ा हो गया। उसे देखकर दैत्यराज ने डांटते हुए कहा- 'मूर्ख! तू बड़ा उद्दंड हो गया है। तूने किसके बल पर मेरी आज्ञा के विरुद्ध काम किया है?'
इस पर प्रहलाद ने कहा- 'पिताजी! ब्रह्मा से लेकर तिनके तक सब छोटे-बड़े, चर-अचर जीवों को भगवान ने ही अपने वश में कर रखा है। वह परमेश्वर ही अपनी शक्तियों द्वारा इस विश्व की रचना, रक्षा और संहार करते हैं। आप अपना यह भाव छोड़ अपने मनको सबके प्रति उदार बनाइए।'
प्रहलाद की बात को सुनकर हिरण्यकशिपु का शरीर क्रोध के मारे थर-थर कांपने लगा। उसने प्रहलाद से कहा- 'रे मंदबुद्धि! यदि तेरा भगवान हर जगह है तो बता इस खंभे में क्यों नहीं दिखता?' यह कहकर क्रोध से तमतमाया हुआ वह स्वयं तलवार लेकर सिंहासन से कूद पड़ा। उसने बड़े जोर से उस खंभे को एक घूंसा मारा। उसी समय उस खंभे के भीतर से नृसिंह भगवान प्रकट हुए। उनका आधा शरीर सिंह का और आधा मनुष्य के रूप में था। क्षणमात्र में ही नृसिंह भगवान ने हिरण्यकशिपु को अपने जांघों पर लेते हुए उसके सीने को अपने नाखूनों से फाड़ दिया और उसकी जीवन-लीला समाप्त कर अपने प्रिय भक्त प्रहलाद की रक्षा की।
खाना खजाना /शौर्यपथ /दिन की शुरूआत अगर पौष्टिक नाश्ते से करें, तो न सिर्फ वेट कंट्रोल रहता है बल्कि इससे आपकी इम्युनिटी भी स्ट्रॉन्ग होती है। आज हम आपको ऐसा ही हेल्दी नाश्ता बता रहे हैं। आपने चने की दाल के पराठे तो कई बार खाएं होंगे, आज आपके लिए लाए हैं अरहर की दाल के पराठे-
सामग्री :
2 कप गेहूं का आटा
1 कप अरहर दाल (पकी हुई)
1 टीस्पून लाल मिर्च पाउडर
1/4 टीस्पून चाट मसाला
नमक स्वादानुसार
तेल जरूरत के अनुसार
विधि :
सबसे पहले एक बर्तन में आटा, दाल और नमक डालकर आटा गूंथ लें।
गूंदे हुए आटे को 15 मिनट के लिए अलग रख दें।
तय समय के बाद आटे की लोइयां तोड़ लें।
एक लोई सूखा आटे में लगाकर इसे पराठे जितना बेल लें।
मीडियम आंच पर तवा रखें।
इस पर पराठा डालें और दोनों तरफ तेल लगाकर करारा होने तक सेंक लें।
इसी तरह से सारे पराठे तैयार कर लें।
तैयार हैं अरहर दाल पराठा। दही या चटनी के साथ सर्व करें।