August 05, 2025
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     आस्था /शौर्यपथ /सावन महीने की अमावस्या तिथि को हरियाली अमावस्या या श्रावणी अमावस्या कहा जाता है। सावन का महीना भगवान भोलेनाथ को अत्यंत प्रिय है। ऐसे में श्रावण माह की अमावस्या को भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन पूर्वजों के निमित्त पिंडदान एवं दान-पुण्य के कार्य किए जाते हैं। हरियाली अमावस्या के दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करके पितरों को पिंडदान, श्राद्ध कर्म करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। सावन माह की अमावस्या 17 जुलाई को हरियाली अमावस्या के रूप में मनाई जाएगी। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि सावन का दूसरा सोमवार 17 जुलाई को हैं। सावन के दूसरे सोमवार को हरियाली अमावस्या भी है। अमावस्या होने की वजह से इस दिन सोमवती अमावस्या का संयोग बन रहा है और सोमवती अमावस्या के दिन शिव पूजा से पितृदोष, शनिदोष और कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है। इसी दिन सूर्य कर्क संक्रांति भी है। इस दिन सूर्य देव का कर्क राशि में प्रवेश होगा। सूर्य का गोचर कर्क राशि में होने से कर्क राशि में बुधादित्य नामक राजयोग बनने जा रहा है। इस राजयोग के प्रभाव से सूर्य देव की कृपा बरसेगी।  शास्त्रों में इस अमावस्या पर पूजा-पाठ, स्नान-दान करना उत्तम माना गया है। साथ ही पर्यावरण की दृष्टि से भी हरियाली अमावस्या का बहुत महत्व है। वहीं हरियाली अमावस्या पर कुछ विशेष वृक्षों की पूजा करने से ग्रह दोष भी दूर होते हैं। सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
 इसके अलावा हरियाली अमावस्या का पर्व जीवन में पर्यावरण के महत्व को भी बताता है। किसानों के लिए भी महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन किसान अपने खेती में उपयोग होने वाले उपकरणों की पूजा करते हैं और ईश्वर से अच्छी फसल होने की कामना करते हैं। इस दिन पवित्र नदी में स्नान करके पितरों को पिंडदान, श्राद्ध कर्म करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
हरियाली अमावस्या
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि इस साल श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि 17 जुलाई 2023 को है। ऐसे में इसी दिन हरियाली अमावस्या मनाई जाएगी। उदया तिथि तिथि के आधार पर हरियाली अमावस्या 17 जुलाई को मनाई जाएगी।
हरियाली अमावस्या का प्रारंभ- 16 जुलाई को रात 10:08 मिनट से
अमावस्या का समापन- 18 जुलाई को रात 12:01 मिनट पर होगा।
हरियाली अमावस्या का महत्व
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि सावन के महीने में कृष्ण पक्ष की शिवरात्रि के अगले दिन हरियाली अमावस्या होती है। इस दिन पेड़-पौधों की विशेष रूप से पूजा की जाती है। इस दिन पीपल और तुलसी के पौधे की पूजन का विशेष महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पीपल के पेड़ में त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास माना जाता है।
पितरों की शांति के लिए करें उपाय
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि हरियाली अमावस्या के दिन किसी योग्य ब्राह्मण को घर बुलाकर भोजन करवाएं। इस दिन किसी नदी किनारे श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करें। साथ ही गाय को चारा भी खिलाएं। हरियाली अमावस्या के दिन मछलियों के लिए नदी में आटे की गोलियां डालें। नदी में काले तिल प्रवाहित करें।
पीपल और तुलसी पूजन का महत्व
भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि इस दिन वृक्ष पूजा की प्रथा अनुसार पीपल और तुलसी के पेड़ की पूजा की जाएगी। वृक्षों में देवताओं का वास माना जाता है। इस दिन पितृ तर्पण भी किया जाता है। इससे पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है।
शांति और समृद्धि
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि सावन माह में पड़ने वाली इस हरियाली अमावस्या पर विशेष तरह का भोजन भी बनाया जाता है, जो कि ब्राम्हणों को खिलाया जाता है। खास बात यह है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा भी की पूजा की जाती है। हरियाली अमावस के दिन भगवान शिव की विशेष रूप से पूजा की जाती है। मान्यता है कि श्रावण अमावस्या के दिन शिव भगवान की पूजा करने से घर में सुख और शांति के साथ समृद्धि भी आती है।
18 जुलाई से लग जायेगा मलमास
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि सावन के दूसरे सोमवार के बाद 18 जुलाई से 16 अगस्त तक मलमास रहेगा। पंचांग के अनुसार 3 साल में एक बार मलमास या अधिक मास पड़ता है। मलमास में शुभ कार्य वर्जित रहते है। मलमास में भगवान विष्णु की आराधना फलदायी होती है।
आइए भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा.अनीष व्यास बता रहे हैं हरियाली अमावस्या पर राशि अनुसार करें पेड़ पौधों की पूजा
मेष राशि: आंवले का पौधा
वृषभ राशि: जामुन का पौधा
मिथुन राशि: चंपा का पौधा
कर्क राशि: पीपल का पौधा
सिंह राशि: बरगद या अशोक का पौधा
कन्या राशि: शिवजी का प्रिय बेल का पौधा, जूही का पौधा
तुला राशि: अर्जुन या नागकेसर का पौधा
वृश्चिक राशि: नीम का पौधा
धनु राशि : कनेर का पौधा
मकर राशि: शमी का पौधा
कुंभ राशि: कदंब या आम का पौधा
मीन राशि: बेर का पौधा
आइए भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास बता रहे हैं हरियाली अमावस्या पर नवग्रह को प्रसन्न करने के लिए ग्रहों के अनुसार करें पेड़ पौधों की पूजा
गुरु ग्रह के लिए: पीपल का पौधा
शुक्र ग्रह के लिए: गूलर का पौधा
शनि ग्रह के लिए: शमी का पौधा
सूर्य ग्रह के लिए: सफेद मदार या आक का पौधा
चंद्र ग्रह के लिए: पलाश का पौधा
बुध ग्रह के लिए: अपामार्ग का पौधा
मंगल ग्रह के लिए: खैर या शिशिर का पौधा
राहु ग्रह के लिए: चंदन और दूर्वा का पौधा

    आस्था /शौर्यपथ /सभासदों ने वीर अंगद के यह शब्द सुने, तो उन्होंने मन ही मन अपने पुरखों का, कोटि-कोटि धन्यवाद किया, कि चलो वीर अंगद ने हमारी स्त्रियों के अपहरण का कार्यक्रम अनिश्चितकाल के लिए टाल दिया है। लेकिन वीर अंगद रावण को मरा हुआ कह रहे हैं?
भगवान श्रीराम जी का सेवक होना भी अपने आप में, मानो बैकुण्ठ सी प्राप्ति है। एक बार ध्यान से तो देखिए, वीर अंगद रावण की सभा में कैसे रावण की झूठी महिमा को तार-तार कर रहे हैं। वीर अंगद ने रावण को पहले ही स्पष्ट कर दिया था, कि वे रावण की सभा में इसलिए कुछ विशेष तांडव नहीं कर रहे हैं, क्योंकि उन्होंने श्रीराम जी के श्रीमुख से कई बार यह कहते हुए सुना है कि स्यार का शिकार करने से सिंह की शोभा नहीं बढ़ती। अब सिंह के बच्चे तो सिंह ही होंगे न? अर्थात वीर अंगद स्वयं को, श्रीराम जी का दूत नहीं, अपितु श्रीराम जी का सुत मान कर चल रहे हैं। सीधे शब्दों में कहें, तो वीर अंगद स्वयं को श्रीराम जी की भाँति ही, सिंह की ही परिधि में देख रहे हैं। कहने का भाव, कि रावण को केवल, भगवान श्रीराम जी ही स्यार नहीं मान रहे थे, अपितु वीर अंगद भी रावण को स्यार की ही मूर्त में देख रहे हैं। लेकिन रावण है, कि वीर अंगद को बार-बार वानर कह कर बुला रहा है। साथ में रावण श्रीराम जी के संबंध में भी ऐसे अशोभनीय वाक्य बोल रहा है, जो कि एक साधारण मानव के लिए भी न बोले जायें। क्योंकि वीर अंगद कितने ही समय से अपने शब्दों को मर्यादा के पट में बाँध रहे थे। लेकिन अब उन्होंने उस बँधन को तोड़ डाला। और रावण को ऐसे कड़े व ठोस शब्द बोले कि रावण ने जिसकी कल्पना भी नहीं की थी-
‘नाहिं त करि मुख भंजन तोरा।
लैं जातेउँ सीतहि बरजोरा।।
जानेउँ तव बल अधम सुरारी।
सुनें हरि आनिहि परनारी।।’
वीर अंगद बोले, कि अरे दुष्ट! अगर श्रीराम जी तेरे बारे में स्यार वाली सोच न रखते और तुझे मारने में अपना अपमान न समझते, तो निश्चित ही मैं तुम्हारा मुँह तोड़कर, माता सीता को जबरदस्ती यहाँ से ले जाता। अरे अधम! तेरा बल तो मैंने तभी जान लिया, जब तू एक पराई स्त्री को, सूने में चुरा लाया।
रावण को भरी सभा में यह कहना, कि ‘मैं तेरा मुँह तोड़कर श्रीसीता जी को ले जाऊँगा’, क्या इससे पूर्व किसी ने भी, रावण को ऐसा कहने का साहस किया था? नहीं? वीर अंगद रावण को कहते हैं, हे रावण! तू राक्षसों का राजा और बड़ा अभिमानी है। किन्तु मैं तो श्रीरघुनाथ जी के सेवक का भी सेवक हूँ। अर्थात कहाँ तू और कहाँ मैं। लेकिन अगर मैं श्रीराम जी के अपमान से न डरूँ, तो देखते-देखते मैं तेरा ऐसा तमाशा करूँ, कि तुझे जमीन पर पटककर, तेरी सेना का संहार कर और तेरे गाँव को चौपट करके, तेरी युवती स्त्रियों सहित जानकी जी को ले जाऊँ-
‘तोहि पटकि महि सेन हति चौपट करि तव गाउँ।
तव जुबतिन्ह समेत सठ जनकसुतहि लै जाउँ।।’
वीर अंगद के इन शब्दों में रत्ती भर भी ऐसा नहीं था, कि उन्हें ऐसा करने में कहीं भी कोई संशय प्रतीत हो रहा हो। वीर अंगद के इन शब्दों ने, रावण की सभा में सभी सभासदों के हृदयों पर, मानो उबलता तेल डाल दिया था। सभी को लगा, कि यह आवश्यक थोड़ी न है, कि वीर अंगद केवल, रावण की ही स्त्रियों को उठाकर ले जायेगा। उसका मन कहीं बदल गया, तो हो सकता है, कि वह हमारी स्त्रियों को भी हर ले जाये। तब तो बड़ा अनिष्ट हो जायेगा।
निश्चित ही उन सभासदों के पास अगर मोबाइल फोन होते, तो वे तत्काल अपने-अपने घरों में काल करने बैठ जाते और अपनी-अपनी स्त्रियों को घरों में कैद हो जाने का निर्देश पारित कर देते। लेकिन उनकी समस्या यह थी, कि उनके पास न तो मोबाइल फोन ही थे, और न ही वे तत्काल रावण के सामने बैठे होने को कारण, उसकी सभा को छोड़ कर जा सकते थे। तभी वीर अंगद के एक वाक्य से उनकी साँस में साँस आई-
‘जौं अस करौं तदपि न बड़ाई।
मुएहि बधें नहिं कछु मनुसाई।।’
यदि ऐसा करूँ, तो भी इसमें कोई बड़ाई नहीं है। कारण कि मरे हुए को मारने में कुछ भी पुरुषत्व नहीं है।
सभासदों ने वीर अंगद के यह शब्द सुने, तो उन्होंने मन ही मन अपने पुरखों का, कोटि-कोटि धन्यवाद किया, कि चलो वीर अंगद ने हमारी स्त्रियों के अपहरण का कार्यक्रम अनिश्चितकाल के लिए टाल दिया है। लेकिन वीर अंगद रावण को मरा हुआ कह रहे हैं? अरे-अरे यह तो ठीक नहीं। क्या हमारे प्यारे राजा, लंकापति रावण कोई मरे हुए हैं?
बेचारे सभासदों को कहाँ ज्ञान था कि वीर अंगद केवल रावण को ही मरा नहीं कहने जा रहे थे, अपितु संसार में चौदह प्रकार के ऐसे लोगों का वर्णन करने जा रहे थे, जो कि देखने में तो जीवित प्रतीत होते हैं, लेकिन तब भी वे शव ही होते हैं। कौन हैं, वे चौदह लेाग, जिन्हें जीते जी भी मुर्दे की ही श्रेणी में रखा जाता है (क्रमशः)---जय श्रीराम।

आस्था /शौर्यपथ /जब सूर्यदेव एक राशि से निकलकर दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं, तो इसे संक्रांति कहा जाता है। बता दें कि आज यानी की 16 जुलाई 2023 को कर्क संक्रांति मनाई जा रही है। इस दिन से सूर्य देव दक्षिणायन होते हैं।
आज यानी की 16 जुलाई 2023 को कर्क संक्रांति मनाई जा रही है। बता दें कि हिंदू धर्म में यह तिथि बेहद खास मानी जाती है। मान्यता के अनुसार, कर्क संक्रांति के दिन से भगवान सूर्य नारायण एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं। वहीं ज्योतिषियों की मानें तो ग्रहों के राजा भगवान सूर्य इस दिन से कर्क राशि में प्रवेश करने जा रहे हैं। आज से ही यानी की 16 जुलाई 2023 से सूर्य देव का दक्षिणायन शुरू हो जाएगा। आज की तिथि से करीब 6 महीने तक सूर्य देव दक्षिण दिशा की ओर गति करते रहेंगे।
इस खास दिन पर सूर्य नारायण की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। जिससे आपकी आयु, आय और सौभाग्य में अपार वृद्धि होती है और शारीरिक दुर्बलता भी दूर होती है। इसके साथ ही व्यक्ति की मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। बता दें कि कर्क संक्रांति की तिथि पर गरीबों व जरूरतमंदों को दान-दक्षिणा देने से भगवान सूर्यदेव प्रसन्न होते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। अगर आप भी भगवान सूर्य देव की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो इस दिन विधि-विधान से सूर्यदेव की पूजा करें। आइए जानते हैं पूजा का शुभ मुहूर्त, पुण्य काल और इसके प्रभाव के बारे में...
पूजा का शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, कर्क संक्रांति 16 जुलाई 2023 को मनाई जा रही है। लेकिन इस साल 17 जुलाई 2023 को ब्रह्म मुहूर्त में सूर्य देव मिथुन राशि से निकलकर कर्क राशि में गोचर करेंगे। इस दिन यानी की 17 जुलाई को सूर्य देव सुबह 05:59 मिनट पर कर्क राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना ही संक्रांति कहलाता है।
पुण्य काल - दोपहर 12:27 - रात 07.21
महा पुण्य काल - शाम 05.03 - रात 07.21
स्नान-दान समय
कर्क संक्रांति के दिन आप महापुण्य काल में स्नान और दान करना शुभ माना जाता है। स्नान के बाद सूर्य देव की विधि-विधान से पूजा करें और उनसे संबंधित वस्तुओं का दान करें। इससे पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इससे आपको सूर्यदेव की कृपा प्राप्त होगी।
कर्क संक्रांति का प्रभाव
बता दें कि घोर नामक कर्क संक्रांति कष्टपूर्ण समय ला सकते है। इस दौरान आपको अपने वस्तुओं की रक्षा स्वयं करनी पड़ सकती है। क्योंकि इस दौरान चोर सक्रिय हो जाते हैं। वहीं सूर्य के राशि परिवर्तन के कारण लोगों को जुकाम, खांसी या ठंड से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं। इसके अलावा देशों के बीच संघर्ष की स्थिति पैदा हो सकती है। साथ ही वस्तुओं की लागत भी कम हो सकती है।

   पर्यटन स्थल /शौर्यपथ /स्वर्ग से कम नहीं अंबिकापुर की ये हसीन जगहें, मानसून में चरम पर होती है यहां की खूबसूरती इस जगह को एक हिल स्टेशन के रूप में भी जाना जाता है। अगर आप भी छत्तीसगढ़ घूमने का प्लान बना रहे हैं, तो आपको इन जगहों को जरूर एक्सप्लोर करना चाहिए।
देश के सबसे खूबसूरत राज्यों में छत्तीसगढ़ का नाम शामिल है। इस खूबसूरत राज्य को 'धान का कटोरा' यानी की सबसे ज्यादा चावल के उत्पादन वाला प्रदेश माना जाता है। बता दें कि यहां की खूबसूरती वनों में मौजूद है। यह राज्य करीब चारों तरफ से हसीन वनों से घिरा हुआ है। वहीं इन जंगलों के बीच कई ऐसी हसीन जगहें हैं, जहां पर हर साल लाखों की संख्या में सैलानी घूमने के लिए आते हैं।
इस राज्य में अंबिकापुर एक ऐसी हसीन जगह है, जहां पर सबसे ज्यादा सैलानी पहुंचते हैं। इस जगह को एक हिल स्टेशन के रूप में भी जाना जाता है। आइए जानते हैं अंबिकापुर में मौजूद कुछ शानदार जगहों के बारे में...
तातापानी
अगर आप भी अंबिकापुर घूमने का प्लान बना रहे हैं तो आपको तातापानी को जरूर एक्सप्लोर करना चाहिए। बता दें कि न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि भारत के लिए भी यह एक रहस्यमई जगह है। बताया जाता है कि तातापानी में प्राकृतिक रूप से धरती के अंदर से गर्म पानी निकलता रहता है। इस कुंड में पूरे साल पानी गर्म रहता है। इसके साथ ही मानसून में भी इस कुंड का पानी गर्म रहता है। इस पानी में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं। यहां पर भगवान भोलेनाथ की एक विशाल मूर्ति भी स्थापित है।
ठिनठिनी पत्थर
अंबिकापुर से कुछ ही दूरी पर ठिनठिनी पत्थर नामक एक सहस्यमयी जगह मौजूद है। यह स्थान एक फेमस पर्यटक स्थल भी है। घने जंगल के बीच इस स्थान पर भारी संख्या में सैलानी घूमने के लिए आते हैं। इस रहस्यमयी ठिनठिनी पत्थर के बारे में बताया जाता है कि जब किसी चीज से इस पर मारा जाता है तो इससे काफी मधुर आवाज आती है। जो आसपास के मौजूद पत्थरों से बिलकुल अलग होती है। वहीं कुछ लोग इस पत्थर को चमत्कारिक मानकर माथा भी टेकते हैं।
ऑक्सीजन पार्क
अंबिकापुर के हसीन वनों के बीच मौजूद ऑक्सीजन पार्क घूमने के लिए काफी बेहतरीन जगह है। यह खूबसूरत पार्क पहाड़ की चोटी पर स्थिति है। इसलिए इस हसीन जगह पर घूमने के लिए सैलानी भारी संख्या में घूमने पहुंचते हैं। बता दें कि यह पार्क काफी हसीन दृश्यों के लिए जाना जाता है। यहां पर आपको चारों तरफ से छोटे-बड़े पहाड़ और हरियाली देखने को मिलती है। ऑक्सीजन पार्क में हजारों किस्म के फूल देखने को मिलते हैं। इन फूलों को देखकर सैलानियों का मन भी तृप्त हो जाता है। वहीं मानसून इस जगह की खूबसूरती देखने लायक होती है।
अन्य जगहें
अंबिकापुर में तातापानी, ठिनठिनी पत्थर और ऑक्सीजन पार्क के अलावा घूमने वाली कई ऐसी जगहें हैं, जिन्हें देखकर आपका मन तृप्त हो जाएगा। अंबिकापुर में आप रामगढ़ और सीता बेंगरा, संजय पार्क, महामाया मंदिर और वाटर पार्क आदि घूम सकते हैं।

  शौर्यपथ /कर्नाटक घूमने का है प्लान तो जरूर घूमें हम्पी शहर, लोटस महल देखे बिना अधूरा है आपका टूर कर्नाटक में वैसे तो कई ऐसी खूबसूरत जगहें हैं, जिन्हें आप एक्सप्लोर कर सकते हैं। अगर आप कर्नाटक घूमने का प्लान बना रहे हैं, तो हम्पी शहर सबसे बेस्ट ऑप्शन है। हम्पी में लोटस महल घूमे बिना आपकी ट्रिप अधूरी है।
हमारे देश के मौजूदा पारंपरिक गुणों के साथ कर्नाटक वैश्वीकरण का एक आदर्श भी है। महाराजाओं के मैसूर पैलेस से लेकर बेंगलुरु के आईटी हब तक कर्नाटक में कई अनसुलझे तथ्य हैं। जिन्हें जानकर आप हैरान हो जाएंगे। यहां पर दूर-दूर से पर्यटक आते हैं। अगर आप पूरा एक महीना भी इस राज्य का दीदार करते हैं, फिर भी आपके पास समय कम पड़ जाएगा।
अगर आप इस राज्य में पहले भी घूमने आ चुके हैं, या हाल ही में घूमने का प्लान बना रहे हैं। तो बता दें कि घूमने के लिए हम्पी शहर सबसे बेस्ट ऑप्शन है। लेकिन लोटस महल के दर्शन किए बिना हम्पी का टूर अधूरा माना जाता है। लोटस महल कई मायनों में बेहद खास है। साथ ही इसका इतिहास भी काफी रोचक है।
लोटस महल
बता दें कि लोटस महल का इतिहास काफी रोचक है। इस महल को चितरंगी महल के नाम से भी जाना जाता है। श्री कृष्णदेव राय द्वारा रानी के लिए इस महल का निर्माण 16वीं शताब्दी में किया गया था। इसमें रानी के महल के तहखाने, जल मंडप, ट्रेजरी बिल्डिंग और वॉच टॉवर जैसी कई दिलचस्प संरचनाएं देखने को मिलेंगे। हालांकि यह महल किसी भगवान या मूर्ति को समर्पित नहीं है।
लोटस महल की खासियत
लोटस महल की संरचना काफी ज्यादा खूबसूरत है। इस महल की तुलना कमल से की गई है। यह दो मंजिला इमारत काफी ज्यादा शोभनीय है और इसके स्तंभों पर विशेष रूप से खूबसूरत बारीक नक्काशी उकेरी गई है। आप इसे इस्लामी वास्तुकला की एक अच्छी मिसाल कह सकते हैं। इस महल का मुंडेर पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। वहीं अगर आप इस महल के इतिहास के बारे में अधिक जानना चाहते हैं, तो आपको इस किले को जरूर एक्सप्लोर करना चाहिए। लोटस महल की वास्तुकला बेहद खूबसूरत है।
फेमस व्यंजन
इस महल को एक्सप्लोर करने के साथ ही आप हम्पी की संस्कृति के बारे में जान सकते हैं और यहां के फेमस व्यंजनों का लुत्फ भी उठा सकते हैं। हम्पी शहर अपनी हस्तशिल्प कलाओं के लिए विश्व भर में जाना जाता है। हम्पी में मौजूद सभी महलों में लोटस महल सबसे ज्यादा फेमस है।
कब बनाएं घूमने का प्लान
हालांकि यहां पर आप कभी भी घूमने का प्लान बना सकते हैं। लेकिन अगर आप घूमने के साथ ही मौसम का मजा भी लेना चाहते हैं, तो जुलाई से सितंबर का महीना यहां जाने के लिए बेस्ट है।
प्रवेश शुल्क
लोटस महल के अंदर जाने के लिए आपको 50 रुपए टिकट देना होगा। वहीं अगर आपकी उम्र 15 साल से कम है तो आप इस महल में निशुल्क घूम सकते हैं। वहीं विदेशी पर्यटकों को 250 रुपए का टिकट मिलता है।

       आस्था /शौर्यपथ /अब जब ब्राह्मणों ने आकर्षण मंत्र का पाठ किया तब इन्द्र तक्षक के साथ घबरा गए। जब अंगिरनन्दन देवगुरु बृहस्पति ने देखा कि आकाश से देवराज इन्द्र सिंहासन और तक्षक सहित अग्निकुंड में गिर रहे हैं तब राजा जनमेजय से कहा— हे नरेंद्र! सर्पराज तक्षक को मारना उचित नहीं है।
सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे !
तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयंनुम:॥
  भागवत-कथा श्रवण करने वाले जन-मानस में भगवान श्री कृष्ण की छवि अंकित हो जाती है। यह कथा “पुनाति भुवन त्रयम” तीनों लोकों को पवित्र कर देती है। तो आइए ! इस कथामृत सरोवर में अवगाहन करें और जन्म-मृत्यु के चक्कर से मुक्ति पाकर अपने इस मानव जीवन को सफल बनाएँ। मित्रों !
पूर्व कथा प्रसंग में हमने सुदामा चरित्र की कथा सुनी।
आइए ! अब आगे की कथा प्रसंग में चलें----
     शुकदेव जी कहते हैं— परीक्षित ! इस प्रकार कृष्ण बलराम द्वारिका में निवास कर रहे थे। एक बार कुरुक्षेत्र में सर्वग्रास सूर्य ग्रहण लगा। ऐसा ग्रहण प्रलय के समय लगा करता है। पुण्य प्राप्त करने के लिए लोग देश के कोने-कोने से वहाँ पधारे हुए थे। अक्रूर, वसुदेव, उग्रसेन आदि सभी बड़े-बूढ़े अपने पापों का नाश करने के लिए वहाँ आए थे। जब नन्द बाबा को पता चला कि श्री कृष्ण आदि यदुवंशी कुरुक्षेत्र में आए हैं तब वे भी गोप-गोपियों के साथ सारी सामग्री गाड़ी में लादकर अपने प्रिय पुत्र कृष्ण-बलराम से मिलने के लिए वहाँ पहुँच गए। नन्द आदि गोपों को देखकर सभी यदुवंशी आनंद से भर गए। बहुत दिनों के बाद एक-दूसरे से बात चित की। वसुदेव जी ने आनंद से विह्वल होकर नन्द जी को हृदय से लगा लिया। कृष्ण बलराम ने माँ यशोदा और पिता नन्द के हृदय से लगकर चरण स्पर्श किया। नन्द-यशोदा दोनों ने अपने पुत्रों को हृदय से जकड़ लिया। इतने दिनों से न मिलने का जो दुख था वह मिट गया। बहुत दिनों के बाद आज गोपियों को भी भगवान के दर्शन हुए। गोपियों की कृष्ण मिलन की चिर काल की लालसा आज पूरी हुई। कृष्ण ने कहा---
   गोपियों ! अपने स्वजन और संबंधियों का कम करने के लिए हम व्रज से बाहर चले आए और शत्रुओं का विनाश करने में उलझ गए। तुम लोग हमे कृतघ्न मत समझो। गोपियों को समझाने के पश्चात भगवान ने धर्म राज युधिष्ठिर और अन्य संबंधियों से कुशल-मंगल पूछा। इधर द्रौपदी ने कृष्ण की आठों पटरानियों से विवाह के संबंध में पूछा— रुक्मिणी, जांबवती, सत्यभामा, कालिंदी, मित्रवृन्दा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा। भगवान ने अपने विवाह की विस्तृत चर्चा की। तत्पश्चात भगवान ने ऋषि-मुनियों से भेंट की और उन्हे ब्रह्म ज्ञान का उपदेश दिया। उसके बाद प्रभु अपनी द्वारिकापुरी वापस आ गए।
      इस प्रकार भगवान ने अनेक लीलाए कीं। अंत में वसुदेव जी को ब्रह्म का उपदेश दिया। ऋषियों के शाप के कारण यदुवंशियों का विनाश हो गया। जहां निर्माण है वहाँ विनाश अवश्य है। शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित ! अब सभी देवता गण अपने-अपने धाम को जाने की तैयारी करने लगे। ब्रहमा जी ने कहा-
भूमेर्भारा वताराय पुरा विज्ञापित; प्रभो।
   हे प्रभु! आपने अवतार लेकर पृथ्वी का भार उतारा। धर्म परायण पुरुषों के लिए धर्म की स्थापना की और दसों दिशाओं में अपनी कीर्ति स्थापित की। जगत के कल्याण के लिए अनेक लीलाएं की। कलियुग में जो व्यक्ति आपकी लीलाओं का श्रवण करेगा वह सुगमता पूर्वक इस भव सागर से पार हो जाएगा। आपको यदुवंश में अवतार ग्रहण किए एक सौ पचीस वर्ष बीत गए। अब ऐसा कोई काम बाकी नहीं है जिसे पूरा करने के लिए आपको यहाँ रहने की जरूरत हो।  
     अब ब्राह्मणों के शाप के कारण यदुवंश भी नष्ट हो गया है, इसलिए हे वैकुंठ पति! अब अपने परम धाम में पधारिए और हम देवताओं का पालन-पोषण कीजिए। ऐसा कहकर ब्रह्माजी देवताओं के साथ अपने धाम को चले गए।
तत; स्वधाम परमं विशस्व यदि मन्यसे
सलोकानलोकपालान न; पाहि वैकुंठ किंकरान॥
     एकादश स्कन्ध में अवधूतोपाख्यान के अंतर्गत भगवान कृष्ण ने उद्धव जी से चौबीस गुरुओं की कथा, सत्संग की महिमा, भक्ति की महिमा वानप्रस्थ और सन्यासी धर्म के साथ-साथ कर्म योग की चर्चा की। अंत में कहा- उद्धव ! आज के सातवें दिन समुद्र द्वारिकापुरी को डूबो देगा। जिस क्षण मैं इस भू लोक का परित्याग करूंगा उसी क्षण यहाँ के सारे मंगल नष्ट हो जाएंगे और पृथ्वी पर कलियुग का बोल-बाला हो जाएगा। इसके बाद कथा आती है कि जरा नाम का एक व्याध (बहेलिया) श्री कृष्ण के पैर के तलवे को हिरण की जीभ समझकर बाण मारता है। भगवान पीपल के वृक्ष के नीचे आसन लगाकर बैठते हैं, अपने नेत्रों को बंद करके अपने श्री विग्रह अर्थात शरीर को इस परम पुनीत श्रीमद भागवत पुराण में स्थापित करते हैं और अपने धाम वैकुंठ में चले जाते हैं।
     शुकदेवजी कहते हैं- परीक्षित! भगवान के परम धाम प्रस्थान को देखने के लिए सभी देवता, यक्ष, किन्नर, गंधर्व वहाँ आए और भक्ति-भाव से पुष्पों की वर्षा करने लगे। सूत जी कहते हैं-- शौनकादि ऋषियों ! राजा परीक्षित ने श्री शुकदेवजी से कहा- हे ब्रह्मन ! आपने मुझे भगवान के परम कल्याणमय स्वरूप का साक्षात्कार करा दिया है। इस प्रकार कहकर राजा परीक्षित ने भगवान श्री शुकदेव जी की बड़े प्रेम से पूजा की। शुकदेव जी महाराज परीक्षित से विदा लेकर महात्माओं के साथ वहाँ से चले गए।
    आइए ! जहां से कथा की शुरुआत हुई थी उसके समापन की ओर चलें। आज सातवाँ दिन है। उधर तक्षक राजा परीक्षित को डँसने के लिए चला है। रास्ते में कश्यप वैद्य मिलते हैं जो जहर विद्या में निपुण है। तक्षक से कहते हैं- यदि तुम हमारे धर्मनिष्ठ राजा को डँसोगे तो मैं अपनी विद्या से जीवित कर दूँगा इसलिए वापस चले जाओ। तक्षक ढेर सारा धन-दौलत देकर कश्यप वैद्य को विदा कर देता है और फूल का रूप धारण कर परीक्षित को डंस देता है। कथा के प्रभाव से वे पहले ही ब्रह्मस्थ हो गए थे। तक्षक की तीव्र विष ज्वाला से उनका शरीर सबके सामने जलकर भस्म हो गया। उनके लिए चिता नहीं सजाई गई।
    बाद में परीक्षित के ज्येष्ठ पुत्र जनमेजय ने ब्राह्मणों से सर्प यज्ञ करवाया। मंत्र के प्रभाव से सभी सर्प यज्ञकुंड में गिरने लगे। तक्षक इन्द्र के सिहासन में लिपट गया था। परीक्षित नन्दन जनमेजय ने कहा- ब्राह्मणों! आप लोग इन्द्र के साथ तक्षक को अग्नि में क्यों नहीं गिरा देते?
सहेन्द्र्स्तक्षको विप्रा नाग्नौ किमिति पात्यते।
      अब जब ब्राह्मणों ने आकर्षण मंत्र का पाठ किया तब इन्द्र तक्षक के साथ घबरा गए। जब अंगिरनन्दन देवगुरु बृहस्पति ने देखा कि आकाश से देवराज इन्द्र सिंहासन और तक्षक सहित अग्निकुंड में गिर रहे हैं तब राजा जनमेजय से कहा— हे नरेंद्र! सर्पराज तक्षक को मारना उचित नहीं है। यह अमृत पी चुका है इसलिए यह अजर और अमर है। कोई किसी को मारता नहीं। जगत के सभी प्राणी अपने-अपने प्रारब्ध कर्म का ही फल भोगते हैं। जनमेजय ने बृहस्पति की बात का सम्मान करके सर्प यज्ञ बंद कर दिया और अपने राज-काज में लग गए।
इस प्रकार आज यहाँ श्रीमद भागवत की कथा सम्पन्न होती है। हम फिर किसी दूसरे धर्म ग्रंथ में मिलेंगे तब तक के लिए आप सभी को राम ----राम -----जय श्री कृष्ण !!
कथा विसर्जन होत है, सुनहुं परीक्षित राज ।
राधा संग श्रीकृष्णजी सिद्ध करे सब काज॥                         
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव ----------
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।

    आस्था /शौर्यपथ /पंडितों के अनुसार सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा आप प्रात:काल से ही कर सकते हैं। सावन के पहले सोमवार को अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त सुबह 05 बजकर 30 मिनट से लेकर सुबह 07 बजकर 14 मिनट तक है।
आज सावन का पहला सोमवार है, सावन का महीना शिव जी को समर्पित होता है। इस महीने में सोमवार को भगवान शिव -पार्वती की पूजा होती है। तो आइए इस पवित्र अवसर पर हम आपको सावन के सोमवार का महत्व तथा पूजा विधि के बारे में बताते हैं।
जानें अधिकमास के बारे में
    अधिकमास हिंदू पंचांग के अनुसार, हर तीसरे साल के बाद लगता है। इसे मलमास या पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। जिस चंद्र मास में सूर्य संक्रांति नहीं होती, उसे अधिकमास कहते हैं। मलमास में शुभ मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं। इस साल सावन महीने में अधिकमास लगा है। इससे पहले 2004 में सावन में अधिकमास लगा था। ऐसे में इस बार 19 साल बाद सावन में अधिकमास लगने के कारण पूरे 2 महीने तक शिवजी की अराधना की जाएगी। इस साल सावन 59 दिनों का होगा। पंचांग के अनुसार 19 साल बाद सावन पर बहुत ही खास संयोग बन रहा है, जिसमें पूरे महीने शिव और माता पार्वती दोनों की असीम कृपा प्राप्त होगी।
सावन के पहले सोमवार का पूजा मुहूर्त
    पंडितों के अनुसार सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा आप प्रात:काल से ही कर सकते हैं। सावन के पहले सोमवार को अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त सुबह 05 बजकर 30 मिनट से लेकर सुबह 07 बजकर 14 मिनट तक है। इसके अलावा शुभ-उत्तम मुहूर्त सुबह 08 बजकर 58 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 42 मिनट तक है।
सोमवार व्रत में ये न करें
     पंडितों के अनुसार आप सावन सोमवार का व्रत रखते हैं तो आपको फलाहार में नमक का उपयोग नहीं करना चाहिए। स्वास्थ्य कारणों से बहुत जरुरी है तो सेंधा नमक खा सकते हैं। सावन में शिवजी का कच्चे दूध से अभिषेक किया जाता है, इसलिए सावन का सोमवार रखने वाले को दूध का सेवन नहीं करना चाहिए। इस व्रत में तामसिक वस्तुओं का उपयोग न करें। लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा, मसालेदार भोजन, बैंगन, मैदा, आटा, बेसन, सत्तू आदि से बनी खाद्य पदार्थों का उपयोग न करें। सावन के सोमवार व्रत में काम, क्रोध, लोभ जैसे दुर्गुणों से दूर रहें। कोई भी व्रत मन, कर्म और वचन की पवित्रता के साथ करने से ही फलित होता है। मन में द्वेष, क्रोध, चोरी, छल-कपट आदि की भावनाएं रखकर पूजा पाठ नहीं करना चाहिए। शिव पूजा में जिन वस्तुओं को वर्जित किया गया है, उनका उपयोग भूलवश भी न करें। शिव पूजा में तुलसी के पत्ते, सिंदूर, हल्दी, शंख, नारियल आदि जैसी वस्तुओं का उपयोग वर्जित है।
सावन के सोमवार का महत्व
सावन का महीना शंकर जी को बहुत प्रिय होता है। पंडितों के अनुसार जो भी भक्त श्रद्धा से सावन के महीने में भगवान शिव की आराधना करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
सोमवार व्रत से भोले बाबा होते हैं प्रसन्न  
        शिव जी का एक नाम भोले बाबा भी है। भोले बाबा सभी देवताओं में सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले हैं। शास्त्रों के अनुसार सोमवार का दिन भगवान शिव की उपासना के लिए उत्तम होता है। सोमवार के दिन व्रत रखने से शंकर भगवान अपने भक्तों पर खास कृपा करते हैं। ऐसे में अगर सावन के महीने में पांच सोमवार आए तो भोले भंडारी की सबसे ज्यादा कृपा होगी।
सोमवार व्रत से दाम्पत्य जीवन भी होता है मधुर
     घर में पति-पत्नी के बीच तनाव रहता है तो आप परेशान न हो। सावन के सोमवार को पति-पत्नी साथ में मिलकर पूरे सावन महीने में पंचामृत से भगवान शिव शंकर का अभिषेक करें। सावन के सोमवार के दिन विशेष पूजा करें। साथ ही ॐ पार्वती पतये नमः मंत्र का रुद्राक्ष की माला पर 108 बार जाप करें। इसके अलावा घर के पास भगवान शिव के मंदिर में शाम को गाय के घी का दीया जलाएं।
सावन पहले सोमवार पर रुद्राभिषेक का समय
        ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जब कभी भी पंचक या भद्रा काल लगता है तो उस समय में पूजा पाठ करने पर कोई रोक नहीं होती है। भगवान शिव कालों के काल महाकाल हैं। सभी ग्रह नक्षत्र उनके अधीन काम करते हैं। इसलिए इस पूरे दिन आप निश्चिक होकर व्रत और शिव पूजा कर सकते हैं। इसलिए इस दिन पंचक लगने से कोई समस्या नहीं है।
सोमवार व्रत से शादी में आने वाली बाधा का होता है अंत
    सावन के पवित्र महीने में सोमवार का व्रत करने वालों को शुभ फल प्राप्त होते हैं। साथ ही जो अविवाहित भक्त सावन के सोमवार को पवित्र मन से शिव जी की पूजा करते हैं उनके विवाह में आने वाली बाधा खत्म हो जाती है। इसलिए शादी की प्रतीक्षा करने वाले भक्तों हेतु शिव जी को प्रसन्न करने का यह अच्छा अवसर है।  
सोमवार की पूजा में इन बातों का रखें ख्याल
     सावन का महीना बहुत खास होता है और सोमवार का विशेष महत्व होता है, इसलिए इस दिन इन बातों का विशेष ध्यान दें। सावन के महीने में सोमवार का व्रत रखने वालों को पूजा करते समय तुलसी और केतकी के फूल का प्रयोग नहीं करना चाहिए। साथ ही भक्तों को दूध का सेवन त्याग देना चाहिए। सावन में भगवान शिव को दूध चढ़ाकर पूजा की जाती है इसलिए दूध का सेवन करने से बचें। कभी भी शिवलिंग पर हल्दी तथा कुमकुम न चढ़ाएं और नारियल पानी से शिव जी को स्नान न कराएं। इसके अलावा शिव जी का जलाभिषेक करते समय कांस्य तथा पीतल के बर्तन का प्रयोग करना चाहिए। सावन में बैंगन खाना अच्छा नहीं माना जाता है इसलिए शिव जी की पूजा करने वालों को बैंगन खाने से बचना चाहिए।

   आस्था /शौर्यपथ / हिंदू धर्म में सप्ताह के हर एक दिन का अपना विशेष महत्व होता है। क्योंकि हर दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित होता है। शनिवार को शनिदेव की पूजा की जाती है। शनिवार को शनिदेव की पूजा करने से तमाम परेशानियों का अंत हो जाता है।
हिंदू धर्म में सप्ताह के हर एक दिन का अपना विशेष महत्व होता है। क्योंकि हर दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित होता है। जैसे रविवार का दिन भगवान सूर्य नारायण को समर्पित होता है। सोमवार का दिन भगवान भोलेनाथ, मंगलवार का दिन हनुमान जी, बुधवार का दिन गणेश जी, गुरुवार का दिन श्रीहरि विष्णु, शुक्रवार का दिन मां लक्ष्मी और शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित होता है।
आज हम इस आर्टिकल के जरिए शनिवार के दिन भगवान शनिदेव की उपासना का महत्व बताने जा रहे हैं। शनिवार के दिन शनिदेव और हनुमान जी की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाली परेशानियों का अंत हो जाता है।
पीपल की पूजा
    हिंदू धर्म में पीपल के पेड़ को बेहद पवित्र माना जाता है। मान्यता के अनुसार, पीपल के पेड़ में न सिर्फ शनिदेव बल्कि सभी देवताओं का वास होता है। शनिवार के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करने से व्यक्ति को सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिलती है। इसके साथ ही व्यक्ति को धन, समृद्धि, यश, कीर्ति आदि की प्राप्ति होती है। शनिवार की शाम को पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीया जलाने से जीवन में खुशहाली आती है।
तेल से करें अभिषेक
      जो व्यक्ति शनिवार के दिन शनि देव पर सरसों का तेल अर्पित करता है। उसे सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिलती है। बता दें कि शनिदेव की पूजा-अर्चना में सरसों के तेल का इस्तेमाल काफी शुभ माना जाता है। सरसों का तेल चढ़ाने से व्यक्ति को साढ़े साती और ढैय्या से मुक्ति मिलती है। व्यक्ति के रुके हुए कार्य पूरे होने लगते हैं। शनिवार को इस उपाय को करने से धन-य़श और कीर्ति की प्राप्ति होने के साथ ही नौकरी व व्यापार में सफलता मिलती है।
शमी वृक्ष की पूजा
  शनिवार के दिन शमी के पेड़ की पूजा करना काफी शुभ माना जाता है। बता दें कि शनिवार के दिन शमी के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाने से शनिदोष से मुक्ति मिलती है। वहीं यदि विवाह आदि में आने वाली रुकावट भी दूर होती है। वहीं जिन लोगों की कुंडली में शनि ग्रह कमजोर स्थिति में होता है, उन्हें अपने घर में शनिवार के दिन शमी का पौधा जरूर लगाना चाहिए। इससे काम में सफलता मिलने के साथ ही शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है।
नीले पुष्प चढ़ाएं
  धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक शनिवार के दिन शनिदेव को नीले रंग के फूल अर्पित करने चाहिए। क्योंकि शनिदेव को नीले रंग के फूल अतिप्रिय हैं। इसलिए शनिवार के दिन आप शनिदेव पर अपराजिता का फूल चढ़ा सकते हैं। यह फूल शनिदेव का काफी प्रिय होता है। शनिवार के दिन आप 5,7,11 अपराजिता के फूल शनिदेव के चरणों में अर्पित कर दें। इससे शनिदेव की कृपा आप पर बरसने लगेगी। वहीं आक के फूल भी नीले व बैंगनी रंग के होते हैं। इन फूलों को अर्पित करने से शनिदेव जल्दी प्रसन्न होते हैं।
असहाय लोगों की मदद
   मान्यता है कि शनिवार के दिन सामर्थ्य के अनुसार गरीबों और जरूरतमंदों को दान करना चाहिए। ऐसा करने से कई तरह के फायदे होते हैं। शनिवार के दिन जरूरतमंदों को काले तिल, काले चने, उड़द दाल और सर्दी में आप ऊनी कपड़े आदि दान कर सकते हैं। इससे शनिदेव प्रसन्न होते हैं।

    आस्था /शौर्यपथ /हिंदू धर्म में आक के पेड़ को काभी शुभ और पवित्र माना जाता है। मान्यता के अनुसार, आक के पेड़ में भगवान गणेश का वास होता है। अगर आप भी आर्थिक तंगी से परेशान हैं, तो आक के पौधे से जुड़े इन उपायों से सुख-समृद्धि आती है।
आक के पौधे को बेहद पवित्र पौधा माना जाता है। बता दें कि ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, आक के पौधे को घर में लगाना बेहद शुभ होता है। इस पौधे में भगवान गणेश का वास होता है। ज्योतिष में आक के पौधे से संबंधित कुछ उपायों और टोटकों के बारे में बताया गया है। इन उपायों को करने से रोग, धन और पारिवारिक कलह से छुटकारा मिलता है। वहीं आक के फूल से भगवान भोलेनाथ की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं आक के पौधे से जुड़े कुछ अचूक उपायों के बारे में...
भगवान शिव की पूजा
बता दें कि आक के पेड़ को आंकड़े का पौधा भी कहा जाता है। इसके फूल को भगवान शिव पर भी चढ़ाया जाता है। कहा जाता है कि आक का फूल शिवलिंग पर चढ़ाने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और उनकी विशेष कृपा बरसती है।
भगवान गणेश का वास

सफेद आक की जड़ में श्वेतार्क गणपति की प्रतिकृति निर्मित होती है। मान्यता के अनुसार, आक के पौधे की जड़ में भगवान गणेश की प्रतिकृति बनने में कई वर्षों का समय लगता है।

इस उपाय को करने से मिलेगी सफलता

मान्यता के अनुसार, जो भी व्यक्ति श्वेतार्क गणपति को अपने घर में स्थापित कर प्रतिदिन उसकी पूजा-अर्चना करता है। तो ऐसे में श्वेतार्क गणपति की प्रतिमा सिद्ध हो जाती है। जो व्यक्ति अपने घर में रोजाना इस प्रतिमा की पूजा करता है। उसे सुख और सफलता की प्राप्ति होती है।

धन की समस्या करें दूर

अगर किसी व्यक्ति के पास धन आदि की कमी रहती है, तो उसे अपने घर के मुख्य द्वार पर आक की जड़ को एक काले कपड़े में बांधकर लटका देना चाहिए। ऐसा करने से आपकी आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।

पाएं रोग से मुक्ति

अगर आपके घर में किसी सदस्य या बच्चे आदि की तबियत ज्यादा खराब रहती है। तो गुरु पुष्य या रवि पुष्य योग के दिन 11 आक के फूलों की माला बीमार सदस्य को पहना दें।

दूर होगा लड़ाई-झगड़ा

अगर किसी व्यक्ति के घर में आए दिन वाद-विवाद की स्थिति बनी रहती है। तो ऐसे व्यक्ति को रवि पुष्य नक्षत्र में लाल कपड़े में आक की जड़ को लपेटकर अपने घर में रखना चाहिए। ऐसा करने से लड़ाई-झगड़ा नहीं होता और सुख-समृद्धि बनी रहती है।

   आस्था /शौर्यपथ /शिवरात्रि हिन्दू परंपरा का एक बहुत बड़ा पर्व है। भगवान शिव को समर्पित यह त्योहार चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। सावन शिवरात्रि पर शंकर जी की पूजा निशिता काल मुहूर्त या फिर रात्रि जागरण कर चार प्रहर करना श्रेष्ठ माना जाता है।
आज सावन की शिवरात्रि है, इस साल की शिवरात्रि बहुत खास है। इस दिन शिव जी का पूजन करने से पूरे सावन की पूजा का फल मिलता है तो आइए हम आपको सावन की शिवरात्रि व्रत की कथा एवं महत्व के बारे में बताते हैं।
जानें सावन की शिवरात्रि के बारे में खास बातें
शिवरात्रि हिन्दू परंपरा का एक बहुत बड़ा पर्व है। भगवान शिव को समर्पित यह त्योहार चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। सावन शिवरात्रि पर शंकर जी की पूजा निशिता काल मुहूर्त या फिर रात्रि जागरण कर चार प्रहर करना श्रेष्ठ माना जाता है। इस साल सावन शिवरात्रि पर कई दुर्लभ योग का संयोग बन रहा है। पंडितों के अनुसार फाल्‍गुन महीने में आने वाली महाशिवरात्रि के समान ही सावन शिवरात्रि भी फलदायी है। हिन्दू धर्म में माना जाता है कि भगवान शिव का दिन सोमवार है और सावन उनकी पूजा के लिए अच्छा महीना माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार सावन के महीने में भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, नंदी और अपने शिवगणों सहित पूरे महीने धरती पर रहते हैं। इसी कारण सावन की शिवरात्रि के दिन भगवान शंकर की खास पूजा की जाती है।
कई नामों से जानी जाती है शिवरात्रि
वैसे तो वर्ष भर में शिवरात्रि 12 से 13 बार आती है। यह तिथि पूर्णिमा से एक दिन पहले त्रयोदशी को आती है। इसमें दो शिवरात्रि विशेष है उनमें सावन तथा फाल्गुन शामिल हैं। इस शिवरात्रि को अन्य नामों से बुलाया जाता है जैसे कांवर यात्रा, त्रयोदशी, शिवतरेश, भोला उपवास और महाशिवरात्रि। सावन की शिवरात्रि को खास इसलिए भी माना जाता है क्योंकि इस दिन कांवर यात्रा सम्पन्न होती है।
शिवरात्रि के दिन ऐसे करें पूजा
सावन की शिवरात्रि को प्रातः उठकर स्नान से निवृत्त होकर साफ कपड़े धारण करें। मंदिर या शिवालय जाकर शिवलिंग के पास जाकर प्रार्थना करें। विशेष फल की प्राप्ति के लिए चने की दाल का इस्तेमाल करें। ऐसा माना जाता है कि सावन की शिवरात्रि पर भगवान शंकर को तिल चढ़ाने से पापों का नाश हो जाता है। घर में समृद्धि के लिए धतूरे के फूल या फल का भोग लगा सकते हैं। अब 'ॐ नमः शिवाय' का जाप करते हुए शिवलिंग पर बेल पत्र, फल-फूल चढ़ाएं।
सावन शिवरात्रि 2023 मुहूर्त
सावन कृष्ण चतुर्दशी तिथि शुरू- 15 जुलाई 2023, रात 08.32
सावन कृष्ण चतुर्दशी तिथि समाप्त-  16 जुलाई 2023, रात 10.08
निशिता काल मुहूर्त- 16 जुलाई 2023, प्रात: 12.07 - प्रात: 12.48
सावन शिवरात्रि व्रत पारण समय
16 जुलाई 2023 को शिवरात्रि व्रत का पारण सूर्योदय के बाद किया जाएगा। इस दिन 05.33 - दोपहर 03.54 मिनट तक शिवरात्रि व्रत खोल सकते हैं।
सावन की शिवरात्रि पूजा में इन सामग्रियों को करें शामिल
पंडितों के अनुसार पूजा में इन सामग्रियों को शामिल करना लाभदायी होगा। गंगाजल, जल, दूध दही, शुद्ध देशी घी, शहद, पंच रस, इत्र, गंध रोली, मौली जनेऊ, आम्र मंजरी, जौ की बालें, पुष्प, पूजा के बर्तन, कुशासन, मदार पुष्प, पंच मिष्ठान्न, बेलपत्र, धतूरा, भांग, बेर, गुलाल, अबीर, भस्म, सफेद चंदन,  पंच फल, दक्षिणा,  गन्ने का रस, कपूर, धूप, दीप, रूई, मलयागिरी, चंदन, शिव जी और मां पार्वती की श्रृंगार की सामग्री आदि।
सावन शिवरात्रि व्रत की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार वाराणसी के घने जंगल में गुरुद्रुह नाम का एक भील शिकारी अपने परिवार के साथ निवास करता था। एक दिन गुरुद्रुह शिकार करने के लिए निकल लेकिन उसके हाथ एक भी शिकार न लगा। लंबे समय तक इंतजार करने के बाद वो जंगल में शिकार की तलाश करता हुआ वह एक बेल के पेड़ पर चढ़ गया। उस पेड़ के नीच एक शिवलिंग स्थापित था। कुछ देर बाद वहां भटकता हुआ हिरनी आई। जैसे ही गुरूद्रुह ने हिरनी को देखा उसने तीर-धनुष तान लिया। लेकिन तीर हिरनी को लगता उससे पहले ही उसके पास रखा जल और पेड़ से बेलपत्र शिवलिंग पर गिर गए। ऐसे में गुरुद्रुह ने अंजाने में शिवरात्रि के पहले पहर की पूजा की। जब हिरनी ने देखा तो उसने शिकारी से कहा कि मेरे बच्चे मेरी बहन के पास इंतजार कर रहे हैं।
मैं उन्हें सुरक्षित जगह छोड़कर दोबारा आती हूं।  कुछ समय बाद हिरनी की बहन वहां से गुजरी और उस समय भी गुरूद्रुह ने अनजाने में महादेव की उसी प्रकार से दूसरे पहर की पूजा की। हिरनी की बहन ने भी वही दुहाई देते हुए वापस आने का वादा किया। दोनों हिरनियों को खोजता हुआ वहां तीसरे पहर में हिरन पहुंचा। इस बार ऐसी घटना घटित हुई और शिवरात्रि के तीसरे पहर की भी पूजा शिकारी ने अनजाने में कर ली। हिरन ने भी बच्चों की दुहाई देते हुए कुछ समय बाद आने का वादा किया।  
तीन पहर बीतने के बाद तीनों हिरन-हिरनी वादे के मुताबिक शिकारी के पास वापस लौट आए। लेकिन इस बीच भूख से कलपते हुए पेड़ से बेलपत्र तोड़ते तोड़ते वो नीचे शिवलिंग पर डालने लगा और इस तरह चौथे पहर की भी पूजा हो गई। चारों पहर भूखा-प्यासा रहते हुए और अंजाने में भगवान की पूजा करके गुरूद्रुह के सभी पाप धुल गए। तब भगवान शिव ने प्रत्यक्ष रूप से दर्शन देकर उन्हें आशीर्वाद दिया कि त्रेतायुग में भगवान विष्णु के अवतार श्री राम उसके घर पधारेंगे और उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी। इस प्रकार अंजाने में किए गए शिवरात्रि व्रत से भगवान शंकर ने शिकारी को मोक्ष प्रदान कर दिया।
शिवरात्रि के दिन ऐसे करें अभिषेक
शिवरात्रि के दिन सुबह जल्दी उठकर सबसे पहले स्नान करें। इसके बाद साफ कपड़े पहनकर मंदिर जाएं। मंदिर जाते समय जल, दूध, दही, शहद, घी, चीनी, इत्र, चंदन, केसर, भांग सभी को एक ही बर्तन में साथ ले जाएं और शिवलिंग का अभिषेक करें।
लगाएं शिव को भोग
शिव को गेहूं से बनी चीजें अर्पित करनी चाहिए। शास्त्रों का मानना है कि ऐश्वर्य पाने के लिए शिव को मूंग का भोग लगाया जाना चाहिए। वहीं ये भी कहा जाता है कि मनचाहा जीवनसाथी पाने के लिए शिव को चने की दाल का भोग लगाया जाना चाहिए। शिव को तिल चढ़ाने की भी मान्यता है। कहा जाता है कि शिव को तिल चढ़ाने से पापों का नाश होता है।

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