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धर्म संसार / शौर्यपथ / प्रभु यीशु के जन्म की ख़ुशी में मनाया जाने वाला क्रिसमस का त्योहार पूरी दुनिया में मनाया जाता है। यह त्योहार कई मायनों में बेहद खास है। क्रिसमस को बड़ा दिन, सेंट स्टीफेंस डे या फीस्ट ऑफ़ सेंट स्टीफेंस भी कहा जाता है। प्रभु यीशु ने दुनिया को प्यार और इंसानियत की शिक्षा दी। उन्होंने लोगों को प्रेम और भाईचारे के साथ रहने का संदेश दिया। प्रभु यीशु को ईश्वर का इकलौता प्यारा पुत्र माना जाता है। इस त्योहार से कई रोचक तथ्य जुड़े हैं। आइए जानते हैं इनके बारे में।
क्रिसमस ऐसा त्योहार है जिसे हर धर्म के लोग उत्साह से मनाते हैं। यह एकमात्र ऐसा त्योहार है जिस दिन लगभग पूरे विश्व में अवकाश रहता है। 25 दिसंबर को मनाया जाने वाला यह त्योहार आर्मीनियाई अपोस्टोलिक चर्च में 6 जनवरी को मनाया जाता है। कई देशों में क्रिसमस का अगला दिन 26 दिसंबर बॉक्सिंग डे के रूप मे मनाया जाता है। क्रिसमस पर सांता क्लॉज़ को लेकर मान्यता है कि चौथी शताब्दी में संत निकोलस जो तुर्की के मीरा नामक शहर के बिशप थे, वही सांता थे। वह गरीबों की हमेशा मदद करते थे उनको उपहार देते थे। क्रिसमस के तीन पारंपरिक रंग हैं हरा, लाल और सुनहरा। हरा रंग जीवन का प्रतीक है, जबकि लाल रंग ईसा मसीह के रक्त और सुनहरा रंग रोशनी का प्रतीक है। क्रिसमस की रात को जादुई रात कहा जाता है। माना जाता है कि इस रात सच्चे दिल वाले लोग जानवरों की बोली को समझ सकते हैं। क्रिसमस पर घर के आंगन में क्रिसमस ट्री लगाया जाता है। क्रिसमस ट्री को दक्षिण पूर्व दिशा में लगाना शुभ माना जाता है। फेंगशुई के मुताबिक ऐसा करने से घर में सुख समृद्धि आती है। पोलैंड में मकड़ी के जालों से क्रिसमस ट्री को सजाने की परंपरा है। मान्यता है कि मकड़ी ने सबसे पहले जीसस के लिए कंबल बुना था।
मुख्यमंत्री साय ने किया “रक्त-मित्र” पुस्तिका का विमोचन, रेडक्रॉस के आजीवन सदस्यों को किया सम्मानित
रायपुर/शौर्यपथ /मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कहा है कि रक्तदान एक पुनीत कार्य है, जो न केवल किसी जरूरतमंद को जीवनदान देता है, बल्कि मानवता के प्रति हमारी सेवा भावना का श्रेष्ठतम उदाहरण भी है। मुख्यमंत्री श्री साय आज जशपुर जिले के ग्राम बगिया में भारतीय रेडक्रॉस सोसायटी द्वारा आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।
मुख्यमंत्री साय ने कहा कि “रक्त-मित्र” डायरेक्ट्री एक ऐतिहासिक और सराहनीय पहल है, जिसके माध्यम से कोई भी व्यक्ति समय पर रक्तदाताओं से सीधा संपर्क स्थापित कर सकता है। यह पहल जीवनरक्षक सहायता को सहज, सुलभ और समयबद्ध बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
मुख्यमंत्री साय ने कहा कि मुझे यह देखकर अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कि जशपुर जिले में हर वर्ग के नागरिक स्वैच्छिक रक्तदान और स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी कर रहे हैं और समाज सेवा में अपना बहुमूल्य योगदान दे रहे हैं। आज रक्तदाताओं को प्रमाण पत्र प्रदान करते हुए मैं स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ, क्योंकि जीवनदान देने वाला व्यक्ति वास्तव में ईश्वर के समकक्ष होता है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हम सभी जानते हैं कि रक्त का हमारे जीवन में क्या महत्व है। सही समय पर उपयुक्त रक्त समूह का रक्त मिलने से किसी के प्राणों की रक्षा की जा सकती है, इसलिए रक्तदान को ‘महादान’ कहा गया है। राज्य में रेडक्रॉस सोसायटी के माध्यम से सर्वाधिक रक्तदान शिविरों का आयोजन किया जाता है, जो जनसेवा की उत्कृष्ट मिसाल है। मैं इस मंच से प्रदेशवासियों से आह्वान करता हूँ कि वे यथासंभव रक्तदान कर इस जीवनरक्षक कार्य में सहभागी बनें।
मुख्यमंत्री साय ने कहा कि प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार हेतु राज्य सरकार निरंतर प्रतिबद्ध है। हाल ही में हमने एम्बुलेंस सेवाओं को हरी झंडी दिखाकर त्वरित चिकित्सा सहायता सुनिश्चित करने की दिशा में ठोस पहल की है। उन्होंने कहा कि मैं सभी नागरिकों को यह आश्वस्त करना चाहता हूँ कि हमारी सरकार प्रत्येक व्यक्ति को गुणवत्तापूर्ण, सुलभ और त्वरित स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने के लिए संकल्पित है।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कैम्प कार्यालय बगिया में आयोजित कार्यक्रम में भारतीय रेडक्रॉस सोसायटी जशपुर के आजीवन सदस्यों को प्रमाण पत्र वितरित किए और “रक्त-मित्र” पुस्तिका का विमोचन किया। इस दौरान उन्होंने श्री नीरज शर्मा, श्री अजय कुमार कुशवाहा और श्री शिव नारायण सोनी को प्रमाण पत्र प्रदान कर उनके योगदान की सराहना की।
उल्लेखनीय है कि “रक्त-मित्र” डायरेक्ट्री, जिला प्रशासन एवं भारतीय रेडक्रॉस सोसायटी, जिला जशपुर की एक अभिनव पहल है, जिसके अंतर्गत 480 स्वैच्छिक रक्तदाताओं के नाम एवं मोबाइल नंबर सूचीबद्ध किए गए हैं। इस डायरेक्ट्री के माध्यम से जब भी किसी मरीज को रक्त की आवश्यकता होगी, वह सीधे सूची में दिए गए नंबरों पर संपर्क कर रक्त प्राप्त कर सकता है।
इस प्रयास से रोगियों को इधर-उधर भटकने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी और उन्हें समय पर रक्त मिल सकेगा। यदि कोई व्यक्ति या समाजसेवी “रक्त-मित्र” बनना चाहता है, तो वह डायरेक्ट्री में दिए गए QR कोड को स्कैन कर गूगल फॉर्म भर सकता है। साथ ही, कलेक्टर एवं अध्यक्ष, भारतीय रेडक्रॉस जिला मुख्यालय, जशपुर (कलेक्ट्रेट परिसर, कक्ष क्रमांक 122) में संपर्क कर भी “रक्त-मित्र” के रूप में पंजीयन कर सकता है।
इस गरिमामय कार्यक्रम में सरगुजा विकास प्राधिकरण की उपाध्यक्ष एवं पत्थलगाँव विधायक श्रीमती गोमती साय, जशपुर विधायक श्रीमती रायमुनी भगत, जिला पंचायत अध्यक्ष श्री सालिक साय, जिला पंचायत उपाध्यक्ष श्री शौर्य प्रताप सिंह जूदेव, नगर पालिका अध्यक्ष श्री अरविंद भगत, उपाध्यक्ष श्री यश प्रताप सिंह जूदेव, कलेक्टर श्री रोहित व्यास, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक श्री शशि मोहन सिंह, डिप्टी कलेक्टर श्री हरिओम द्विवेदी, डिप्टी कलेक्टर श्री प्रशांत कुशवाहा, रेडक्रॉस सोसायटी के श्री रूपेश प्राणी ग्राही, अनेक जनप्रतिनिधि और बड़ी संख्या में आम नागरिक उपस्थित थे।
छत्तीसगढ़ी संस्कृति, लोक जीवन और खानपान की दिखी झलक
श्री साव ने हल और कृषि औजारों की पूजा कर गौमाता को आटे की लोंदी खिलाई, गेड़ी का भी लिया आनंद
प्रदेशवासियों को दी हरेली की बधाई और शुभकामनाएं
रायपुर / शौर्यपथ / उप मुख्यमंत्री अरुण साव के नवा रायपुर स्थित शासकीय निवास पर आज सुबह से हरेली की धूम रही। उन्होंने सपरिवार हल और कृषि औजारों की विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर गौमाता को आटे की लोंदी और गुड़ खिलाया। उन्होंने गेड़ी का भी आनंद लिया। कृषि मंत्री श्री रामविचार नेताम, महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती लक्ष्मी राजवाड़े, विधायक श्री रोहित साहू और श्री मोतीलाल साहू भी हरेली पर्व में शामिल हुए।
हरेली पर उप मुख्यमंत्री साव के निवास पर चहुंओर छत्तीसगढ़ी संस्कृति, लोक जीवन और खानपान की झलक दिखी। उन्होंने हरेली पर्व में शामिल होने अपने निवास पहुंचे सभी लोगों का परंपरागत छत्तीसगढ़ी व्यंजनों चौसेला, गुलगुल भजिया, बरा, टमाटर की चटनी और भजिया खिलाकर स्वागत व आवभगत किया। उन्होंने हरेली पर अपने निवास में शीशम का पौधा लगाया।
उप मुख्यमंत्री साव ने प्रदेशवासियों को हरेली की बधाई और शुभकामनाएं देते हुए कहा कि हरेली तीज-तिहारों से संपन्न छत्तीसगढ़ का साल का पहला लोक पर्व है। मुख्यतः कृषि और किसानों को समर्पित यह पर्व आज पूरे प्रदेश में उत्साह व उमंग के साथ मनाया जा रहा है। हरेली में गेड़ी का परंपरागत साथ बच्चों के लिए भी इस त्योहार को उत्साहपूर्ण बनाता है। हरेली से मेरे बचपन की कई अच्छी और सुखद यादें जुड़ी हुई हैं। रायपुर नगर निगम के सभापति सूर्यकांत राठौर, खनिज विकास निगम के पूर्व अध्यक्ष छगन मूंदड़ा, बाल संरक्षण आयोग के पूर्व अध्यक्ष यशवंत जैन, पवन साय और अनुराग अग्रवाल सहित अनेक जनप्रतिनिधि भी हरेली पर्व में शामिल हुए।
? कोरबा |
कोरबा जिले के कटघोरा क्षेत्र में एक विशेष विवाह आवेदन को लेकर सामाजिक हलकों में गहरी हलचल मची हुई है। एक युवक द्वारा विशेष विवाह अधिनियम 1954 के तहत आवेदन देने के बाद, जिले के कई प्रमुख सामाजिक संगठनों ने इस विवाह को संदिग्ध मानते हुए प्रशासन को गहरी आपत्ति पत्र सौंपे हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, तौसीफ़ मेमन नामक युवक ने शोभा सिंह नाम की युवती से विवाह हेतु आवेदन दिनांक 23 जून 2025 को कार्यालय अपर कलेक्टर एवं विवाह अधिकारी, कोरबा में प्रस्तुत किया था। प्रथम दृष्टया यह एक वैधानिक प्रक्रिया प्रतीत होती है, परंतु जैसे ही यह मामला सार्वजनिक हुआ, हिन्दू मंदिर नारायणी सेना, महाराणा प्रताप चौक व्यापार मंडल, राजपूत क्षत्रिय समाज, समेत कई सामाजिक संस्थाओं ने इस पर गंभीर आपत्तियाँ दर्ज कराईं।
इन संगठनों ने अपने ज्ञापनों में आरोप लगाया कि:
युवक तौसीफ़ मेमन की पृष्ठभूमि संदिग्ध है।
वह मूलतः बांग्लादेशी घुसपैठिया रोहिंग्या मुसलमान हो सकता है।
उसका संबंध झींगुर बाबा गिरोह जैसे संगठनों से होने की आशंका भी जताई गई है।
इस विवाह का उद्देश्य केवल लव जिहाद या धार्मिक छल हो सकता है।
इन आरोपों को गंभीर मानते हुए विवाह अधिकारी ने दिनांक 23 जुलाई 2025 को पुलिस अधीक्षक, कोरबा को पत्र जारी कर संबंधित युवक की पूरी पृष्ठभूमि की गहन जांच कर सत्यापन रिपोर्ट उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है। पत्र में यह स्पष्ट कहा गया है कि यदि आपत्तियों की पुष्टि होती है, तो आवेदन को नियमों के तहत रद्द किया जाएगा।
? क्या कहा है पत्र में?
"...आवेदक की पहचान को लेकर प्रस्तुत आपत्तियाँ अत्यंत गंभीर हैं। यदि वह वास्तव में बांग्लादेश से आया रोहिंग्या शरणार्थी है अथवा धर्मांतरण हेतु छल कर रहा है, तो यह विवाह कानून की मूल भावना के प्रतिकूल होगा..."
प्रशासन ने इस मामले में केवल दस्तावेज़ों को देखकर निर्णय नहीं लिया, बल्कि सामाजिक संगठनों की शंकाओं को आधार बनाकर जाँच प्रक्रिया को प्राथमिकता दी है। विवाह अधिकारी ने यह भी उल्लेख किया है कि यह मामला केवल दो व्यक्तियों का निजी मामला नहीं है, बल्कि इसमें सामाजिक सद्भाव और सुरक्षा का पहलू भी गहराई से जुड़ा है।
आपत्ति करने वाले संगठनों ने कहा है कि यदि इस प्रकार के मामलों में प्रशासन मौन रहता है तो यह भविष्य में मासूम लड़कियों के साथ धोखा, शोषण और कट्टरपंथी नेटवर्क के प्रसार का मार्ग खोल सकता है।
विशेष विवाह अधिनियम 1954 के तहत दो अलग-अलग धर्मों के युवक-युवती विवाह कर सकते हैं, लेकिन इसकी प्रक्रिया पारदर्शी और कानूनी सत्यापन से जुड़ी होती है। किसी भी प्रकार की झूठी जानकारी, विदेशी नागरिकता छिपाना या पहचान से छेड़छाड़ इस अधिनियम के तहत अपराध की श्रेणी में आता है।
यह मामला न केवल प्रशासन की सतर्कता का उदाहरण है, बल्कि समाज की सामूहिक चेतना और सजगता का भी प्रतीक है। यदि वाकई इस विवाह के पीछे किसी प्रकार का छल, पहचान की धोखाधड़ी या सांप्रदायिक उद्देश्य छिपा हो, तो यह हर नागरिक के लिए एक खतरे की घंटी है।
"बेटियों को बचाने के लिए कानून, समाज और प्रशासन — तीनों का सजग रहना अनिवार्य है।"
कोरबा प्रशासन ने सही दिशा में कदम उठाते हुए सामाजिक आपत्तियों को नजरअंदाज नहीं किया है। अब यह जिम्मेदारी पुलिस जांच पर है कि वह पूरे मामले की निष्पक्ष रिपोर्ट प्रस्तुत कर न्यायसंगत निर्णय के लिए मार्ग प्रशस्त करे।
इस तरह के मामलों में सिर्फ भावनाओं से नहीं, सत्यता और प्रमाण के साथ ही कार्रवाई होनी चाहिए।
दुर्ग। शौर्यपथ।
नगर पालिका निगम दुर्ग में नवनियुक्त महापौर श्रीमती अलका बाघमार ने अपने 100 दिनों के कार्यकाल में ही अपनी कार्यशैली की ऐसी अमिट छाप छोड़ दी है, जिसे जनता पीढ़ियों तक याद रखेगी! दुर्ग निगम क्षेत्र इन दिनों खुशहाली के ऐसे वातावरण में जी रहा है कि मानो स्वर्ग ही धरती पर उतर आया हो।
दुर्ग नगर निगम अब केवल नगर निगम नहीं, बल्कि "विकास तीर्थ" बन चुका है, जहां आकर योजनाएं मोक्ष प्राप्त करती हैं और समस्याएं स्वर्गवास को प्राप्त हो जाती हैं।
जन-जन की महापौर: सुलभता की नई मिसाल
पूर्व के शासनकाल में शहरी सरकार के मुखिया से मिलने के लिए महीनों गुजर जाते थे, क्योंकि वे चाटुकारों से घिरे रहते थे। परंतु वर्तमान समय में ऐसी स्थिति बिल्कुल भी नहीं है। अब आम जनता महापौर से आसानी से मिल सकती है! मानो महापौर महोदया हर समय जनता-जनार्दन के लिए ही उपलब्ध हों। यह सुलभता ही उनकी लोकप्रियता का सबसे बड़ा प्रमाण है।" लोग अब राशन की दुकान से कम और महापौर के दर्शन से ज़्यादा तृप्ति पा रहे हैं।"
दुर्ग का कायाकल्प: सुंदरता और स्वच्छता का संगम
क्या सड़कें, क्या गलियां – हर तरफ स्वच्छता का अद्भुत साम्राज्य! आधे घंटे की बारिश तो छोड़िए, अगर प्रलय भी आ जाए तो नालियों में जाम की स्थिति नहीं रहेगी। पूरे शहर में कहीं भी पानी का जमावड़ा देखने को नहीं मिलता है; सड़कें गड्ढा रहित होकर ऐसी हो गई हैं जैसे घर का आंगन हो।
" ऐसी सफाई तो कभी इंसान के मन में भी नहीं देखी गई, जैसी दुर्ग की गलियों में देखी जा रही है! अब कचरा खुद चलकर स्वेच्छा से डंपिंग यार्ड में चला जाता है।"
"रात के समय शहर में घूमने से ऐसा प्रतीत होता है जैसे चांद की रोशनी अपनी छटा बिखेर रही हो, हर कोना जगमगा रहा है।"
शहर के मध्य सुराना कॉलेज के सामने का क्षेत्र जो कभी बदबूदार वातावरण से घिरा रहता था, अब खुशबूदार वातावरण में निर्मित है। कभी यहां कचरे का ढेर होता था, अब सुंदर उद्यान बन चुके हैं। चौक-चौराहों की बात करें तो उनकी सुंदरता अद्भुत है, मानो हर चौराहा कला का एक नायाब नमूना हो। कचरा निष्पादन के लिए बड़ी-बड़ी डंपिंग मशीनें लग चुकी हैं, जिससे शहर की गंदगी का नामोनिशान मिट गया है।
अतिक्रमण मुक्त दुर्ग: न्याय और व्यवस्था का राज
दुर्ग निगम क्षेत्र की सड़कें अतिक्रमण मुक्त हो गई हैं, और आम जनता के यातायात में अतिक्रमणकारियों के कारण हो रही बाधाएं अब दूर हो गई हैं। हर तरफ खुशी का वातावरण है।
"सड़कों से अतिक्रमण इस कदर हट गया है कि अब हर वाहन को चलने से पहले सड़क से अनुमति लेनी पड़ती है कि कहीं वह उसकी स्वच्छता तो नहीं बिगाड़ रहा।"
अवैध रूप से बिल्डिंग/घर बनाने वालों को ख्वाब में भी अब निगम के भवन विभाग जाना पड़ता है, और शहर में अवैध प्लाटिंग पूरी तरह बंद हो गई है। सड़कों पर अब आवारा गाय कहीं नजर नहीं आतीं – वे भी शायद महापौर के शासन से प्रभावित होकर अनुशासित हो गई हैं! इंदिरा मार्केट अब प्रदेश का सबसे सुंदर बाजार नजर आने लगा है। व्यापारियों ने बरामदे का स्थान खाली कर दिया है ताकि आम जनता के आवागमन में किसी प्रकार की दिक्कत न हो।
जिस भावभूमि बिल्डर द्वारा निगम की जमीन पर कब्जा कर लिया गया था, वह अब कब्जा मुक्त हो चुका है। यह महापौर की दृढ़ इच्छाशक्ति का ही परिणाम है कि उन्होंने न्याय और व्यवस्था को सर्वोपरि रखा है। गोठान की गायों के लिए भरपूर चारा उपलब्ध कराने में शहरी सरकार की अहम भूमिका नजर आ रही है, जो पशु कल्याण के प्रति उनकी संवेदनशीलता को दर्शाता है।
भ्रष्टाचार का युग समाप्त: पारदर्शिता और ईमानदारी का नया दौर
घोटाले की बात करें तो अब घोटाले की बात बहुत दूर नजर आती है। आम जनता के सपनों में भी घोटाले नजर नहीं आते। अब तो आम जनता निगम के नोटिस को देखते ही कांप जाती है – भ्रष्टाचार का निगम के दरवाजे में आगमन बिल्कुल बंद हो चुका है।
"जिन अफसरों पर कभी भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे, अब वे ध्यान और प्रायश्चित में लीन हो चुके हैं। बताया जाता है कि कुछ तो हिमालय की ओर भी प्रस्थान कर चुके हैं।"
"निगम के कर्मचारी रोज सुबह उठकर शहरी सरकार के कार्यों की आराधना करते हैं, मानो वे देवता समान हों।"
भले ही शहरी सरकार भाजपा की है, परंतु शहरी सरकार की न्याय प्रणाली में सुशासन एक बड़ा महत्वपूर्ण अंग माना जा रहा है। जिस अपंजीकृत संस्था राम रसोई के भूमि आवंटन पर विवाद उत्पन्न हुआ था, उस मामले पर शहरी सरकार ने दस्तावेजों का निरीक्षण किया और सभी गलतियों को संज्ञान में लेते हुए, भाजपा नेता और राम रसोई के संरक्षक चतुर्भुज राठी से राजनीतिक संबंधों को न निभाते हुए, निष्पक्ष कार्यवाही की और बस स्टैंड को एक व्यवस्थित बस स्टैंड के रूप में बना दिया।
"यह महापौर का ही जादू है कि अब कागजों में भी सच्चाई झलकने लगी है – दस्तावेज़ भी डर के मारे झूठ बोलने से परहेज़ करते हैं।"
राजस्व वसूली में क्रांति: निगम बना आत्मनिर्भर
राजस्व वसूली के मामले में तो अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि साल भर में कम से कम ₹100 करोड़ की राजस्व वसूली हो जाएगी, जो कि एक अभूतपूर्व उपलब्धि है!
"करदाता अब अपनी खुशी से टैक्स देने पहुंचते हैं, कुछ तो अतिरिक्त टैक्स देकर निकलते हैं यह कहते हुए कि "राशि कम लग रही है, कुछ और लें!"
प्रदेश सरकार से दुर्ग निगम में करोड़ों रुपए के कार्य अब तक महापौर के सानिध्य में आ चुके हैं, और ऐसी चर्चा है कि कई हजार करोड़ रुपए भी अब आने वाले समय में दुर्ग निगम में आ जाएंगे।
शहरी सरकार, प्रदेश सरकार और उनके जनप्रतिनिधियों के साथ ऐसा तालमेल बैठाकर चल रही है कि मानो राज्य सरकार पैसे लेकर निगम के दरवाजे पर खड़ी हो, मिन्नतें कर रही हो कि दुर्ग निगम ये पैसे ले ले!
सामंजस्य और सम्मान: विपक्ष भी हुआ नतमस्तक
पूर्व की शहरी सरकारो ने हमेशा विपक्ष का अपमान किया है, परंतु वर्तमान समय में शहरी सरकार के द्वारा विपक्ष के नेताओं का भी पूरा सम्मान किया जा रहा है। उन्हें बड़े-बड़े कार्यालय दिए गए हैं ताकि वे जनता की बातों को सुन सकें और अपनी बातों को शहरी सरकार के सामने रख सकें।
अतिश्योक्ति " नगर निगम के मंत्रिमंडल में इतनी एकता है कि एक मंत्री खांसी भी करता है तो दूसरा टॉवल लेकर दौड़ पड़ता है। ऐसी सामूहिक भावना केवल महापौर के करिश्मे से संभव हो पाई है।"यह लोकतंत्र में सद्भाव की अद्भुत मिसाल है!
शहरी सरकार के मंत्रिमंडल की काबिलियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हर मंत्री आपस में अपनी कार्यो की रूपरेखा को भली-भांति उचित ढंग से निर्वाहन कर रहा है। आपसी मतभेद की कहीं बातें नजर नहीं आ रही हैं, और शहर के विधायक के साथ सामंजस्य की अद्भुत मिसाल सबके सामने नजर आ रही है। शासकीय सुविधाओं का दोहन करने के बजाय आम जनता की सुविधाओं के लिए शहरी सरकार कटिबद्ध है।
अब नगर निगम के कर्मचारियों की सुबह 'सुशासन मंत्र' के जाप से शुरू होती है और रात 'महापौर चालीसा' के पाठ से समाप्त होती है।
निष्कर्ष: स्वर्णिम युग का प्रारंभ
पूर्व की शहरी सरकार के कार्यकाल को अब जनता बिल्कुल भूल चुकी है। ऐसी कोई बातें हैं जिनकी व्याख्या करते-करते सुबह से रात हो जाएगी, परंतु वर्तमान की शहरी सरकार की कार्यप्रणाली और सुशासन की बातें कभी खत्म नहीं होंगी। हर दृष्टिकोण से वर्तमान की शहरी सरकार, महापौर श्रीमती अलका बाघमार के सानिध्य में नई ऊंचाइयों को छू रही है, और हम धन्य हैं कि हम इस स्वर्णिम युग के साक्षी हैं!
"यदि वर्तमान महापौर जी इसी गति से कार्य करती रहीं, तो संभावना है कि आने वाले दिनों में संयुक्त राष्ट्र भी दुर्ग निगम को 'ग्लोबल रोल मॉडल फॉर अर्बन गवर्नेंस' घोषित कर देगा।"
भाजपा नेता के अपंजीकृत संस्था पर कार्यवाही हो गई ( विकाश के चश्मे से )
मुक्तिधाम में पशु मृत आत्मा को श्रधांजलि देते हुए ( विकाश के चश्मे से )
सडको पर अब आवारा पशु नजर नहीं आते (विकास के चश्मे से )
इंदिरा मार्केट का सुन्दर रूप बरामदा हुआ कब्ज़ा मुक्त (विकास के चश्मे से )
लेखक: शरद पंसारी
(यह व्यंग्य लेख नगर निगम दुर्ग की प्रेस विज्ञप्तियों में दर्शाए गए विकास और जमीनी सच्चाई के तुलनात्मक विश्लेषण पर आधारित है। विकास के चश्मे से शहर में विकास कार्य और सुशासन चरम सीमा पर है )
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय बोले – “नक्सलवाद की रात ढल रही है, बस्तर में विकास की नई सुबह हो रही है”
रायपुर/शौर्यपथ ब्यूरो/
(साभार: जनसंपर्क विभाग, छत्तीसगढ़ शासन)
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने बस्तर में नक्सलवाद के खात्मे को लेकर एक ऐतिहासिक घोषणा करते हुए कहा कि "नक्सलवाद की रात अब ढल रही है और विकास की नई सुबह का उदय हो चुका है।" उन्होंने बताया कि बस्तर रेंज में ₹2.54 करोड़ के इनामी 66 हार्डकोर नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा से जुड़ने का संकल्प लिया है। इस आत्मसमर्पण में ₹25 लाख के इनामी माओवादी SZCM (South Zonal Committee Member) रामन्ना ईरपा उर्फ जगदीश भी शामिल है, जो संगठन का एक शीर्ष रणनीतिकार रहा है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह ऐतिहासिक आत्मसमर्पण डबल इंजन सरकार की सुशासन, सुरक्षा और पुनर्वास नीति का प्रत्यक्ष प्रमाण है। सरकार की समावेशी और सशक्त योजनाओं ने इस दिशा में निर्णायक बदलाव लाया है।
एक ही दिन में 5 जिलों से आए 66 नक्सली मुख्यधारा में
मुख्यमंत्री ने जानकारी दी कि:
बीजापुर से 25, दंतेवाड़ा से 15, कांकेर से 13, नारायणपुर से 8, सुकमा से 5 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है।
इन सभी ने राज्य सरकार की आत्मसमर्पण एवं पुनर्वास नीति से प्रेरित होकर हिंसा का मार्ग छोड़ शांति और विकास की दिशा में चलने का निर्णय लिया।
‘पूना मारगेम’ – पुनर्वास से पुनर्जीवन की नीति बनी बदलाव की धुरी
मुख्यमंत्री साय ने “पूना मारगेम: पुनर्वास से पुनर्जीवन” नीति को इस परिवर्तन का केंद्रीय तत्व बताते हुए कहा कि राज्य सरकार इन नक्सलियों के भविष्य को संवारने और उन्हें समाज के सम्मानित नागरिक के रूप में पुनः स्थापित करने हेतु पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध है।
18 महीनों में 1,570 माओवादियों का आत्मसमर्पण – सरकार की नीति की व्यापक स्वीकार्यता
मुख्यमंत्री ने बताया कि पिछले 18 महीनों में 1,570 माओवादी कैडर आत्मसमर्पण कर चुके हैं। यह सरकार की पारदर्शी, नागरिक हितैषी और मानवीय दृष्टिकोण से प्रेरित नीति की सफलता का प्रमाण है। आत्मसमर्पण करने वालों में कई कुख्यात और रणनीतिक स्तर के माओवादी शामिल हैं।
केंद्र-राज्य समन्वय से बस्तर में विकास और सुरक्षा की नई लहर
मुख्यमंत्री साय ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह के मार्गदर्शन में राज्य और केंद्र सरकार मिलकर बस्तर के दूरस्थ क्षेत्रों में सुरक्षा और विकास का समवेत अभियान चला रही हैं।
उन्होंने बताया कि अब बस्तर के सुदूर क्षेत्रों में:
सड़कों का विस्तार, पेयजल आपूर्ति, प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा केंद्र, स्वास्थ्य सुविधाएं, परिवहन, बिजली एवं डिजिटल नेटवर्क जैसी मूलभूत सुविधाएं पहुँच चुकी हैं।
रामन्ना ईरपा का आत्मसमर्पण – माओवादी नेटवर्क को गहरा झटका
सूत्रों के अनुसार, रामन्ना ईरपा उर्फ जगदीश माओवादी संगठन का दक्षिण जोनल कमेटी सदस्य (SZCM) था, जो रणनीति, भर्ती और स्थानीय नेटवर्क संचालन का प्रमुख चेहरा रहा है। उसका आत्मसमर्पण माओवादी नेटवर्क की रीढ़ तोड़ने जैसा माना जा रहा है।
मुख्यमंत्री का संदेश – “बस्तर भय से नहीं, भविष्य से पहचाना जाएगा”
मुख्यमंत्री साय ने आत्मसमर्पण करने वाले सभी व्यक्तियों का स्वागत करते हुए कहा:
"हम हर उस हाथ को थामेंगे, जो हथियार छोड़कर शांति, शिक्षा और सृजन की राह पर लौटना चाहता है। यह बस्तर के पुनर्निर्माण का समय है। यह सामाजिक भागीदारी से संचालित नया युग है।"
निष्कर्ष: नक्सलवाद पर निर्णायक प्रहार, विकास की ठोस जमीन
बस्तर की यह घटना केवल एक प्रशासनिक सफलता नहीं, बल्कि आशा, पुनर्वास और सामाजिक पुनरुत्थान की ऐतिहासिक पटकथा है। नक्सलवाद के आतंक से लंबे समय से जूझते बस्तरवासियों के लिए यह एक निर्णायक मोड़ है — अब बस्तर की पहचान भय नहीं, बल्कि भविष्य की संभावना होगी।
? रिपोर्ट: शरद पंसारी
संपादक: शौर्यपथ दैनिक समाचार
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(साभार: जनसंपर्क विभाग, छत्तीसगढ़ शासन)
कृषि यंत्रों के साथ ही आधुनिक कृषि यंत्र ड्रोन की पूजा कर लगाया गुड़ के चीला का भोग
रायपुर / शौर्यपथ /
छत्तीसगढ़ का पारंपरिक और प्रथम त्यौहार हरेली आज जिले भर में अपार उत्साह और उमंग के साथ मनाया गया। सावन मास की अमावस्या को मनाए जाने वाला यह पर्व, जो छत्तीसगढ़ की समृद्ध कृषि, संस्कृति और प्रकृति के प्रति सम्मान का प्रतीक है, इस बार भी अपने रंग-रूप और परंपराओं के साथ लोगों के दिलों में उत्सव का माहौल लेकर आया। इस अवसर पर किसानों ने अपने पारंपरिक कृषि यंत्रों हल, नांगर, कुदाली और फावड़े की पूजा कर फसलों की सुखद पैदावार और समृद्धि की कामना की। वहीं बालोद जिले की तीन ड्रोन दीदियों ने आधुनिक तकनीक और परंपरा का अनूठा संगम पेश करते हुए आधुनिक कृषि यंत्र ड्रोन की पूजा कर हरेली तिहार को नया आयाम दिया।
जिले में तीन ड्रोन दीदियों श्रीमती चित्ररेखा साहू, श्रीमती भावना साहू और सुश्री रूचि साहू ने छत्तीसगढ़ के पारंपरिक हरेली तिहार को आधुनिक तकनीक के साथ जोड़कर एक नई मिसाल पेश की है। ये ड्रोन दीदियां, जो शासन की ड्रोन दीदी योजना के तहत तकनीकी रूप से प्रशिक्षित हैं, जो कि नियमित रूप से किसानों के मित्र के रूप में तथा कृषि कार्य में अहम भूमिका निभाते हुए फसलों में नैनो उर्वरक छिड़काव का कार्य मिनटों में पूरा कर देती हैं। आज उन्होंने हरेली तिहार के अवसर पर ड्रोन को धूप-दीप से पूजित किया और नारियल व गुड़ के चीले का भोग लगाया। ड्रोन दीदी श्रीमती चित्ररेखा साहू ने कहा कि हमारी परंपरा हमें कृषि यंत्रों का सम्मान सिखाती है। ड्रोन आज हमारा आधुनिक कृषि यंत्र है, जो दवाई छिड़काव और फसलों की निगरानी में मदद करता है। इसे पूजकर हम प्रकृति और तकनीक के मेल को बढ़ावा दे रहे हैं।
ड्रोन दीदी श्रीमती भावना साहू ने बताया कि ड्रोन तकनीक से खेती में समय और मेहनत की बचत हो रही है, और हरेली तिहार के इस अवसर पर उन्होंने संकल्प लिया कि वे जिले के अन्य किसानों को भी इस तकनीक से जोड़ेंगी। ड्रोन दीदी सुश्री रूचि साहू ने कहा कि हमारा लक्ष्य है कि बालोद जिले के हर खेत तक ड्रोन की पहुंच हो, ताकि फसल उत्पादन दोगुना हो और किसानों का जीवन आसान बने। ड्रोन दीदियों ने इस योजना की सराहना करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की दूरगामी सोंच से हम महिलाओं के सशक्तिकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ है। इस योजना से हमें आत्मनिर्भर बनकर जीवन में बेहतर कार्य करने का आत्मबल मिला है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय के विशेष प्रयासों से आज कृषि के क्षेत्र में निरंतर नवाचार देखने को मिल रहा है। इससे हम लोगों को बेहतर आय और सुखद जीवन मिला है। हमारे द्वारा निरंतर ही किसानों के फसलों में नैनो उर्वरक का छिड़काव व देखरेख किया जा रहा है। ड्रोन दीदियों ने हरेली तिहार के अवसर पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय के प्रति आभार व्यक्त करते हुए, उन्हें हरेली तिहार की बधाई एवं शुभकामनाएं प्रेषित की है।
भगवान भोले की कृपा बनी रहे और हमारा देश व छत्तीसगढ़ सतत् रूप से विकास, शांति और समृद्धि की दिशा में आगे बढ़ता रहे : मुख्यमंत्री
रायपुर / शौर्यपथ / सावन मास के पावन अवसर पर मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय ने अपनी धर्मपत्नी श्रीमती कौशल्या साय के साथ आज बगिया स्थित श्री फलेश्वरनाथ महादेव मंदिर पहुंचकर पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर प्रदेशवासियों के सुख-समृद्धि एवं खुशहाली की मंगलकामना की। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने सुप्रसिद्ध कथा वाचिका किशोरी राजकुमारी तिवारी द्वारा किए जा रहे शिव महापुराण कथा का श्रवण भी किया।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने कहा कि भगवान भोलेनाथ की कृपा सभी पर बनी रहे और हमारा देश और छत्तीसगढ़ सतत् रूप से विकास, शांति और समृद्धि की दिशा में आगे बढ़ता रहे। उन्होंने कहा कि भगवान श्री भोलेनाथ के आशीर्वाद से छत्तीसगढ़ सरकार राज्य के कल्याण के लिए समर्पित होकर कार्य कर रही है। हमारी सरकार की नई उद्योग नीति से आकर्षित होकर बीते छह से आठ महीनों में लगभग साढ़े छह लाख करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं। राज्य सरकार ने युवाओं के लिए सरकारी नौकरियों के अवसर सृजित किए हैं।
इस अवसर पर फलेश्वरनाथ महादेव मंदिर परिसर में आयोजित 01 लाख 108 पार्थिव शिवलिंग निर्माण एवं विशेष पूजन अनुष्ठान श्रद्धा, आस्था और शास्त्रोक्त विधि-विधान के साथ संपन्न हुआ। यह आयोजन 22 जुलाई से प्रारंभ हुआ था और इसका समापन आज 24 जुलाई को विधिपूर्वक किया गया। पूरे आयोजन में बड़ी संख्या में श्रद्धालुजन उत्साहपूर्वक भाग ले रहे हैं। भक्तगण पूर्ण श्रद्धा, निष्ठा और भक्ति भाव से पार्थिव शिवलिंग निर्माण में सहभागी रहे। पूजन एवं अनुष्ठान का आयोजन प्रतिष्ठित विद्वान पंडितों द्वारा शास्त्र सम्मत विधियों के अनुसार किया गया, जिससे वातावरण भक्तिमय और आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण हो उठा। इस अवसर पर जिला पंचायत अध्यक्ष सालिक साय, कमिश्नर नरेंद्र दुग्गा, आईजी दीपक कुमार झा, कलेक्टर रोहित व्यास, पुलिस अधीक्षक शशिमोहन सिंह, जिला पंचायत सीईओ श्री अभिषेक कुमार, जनप्रतिनिधिगण और भारी संख्या में ग्रामीण मौजूद रहे।
छत्तीसगढ़ी व्यंजनों के स्वादों से सजी रही पारंपरिक थाली
ठेठरी, खुरमी, पिड़िया, अनरसा, खाजा, करी लड्डू, मुठिया, गुलगुला भजिया, चीला-फरा, बरा और चौसेला में जीवंत की छत्तीसगढ़ी पाक शैली
रायपुर / शौर्यपथ / छत्तीसगढ़ की धरती पर जब भी कोई त्योहार आता है, तो वह केवल धार्मिक या सांस्कृतिक उत्सव भर नहीं होता, बल्कि वह जीवनशैली, परंपरा, स्वाद और सामाजिक सौहार्द का पर्व बन जाता है। इसी श्रृंखला में प्रदेश के प्रमुख कृषि पर्व हरेली तिहार के अवसर पर मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के निवास में पारंपरिक स्वादिष्ट छत्तीसगढ़ी व्यंजनों ने सभी अतिथियों का मन मोह लिया। प्रदेश की अतुलनीय पाक परंपरा को जीवंत करते हुए यहां आगंतुकों के स्वागत के लिए विशेष रूप से ठेठरी, खुरमी, पिड़िया, अनरसा, खाजा, करी लड्डू, मुठिया, गुलगुला भजिया, चीला-फरा, बरा और चौसेला जैसे दर्जनों पारंपरिक व्यंजनों की व्यवस्था की गई थी।
बांस की सूप, पिटारी और दोना-पत्तल में परोसे गए इन व्यंजनों ने न केवल स्वाद, बल्कि प्रस्तुतीकरण में भी लोकजीवन की आत्मा को उजागर किया। अतिथियों ने गर्मागर्म पकवानों का स्वाद लेते हुए राज्य की पारंपरिक पाककला की मुक्तकंठ से सराहना की। मुख्यमंत्री श्री साय ने स्वयं भी इन व्यंजनों का स्वाद चखा और कहा की हरेली तिहार केवल खेती-किसानी का पर्व नहीं है, बल्कि यह हमारी लोकसंस्कृति, हमारी परंपरा और आत्मीयता की अभिव्यक्ति है। इन पारंपरिक व्यंजनों में हमारी माताओं-बहनों की मेहनत, सादगी और स्वाद की समृद्ध परंपरा छिपी है, जो हमारी असली पहचान है। यह आयोजन न केवल हरेली पर्व की महत्ता को दर्शाता है, बल्कि यह प्रमाणित करता है कि छत्तीसगढ़ की आत्मा उसकी मिट्टी, उसके स्वाद और उसकी परंपराओं में रची-बसी है।
इस अवसर पर परिसर का हर कोना छत्तीसगढ़ी संस्कृति की सौंधी खुशबू से सराबोर था। कहीं ढोल-मंजीरों की थाप पर लोक नृत्य होते दिखे तो कहीं व्यंजनों की खुशबू लोगों को अपनी ओर खींचती रही। परंपरागत वेशभूषा में सजे ग्रामीण कलाकारों और सांस्कृतिक प्रस्तुति ने पूरे माहौल को जीवंत और आत्मीय बना दिया। कार्यक्रम में शामिल हुए वरिष्ठ अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों, कलाकारों और आमजनों ने इस आयोजन को एक स्मरणीय सांस्कृतिक अनुभव बताया।
रायपुर / शौर्यपथ / छत्तीसगढ़ी लोकजीवन की खुशबू लिए हरेली तिहार का पारंपरिक उत्सव आज मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के निवास में विधिवत रूप से आरंभ हुआ। छत्तीसगढ़ एक ऐसा प्रदेश है, जहाँ प्रत्येक अवसर और कार्य के लिए विशेष प्रकार के पारंपरिक उपकरणों एवं वस्तुओं का उपयोग होता आया है। हरेली पर्व के अवसर पर मुख्यमंत्री निवास कार्यालय में ऐसे ही पारंपरिक कृषि यंत्रों एवं परिधानों की झलक देखने को मिली, जो छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की अमूल्य धरोहर हैं।
काठा
सबसे बाईं ओर दो गोलनुमा लकड़ी की संरचनाएँ रखी गई थीं, जिन्हें ‘काठा’ कहा जाता है। पुराने समय में जब गाँवों में धान तौलने के लिए काँटा-बाँट प्रचलन में नहीं था, तब काठा से ही धान मापा जाता था। सामान्यतः एक काठा में लगभग चार किलो धान आता है। काठा से ही धान नाप कर मजदूरी के रूप में भुगतान किया जाता था।
खुमरी
सिर को धूप और वर्षा से बचाने हेतु बांस की पतली खपच्चियों से बनी, गुलाबी रंग में रंगी और कौड़ियों से सजी एक घेरेदार संरचना ‘खुमरी’ कहलाती है। यह प्रायः गाय चराने वाले चरवाहों द्वारा सिर पर धारण की जाती है। पूर्वकाल में चरवाहे अपने साथ ‘कमरा’ (रेनकोट) और खुमरी लेकर पशु चराने निकलते थे। ‘कमरा’ जूट के रेशे से बना एक मोटा ब्लैंकेट जैसा वस्त्र होता था, जो वर्षा से बचाव के लिए प्रयुक्त होता था।
कांसी की डोरी
यह डोरी ‘कांसी’ नामक पौधे के तने से बनाई जाती है। पहले इसे चारपाई या खटिया बुनने के लिए ‘निवार’ के रूप में प्रयोग किया जाता था। डोरी बनाने की प्रक्रिया को ‘डोरी आंटना’ कहा जाता है। वर्षा ऋतु के प्रारंभ में खेतों की मेड़ों पर कांसी पौधे उग आते हैं, जिनके तनों को काटकर डोरी बनाई जाती है। यह डोरी वर्षों तक चलने वाली मजबूत बुनाई के लिए उपयोगी होती है।
झांपी
ढक्कन युक्त, लकड़ी की गोलनुमा बड़ी संरचना ‘झांपी’ कहलाती है। यह प्राचीन समय में छत्तीसगढ़ में बैग या पेटी के विकल्प के रूप में प्रयुक्त होती थी। विशेष रूप से विवाह समारोहों में बारात के दौरान दूल्हे के वस्त्र, श्रृंगार सामग्री, पकवान आदि रखने के लिए इसका उपयोग किया जाता था। यह बांस की लकड़ी से निर्मित एक मजबूत संरचना होती है, जो कई वर्षों तक सुरक्षित बनी रहती है।
कलारी
बांस के डंडे के छोर पर लोहे का नुकीला हुक लगाकर ‘कलारी’ तैयार की जाती है। इसका उपयोग धान मिंजाई के समय धान को उलटने-पलटने के लिए किया जाता है।
रायपुर / शौर्यपथ / मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के निर्देशों पर राज्य सरकार द्वारा शिक्षा क्षेत्र में निरंतर सुधार और शिक्षक समुदाय के हित में त्वरित निर्णय लिए जा रहे हैं। इसी क्रम में स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा आज दिनांक 23 जुलाई 2025 को विभिन्न विषयों के 1227 व्याख्याता (टी संवर्ग) शिक्षकों को पदोन्नति आदेश जारी किए गए हैं। इन व्याख्याताओं की पदस्थापना काउंसिलिंग के माध्यम से की जाएगी। इन विषयों में हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, गणित, भौतिक, रसायन, जीवविज्ञान, राजनीति शास्त्र, इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र और वाणिज्य जैसे मुख्य विषय शामिल हैं। यह निर्णय सरकार की उस प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जिसके अंतर्गत राज्य के शिक्षकों को उनके कार्य, वरिष्ठता और योग्यता के आधार पर समय पर पदोन्नति और अवसर उपलब्ध कराया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि विगत एक वर्ष में स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा जिला एवं संभाग स्तर पर लगभग 7000 पदों पर पदोन्नति की कार्यवाही संपन्न की गई है। इसके साथ ही, 2621 सहायक शिक्षक (विज्ञान प्रयोगशाला) की सीधी भर्ती काउंसिलिंग के माध्यम से की गई, जिससे स्कूलों में प्रयोगात्मक शिक्षा को और अधिक सुदृढ़ किया जा सके।
इससे पूर्व दिनांक 30 अप्रैल 2025 को लगभग 2900 प्राचार्यों के पदोन्नति आदेश भी जारी किए जा चुके हैं। आने वाले दिनों में पदोन्नत टी संवर्ग के प्राचार्यों की पदस्थापना भी काउंसिलिंग के माध्यम से की जाएगी, जिससे पारदर्शिता और स्थान-आवश्यकता के आधार पर समुचित व्यवस्था सुनिश्चित हो सके।
ई संवर्ग के प्राचार्यों का प्रकरण माननीय न्यायालय में लंबित है। माननीय न्यायालय के निर्णयानुसार समयबद्ध रूप से आवश्यक कार्यवाही की जाएगी।
रायपुर / शौर्यपथ / मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने छत्तीसगढ़ के परंपरागत लोकपर्व हरेली के पावन अवसर पर प्रदेशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएँ दी हैं। उन्होंने कहा कि हरेली छत्तीसगढ़ की मिट्टी से जुड़ा ऐसा पर्व है, जो हमारी कृषि संस्कृति, लोक परंपरा और प्रकृति प्रेम का प्रतीक है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हरेली पर्व खेती-किसानी से जुड़ा पहला त्योहार है, जिसमें किसान अपने कृषि उपकरणों की पूजा कर धरती माता के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं। यह पर्व न केवल अच्छी फसल की कामना का अवसर है, बल्कि प्रकृति के साथ सामंजस्य की भावना को भी प्रकट करता है।
श्री साय ने प्रदेशवासियों से आग्रह किया कि इस वर्ष हरेली पर्व को हम और भी सार्थक बनाएं — धरती माता की पूजा के साथ वृक्षारोपण करें, जिससे आने वाली पीढ़ियों के लिए एक हरा-भरा भविष्य सुनिश्चित हो सके। यह पर्व केवल परंपरा नहीं, बल्कि पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी का भी प्रतीक बने।
मुख्यमंत्री ने आशा व्यक्त की कि हरेली पर्व प्रदेशवासियों के जीवन में खुशियाँ, समृद्धि और हरियाली लेकर आए। उन्होंने सभी नागरिकों से इस लोकपर्व को आपसी सौहार्द, प्रकृति प्रेम और परंपरा के सम्मान के साथ मनाने का आह्वान किया।
बिर्रा / शौर्यपथ / बम्हनीडीह तहसील अंतर्गत ग्राम पंचायत सेमरिया की कोटवार भूमि को लेकर बड़ा मामला सामने आया है। एक शासकीय शिक्षक द्वारा ग्राम की कोटवारी सरकारी भूमि को अवैध रूप से खरीदने का गंभीर आरोप पंचायत ने लगाया है। मामले की शिकायत पर कलेक्टर कार्यालय ने तत्काल जांच के निर्देश जारी कर दिए हैं।
ग्राम पंचायत सेमरिया की सरपंच ईश्वरी बाई कश्यप द्वारा प्रस्तुत आवेदन में कहा गया है कि ग्राम खसरा नंबर 1761 की कोटवारी भूमि, जो कि वर्षों से कोटवार उपयोग के लिए आरक्षित रही है, उसे गांव के कृष्ण कुमार कश्यप ने खरीदकर निजी मकान निर्माण शुरू कर दिया है। जबकि यह भूमि राजस्व रिकार्ड में सरकार की संपत्ति मानी जाती है, न कि किसी निजी व्यक्ति की।ज्ञात हो कि कृष्ण कुमार कश्यप पेशे से एक शासकीय शिक्षक है।
कलेक्टर कार्यालय ने लिया संज्ञान, जांच आदेश 3 दिनों में रिपोर्ट सौंपने के निर्देश
जिला प्रशासन ने इस मामले को गंभीर मानते हुए तहसीलदार बम्हनीडीह को तत्काल मौका निरीक्षण कर तथ्यों की पुष्टि करने को कहा है। आदेश में यह भी उल्लेख है कि कोटवारी भूमि को न तो बेचा जा सकता है और न ही खरीदा जा सकता है, यह सार्वजनिक उपयोग की संपत्ति है।
शिक्षक की भूमिका सवालों के घेरे में
कृष्ण कुमार कश्यप जो पेशे से एक शिक्षक है और शासकीय शिक्षक द्वारा इस तरह की सरकारी संपत्ति को खरीदना न सिर्फ नियमों का उल्लंघन है, बल्कि शासकीय पद का दुरुपयोग भी माना जा रहा है। इस कृत्य को लेकर क्षेत्र में नाराजगी है, लोग पूछ रहे हैं – "क्या अब शिक्षक भी सरकारी कोटवारी भूमि जैसे जमीनों के सौदागर बन गए हैं?"
पंचायत की मांग – भूमि पर निर्माण कार्य तुरंत रोका जाए
सरपंच कश्यप ने प्रशासन से यह भी मांग की है कि जब तक जांच पूरी न हो जाए, तब तक निर्माण कार्य पर रोक लगाई जाए और यदि जांच में अवैध क्रय-विक्रय प्रमाणित होता है, तो संबंधित शिक्षक पर कड़ी कानूनी व विभागीय कार्रवाई की जाए।
यह सिर्फ जमीन नहीं – ये पंचायत की प्रतिष्ठा और व्यवस्था का सवाल है
यह मामला केवल एक ज़मीन का नहीं, बल्कि ग्रामीण व्यवस्था, कानून और पंचायत स्वायत्तता से जुड़ा है। यदि एक शिक्षक, जो समाज का मार्गदर्शक माना जाता है, इस तरह नियम तोड़ता है, तो यह पूरे तंत्र पर सवाल खड़े करता है।
रायपुर / शौर्यपथ /
भारतीय कृषि में जैविक और अजैविक तनाव प्रबंधन तथा नीतियों पर दो दिवसीय विचार-मंथन सत्र का आयोजन 21 और 22 जुलाई को आईसीएआर–राष्ट्रीय जैविक तनाव प्रबंधन संस्थान (एनआईबीएसएम), रायपुर में हुआ। यह कार्यक्रम आईसीएआर–राष्ट्रीय अजैविक तनाव प्रबंधन संस्थान (एनआईएएसएम), बारामती और भारतीय कृषि अर्थशास्त्र सोसायटी (आईएसएई), मुंबई के सहयोग से तथा नाबार्ड, रायपुर के आंशिक समर्थन से आयोजित किया गया।
सत्र में देशभर के करीब 70 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इनमें प्रमुख वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री और नीति निर्माता शामिल थे। उन्होंने कृषि में जैविक (कीट, रोग, आक्रामक प्रजातियां) और अजैविक (सूखा, लवणता, बाढ़, ताप) तनावों के प्रबंधन के विज्ञान आधारित दृष्टिकोण पर चर्चा की। इस अवसर पर भविष्य की नीतियों और कार्यक्रमों के लिए एक नीति पत्र तैयार करने पर सहमति बनी।
उद्घाटन सत्र में डॉ. एच.सी. शर्मा, पूर्व कुलपति, एचपीकेवी, पालमपुर; डॉ. पी.के. चक्रवर्ती, पूर्व एडीजी (पीपी एंड बी), सदस्य, एएसआरबी; डॉ. पी.के. राय, निदेशक, एनआईबीएसएम; डॉ. के. सम्मी रेड्डी, निदेशक, एनआईएएसएम; डॉ. डी.के. मारोठिया, अध्यक्ष, आईएसएई; श्री ज्ञानेंद्र मणि, सीजीएम, नाबार्ड और डॉ. ए. अमरेंद्र रेड्डी, संयुक्त निदेशक, एनआईबीएसएम ने विचार व्यक्त किए।
इस दौरान तनाव प्रबंधन पर आधारित दो प्रकाशनों का विमोचन भी किया गया।
तकनीकी सत्रों में जैविक तनाव प्रबंधन में वैज्ञानिक और नियामक नवाचार पर डॉ. एच.सी. शर्मा, जैविक तनाव के लिए नीति और संस्थागत रणनीतियों पर डॉ. पी.के. चक्रवर्ती, अजैविक तनाव के लिए तकनीकी हस्तक्षेप पर डॉ. अंजनी कुमार (आईएफपीआरआई) और अजैविक तनाव लचीलापन बढ़ाने की रूपरेखाओं पर डॉ. के.एल. गुर्जर (डीपीपीक्यूएस) ने प्रस्तुतियां दीं।
चर्चाओं से तैयार नीति पत्र भविष्य में शोध, निवेश और राष्ट्रीय कार्यक्रमों को दिशा देगा। कार्यक्रम का समापन डॉ. के. श्रीनिवास द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। उन्होंने सभी प्रतिभागियों और सहयोगी संस्थाओं का आभार व्यक्त किया।